राज्य के बॉर्डर चेकपोस्टों पर हो रहा भ्रष्टाचार! …ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस ने की चेकपोस्टों को समाप्त करने की मांग

सामना संवाददाता / मुंबई
ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस ने एक बार फिर राज्य सरकार से गुहार लगाई है कि राज्य के बॉर्डरों पर बनाए गए चेकपोस्टों को समाप्त किया जाए। आरटीओ फाउंडेशन डे के अवसर पर महाराष्ट्र और देशभर के ट्रांसपोर्टरों ने अपनी इस मांग को दोबारा दोहराया है।
जानकारी के मुताबिक, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों ने पहले ही बॉर्डर चेकपोस्ट को समाप्त कर दिया है। चेकपोस्ट समाप्त करने से माल और यात्रियों की आवाजाही अधिक तेज हो जाती है । इस विषय पर गठित एक समिति पहले ही राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है, जिसमें बॉर्डर चेकपोस्ट समाप्त करने की सिफारिश की गई है।
बाल मलकीत सिंह, पूर्व अध्यक्ष व सलाहकार ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस एवं सलाहकार फेडरेशन ऑफ बॉम्बे मोटर ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से इस महत्वपूर्ण विषय पर शीघ्र कार्रवाई करने की अपील की है।
जब सभी वाहन और कर-संबंधित डेटा ऑनलाइन उपलब्ध है, तो भौतिक चेकपोस्ट का कोई औचित्य नहीं रह जाता। बाल मलकीत सिंह ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार को तकनीकी प्रगति को अपनाकर राष्ट्रीय नीतियों के अनुरूप एक आधुनिक और निर्बाध परिवहन तंत्र को लागू करना चाहिए।

चेकपोस्ट हटने के क्या होते हैं फायदे?
जीएसटी, वाहन, सारथी, फास्टैग और ई-वे बिल जैसी तकनीकों के कारण बॉर्डर चेकपोस्ट अब महत्वपूर्ण नहीं हैं।

भ्रष्टाचार एवं लालफीताशाही पर लगेगी रोक
चेकपोस्ट हटने से अनावश्यक परेशानियां और अनुपालन बोझ कम होगा और तेज माल ढुलाई से महाराष्ट्र की स्थिति एक प्रमुख लॉजिस्टिक्स और व्यापार केंद्र के रूप में मजबूत होगी। डिजिटल तकनीकों से टैक्स और अन्य राजस्व संग्रहण बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के कुशलतापूर्वक किया जा सकता है।

कुर्ला एल वार्ड के दोहरे मापदंड से जनता में आक्रोश! …मनपा के राजस्व की खुलेआम लूट

आपराधिक मामला दर्ज कराने में भेदभाव
सामना संवाददाता / मुंबई
कुर्ला एल वार्ड में झोपड़पट्टियों में बिना किसी परमिशन के बनाए गए गेस्ट हाउस में आगजनी की घटनाएं बारंबार प्रकाश में आ रही थीं। इस अग्निकांड में पिछले तीन वर्षों में करीब १५ लोगों की मौत हो चुकी है। इसके बाद मानवाधिकार आयोग ने स्वत: संज्ञान लिया था। आयोग के आदेश के बाद साकीनाका, चांदीवली, कुर्ला-पूर्व, पश्चिम और पवई परिसर के गेस्ट हाउसों पर कार्रवाई की गई और मनपा ने इनके मालिकों पर आपराधिक मुकदमा भी दर्ज कराया है। सहायक आयुक्त धनाजी हेर्लेकर ने बताया है कि पांच अवैध गेस्ट हाउसों पर कार्रवाई की गई है, जबकि २२ अन्य की सूची कार्रवाई के लिए तैयार की गई है। अब इस तोड़क कार्रवाई पर सवालिया निशान लगाया जा रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता और लॉ स्टूडेंट रूपेश रविढोने ने आरोप लगाया है कि पूरे कुर्ला में बिना किसी परमिशन के बहुमंजिली इमारतें बनाई जा रही हैं। इसमें मनपा के लाखों-करोड़ों रुपए की लूट हो रही है, जो अधिकारियों की जेब में जा रहा है। इसके अलावा मजदूरों की सुरक्षा भी राम भरोसे हो गई है, क्योंकि जल्दबाजी में मजदूरों को व्यापक सुरक्षा किट नहीं उपलब्ध कराई जाती है। इसका ताजा उदाहरण वार्ड क्रमांक १६८ में मनपा कार्यालय के ठीक पीछे मैच पैâक्ट्री लेन में बनाई जा रही इमारत है, जिस पर कई बार तोड़क कार्रवाई की गई है, जबकि मनपा ने ठेकेदार पप्पू जाफर पर आपराधिक मामला नहीं दर्ज कराया है। इसी तरह साकीनाका, तुंगा गांव, पवई में भी बहुमंजिली इमारतें बनाई जा रही हैं। आपराधिक मामला दर्ज नहीं कराने से ठेकेदारों के हौसले बुलंद रहते हैं और वे कुछ दिनों के बाद फिर उस निर्माण को अंजाम दे देते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता किरण राणे और लॉ स्टूडेंट रूपेश रविढोने ने मनपा और मुख्यमंत्री कार्यालय को ईमेल भेजकर शिकायत की है कि कुछ के खिलाफ अदालत के आदेश पर मामला दर्ज कराना और अन्य पर नहीं कराना मनपा का दोहरा मापदंड है, जिस पर रोक लगाई जानी चाहिए, क्योंकि न्याय व्यवस्था सबके लिए एक समान होनी चाहिए।

