सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य में तमाम धनलुटाऊ योजनाओं को शुरू कर महायुति ने भले ही दूसरी बार सत्ता हासिल कर ली है, लेकिन इससे आम जनता को काफी समस्या शुरू हो गई है। जनहित की जरूरी योजनाएं फंड के अभाव में प्रभावित होने लगी हैं। हद तो तब हो गई, जब दिव्यांग कर्मचारियों का पिछले ६ महीने से वेतन ही रोक दिया गया। पिछले ६ महीने से ये कर्मचारी वेतन के लिए इंतजार कर रहे हैं। प्रहार जनशक्ति पार्टी के नेता बच्चू कडू ने सरकार पर निशाना साधते हुए दिव्यांग कर्मचारियों के वेतन को लेकर नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि पिछले ६ महीनों से दिव्यांग कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है, वहीं रोजगार गारंटी योजना के तहत भी ४ महीनों से भुगतान अटका हुआ है।
उन्होंने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को मैसेज भेजा, लेकिन उनके जवाब में सिर्फ `ओके’ आया। इस पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि ओके कहने से समस्या हल नहीं होगी, सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। बच्चू कडू ने अजीत पवार की पुरानी टिप्पणी भी याद दिलाई, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर दिव्यांग कर्मचारियों का वेतन रोका गया तो वित्त सचिव का वेतन भी रोका जाएगा। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि पेड़ की सिर्फ टहनी ही नहीं, पूरा पेड़ ही गिर गया है।
दिव्यांग कर्मचारियों को ६ महीने से वेतन नहीं!
ये है `सुशासन’ का प्रशासन! … नॉर्मल डिलिवरी के लिए भी स्वास्थ्यकर्मी को चाहिए घूस! …बिहार में बदहाल हो गए हैं हालात
बिहार में भ्रष्टाचार और सरकारी कर्मियों की अनियमितताओं पर अंकुश लगाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद इन मामलों में वृद्धि देखने को मिलती है। `सुशासन’ बाबू के राज में भ्रष्टाचार के मामले आए दिन बढ़ रहे हैं। हाल ही में बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडलीय अस्पताल से एक ताजा वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मियों को दंपति से घूस लेते देखा जा सकता है।
घटना डुमरांव अनुमंडलीय अस्पताल के प्रसव वार्ड की है, जहां एक गरीब महिला डिलिवरी के लिए अस्पताल पहुंची थी। डिलिवरी सफलतापूर्वक कराई गई, लेकिन इसके बाद अस्पताल की कुछ महिला स्वास्थ्यकर्मियों ने महिला के परिजनों से पैसे की मांग की। जानकारी के अनुसार, महिलाकर्मियों ने चार सौ रुपए की मांग की, लेकिन जब परिजनों ने दो सौ रुपए दिए, तो महिलाकर्मी ने दबंगई से पैसे टेबल पर फेंकते हुए कहा कि इतने में नहीं होगा। इसके बाद और पैसे लाने की बात कही। इस घटना का वीडियो किसी ने बना लिया और सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। वीडियो में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि महिला स्वास्थ्यकर्मी पैसे लेकर उन्हें फेंक रही हैं और परिजनों से ज्यादा पैसे लाने की मांग कर रही हैं। सोशल मीडिया पर इस वीडियो के वायरल होते ही बक्सर जिले के स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मच गया।
मध्य प्रदेश में इंसानियत शर्मसार, भाजपा राज में मानवता की `मौत’ रु. ३०० के लिए नहीं दी एंबुलेंस! …लाचार ससुर बीमार बहू को स्ट्रेचर पर लेकर भटकता रहा
मध्य प्रदेश के जबलपुर से एक बार फिर मानवता को शर्मसार करने वाली तस्वीर सामने आई है। महज ३०० रुपए न दे पाने पर एक बुजुर्ग को जिला अस्पताल से एंबुलेंस नहीं मिली। ऐसे हालात में बुजुर्ग अपनी बीमार बहू को स्ट्रेचर पर घसीटते नजर आए। यह तस्वीर सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रही है। इस वीडियो पर लोग मध्य प्रदेश सरकार और राज्य के स्वास्थ्य विभाग की खिंचाई कर रहे हैं।
