वीरश्री आंबेकर / नई मुंबई
मूल रूप से कोल्हापुर की रहने वाली रंजना बालासाहेब शिंत्रे १९९५ में शिवसेना की नगरसेविका चुनी गर्इं। उन्हें समाजसेवा की घुट्टी उनके जन्म से ही मिली थी, क्योंकि उनकी माताजी एक ग्रामसेविका थीं। उस वक्त नगरसेविका बनने पर मनोहर जोशी ने उनका अभिनंदन किया। १९९७ में उन्हें शिक्षा, महिला, बाल कल्याण, समाज कल्याण, सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेल समिति के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। रंजना शिंत्रे ने महिलाओं के लिए विभिन्न प्रशिक्षण कक्षाएं आयोजित कीं। १४ गांवों के स्कूलों में ट्यूबलाइट और पंखे लगवाए। नेरुल में सिडको भवन में छात्रों के लिए एक स्कूल शुरू करवाया। पंजीकृत २० महिला मंडलों को सिलाई मशीनें वितरित की गर्इं। १३ पुस्तकालयों के लिए ५,००० रुपए की किताबें खरीदकर मुहैया कराई गर्इं। १७ बालवाड़ियों को पांच-पांच हजार की सब्सिडी दी गई। विधवा लड़कियों की शादी के लिए पांच-पांच हजार रुपये की मदद की। यह सब करते हुए उन्होंने खुद को अपने गांव से जोड़े रखा। वे कोल्हापुर के अजरा तालुका के सरमभलवाड़ी में हिरण्यकेशी शिक्षा प्रसारण मंडल की अध्यक्ष हैं। २००३ में उप नगर संगठक बनने के बाद २००९ से वे नई मुंबई की जिला संगठक के रूप में कार्य कर रही हैं।
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२०१२ में महंगाई विरोधी मार्च के दौरान पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज किया था। इसका प्रमाण उस समय के समाचार पत्रों में दफन है। इतनी उम्र होने के बावजूद वे आज भी उसी मजबूती के साथ संगठन के लिए काम कर रही हैं। वे महिलाओं को राजनीतिक सीख दे रही हैं कि उन्हें राजनीति में हिस्सा लेना चाहिए। रंजना ताई इस बात का जीता जागता उदाहरण हैं कि एक महिला राजनीति और सामाजिक कार्य करते हुए अपने दोनों बेटों को इंजीनियर बनाने में किस तरह सफल रही। रंजन ताई के नाम से मशहूर ताई कहती है कि उनकी जिंदगी में उनको इस बात का सबसे बड़ा गर्व है कि वे एक ईमानदार कट्टर शिवसैनिक हैं। हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे के प्रति उनके मन में आगाध श्रद्धा है। ताई कहती हैं कि उनकी वफादारी हमेशा मातोश्री के साथ रही है और ताउम्र रहेगी।
मातोश्री के प्रति वफादार- रंजना शिंत्रे
मीडिया पर सरकार कसेगी नकेल! … अखबारों से लेकर वेबसाइट तक खबरों पर रखेगी नजर
सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य की महायुति सरकार ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया की नकेल कसने की रणनीति तैयार कर ली है। समाचार सामग्री का विश्लेषण करने के लिए एक मीडिया निगरानी केंद्र स्थापित करेगी और इसके लिए १० करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है। प्रकाशित एक सरकारी प्रस्ताव जीआर के अनुसार, यह केंद्र प्रिंट और प्रसारण मीडिया में प्रकाशित, सभी तथ्यात्मक और भ्रामक समाचार खबरों को एकत्र कर उनका विश्लेषण करेगा और एक तथ्यात्मक रिपोर्ट तैयार करेगा।
प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर कोई खबर भ्रामक पाई गई तो उसे उसी समय स्पष्ट किया जाएगा। नकारात्मक खबर पर भी यथाशीघ्र स्पष्टीकरण दिया जाएगा। सरकारी आदेश के अनुसार, प्रकाशनों, चैनलों और डिजिटल प्लेटफॉर्मों की बढ़ती संख्या के कारण इस केंद्र की आवश्यकता महसूस की गई, जिससे सरकारी योजनाओं और नीतियों से संबंधित समाचारों की निगरानी एक ही केंद्र के माध्यम से की जा सके।