नीतिश सरकार है बिहार के लिए बोझ! ….तेजस्वी ने जन्मदिन की बधाई के साथ दिया विदाई का संदेश

 

अनिल मिश्र / पटना
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। चुनाव में अभी नौ माह का समय है, फिर भी सभी प्रमुख नेता अपनी- अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। एनडीए का दावा है कि इस वर्ष २०२५ में फिर उनकी सरकार बनेगी, वहीं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का दावा है कि बिहार की जनता बीस साल से चल रहे नीतीश सरकार से ऊब गई है और इस बार प्रदेश में महागठबंधन की सरकार बनने जा रही है। तेजस्वी ने एक्स पर पोस्ट कर हमला बोला है। तेजस्वी यादव ने कहा है कि नीतीश सरकार अब बिहारवासियों के लिए बोझ बन गई है। बिहार के लोगों ने अब ठान लिया है कि उन्हें इस सराकर को हटाना है।
वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव ने सीएम नीतीश को जन्मदिन की बधाई भी दी। सोशल मीडिया पर उन्होंने एक लाइन के बधाई संदेश में लिखा, `बिहार के माननीय मुख्यमंत्री जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई’। तेजस्वी ने एक्स पर लिखा, `बिहार में पन्द्रह साल पुरानी गाड़ी चलाने की अनुमति नहीं है, क्योंकि वो ज्यादा धुआं फेंकती है, प्रदूषण बढ़ाती है, जनता के लिए हानिकारक है तो फिर एनडीए की बीस साल पुरानी जोड़-तोड़, पलटा-पलटी वाली खटारा सरकार क्यों चलेगी? बीस वर्षों की नीतीश सरकार ने विगत बीस साल में बिहार के हर गली-हर टोला-हर गांव में गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अपराध और पलायन रूपी भयंकर प्रदूषण पैâला दिया है।’
उन्होंने कहा कि नीतीश-भाजपा सरकार ने बीस वर्षों में दो पीढ़ियों का जीवन बर्बाद कर दिया।

एआई की मदद ले रहा राजद
इस बार विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल एक कदम आगे चल रहा है। इसी सिलसिले में राष्ट्रीय जनता दल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमले के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद लेनी शुरू कर दी है। इस मामले आधुनिक तकनीकों का उपयोग बिहार के राजनीतिक दल कर सकते हैं, यह पिछले विधानसभा चुनाव में सामने आया था। इस एआई के माध्यम से राष्ट्रीय जनता दल ने मीम्स, कार्टून और प्रचार के अन्य माध्यमों में एआई का प्रयोग शुरू कर दिया है।

कृषिमंत्री कोकाटे की बढ़ी चिंता? … सजा पर स्थगन की सुनवाई टली!