वायरल तस्वीर में नजर आ रहे बुजुर्ग व्यवहार बाग इलाके में रहने वाले बृज बिहारी हैं। कुछ दिन पहले उनकी बहू की तबीयत खराब हो गई थी। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन हालत में कोई सुधार नहीं हुआ तो डॉक्टरों ने छुट्टी दे दी। चूंकि महिला बीमारी की वजह से इतनी कमजोर हो गई थी कि वह अपने पैरों पर भी खड़ी नहीं हो पा रही थी। ऐसे में महिला के ससुर ने एंबुलेंस की मांग की, लेकिन उसके लिए ३०० रुपए जमा कराने को कहा गया। अब बुजुर्ग के पास इतने भी पैसे नहीं थे। ऐसे में वे बहू को स्ट्रेचर पर लिटाकर धकेलते हुए घर ले जाने लगे। उन्हें ऐसा करते देख वहां मौजूद लोगों का दिल पसीजा और तत्काल लोगों ने मिलकर एंबुलेंस के पैसे इकट्ठा किए और उन्हें घर पहुंचाया। एक मददगार आसू खान ने बताया कि बुजुर्ग को स्ट्रेचर घसीटते देख उन्होंने पूछताछ की। जब उन्होंने बताया कि पैसे नहीं हैं तो उन्होंने तत्काल दो तीन लोगों से बात की और एंबुलेंस का खर्चा जुटाकर उन्हें घर भेजने की व्यवस्था कर दी।
पब्लिक का फूटा गुस्सा
इस दौरान कई अन्य लोगों ने चंदा जमाकर बीमार महिला के इलाज के लिए भी आर्थिक मदद दी। इस घटना के बाद लोगों ने स्वास्थ्य विभाग पर खूब तंज कसा है। साथ ही एंबुलेंस सेवा प्रâी करने की मांग की है। सोशल मीडिया में यह तस्वीर खूब वायरल हो रही है। लोगों का आरोप है कि यह तस्वीर केवल जबलपुर की ही नहीं, बल्कि पूरे मध्य प्रदेश के अस्पतालों का यही हाल है।
रुपए ने फिर किया `सुसाइड’ …रु. ८८ तक पहुंचा डॉलर …शतकवीर बनने के करीब!
-४४ पैसे टूटकर `रिकॉर्ड लो’ पर पहुंची भारतीय करेंसी
-वित्त मंत्री के पास कोई `मजबूत’ इलाज नहीं
हर रोज गिरने का रिकॉर्ड बना रही है भारतीय करेंसी रुपया। सप्ताह के पहले कारोबारी दिन भी खुलने के साथ ही ये अमेरिकी डॉलर की तुलना में ४४ पैसे टूटकर नए रिकॉर्ड लो-लेवल पर पहुंच गई। डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी का मूल्य गिरकर ८७.९४ पर आ गया। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय रुपए ने एक बार फिर से `सुसाइड’ कर लिया है। हालांकि, रुपए में गिरावट के कई कारण हैं, लेकिन इसके बीच अगर इंडियन करेंसी को संभालने के लिए तत्काल कदम न उठाए गए तो ये बड़ी परेशानी का सबब बन सकती है और आम जनता पर महंगाई का खतरा बढ़ सकता है।
रुपए में गिरावट का सिलसिला लंबे समय से जारी है और इस महीने की शुरुआत में ३ फरवरी को रुपए ने पहली बार ८७ का आंकड़ा क्रॉस किया, लेकिन भारतीय करेंसी में यह गिरावट यहीं नहीं थमी, बल्कि ये रोज गिरता ही जा रहा है। सोमवार को शुरुआती कारोबार में ये टूटकर ८७.९४ प्रति डॉलर पर आ गया, जो रुपए का अब तक ऑल टाइम लो-लेवल है। कई रिपोर्ट्स में यह अनुमान भी जाहिर किया जाने लगा है कि अगर रुपए के गिरने की यही रफ्तार जारी रही और इसे संभाला नहीं गया तो यह १०० के पार निकल जाएगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पास भी इसका कोई `मजबूत’ इलाज नहीं है।
संभली नहीं तो भड़केगी महंगाई
डॉलर के मुकाबले रुपए के लगातार कमजोर होने से महंगाई बढ़ने का जोखिम बढ़ जाता है। इसका असर पेट्रोलियम पदार्थों से लेकर विदेशों में पढ़ाई तक पर देखने को मिलता है। दरअसल, भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है और अपनी जरूरत का ८० फीसदी क्रूड ऑइल आयात करता है। ऐसे में जब रुपया गिरता है तो उसे ज्यादा डॉलर खर्चने पड़ते हैं और इससे देश में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने का खतरा रहता है और ऐसा होने पर ट्रांसपोर्टेशन, लॉजिस्टिक्स पर खर्च बढ़ता है, जिससे महंगाई बढ़ सकती है। सीधे शब्दों में समझें तो रुपए की कमजोरी से आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं।
