महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा “सामाजिक चेतना जगाते राष्ट्र और महाराष्ट्र के संत कवियों के प्रखर स्वर” विषय पर साहित्य संगोष्ठी

सामना संवाददाता / मुंबई

महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा “सामाजिक चेतना जगाते राष्ट्र, महाराष्ट्र के संत कवियों के प्रखर स्वर” विषय पर एक दिवसीय साहित्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गरिमापूर्ण संगोष्ठी में विभिन्न वक्ताओं ने इस बात पर पूर्ण सहमति जताई कि राष्ट्र एवं महाराष्ट्र के संतों ने हमारे समाज में अज्ञान, संकीर्णता और जाति-भेद का सदैव विरोध किया।
यह एक दिवसीय संगोष्ठी रविवार, 9 फरवरी, 2025 को अकोला के राधाकिशन लक्ष्मीनारायण तोषनीवाल विज्ञान महाविद्यालय के सभागार में महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी सदस्य श्याम शर्मा के संयोजन में सफलता पूर्वक आयोजित की गई। इस संगोष्ठी के चर्चा सत्र के उद्घाटक प्रा. नारायण कुलकर्णी कवठेकर सहित प्रत्येक वक्ता का यही मंतव्य रहा कि हमारी संत परम्परा ने कभी एक-दूसरे के प्रति जाति भेद नहीं किया तथा वे एक- दूसरे को श्रेष्ठ मानकर उनका सम्मान करते थे। विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि संत केवल संत होते हैं, उनमें कोई भेद नहीं हो सकता। संत परम्परा अनादि काल से अस्तित्व में है। मराठी बहुल प्रांत महाराष्ट्र के भगवान विठ्ठल मूलतः महाराष्ट्र से नहीं, बल्कि कर्नाटक से हैं, लेकिन इससे अधिक बड़ा सत्य यह है कि वे पूरे ब्रह्मांड के हैं। गोरखनाथ एवं तिरुविल्लूवर की संत परम्परा भी इसी प्रकार जाति, धर्म, भाषा और प्रांत से कहीं ऊपर है। संगोष्ठी के स्वागताध्यक्ष बीजीई सोसायटी के अध्यक्ष एडवोकेट मोतीसिंह मोहता रहे। विशेष अतिथि एवं इस विषय के मर्मज्ञ सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं गीतकार डॉ. रामप्रकाश वर्मा ने कहा कि तिरुविल्लुवर का लेखन कार्य और शंकरदेव जैसे महान संत साहित्यकारों का सामाजिक चेतना कार्य हिंदी के तुलसी, मीरा एवं कबीर की तरह ही हमारी कीमती धरोहर है। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी सदस्य डॉ. प्रमोद शुक्ल ने तुलसी और कबीर की अनेक रचनाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि उनका साहित्य कितना निर्भय और यथार्थवादी था? संत परम्परा के अभ्यासक डॉ. किरण वाघमारे ने चक्रधर स्वामी के उल्लेखनीय समाज सुधारवादी कार्यों से श्रोताओं को अवगत करवाया। लेखक और पत्रकार डॉ. शैलेंद्र दुबे ने कुशल मंच संचालन किया। संगोष्ठी का शुभारंभ प्रा. नाना भड़के द्वारा गाये गए महाराष्ट्र गीत के साथ हुआ। सुष्मिता तुषार शर्मा ने गणेश वंदना प्रस्तुत की। संगोष्ठी की प्रस्तावना अकादमी के कार्यकारी सदस्य श्याम प. शर्मा ने प्रस्तुत की। संगोष्ठी के प्रथम सत्र का संचालन कृष्णकुमार शर्मा एवं द्वितीय सत्र का संचालन डॉ. शैलेंद्र दुबे ने किया। मंच पर मौजूद गणमान्य अतिथियों को पुस्तकें और शॉल देकर सम्मानित किया गया। एडवोकेट मोतीसिंह मोहता ने अपने विचार व्यक्त करते हुए विदर्भ के संत तुकाडोजी महाराज, संत गाडगे बाबा, मराठी संत तुकाराम महाराज, संत नामदेव और संत ज्ञानेश्वर की सामाजिक चेतना पर प्रकाश डाला। डॉ. शैलेंद्र दुबे ने श्रोताओं को गुरु नानक और संत दादू दयाल की सीख से अवगत करवाया। इस अवसर पर महेश पाण्डेय, प्रा. शारदा बियाणी, प्रा. तसनीम वोरा, प्राचार्य भडांगे, अनुराग मिश्र, डॉ. राजेश्वर बुंदेले, प्रा. मोनिष चौबे, डॉ. सरलता वर्मा, दर्शन लहरिया, डॉ. निशाली पंचगाम, सविता तापड़िया, प्रा. सारिका अग्रवाल, प्रा. अभिलाष बाजपेयी, श्री अमरावतीकर, गुजराती साहित्य अकादमी के विजय जानी, दिनेश शुक्ल, सिद्धार्थ शर्मा, तुषार शर्मा, सिंधी साहित्य अकादमी के डॉ. सुरेश लालवानी, डाॅ. सुरेश केसवानी, टुली जीवतरामानी, डॉ. सत्यनारायण बाहेती, डॉ. आनंद चतुर्वेदी, प्रा. धीरज सिंह ठाकुर, अभिषेक जैन, हितेश सोनी, सुहास देशमुख, सीमाताई रोठे, डाॅ. कोमल श्रीवास, शालिनी पूर्णये, नीमा झुनझुनवाला, मोहिनी मोडक, प्रा.कालीदास लाटा, प्रबोध देशपांडे, कपिल रावदेव, शौकत अली मीर, श्याम सुनारीवाल आदि सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे। संगोष्ठी का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।