राजन पारकर / मुंबई
कृषिमंत्री माणिकराव कोकाटे को मिली दो साल की सजा पर स्थगन (स्टे) पाने के लिए उन्होंने सत्र न्यायालय में अपील की थी। वहीं उनकी सजा पर स्थगन न मिले, इस मांग के साथ हस्तक्षेप याचिका भी दायर की गई थी। आज इस मामले में फैसला आने की उम्मीद थी, लेकिन अब अगली सुनवाई ५ मार्च को होगी।
सजा पर रोक के लिए अपील, लेकिन इंतजार लंबा
इस दो साल की सजा के खिलाफ माणिकराव कोकाटे ने जिला सत्र न्यायालय में अपील दायर की थी। इसके बाद सजा पर रोक लगाने के लिए उनके वकीलों ने दलीलें दीं, वहीं सरकारी पक्ष ने सख्त विरोध किया।
५ मार्च को अगली सुनवाई
इस मामले में अंजली दिघोले और शरद शिंदे ने भी हस्तक्षेप याचिका दायर कर सजा पर स्थगन न देने की मांग की। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायालय का पैâसला अब ५ मार्च तक टल गया है।
३० साल पुरानी गलती पड़ी भारी?
नासिक शहर के पॉश इलाके में माणिकराव कोकाटे ने ३० साल पहले अल्प आय वर्ग के लिए आरक्षित फ्लैट लिया था। सिर्फ वे ही नहीं, बल्कि उनके भाई विजय कोकाटे, पोपट सोनवणे और प्रशांत गोवर्धने ने भी कनाडा कॉर्नर क्षेत्र में ‘निर्माण व्यू अपार्टमेंट’ में मुख्यमंत्री कोटे से गरीबों के लिए बने फ्लैट हासिल किए थे। तत्कालीन दिवंगत राज्य मंत्री तुकाराम दिघोले ने इस गड़बड़ी की शिकायत की थी, जिसके बाद जिला प्रशासन ने इस आवंटन की जांच की। इसी मामले में नासिक न्यायालय ने माणिकराव कोकाटे और उनके भाई को २ साल की सजा और ५०,००० रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है।

दो व्यक्तियों के कारण बदनाम हुआ महाराष्ट्र …सुप्रिया सुले का मुंडे और कराड पर हमला

 

सामना संवाददाता / मुंबई
वाल्मीक कराड को आरोपी नंबर एक बनाया गया। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। बीड में संतोष देशमुख की जिस अमानवीय तरीके से हत्या की गई, उससे एक ही सवाल उठता है, इस व्यक्ति को ऐसा करने का साहस कैसे हुआ? उन्हें अमानवीय व्यवहार करने का अधिकार किसने दिया? तो, इस पूरी प्रक्रिया में किसी बड़े व्यक्ति के बिना, किसी जिले में ऐसा अराजक प्रशासन कैसे चलाया जा सकता है? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देशमुख परिवार को इतनी भारी कीमत चुकानी पड़ी। ७०-७५ दिन बाद भी एक अन्य आरोपी कृष्णा अंधाले अभी भी फरार है। वह कैसे नहीं मिल सकता? सातवां हत्यारा ७०-७५ दिन तक भगोड़ा कैसे रह सकता है? क्या यह प्रश्न सरकार के लिए चिंता का विषय नहीं है? यह सवाल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) की नेता व सांसद सुप्रिया सुले ने उठाया। भाजपा नेता सुरेश धस ने पहले कहा था कि धनंजय मुंडे में कभी नैतिकता नहीं दिखी। सुरेश धस ने कहा कि जैसे-जैसे दिन बीतते जा रही है, यह बात स्पष्ट होते जा रही है कि नैतिकता और धनंजय मुंडे की कभी मुलाकात नहीं हुई। तो फिर हम उनसे क्या उम्मीद करें?