मोदी जी, डूब रही है देश की अर्थव्यवस्था! …पीएम की टिप्पणी पर भड़के तेजस्वी
सामना संवाददाता / पटना
बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कांग्रेस को ‘परजीवी पार्टी’ कहने और आरजेडी पर जातिवाद पैâलाने के आरोपों का कड़ा जवाब देते हुए कहा कि असल मुद्दा यह नहीं है कि कौन किसे डुबा रहा है, बल्कि सच्चाई यह है कि देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है और बिहार के साथ लगातार सौतेला व्यवहार किया जा रहा है।
तेजस्वी ने कहा, ‘कोई किसी को डुबा नहीं रहा है, बल्कि पूरा देश डूब रहा है। अर्थव्यवस्था संकट में है, महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही है। डबल इंजन की सरकार बिहार को विकास के मामले में लगातार नजरअंदाज कर रही है। प्रधानमंत्री को इतनी ही चिंता है तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दें और विकास की बात करें। कौन किसको डुबोएगा, यह तो वक्त बताएगा।’
एंडोमेट्रियोसिस से महिलाओं में बांझपन का खतरा! …१० में से एक महिला हो रही इस बीमारी का शिकार
सामना संवाददाता / मुंबई
महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस बीमारी चिंता का सबब बनती जा रही है। आलम यह है कि प्रजनन आयु वर्ग की हर १० महिलाओं में से एक इसकी शिकार हैं। डॉक्टरों ने कहा है कि बीमारी का जल्द पता लगाने के लिए जन जागरूकता की जरूरत है। यह दर्दनाक स्थिति बांझपन का कारण बन सकती है इसलिए इसका तुरंत इलाज शुरू करना आवश्यक है। चिकित्सकों ने कहा है कि यह एक दीर्घकालिक स्त्री रोग संबंधी बीमारी है और इसका कोई निश्चित इलाज उपलब्ध नहीं है। इस बीमारी के लक्षण दिखते ही महिलाओं को तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि २० से ४० वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस के मामलों में २० फीसदी की वृद्धि देखी गई है। इस बीमारी के बारे में जागरूकता, समय पर रोग का पता लगाने और प्रभावी प्रबंधन की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है।
बीमारी का जल्द नहीं चलता पता
चिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी का कई वर्षों तक पता नहीं चल पाता है। इस वजह से यह महिलाओं के जीवन स्तर और प्रजनन क्षमता पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। जेनोवा शेल्बी अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. स्वेथा लालगुडी ने कहा है कि एंडोमेट्रियोसिस महिलाओं की प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है। इसके साथ ही यह प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे अंडे का निकलना, फर्टिलाइजेशन या गर्भाशय में गर्भधारण की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
पूरी तरह से रुक सकती है एंडोमेट्रियोसिस
नई मुंबई के मदरहुड अस्पताल की प्रसूति व स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. सुरभि सिद्धार्थ ने कहा है कि एंडोमेट्रियोसिस को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, क्योंकि यह मुख्य रूप से शरीर में हार्मोनल असंतुलन, विशेष रूप से एस्ट्रोजन के अधिक स्तर या अनुवांशिकता के कारण होता है। हालांकि, स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है। स्वच्छता बनाए रखना, नियमित व्यायाम करना, संतुलित आहार लेना, तनाव प्रबंधन और समय-समय पर स्वास्थ्य जांच कराना महत्वपूर्ण है। नई मुंबई के मेडिकवर अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुरंजिता पल्लवी ने कहा कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस का खतरा समान है।
क्या है एंडोमेट्रियोसिस?
एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें गर्भाशय की अंदरूनी परत के समान ऊतक गर्भाशय के बाहर विकसित हो जाते हैं। यह ऊतक आमतौर पर अंडाशय, पैâलोपियन ट्यूब या श्रोणी क्षेत्र में पाया जाता है। यह ऊतक मासिक धर्म चक्र के दौरान होने वाले परिवर्तनों के प्रति प्रतिक्रिया करता है, जिससे दर्द, सूजन और गांठें बन सकती हैं। इस बीमारी के मुख्य लक्षणों में तीव्र पेल्विक दर्द, दर्दनाक मासिक धर्म, थकान और कुछ मामलों में बांझपन शामिल है।
राज की बात : ट्रंप से चाय पर ये चर्चा है जरूरी
द्विजेंद्र तिवारी मुंबई
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के एक महीने से भी कम समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका पहुंच रहे हैं। ११ वर्ष में यह उनकी दसवीं अमेरिका यात्रा है। २०२० में कोविड न आया होता तो प्रतिवर्ष अमेरिका जाने का उनका औसत बना रहता। किसी भी प्रधानमंत्री द्वारा अमेरिका जाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड वे बना चुके हैं। फ्रांस की भी उनकी यह आठवीं यात्रा है, जहां वह इस समय हैं।
ट्रंप के तीन तीर
ट्रंप ने इस समय तीन तरह के युद्ध छेड़ रखे हैं, जिनका असर भारत पर पड़ रहा है। अवैध प्रवासी, वर्ल्ड टैरिफ और दान की राशियां रोकना। जिस तरह भारत के नागरिकों को बेड़ियां पहनाकर लाया जा रहा है, उसे सभी भारतवासी देख रहे हैं। ऐसा तो हमारे देश में जघन्य अपराधियों के साथ भी नहीं होता। कोलंबिया जैसे देशों ने दिखा दिया है कि वैâसे अपने देश के नागरिकों की फिक्र की जाती है। मामूली अपराध पर उनके साथ किए जा रहे इस सुलूक पर प्रधानमंत्री को अपना कड़ा विरोध ट्रंप सरकार से जताना चाहिए। अमेरिका को भारत के बाजार की जरूरत है। अगर मोदी जी कठोर बने रहेंगे, तब भी भारत का कुछ नहीं बिगड़ेगा। बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय इंदिरा गांधी ने साबित कर दिया था कि कठोर बने रहने पर अमेरिका पीछे हट जाता है।
टैरिफ वॉर
दूसरा है टैरिफ वॉर का मुद्दा। यह दोतरफा है और इसका हल बातचीत से ही किया जा सकता है। विकासशील देशों को अमेरिका सहित सभी पश्चिमी देश टैरिफ में रियायत देते रहे हैं, जिसे ट्रंप बदलना चाहते हैं। अपने देश में टैक्स या छूट का अधिकार उस देश की सरकार को होता है और उस पर किसी अन्य देश का दखल नहीं हो सकता है। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब व्हाइट हाउस में अपने दोस्त ट्रंप के साथ चाय की चुस्कियां ले रहे होंगे, तब इस पर भी गंभीरता से चर्चा करेंगे। इस पर कठोर होने की नहीं, व्यापारिक समझ और मोलभाव की कला की जरूरत है। अदानी जैसे उद्योगपति मित्रों के साथ मोदी जी ने व्यापार के ये गुर सीख रखे हैं इसलिए इसमें मोदी जी अवश्य सफल होंगे।
दान पर रोक
तीसरा महत्वपूर्ण मुद्दा है, यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड) की मदद रोकना। ट्रंप के प्रशासन में विदेशी सहायता की यह महत्वपूर्ण जीवनरेखा खतरे में पड़ सकती है, जिससे देशभर में महत्वपूर्ण विकास परियोजनाओं के भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ सकती हैं। पिछले चार वर्षों में यानी जो बाइडेन के कार्यकाल में भारत को यूएसएड की सहायता में भारी उछाल आया, खासकर तब जब दुनिया महामारी के दुष्परिणामों से जूझ रही है। कुल मिलाकर, भारत को इस अवधि के दौरान ६५ करोड़ डॉलर (लगभग ५,७०० करोड़ रुपए) की सहायता मिली, जिससे २००१ से यूएसएड से कुल वित्तीय सहायता २.