यह केंद्र प्रतिदिन सुबह आठ बजे से रात दस बजे तक संचालित होगा और इसका प्रबंधन सूचना और प्रचार निदेशालय द्वारा किया जाएगा। जीआर में कहा गया है कि केंद्र की स्थापना के लिए सरकार ने प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृति दे दी है। सरकार से संबंधित समाचारों को पीडीएफ प्रारूप में एकत्र करने के लिए एक पेशेवर सलाहकार को नियुक्त किया जाएगा।
विधानपरिषद में सत्तारूढ़ दल का हंगामा …भय्याजी जोशी के बयान से ध्यान हटाने की कोशिश …तीन बार स्थगित करनी पड़ी सदन की कार्यवाही
सामना संवाददाता / मुंबई
आरएसएस के नेता भय्याजी जोशी ने मराठी का अपमान करने वाला विवादित बयान दिया था। इसके बाद विधानमंडल के दोनों सदनों में विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ दल को जोरदार तरीके से निशाने पर लिया। हालांकि, इस बयान से ध्यान हटाने के लिए अनिल परब द्वारा दिए गए बयान को तोड़-मरोड़कर पेश करते हुए कल सत्ताधारी दल ने ही हंगामा शुरू कर दिया। इसलिए सदन का कामकाज तीन बार स्थगित करना पड़ा। आरएसएस के नेता भय्याजी जोशी ने कहा था कि घाटकोपर की भाषा गुजराती है। मुंबई में मराठी बोलना चाहिए, ऐसा नहीं है। इन शब्दों का इस्तेमाल कर एक तरह से उन्होंने मराठी भाषा का अपमान किया। उस पर विपक्षी दलों ने गुरुवार को सत्ताधारियों को विधानमंडल के दोनों सदनों में जमकर निशाने पर लिया। इस विवादित बयान से ध्यान हटाने के लिए दोपहर १२ बजे जैसे ही सदन का कामकाज के दौरान प्रश्नोत्तर काल शुरू होने वाला था, वैसे ही अनिल परब के सदन में दिए गए बयान पर आपत्ति जताई। इसे लेकर सत्तारूढ़ दल के सदस्यों ने जमकर हंगामा शुरू कर दिया। इस बीच सभापति राम शिंदे ने दोनों तरफ के सदस्यों को रोकने की कोशिश की। इस दौरान सदन का कामकाज चलता रहे और समय की बर्बादी न हो यह स्पष्ट करते हुए परिषद के नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे ने अनिल परब के बयान पर खेद जताया। इस दौरान अनिल परब ने स्पष्ट करते हुए कहा कि मैं छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की पूजा करता हूं। उन्हें देवता मानता हूं और मैंने खुद की तुलना उनसे नहीं की हूं। राज्यपाल का भी अपमान नहीं किया हूं। इसलिए माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता है।
इन्फ्लुएंसर तारिक खत्री ने बनाया नया विश्व रिकॉर्ड …भारत के लिए सोशल मीडिया विज्ञापन में हासिल की लोकप्रियता
सामना संवाददाता / मुंबई
तारिक मुश्ताक खत्री ने सोशल मीडिया विज्ञापन में नया विश्व रिकॉर्ड बनाया है। मुंबई प्रेस क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में तारिक खत्री को डिजिटल मार्वेâटिंग में दक्षता के मामले में विश्व रिकॉर्ड बनाने के लिए आधिकारिक रूप से सम्मानित किया गया। यह उपलब्धि न केवल तारिक खत्री की असाधारण प्रतिभा को उजागर करती है, बल्कि भारत को डिजिटल मार्वेâटिंग उद्योग में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करती है। इस दौरान तारिक खत्री के हालिया अभियान की अभूतपूर्व सफलता को प्रदर्शित किया गया।
९० दिनों के दौरान तारिक ने १८३ मेटा विज्ञापन चलाए, जिन्होंने ५.६६ करोड़ व्यूज और २.५७ करोड़ एंगेजमेंट्स हासिल किए, जबकि विज्ञापन पर खर्च केवल ४,१७,४२० रुपए (लगभग ५००० अमेरिकन डॉलर), इसका मतलब प्रति एंगेजमेंट केवल १६.२४ रुपए (०.१९ अमेरिकन डॉलर) होता है और प्रति दस लाख व्यूज की लागत ७,३७० रुपए (८८ अमेरिकन प्रतिशत) होता है, जो इसे इतिहास के सबसे किफायती इन्फ्लुएंसर अभियानों में से एक बनाता है।