सुप्रिया सुले ने धनंजय मुंडे और वाल्मीक कराड की जोड़ी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर महाराष्ट्र का जो नाम खराब हुआ है, महाराष्ट्र की जो बदनामी हुई है, उसके लिए दो व्यक्ति जिम्मेदार हैं। उनका बीड या परलीकर से कोई संबंध नहीं है। आज दो लोगों की गंदी हरकतों के कारण प्रदेश का नाम राष्ट्रीय स्तर पर खराब हुआ है।

सबसे ज्यादा तनाव में रहते हैं आईटी व मीडिया के कर्मचारी! … केरल में अध्ययन से हुआ खुलासा

वैसे तो सभी क्षेत्रों के कर्मचारियों को तनाव होता है। इसी बीच केरल का नया अध्ययन दावा करता है कि आईटी और मीडिया क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी सबसे अधिक तनाव महसूस करते हैं। इसे केरल युवा आयोग के अध्यक्ष एम. शजर ने राज्य के मत्स्य पालन, संस्कृति और युवा मामलों के मंत्री साजी चेरियन की उपस्थिति में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के सामने पेश किया था।
इस अध्ययन के लिए १८ से ४० साल की आयु वाले कर्मचारियों का डाटा इकट्ठा किया गया था। इस सर्वेक्षण में आईटी, गिग इकोनॉमी, मीडिया, खुदरा/औद्योगिक और बैंकिंग/बीमा क्षेत्रों के १,५४८ कर्मचारियों ने भाग लिया था। सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट को आधार बनाते हुए नतीजों का विश्लेषण किया गया। इसके बाद जो नतीजे सामने आए, वो चौका देने वाले थे। अध्ययन के मुताबिक, केरल में आईटी क्षेत्र के ८४.३ प्रतिशत युवा कर्मचारियों को और मीडिया क्षेत्र के ८३.५ प्रतिशत युवा कर्मचारियों को उच्च स्तर के तनाव का अनुभव करना पड़ता है। इनके अलावा, बैंकिंग और बीमा क्षेत्र के लगभग ८०.६ प्रतिशत कर्मचारियों और गिग इकोनॉमी के ७५.५ प्रतिशत कर्मचारियों ने भी काम के तनाव का अनुभव किया। अन्य क्षेत्रों की तुलना में खुदरा और औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों में काम के तनाव का स्तर कम था। शोध के जरिए यह भी सामने आया कि ३० से ३९ वर्ष की आयु वाले कर्मचारियों के तनाव का स्तर औरों के मुकाबले सबसे अधिक होता है। इतना ही नहीं, पुरुषों (७३.७ प्रतिशत) की तुलना में महिला कर्मचारियों (७४.७ प्रतिशत) में काम का तनाव थोड़ा अधिक पाया गया।

आरती में भी कुर्सी नहीं छोड़ पाए शाह!

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कोयंबटूर के ईशा सेंटर में महाशिवरात्रि समारोह में हिस्सा लिया। इस मौके पर ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव भी मौजूद थे। इस दौरान अमित शाह ने ध्यानलिंग को प्रसाद चढ़ाया और वीआईपी कल्चर अपनाते हुए सोफे पर बैठकर भगवान की आरती भी की। मौके पर अमित शाह ने सद्गुरु को आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मैं आदियोगी के चरणों में नमन करता हूं। सद्गुरु जी के निमंत्रण पर यहां आकर मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली मानता हूं। आज सोमनाथ से केदारनाथ तक, पशुपतिनाथ से रामेश्वरम तक और काशी से कोयंबटूर तक पूरा देश शिवमय है।