८६ बिलियन (लगभग २५ हजार करोड़ रुपए) हो गई। अकेले वर्ष २०२४ में भारत को १५ करोड़ डॉलर (लगभग १,३१८ करोड़ रुपए) से अधिक प्राप्त हुए, जबकि २०२३ के लिए आवंटन १७ करोड़ डॉलर पर पहुंच गया। २०२२ में सबसे ज्यादा लगभग २२.८ करोड़ डॉलर दिया गया। अब ट्रंप द्वारा इसमें कटौती से भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर सबसे ज्यादा असर पड़ने की आशंका है, जो परंपरागत रूप से यूएसएड का सबसे बड़ा लाभार्थी रहा है। पिछले चार वर्षों में स्वास्थ्य सेवा ने कुल सहायता का लगभग दो-तिहाई हिस्सा प्राप्त किया, जिसमें अकेले २०२३ में १२ करोड़ डॉलर आवंटित किए गए। यह उस वर्ष भारत को यूएसएड की संपूर्ण सहायता का ६९ प्रतिशत था।
सरकार की पहल जरूरी
यूएसएड भारत में स्वास्थ्य सेवा और पर्यावरण स्थिरता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। एजेंसी की वित्तीय सहायता बंद होने के बाद कुछ क्षेत्रों में काम बंद हो गया, पर इसे सकारात्मक नजरिए से भी देखना जरूरी है, इसमें सरकार को पहल करनी होगी। पिछले कुछ वर्षों में भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है और इसकी बढ़ती आर्थिक ताकत का मतलब है कि यह विदेशी सहायता पर निर्भरता कम कर सकता है। यूएसएड फंडिंग में कमी भारत को विकास के लिए अपने स्वयं के संसाधन जुटाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है, जिससे विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक मजबूत और टिकाऊ घरेलू निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
विदेशी सहायता पर निर्भरता कम करने से सरकार को घरेलू संस्थाओं के निर्माण और उन्हें मजबूत बनाने पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। भारत के बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक क्षेत्र अधिक लचीले हो सकते हैं और अपने स्वयं के समाधान उत्पन्न करने में सक्षम हो सकते हैं। बाहरी वित्तीय सहायता पर निर्भर रहने की बजाय दीर्घकालिक स्थिरता को बढ़ावा दे सकते हैं।
अपने पैरों पर
विदेशी सहायता में कमी के साथ, भारत सरकारी संसाधनों को उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की ओर मोड़ सकता है, जिन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, जैसे कि शिक्षा, पर्यावरण, तकनीकी नवाचार और शहरी विकास। इससे भारत की विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर धन का अधिक सुव्यवस्थित आवंटन हो सकता है। भारत का अधिक आत्मनिर्भर बनने और विदेशी सहायता पर अपनी निर्भरता कम करने का विचार देश की बढ़ती आर्थिक शक्ति का द्योतक है।
इसलिए यूएसएड के मुद्दे पर भी चिंता की जरूरत नहीं है। दान के डॉलर का मोह खत्म होना जरूरी है। भारत किसी की मदद का मोहताज नहीं है, लेकिन जो काम वह एजेंसी कर रही थी, वह काम सरकार और भारत की स्वयंसेवी संस्थाओं को करना होगा। साल का पांच- दस हजार करोड़ रुपए का दान रुकने से भारत पर असर नहीं पड़ता।
बशर्ते, मोदी सरकार ईमानदारी से काम करे। देश के युवा करोड़ों खर्च करके, दुर्गम रास्तों से जान जोखिम में डालकर अमेरिका क्यों जाते हैं? इस प्रश्न पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए और विदेशी दान त्यागकर खुद पर भरोसा रखना चाहिए।
शिंदे की योजनाएं होंगी बंद …देवेंद्र का झटका दे दनादन!