वैंâपेन के मुख्य आंकड़े कुल रिच २.६ करोड़ लोग, जिसमें २४५.३ प्रतिशत की वृद्धि हुई। एंगेजमेंट रेट:२.६ करोड़ रिच पर २५७ करोड़ एंगेजमेंट्स, जिससे ९९ प्रतिशत इंटरैक्शन रेट हासिल हुआ, यह आंकड़ा वैश्विक इन्फ्लुएंसर्स के लिए भी दुर्लभ है। लागत दक्षता: यह अभियान पारंपरिक इन्फ्लुएंसर मार्वेâटिंग के मानकों को पीछे छोड़ता है, जहां प्रति एंगेजमेंट की लागत वैश्विक औसत से १० गुना अधिक किफायती है। स्केलेबिलिटी: ९० दिनों में १८३ विज्ञापन चलाने की क्षमता एक मजबूत और स्केलेबल अभियान रणनीति को दर्शाती है।
विश्व रिकॉर्ड प्रस्तुतीकरण
अभियान की सफलता को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में सत्यापन के लिए प्रस्तुत किया गया है। यदि पुष्टि होती है तो यह इन्फ्लुएंसर मार्वेâटिंग में लागत दक्षता के मामले में पहला विश्व रिकॉर्ड होगा, जो उद्योग के लिए एक नया मानक स्थापित करेगा।
लागत दक्षता और एंगेजमेंट रेट के मामले में अद्वितीय
वैश्विक तुलना वैश्विक इन्फ्लुएंसर्स की तुलना में तारिक खत्री का अभियान अपनी लागत दक्षता और एंगेजमेंट रेट के मामले में अद्वितीय है। उदाहरण के लिए क्रिस्टियानो रोनाल्डो और मिस्टरबीस्ट जैसे वैश्विक इन्फ्लुएंसर्स उच्च एंगेजमेंट हासिल करते हैं, लेकिन उनकी प्रति एंगेजमेंट लागत काफी अधिक होती है। तारिक के अभियान ने साबित कर दिया है कि भारतीय इन्फ्लुएंसर्स ब्रांड्स के लिए बेहतर आरओआई प्रदान कर सकते हैं, जिससे भारत वैश्विक डिजिटल मार्वेâटिंग निवेश के लिए एक पसंदीदा गंतव्य बन गया है।
एसबीआई में गड़बड़झाला … १३ मुर्दों को मिला लाखों का लोन!
– कैशियर व कैंटीन बॉय की काली करतूत का पर्दाफाश
– गोरखपुर से सामने आया चौंकाने वाला मामला
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में गबन का हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। बैंक कर्मियों ने कैंटीन बॉय के साथ मिलकर लगभग ७० लाख रुपए फर्जी तरीके से निकाल लिए। ये मामला गोरखपुर में जंगल कौड़िया स्थित एसबीआई की शाखा का है, जहां से ७०.२० लाख रुपए का फर्जी तरीके से लोन निकाल कर गबन किया गया है। इस पूरे मामले में बैंक कर्मियों ने कैंटीन बॉय के साथ मिलकर १३ ‘मुर्दों’ के नाम से लोन पास कराकर पैसा निकाल लिया। यह मुर्दे रिटायर्ड कर्मचारी थे, जिनका बैंक में पेंशन खाता था और उनकी मौत हो चुकी थी। इस अनोखे गबन के मामले में गुरुवार को लखनऊ से आए एसबीआई के सहायक महाप्रबंधक ने जंगल कौड़िया चौकी पर पहुंच कर अपनी जांच रिपोर्ट विवेचक को सौंप दी। अब इस रिपोर्ट के आधार पर पुलिस इस मामले में आगे की कार्रवाई करेगी।
दरअसल, जंगल कौड़ियां स्थित भारतीय स्टेट बैंक से कूटरचित दस्तावेज का प्रयोग कर पेंशनर्स व मुर्दों के खातों के साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड के खातों से लोन स्वीकृत कर जालसाजी की गई। पीपीगंज पुलिस ने इस मामले में बैंक प्रबंधक, कैशियर और कैंटीन
बॉय के खिलाफ केस दर्ज किया था। जंगल कौड़िया शाखा के खाताधारक राजू ने तारामंडल स्थित भारतीय स्टेट बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय पर ४ जनवरी २०२४ को शिकायत कर बताया था कि उनके खाते से फर्जी तरीके से ३ लाख रुपए बैंक कर्मी ने कैंटीन बॉय पंकज मणि त्रिपाठी के खाते में ट्रांसफर कर हड़प लिए हैं।
नहीं टूटेगा विशालगढ़ किले पर अवैध निर्माण …हाई कोर्ट ने लगाया ब्रेक