टूथपेस्ट से बची जान! … बर्फीले पहाड़ पर १० दिनों तक युवक ने खाया टूथपेस्ट

सोशल मीडिया पर आए दिन कुछ न कुछ वायरल होता ही रहता है। ये घटनाएं कभी लोगों को खूब हंसाती है तो कभी हैरत में डाल देती हैं। ऐसी ही एक घटना चीन में हुई। यहां पर एक १८ साल का लड़का उत्तर-पश्चिमी चीन के बर्फीले पहाड़ पर बिना भोजन के १० दिनों तक फंसा रहा। १० दिन बाद जाकर बचाव और राहत दल वहां तक पहुंचा और फिर उसकी जान बचाई जा सकी। इन दस दिनों के दौरान उसका शरीर काफी कमजोर हो गया था। क्योंकि खाने की कमी थी और वहां पर पीने के लिए केवल नदी का पानी था, अपनी भूख को मिटाने के लिए उसने टूथपेस्ट तक खाया।
१८ साल का सन लियांग ८ फरवरी को शानक्सी राज्य के सबसे खतरनाक क्विनलिंग पर्वत पर अकेले चढ़ाई करना शुरू कर दिया। दो दिनों के बाद ही उसका अपने परिवार से संपर्क टूट गया। रास्ता भटकते हुए लियांग ने नदी के किनारे चलना जारी रखा, लेकिन तब भी उसकी यह कोशिश ज्यादा काम नहीं आई क्योंकि एक जगह गिरने से उसका दाहिना हाथ टूट गया। इससे उसने वहीं पर एक जगह पर पत्तों की मदद से एक अस्थाई बिस्तर बनाया और कड़कड़ाती ठंड से जूझता हुआ मदद का इंतजार करने लगा। इधर परिवार की जब उससे बात नहीं हो पाई तो परिजनों ने उसकी खोज करने के लिए स्थानीय बचाव दलों को जानकारी दी। हफ्ते भर की मेहनत के बाद आखिरकार १७ फरवरी को बचाव दल ने नाटकीय ढंग से उसे ढूंढ़ लिया। बचाव दल के मुताबिक, यह लड़का एक खतरनाक पहाड़ी के ऊपर चढ़ाई कर रहा था।

संडे स्तंभ : दूरंदेश जमशेद!