सामना संवाददाता / मुंबई
महायुति में एकनाथ शिंदे का वैलेंटाइन अब खत्म हो गया है। देवेंद्र फडणवीस जब से मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए हैं, तब से वे शिंदे और उनके गुट को दे दनादन झटके देकर परेशान कर रहे हैं। पालक मंत्री पद को लेकर शिंदे गुट द्वारा विवाद खड़ा करने के बाद रायगड और नासिक जिले के पालक मंत्री पद के पैâसले पर फडणवीस ने रोक लगा दी थी। इसके बाद शिंदे द्वारा शुरू की गई कई योजनाओं को एक के बाद एक बंद करने का सिलसिला शुरू कर दिया है।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने शिंदे की आनंदाचा शिधा और तीर्थयात्रा योजनाओं को बंद करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही सरकारी खजाने पर दबाव का हवाला देते हुए लाडली बहन योजना के लाभार्थियों की संख्या कम करने के लिए सरकार द्वारा अलग-अलग तरीके अपनाए जा रहे हैं। बताया गया है कि मुख्यमंत्री वयोश्री योजना को भी बंद किया जा सकता है। आनंदाचा शिधा योजना शिंदे द्वारा विशेष रूप से शुरू की गई थी, लेकिन इसे भी बंद करने के लिए फडणवीस ने कहा है। आपदा प्रबंधन समिति से एकनाथ शिंदे को हटाए जाने के कारण न केवल शिंदे, बल्कि शिंदे गुट के विधायक भी नाराज हैं। उप मुख्यमंत्री अजीत पवार भी इस समिति में हैं, लेकिन केवल शिंदे को ही हटाए जाने पर शिंदे गुट में नाराजगी है।
एक व्यक्ति, एक पद का फॉर्मूला
महायुति में तीन-तीन पार्टियां हैं। इस वजह से तीनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं को खुश रखना मुश्किल हो गया है। फडणवीस भाजपा कार्यकर्ताओं को संभाल सकते हैं, लेकिन शिंदे गुट और अजीत पवार गुट को पद देने में भाजपा जैसा अनुशासन नहीं है। भाजपा में एक व्यक्ति, एक पद का फॉर्मूला लागू किया जाता है। अब पद कम और मांगने वाले ज्यादा हो गए हैं इसलिए पूरी महायुति पर यह फॉर्मूला लागू करने का फडणवीस का प्रयास शुरू हो गया है। एकनाथ शिंदे के पास महत्वपूर्ण नगर विकास विभाग होने के कारण उन्हें राजस्व और आपदा प्रबंधन समिति से हटाए जाने की बात कही जा रही है।
पैसा १०० करोड़ खा गए …व्यवस्था ४० करोड़ की भी नहीं की! …महाकुंभ पर महाजाम देख फूटा अखिलेश यादव का गुस्सा
४० करोड़ श्रद्धालुओं के अनुमान और १०० करोड़ श्रद्धालुओं की तैयारी की हवा निकल गई है। महाकुंभ को शुरू हुए २६ दिन हो चुके हैं और अब तक ४२ करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु पवित्र संगम में पवित्र डुबकी लगा चुके हैं। प्रयागराज शहर और कुंभ मेला क्षेत्र के सभी एंट्री प्वाइंट बंद कर दिए गए हैं। लाखों श्रद्धालु जहां हैं, वही थम गए हैं। भयंकर भीड़ और उतनी ही भयंकर बदइंतजामी है। इसे लेकर अखिलेश यादव ने यूपी की योगी सरकार पर जमकर हल्ला बोला है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने यूपी सरकार की व्यवस्थाओं पर सवाल उठाए हैं। इसी के साथ ही उन्होंने महाकुंभ में प्रशासन की पोल खोलकर योगी सरकार की बोलती बंद कर दी है। अखिलेश यादव ने कहा, `पैसा सौ करोड़ का खा गए और व्यवस्था ४० करोड़ की भी नहीं की। चंदे के रूप में रंगदारी वसूलने वाली भाजपा ने आस्था को लूट, भ्रष्टाचार का अवसर बना दिया।
बोर्ड परीक्षा टिप्स : शुभकामनाएं! बोर्ड परीक्षा : आज से सुव्यवस्थित योजना बनाकर विद्यार्थी करें तैयारी!