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई हाई कोर्ट ने विशालगढ़ किले पर बने कथित अवैध निर्माणों को तोड़ने के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। अदालत ने कहा कि बिना उचित सुनवाई के की गई कार्रवाई न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होगी और इससे गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
मामले की शुरुआत तब हुई, जब महाराष्ट्र पुरातत्व विभाग ने ५ फरवरी २०२५ को आदेश जारी कर किले पर बने कुछ निर्माणों को अवैध घोषित किया था। आदेश में निवासियों और व्यापारियों को ३० दिनों के भीतर निर्माण हटाने के लिए कहा गया था। ऐसा न करने पर प्रशासन ने बलपूर्वक कार्रवाई की चेतावनी दी थी।
इस पैâसले के खिलाफ कई स्थानीय निवासियों और व्यापारियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि उनके मकान और दुकानें १९९९ से पहले बनी थीं इसलिए इन्हें अवैध नहीं माना जा सकता। उन्होंने अदालत के सामने मतदाता सूची, स्कूल प्रमाणपत्र, भूमि राजस्व दस्तावेज जैसे प्रमाण प्रस्तुत किए, ताकि यह साबित किया जा सके कि निर्माण नए नहीं हैं। न्यायमूर्ति अमित बोरकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष को गंभीरता से लेते हुए कहा कि प्रशासन ने सिर्फ निर्माण अनुमति से जुड़े दस्तावेजों के आधार पर अवैध करार देने का निर्णय लिया, जबकि जांच किए बिना ही आदेश जारी कर दिया।
मोदीराज में अर्थव्यवस्था आईसीयू में मोदी-शाह ने लोगों के लाखों-करोड़ों डुबाए!
केंद्र सरकार पर जमकर बरसे संजय सिंह
शेयर मार्वेâट ध्वस्त होने पर आम आदमी पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर तीखा हमला बोला है। पार्टी के वरिष्ठ नेता व सांसद संजय सिंह ने कहा, `मोदी राज में देश के शेयर मार्वेâट का बुरा हाल है और अर्थव्यवस्था आईसीयू में हैं लेकिन मोदी जी शेरों के साथ फोटो शूट में मस्त हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी और अमित शाह ने लोगों को सलाह दी थी कि ४ जून के बाद शेयर मार्वेâट आसमान छू लेगा, शेयर मार्वेâट में खूब पैसा लगाएं। उन पर भरोसा कर लोगों ने अपनी जमा-पूंजी लगा दी और उनके ९४ लाख करोड़ रुपए डूब गए।’ आम आदमी पार्टी की तरफ से गुरुवार को पार्टी मुख्यालय में प्रेसवार्ता की गई। बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा, `मोदी जी के राज में भारत के ऊपर २०० लाख करोड़ का कर्ज है, देश पर ५० वर्षों की बेरोजगारी की सबसे बड़ी मार है। भारत में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब भाजपा की सरकार बनी तब एक डॉलर की कीमत ६० रुपए थी और आज एक डॉलर की कीमत ८७ रुपए है। २०१४ में खुद प्रधानमंत्री ने कहा था कि जब रुपए की कीमत गिरती है, तब हिंदुस्तान की इज्जत गिरती है। पिछले १० वर्षों के मोदी राज में रुपए की कीमत लगातार गिरती गई है और एक डॉलर के मुकाबले भारत का रुपया ६० से ८७ पर पहुंच गया।’
उड़ता तीर : ब्रिटेन में तिरंगे का अपमान जागो इंडिया जागो
विजय कपूर
ये कैसा वीआईपी प्रोटोकॉल
इन दिनों छह दिन की ब्रिटेन यात्रा पर गए विदेश मंत्री एस. जयशंकर गुजरे ५ मार्च, २०२५ को जब लंदन के चौथम हाउस थिंक टैंक में ‘भारत का उदय और विश्व में भूमिका’ विषय पर संवाद सत्र में भाग लेकर वापस जा रहे थे, तभी एक खालिस्तानी आंदोलनकारी ने न सिर्फ उन पर बढ़कर हमले की कोशिश की, बल्कि विदेश मंत्री के सामने ही हमारे राष्ट्रीय ध्वज को फाड़ दिया और देश के विरुद्ध अपमानजनक नारे लगाए। हालांकि, ब्रिटिश पुलिस ने इस शख्स को तुरंत दबोच लिया, लेकिन वो चाहती तो ऐसी नौबत ही न आने देती। हिंदुस्थान में हम किसी ब्रिटिश नागरिक के आसपास तो दूर ब्रिटिश हाई कमीशन से भी आंदोलनकारियों को ५० गज दूर रखते हैं। नई दिल्ली स्थित किसी भी विदेशी दूतावास या हाई कमीशन के बाहर जब भी कोई विरोध प्रदर्शन होता है तो पुलिस किसी तरह का जोखिम उठाते हुए प्रदर्शनकारियों को कम से कम ५० गज दूर रखती है। कोई गफलत पैदा न हो इसलिए ५० गज दूर एक रस्सी बांध दी जाती है।