विमल मिश्र
मुंबई
भारतीय उद्योगों के पिता जमशेदजी नुसरवानजी टाटा, जिनकी कल जयंती है, अपने वक्त से आगे दूरदर्शी नेता थे। टाटा घराने का यह संस्थापक भारतीय उद्योगों का पिता कहलाता है। उन्हीं की परंपरा पर चलकर टाटा समूह आज उद्योग-धंधों से भी अधिक अपने जनसेवा के कार्यों के लिए जाना जाता है।
ज मशेदजी नुसरवानजी टाटा अपने वक्त से आगे एक विनम्र, मिलनसार और दूरदर्शी नेता थे, जिन्होंने अपनी व्यावहारिक बुद्धि से देश की स्वतंत्रता से १०० साल पहले ही उसका आगत पढ़ लिया था। जमशेदजी का सबसे सबल पक्ष था मानवीय संसाधनों का उनका प्रबंधन। १८८२ में कायम जे.एन. टाटा इंडोमेंट के शैक्षिक वजीफों पर विदेश पढ़ने गए भारतीय छात्रों ने लौटकर उनकी योजनाओं को पूरा करने में मदद दी। ब्रिटिश काल में जब मिलों में शोषण आम बात थी, उन्होंने अपने कारखानों में कामगारों को प्रशिक्षण, काम के कम घंटों, प्रॉविडेंट फंड, ग्रेच्युटी, निश्चित निवृत्ति वेतन, नि:शुल्क आवास, पुनर्वास, दुर्घटना क्षतिपूर्ति, डॉक्टरी इलाज एवं बच्चों की देखभाल सहित तमाम सुविधाएं दीं।
जमशेदजी ने सितंबर, १८९८ में भारत सरकार को वैज्ञानिक शोध का परास्नातक संस्थान खोलने के लिए अपने चार भूखंडों व चौदह इमारतों के साथ एक बड़ी रकम दान कर दी थी। उन्होंने ही सबसे पहले भारतीयों की उच्च शिक्षा और भारतीय प्रशासनिक सेवा जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के बारे में सोचा, ताकि आने वाले समय में भारत को जरूरतों के अनुरूप प्रशासक मिल सकें। उनके निधन के बाद उनके पुत्रों ने १९०९ में बंगलुरू में उनके विचारों के अनुरूप इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की स्थापना की, जो देश में उच्च वैज्ञानिक शिक्षा का आधार बना। मुंबई का टाटा वैंâसर हॉस्पिटल भी उन्हीं के देखे सपनों की देन है। उनके अनगिनत ट्रस्ट और संस्थाएं आज भी जनसेवा के कामों में लगी हुई हैं।
भारतीय उद्योगों के पिता
जमशेदजी टाटा का जन्म ३ मार्च, १८३९ को गुजरात के कस्बे नवसारी में पारसी धर्म के पादरी नुसरवानजी एवं जीवेरबाई कावसजी टाटा के घर में हुआ था। चार बहनों के बीच वे एकमात्र भाई थे। जब वे १३ वर्ष के थे, तब उनके पिता ने मुंबई आकर व्यापार आरंभ किया। सन १८५५ में १६ वर्ष की आयु में उनका विवाह १० वर्षीया हीराबाई से हो गया। उनके दो पुत्र सर दोराबजी जमशेदजी एवं रतन जमशेदजी थे। एक पुत्री भी थी, जिसकी अल्पायु में ही मृत्यु हो गई थी।
जमशेदजी ने १८५५ से १८५८ तक मुंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की, जहां उनका शैक्षिक प्रदर्शन इतना अच्छा था कि कॉलेज ने उनकी फीस ही लौटा दी। अंग्रेजी भाषा से जमशेदजी को विशेष प्रेम था। उनके पसंदीदा लेखक थे चार्ल्स डिकेस, विलियम थाकरे और मार्क ट्वेन।
एलफिंस्टन कॉलेज से ‘ग्रीन स्कॉलर’ (उस वक्त का ग्रेजुएशन) बनने के बाद २० वर्ष की उम्र में पारिवारिक पौरोहित्य के बजाय उन्होंने अपने छोटे से बिजनेस को चुना। १८५८ में २१ हजार रुपए की पूंजी से उन्होंने छोटा-सा जो बिरवा लगाया था, आज वह टाटा घराने के रूप में हजारों शाखों-प्रशाखाओं वाला विशाल वटवृक्ष बन गया है। गहरी जिज्ञासु वृत्ति ने उन्हें दुनिया के जो चक्कर लगवाए, उनमें इंग्लैंड जाकर वहां के कपड़ा उद्योग का संधान शामिल था। १८६९ में चिंचपोकली की एक जर्जर और दिवालिया मिल खरीदकर उन्होंने टाटा साम्राज्य की नींव रखी और उसका जाल देशभर में पैâला दिया। भारत का पहला स्टील प्लांट १९१२ में उन्होंने ही कायम किया था। प्रथम विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद जिस शहर में यह स्टील प्लांट था, आज उसे उन्हीं के नाम पर ‘जमशेदपुर’ पुकारते हैं। भारत में आयरन और स्टील उद्योग कायम करने, पनबिजली पैदा करने और जमशेदपुर को देश का पहला नियोजित शहर बनाने का उनका सपना उनके वारिसों दोराबजी टाटा, सर रतन टाटा, जे. आर. डी. टाटा और रतन एन. टाटा ने पूरा किया।
जमशेदजी टाटा समुदाय के संस्थापक और आधुनिक उद्योग जगत के पथ-प्रदर्शक ही नहीं, ‘भारतीय उद्योगों के पिता’ भी कहलाते हैं। उन्होंने भारतीय उद्योग को न केवल सफलता के शिखर पर पहुंचाया, अपितु देश को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बनाया। अपनी निजी जिंदगी में भी वे हर वक्त कुछ न कुछ नया करते रहते थे। जमशेदजी मोटर गाड़ी मुंबई में चलाने वाले पहले व्यक्ति थे और गाड़ी में रबर के टायर का इस्तेमाल करने वाले पहले भारतीय। देश में मुंबई का आज जो आर्थिक दबदबा है, उसके मूल में सबसे बड़ा हाथ जमशेदजी का ही है। टाटा पहला औद्योगिक समूह है, जिसके मुख्यालय का नाम ही है ‘बॉम्बे हाउस’।
वाह, ताज!
जमशेदजी को जिंदगीभर यह मलाल रहा कि उन्हें एक होटल में प्रवेश से महज ‘भारतीय’ होने की वजह से रोक दिया गया था। यह मलाल उन्होंने दूर किया ‘ताजमहल’ होटेल बनवाकर। भारत के सर्वश्रेष्ठ और विश्व के श्रेष्ठतम लग्जरी होटेल में एक ‘ताजमहल’ का निर्माण जब १९०३ में पूरा हुआ तो यह मुंबई में बिजली का उपयोग करने वाला पहला होटेल था। १९ मई, १९०४ को जमशेदजी का जर्मनी के नौहेम शहर में देहांत हो गया। इंग्लैंड के वोकिंग शहर में पारसी कब्रिस्तान में उन्हें दफनाया गया। उनकी स्मृति सभा में मुंबई के मुख्य न्यायाधीश सर लॉरेंस जेनकिंस जेनफिया ने कहा, ‘उनके पास अपार संपत्ति आई। लेकिन वे अंत तक एक सरल शालीन आदमी की तरह जिए, जिसे न नाम की चाह थी और न जगह की।’ ७ जनवरी, १९६५ को डाक-तार विभाग ने उनकी डाक टिकट निकालकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। कोलाबा में एक जेटी ने मुंबई में उनके नाम को अमर रखा है।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