प्रो. डॉ. दयानंद तिवारी
१२वीं बोर्ड की परीक्षाएं आज से शुरू हो रही हैं। यह समय आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये परीक्षाएं आपके भविष्य की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अंतिम समय में पढ़ाई करने के लिए एक सुव्यवस्थित योजना बनाना, अपनी कमजोरियों पर ध्यान देना और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। कहावत है कि ‘अंत भला तो सब भला’ इसी पर आधारित है यह आलेख! कृपया इसे ध्यान से पढ़ें, विश्वास है कि ये सूत्र आपको इन परीक्षाओं में सफलता पाने में मदद करेंगे।
अध्ययन की योजना और समय प्रबंधन
अंतिम समय में तैयारी करते समय सबसे पहले एक स्पष्ट अध्ययन योजना बनाना चाहिए। अपने सभी विषयों की सूची तैयार करें और यह निर्धारित करें कि किस विषय में आपको अधिक मेहनत करने की आवश्यकता है। पढ़ाई के लिए दिनचर्या बनाएं, जिसमें विषयों के अनुसार समय विभाजन करें। प्रत्येक विषय को नियमित अंतराल पर दोहराते रहें, ताकि याददाश्त बनी रहे। छोटे-छोटे ब्रेक लें और अपने अध्ययन सत्रों को ४०-५० मिनट के अंतराल में विभाजित करें।
पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों का अभ्यास
अंतिम तैयारी में पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों का अभ्यास बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। इससे आपको प्रश्नों के प्रकार, उनके पैटर्न और कठिनाइयों का अंदाजा हो जाता है। समय सीमा के साथ इन प्रश्नपत्रों को हल करने की कोशिश करें, ताकि वास्तविक परीक्षा के माहौल के लिए आप पहले से तैयार रहें।
महत्वपूर्ण नोट्स और फॉर्मूला रिवीजन
अध्ययन के दौरान आपने जो नोट्स बनाए थे, उन्हें अंतिम समय में एक बार फिर से पढ़ें। महत्वपूर्ण फॉर्मूला, अवधारणाएं और सिद्धांतों को बार-बार दोहराएं। यदि कुछ भी याद नहीं आ रहा है तो उसे तुरंत रिवाइज करें, अपने हाथ में छोटी नोटबुक रखें जिसमें आप त्वरित रिवीजन के लिए सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को संक्षेप में लिख सकें।
स्वस्थ आहार और जलयोजन
अच्छी पढ़ाई के लिए अच्छा आहार भी उतना ही जरूरी है। परीक्षा की तैयारी के दौरान संतुलित आहार लें जिसमें फल, सब्जियां, प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ और अनाज शामिल हों। जल्दी-जल्दी खाने से बचें और ज्यादा तली-भुनी या जंक फूड का सेवन न करें। पानी पीते रहें, क्योंकि जलयोजन से दिमागी शक्ति बनी रहती है और थकान दूर होती है।
मानसिक तनाव से निपटना
अंतिम समय में परीक्षा का दबाव अक्सर मानसिक तनाव को जन्म देता है। इस तनाव को कम करने के लिए मेडिटेशन, योग या गहरी सांस लेने के व्यायाम का सहारा लें। ध्यान केंद्रित करने के लिए कुछ मिनट रोजाना मेडिटेशन में बिताएं। अपने मित्रों और परिवार के साथ हल्की-फुल्की बातचीत करें।
मॉक टेस्ट और आत्ममूल्यांकन
पिछले दिनों में मॉक टेस्ट का अभ्यास करें। मॉक टेस्ट आपके आत्मविश्वास को बढ़ाने के साथ-साथ आपको समय प्रबंधन में भी मदद करते हैं। अपने द्वारा हल किए गए प्रश्नों का विश्लेषण करें और यह समझें कि किन क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है।
परीक्षा के दिन की तैयारी
परीक्षा से एक दिन पहले जो भी सामान आपको ले जाना है, उसे निकालकर सामने रख लें। सुबह उठकर ये तैयारियां न करें।
एक रात पहले ठीक से सोएं और भरपूर नींद लें। पढ़ाई या रिवीजन के चक्कर में न पड़ें। एक रात पहले जागकर पढ़ना जैसी गलती बिलकुल न करें। परीक्षा वाले दिन समय से निकलें और टाइम से पहले पहुंचे।
(लेखक श्री जेजेटी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर व सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् और साहित्यकार हैं।)