लेकिन विदेशों में चाहे ब्रिटेन हो या कनाडा, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के नाम पर ये भारत विरोधी ताकतों को सिर पर चढ़ाकर रखते हैं। लंदन में वायरल हुए वीडियो से पता चलता है कि भारत विरोधी प्रदर्शनकारी विदेश मंत्री के ४-५ मीटर तक पहुंच गया था, यह खतरनाक हो सकता था। हालांकि, पूरे समय वहां ब्रितानी पुलिस मौजूद थी, लेकिन इसी वजह से तो यह और खतरनाक है। आमतौर पर वीआईपी प्रोटोकॉल के चलते सिर्फ किसी वीआईपी की जान की सुरक्षा का ही प्रोटोकॉल नहीं होता, बल्कि उसके निकट किसी अपमानजनक स्थितियां या असहज करनेवाला माहौल न पैदा हो, इसका भी ध्यान रखा जाता है। लेकिन इस संदर्भ में वायरल हुए वीडियो में दिख रहा है कि प्रदर्शनकारी ने विदेश मंत्री के नजदीक पहुंचकर न केवल तिरंगे को फाड़ा, बल्कि भारत के खिलाफ अपमानजनक नारे भी लगाए, जिसे साफ सुना जा सकता है। भारत सरकार को यह सब हल्के में नहीं लेना चाहिए, भले ब्रितानी प्रधानमंत्री ही क्यों न इस सबके लिए माफी मांग लें। क्योंकि वह एक औपचारिक माफी होगी, जबकि भारत के विरोधी तो पूरी दुनिया के सामने हमारा विरोध करने की अपनी कुटिल रणनीति में सफल ही हो गए।
लोकतंत्र के नाम पर
सवाल है ब्रिटेन हो या कनाडा, नीदरलैंड हो या अमेरिका, जर्मनी हो या प्रâांस। आखिर पश्चिमी देशों में भारत विरोधियों को मानवाधिकारों और लोकतंत्र के नाम पर इस तरह सिर क्यों चढ़ाया जाता है? यह कोई सहजता में घट जानेवाली घटना नहीं है, इसके पीछे दूरगामी राजनीतिक और कूटनीतिक वजहें हैं। ब्रिटेन में भारतीय प्रवासियों का एक बड़ा समुदाय है, जिसमें बड़ी तादाद में पंजाबी सिक्ख हैं। ये समुदाय राजनीति में सक्रिय है और कुछ थोड़े से तत्व इनमें खालिस्तानी विचारधारा का समर्थन करते हैं। अब चूंकि ब्रितानी लेबर पार्टी सिक्ख वोट हासिल करने के लिए खालिस्तान समर्थकों के प्रति नरमी बरतती है, इसलिए ब्रिटेन में न सिर्फ कई सांसद खालिस्तानी समर्थकों से जुड़े होते हैं, बल्कि उनके दबाव में जब, तब ये भारत विरोधी बयान भी देते रहते हैं। इसके अलावा एक दूसरा बड़ा कारण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पाखंड है। पश्चिमी देश खुद की संप्रभुता को तो इतना महत्वपूर्ण मानते हैं कि उसके आसपास भी किसी तरह के विचार को फटकने नहीं देते, लेकिन भारत की स्वतंत्रता और संप्रभुता उन्हें कतई महत्वपूर्ण नहीं लगती। यहां तक कि ऐतिहासिक और अपनी मनोवैज्ञानिक भावनाओं से तो ये इसका मन ही मन विरोध भी करते हैं। उन्हें लगता है कि अभी कुछ दशकों तक तो भारत हमारा गुलाम था, आज विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने की शान वैâसे पा रहा है? यही वजह है कि चाहे कनाडा हो या ब्रिटेन, इन देशों में जहां-जहां कॉमन वेल्थ छतरी और संस्कार हैं, वहां-वहां जानबूझकर भारत को कम महत्व देने की सजग कोशिश की जाती है।