सब मसाला है… : कहता है जोकर! …अब तेरा क्या होगा जेलेंस्की?

श्रीकिशोर शाही

पिछले तीन साल से तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ी दुनिया में अब शांति आने के संकेत मिल रहे हैं। रूस और यूक्रेन के बीच तीन साल से जारी युद्ध की आंच फीकी पड़ने लगी है। यूक्रेन को लड़ने के लिए ९० फीसदी से ज्यादा रकम और हथियारों की मदद तो अमेरिका कर रहा था। एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका इस युद्ध पर एक ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च कर चुका है। बदले में अमेरिका को क्या मिला? यह बात नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नागवार गुजरी और उन्होंने साफ कह दिया कि अमेरिका ने कोई ठेका नहीं ले रखा है। नाटो के बाकी देश भी अपनी जिम्मेदारी समझें। यूक्रेन को मदद बंद!
ट्रंप की इस घोषणा से सबसे ज्यादा टेंशन में यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की आ गए हैं। कल व्हाइट हाउस में जिस तरह से जेलेंस्की की बेइज्जती हुई है, उससे हर कोई सन्न है। अगर अमेरिका ने मदद बंद कर दी तो वे बेमौत मारे जाएंगे। यह सोच-सोचकर जेलेंस्की की नींद उड़ गई है। अमेरिका के खुमार में ही तो जोकर जेलेंस्की ने रूस से पंगा लिया था। जी हां, जोकर। राजनीति में आने से पहले जेलेंस्की कॉमेडियन थे, बोले तो हिंदी में जोकर। अमेरिका ने रूस के साथ सऊदी अरब में शांति वार्ता बगैर यूक्रेन के ही कर ली, इससे आहत जेलेंस्की ने सरेंडर करते हुए कह डाला कि वे राष्ट्रपति का पद छोड़ने के लिए तैयार हैं, पर उन्हें आश्वासन दिया जाए कि यूक्रेन को नाटो में शामिल किया जाएगा। जेलेंस्की ने कर दी न जोकरई! अरे, इसी नाटो में शामिल होने की उनकी जिद पर तो रूस ने यूक्रेन के ऊपर बम बरसाना शुरू किया था। अब हारा शख्स भी कोई शर्त रखता है क्या! पर अगर कॉमेडी की स्टेज हो तो फिर कुछ भी चलता है। जो सीन बन रहा है, उसमें यूक्रेन नाटो में रहे न रहे, इससे ट्रंप को क्या फर्क पड़ता है। ट्रंप एक बिजनेसमेन हैं और उनका सारा फोकस अरबों डॉलर की रक्षा करना है। वैसे भी सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद जब रूस और अमेरिका आमने-सामने आए थे, तब नाटो और सीटो बना था। सोवियत संघ के विघटन के बाद सीटो तो फिनिश हो गया, पर नाटो की गाड़ी घिसटती रही। सो जब सीटो ही नहीं रहा तो नाटो का क्या काम? वैसे भी अगर अमेरिका ने नाटो से हाथ खींच लिया तो बाकी के यूरोपीयन देश झाल ही बजाएंगे। रूस एक महाशक्ति है और वह अपने मुहाने पर किसी नाटो देश को वैâसे बर्दाश्त करता। उधर जेलेंस्की की पीठ ठोककर हथियार लॉबी ने यूक्रेन को युद्ध में झोंककर कई लाख लोगों को मौत के मुंह में झोंक दिया। अब ऐसा काम कोई जोकर ही कर सकता है!