ब्रिटिश सरकार को बहुत अच्छी तरह से पता है कि पिछले काफी दिनों से मुट्ठीभर खालिस्तानी, कनाडा से लेकर अमेरिका तक रह रहकर भारत विरोधी प्रदर्शन का मौका ढूंढ़ते रहे हैं। ऐसे में जब भारतीय विदेश मंत्री अपनी महत्वपूर्ण यात्रा के दौरान ब्रिटेन में मौजूद हों और उनके खिलाफ भारत विरोधी आंदोलन करने में सिर के बल खड़े हों, तब तो ब्रितानी सरकार और स्थानीय प्रशासन को अतिरिक्त सजगता बरतते हुए इन्हें भारतीय विदेश मंत्री के आसपास भी कहीं नहीं फटकने देना चाहिए था। लेकिन ब्रिटेन का शासन ही नहीं, बल्कि प्रशासन भी अभी तक औपनिवेशिक हैंगओवर से बाहर नहीं आया। ब्रिटेन अभी भी भारत को छोटे भाई के सरीखे व्यवहार करने का आदी है। क्योंकि ब्रिटेन ने कभी भारत पर औपनिवेशिक राज किया था, इसलिए वह हमारी ताकत, दुनिया में मिलने वाले हमारे महत्व के संदर्भ में सहज नहीं है। भारत एक ग्लोबल पावर के रूप में उभर रहा है, यह बात इन्हें किसी भी तर्क से हजम नहीं होती। इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से ये तमाम देश अपने यहां भारत विरोधी ताकतों को हवा देकर हमें दबाव में रखने की कोशिश करते हैं। सिर्फ भारत विरोधी, भारतीय ताकतें ही नहीं, बल्कि ब्रिटेन में पाकिस्तान की लॉबिंग भी काफी मजबूत है। हम सब जानते हैं कि किस तरह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई हमेशा ही खालिस्तानी आंदोलनकारियों के कंधे में हाथ रखती रही है। इस समय भी तमाम मीडिया खबरें जो छन-छनकर बाहर आ रही हैं, उनसे साफ है कि ब्रिटेन हो या कनाडा हर जगह खालिस्तानी ताकतों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई हवा दे रही है।
सख्त हो भारत सरकार
भारत को इन सारी हकीकतों को जानते हुए ब्रिटेन के खिलाफ विदेश मंत्री जयशंकर पर हमले की कोशिश और उनके सामने तिरंगे के अपमान को जरा भी हल्के में नहीं लेना चाहिए, बल्कि सख्त से सख्त कदम उठाने चाहिए। हमें ब्रिटेन को कड़ा संदेश देना चाहिए कि वह हमें हल्के में नहीं ले सकता। क्योंकि फिलहाल हमें ब्रिटेन की कम, ब्रिटेन को हमारी जरूरत ज्यादा है। पिछले दो सालों से अलग-अलग ब्रितानी प्रधानमंत्री यूं ही भारत के आगे-पीछे घूमकर व्यापार समझौते की कोशिश नहीं कर रहे, आज भारत दुनिया के व्यापार नक्शे में एक बड़ी ताकत है और भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की तेजी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था है। ब्रिटेन को हमारी इस विकास कर रही अर्थव्यवस्था से अपने फायदे वाला व्यापार समझौता भी करना है। हमसे कई तरह की रियायतें भी लेनी हैं और हमें कूटनीतिक और मनोवैज्ञानिक रूप से छोटा भी साबित करना है, ऐसा हो नहीं सकता। भारत को ब्रिटेन सहित सारी पश्चिमी सरकारों को सख्त लहजे में संदेश देना चाहिए कि वो किसी भी भारत विरोधी रवैये को जरा भी बर्दाश्त नहीं करेगा। ब्रिटेन खुद अपने देश में किसी भी अलगाववादी या आतंकवादी को बर्दाश्त नहीं करता। हम सब जानते हैं कि स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता को लेकर उसका कितना लौहशक्ति वाला रुख रहा है। लेकिन जब बात हमारी स्वतंत्रता या संप्रभुता की आती है तो ब्रिटेन हमें ‘टेकन फॉर ग्रांटेड’ लेने की कोशिश करता है। साल २०२३ में भी लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग पर इसी तरह से हमला हुआ था और तब भी भारतीय ध्वज का अपमान किया गया था। लेकिन भारत सरकार का तब भी रवैया ढुलमुल ही रहा था।
अगर तब सरकार ने सख्त कदम उठाए होते तो आज यह नौबत नहीं आती। भारत सरकार को ब्रिटिश सरकार से यह सख्त सवाल तो पूछना ही चाहिए कि जब राजनयिक प्रोटोकॉल ५० मीटर की दूरी से विरोध प्रदर्शन का है तो फिर विरोधी विदेश मंत्री एस. जयशंकर के १५-१६ फुट तक नजदीक वैâसे पहुंच गए, वह भी तब जबकि वहां ब्रिटेन की पुलिस पहले से ही मौजूद थी? इसका मतलब साफ है कि ब्रितानी पुलिस को प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध सख्ती न पालन करने का निर्देश था या फिर ब्रितानी पुलिस हमें और हमारे विदेश मंत्री को कुछ नहीं समझती। भारत सरकार को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री तक सख्त लहजे में यह संदेश पहुंचाना ही होगा कि हम अपने किसी महत्वपूर्ण नागरिक और हमारे स्वाभिमान का जीता-जागता रूप तिरंगे को किसी भी कीमत पर अपमानित नहीं होने देंगे। अगर भारत सरकार २०२३ की तरह इस बार भी विरोध जताने की खानापूर्ति भर करके रह गई, तो आनेवाले दिनों में भारत विरोधी ताकतें और ज्यादा मनबढ़ हो जाएंगी।
(लेखक सम-सामयिक विषयों के विश्लेषक हैं)
महिला दिवस विशेष : महिला उत्पीड़न के खिलाफ बुलंद आवाज…
हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री का सच में हमने महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार, यौन उत्पीड़न और लैंगिक भेदभाव पर काफी कुछ लिखा। ऐसे लोगों की कमी भी नहीं है, जो इस तरह के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने में कामयाब रही हैं। डैश रंबल और कैटलिन बेकर उनमें से एक हैं।
उसने अभी-अभी बस रेस्टोरेंट ज्वाइन किया था। वैसे भी जब आप नए एम्प्लॉय होते हैं तो अक्सर आपको कुछ ऐसे तत्व जो सेडेटिव होते हैं या फिर महिलाओं को उत्पीड़न करने के आदी होते हैं, उनका निशाना बनना पड़ता है।
अभी-अभी वह जब टेबल पर सर्व कर रही थी तो एक पुरुष कस्टमर ने उसका हाथ पकड़ लिया था। उसने उसे मेज पर खींचा और उसके शरीर के कुछ हिस्सों को छूने की कोशिश की। उसे तकलीफ इस बात की हो रही थी कि उसके सहकर्मियों ने कस्टमर की उस हरकत को अनदेखा कर दिया और न ही उसे मदद करने सामने आए, वे सीनियर सहकर्मी थे।
जब उसने इस अभद्रता की शिकायत अपने मैनेजर से की तो उसने कोई गंभीरता प्रकट नहीं की। उसे बुरा इस बात का भी लगा था कि मैनेजर ने उल्टे सवाल किया, `कस्टमर ने और कुछ बदतमीजी तो नहीं की…?’
कुछ वक्त बीता ही था कि उसे और एक आश्चर्य का झटका लगा। उसके एक वरिष्ठ सहकर्मी ने उसका हाथ थाम लिया था। उसके अप्रत्याशित हमले से वो सकते में आ गई थी।
उसके साथ यौन उत्पीड़न की घटनाएं एक बार नहीं, कई दफा हुर्इं।
एक दिन उसके एक सहकर्मी ने उससे पूछ लिया था कि उसे कौन सी पोजीशन ज्यादा अच्छी लगती है? कई बार उसे असली चित्र दिखाए गए थे। हर बार या तो उसे ऐसा लगता था कि वह इसकी रिपोर्ट करने के लिए पर्याप्त आश्वस्त नहीं है या फिर उसे लगता था कि यदि उसने ऐसा किया तो उसे समर्थन नहीं मिलेगा।
यह बात तो यौन उत्पीड़न की थी, लेकिन जैसे-जैसे वे आगे बढ़ती गर्इं, उन्हें लैंगिक भेदभावपूर्ण रवैए का भी सामना करना पड़ा तथा लोग मैनेजर पद पर एक महिला के रूप में उनका सम्मान नहीं करते थे। लेकिन वह अब हार मानने वालों में से नहीं थी। उसने पक्का मन बना लिया था कि हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में छाई इस गंदगी के खिलाफ तो आवाज उठाएंगी।
आज वह मालकिन है कई रेस्टोरेंट की। इसके अलावा वह न केवल सच और सच की सह-मालकिन हैं, बल्कि वैâनबरा के पायलट की भी सह-मालकिन हैं, क्योंकि वह जानती है कि इस इंडस्ट्री में महिलाओं के साथ उत्पीड़न आम बात है। उन्होंने इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि उनके ग्रुप के सभी रेस्टोरेंट व अन्य होटल में महिलाओं के साथ न तो छेड़छाड़ हो और न उनका लैंगिक भेदभाव।
एक अन्य महिला जिन्होंने हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में किसी तरह की इसी तरह के भेदभाव का सामना किया था, उन्होंने भी हार न मानने की ठान ली। पहले किरदार का नाम है डैश रंबल और दूसरे किरदार का नाम है वैâटलिन बेकर। पुरस्कार विजेता ये महिलाएं हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में व्याप्त लैंगिक भेदभाव और उत्पीड़न से निपट रही हैं। उन्होंने वीनस विनिफेरा नामक एक संगठन की भी स्थापना की है। यह संगठन कई तरह से महिलाओं को जागरूक करने से लेकर हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में इस तरह के भेदभाव से वैâसे निपटा जाए आदि पर काम करती हैं।
हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में होने वाली यौन उत्पीड़न की घटनाएं भले ही आम है, लैंगिक भेदभाव की घटनाएं रोज का हिस्सा हैं, लेकिन इससे निपटने के कई तरीके भी हैं। बहुत सारी संस्थाएं हैं, जो आपको मदद कर सकती हैं। इसके अलावा सरकारी तौर पर भी आपको कानूनी मदद मिल सकती है। बेकर और रंबल उदाहरण हैं उन महिलाओं की, जिन्होंने हार नहीं मानी हैं। ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं, जो महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ खुलकर आवाज उठाती हैं और सफल भी होती हैं।
मेरे पास आ जाओ, फ्री में घर बनवा देंगे’! … पीएम सरकारी आवास देने के बदले ग्राम प्रधान पति की अश्लील डिमांड
आरोपी प्रधान पति, ग्राम सचिव, महिला ग्राम प्रधान के खिलाफ मुकदमा दर्ज
उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां प्रधानमंत्री आवास योजना में घर देने के बदले प्रधान पति ने गांव की महिला से अश्लील पेशकश कर डाली। प्रधान पति ने कहा, `मुझसे संबंध बना लो तुम्हारा आवास फ्री में दिला दूंगा।’ जिस पर नाराज पीड़िता ने आरोपी प्रधान पति, ग्राम सचिव, महिला ग्राम प्रधान व अन्य के विरुद्ध कोर्ट के आदेश पर मुकदमा दर्ज कराया है।
सिंदुरिया क्षेत्र के एक गांव निवासी महिला ने कोर्ट को दी तहरीर में लिखा है कि वर्ष २०२३ में प्रधानमंत्री आवास योजना में कुल ८६ मकान आए थे। जिले में १५५ लोगों ने आवेदन किया था, जिसमें महिला ग्राम प्रधान व उनके पति ने अपात्र लोगों का चयन करा दिया। आरोप है कि उसके बदले लोगों से रुपए भी लिए। शिकायत में कहा गया है कि उसी दौरान प्रधान पति महिला के पास गए और उससे अश्लील पेशकश कर दी। महिला ने शिकायती पत्र में लिखा है कि प्रधान पति ने कहा हमसे संबंध बना लो तो तुम्हारा आवास प्रâी में पास करा दूंगा। महिला ने आगे लिखा कि इसकी शिकायत उसने सीडीओ से भी की, जिसके बाद ग्राम पंचायत सचिव और ग्राम विकास अधिकारी ने मामले का जांच की, जिसमें दो महिला लाभार्थी अपात्र मिलीं। अपात्र होने के बाद भी दोनों को किश्त मिल चुकी है। बावजूद इसके उन लोगो ने निर्माण नहीं कराया। दोबारा शिकायत पर जांच में चार लाभार्थी अपात्र मिल गई। उसके बाद भी सरकारी धन की रिकवरी नहीं कराई गई। महिला ने आगे आरोप लगाया है कि बीते ३१ मई को सायं सात बजे प्रधान पति उसके घर आया और अश्लील पेशकश करने लगा। महाराजगंज के एसपी सोमेंद्र मीना बताते हैं कि पीएम आवास के लिए अश्लील पेशकश करने पर सिंदुरिया थाने में प्रधानपति, ग्राम प्रधान, सचिव और अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। बाकी मामले की जांच की जा रही है। जांच के आधार पर आगे की कार्रवाई करेंगे।