तीन दिन पहले खरीदी गई नई कार को बिहार के शेखपुरा में लगाई आग

अनिल मिश्र / पटना

बिहार प्रदेश के शेखपुरा शहर के जमालपुर मुहल्ले में घर के आगे सड़क पर खड़ी नई कार में शरारती तत्वों ने रात में आग दिया, जिससे नई कार धू-धू कर जलते हुए राख में तब्दील हो गई। घटना की जानकारी जब कार मालिक को मिली तो उसने अग्निशमन केंद्र को आग पर काबू पाने की सूचना दी गई, तब मौके पर पहुंची अग्निशमन वाहन आग पर काबू पाने का प्रयास किया।लेकिन तब तक कार पूरी तरह जलकर नष्ट हो चुकी थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार, बिहार के शेखपुरा में एक युवक ने महज तीन दिन पहले ही नई कार खरीदी थी, लेकिन कुछ शरारती तत्वों ने उसकी कार को आग के हवाले कर दिया। देखते ही देखते आग ने विकराल रूप ले लिया और गाड़ी धू-धू कर जल गई। कार मालिक को जब इसकी भनक लगी तो अग्निशमन केंद्र को सूचना दी। मौके पर दमकल की गाड़ी जब तक पहुंची, तब तक कार पूरी तरह जलकर खाक हो चुकी थी। शहर के जमालपुर मुहल्ले के शेखर कुमार ने मात्र तीन दिन पहले ही 12 लाख रुपए में यह नई कार खरीदी थी, लेकिन तीन दिन बाद ही इस नई कार को अज्ञात शरारती तत्वों ने आग लगा दी। कार को आग के हवाले किसने किया, फिलहाल इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है। इस संबंध में थाने में पीड़ित ने शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत मिलने के बाद शेखपुरा टाउन थाना की पुलिस मामले की जांच-पड़ताल करने में जुट गई है।

मुंबई का मेकअप बहा!..ब्यूटीफिकेशन प्रोजेक्ट हुआ कबाड़…` १,७०० करोड़ मनपा ने किए बर्बाद…दो साल पहले शुरू हुई थी योजना

-एलईडी लाइटें, लाइब्रेरी, कैफे, ट्रैफिक आइलैंड, सजावटी संरचनाएं सभी हो गए भंगार…` १,७०० करोड़ मनपा ने किए बर्बाद…दो साल पहले शुरू हुई थी योजना

सामना संवाददाता / मुंबई

मनपा ने शहर को सुंदर बनाने के लिए १,७०० करोड़ रुपए का ब्यूटीफिकेशन प्रोजेक्ट शुरू किया था, लेकिन दो साल बाद ही यह योजना पूरी तरह से फेल हो गई है। यह प्रोजेक्ट कबाड़ हो चुका है। ऐसे में कहा जा रहा है कि मुंबई को सुंदर बनाने के लिए ‘ईडी’ सरकार ने जो मेकअप लगाने का ड्रामा किया था, वह बह गया है। १३ करोड़ रुपए की लागत से बनाई गई लाइब्रेरी और वैâफे बसें चालू होने से पहले बंद हो गर्इं। करोड़ों की एलईडी लाइटें जगह-जगह खराब पड़ी हैं। ट्रैफिक आइलैंड और डिवाइडर टूट चुके हैं।

बस प्रोजेक्ट बना सफेद हाथी
जेजे फ्लाई ओवर के नीचे १३ करोड़ रुपए की लागत से तीन डबल डेकर बेस्ट बसों को लाइब्रेरी आर्ट गैलरी और कैफे में बदला जाना था, लेकिन उद्घाटन के चार महीने बाद भी यह चालू नहीं हो सका। अब प्रशासन कह रहा है कि इन बसों को महिला स्वयं सहायता समूहों को दे दिया जाएगा।
बिना योजना करोड़ों स्वाहा
ब्यूटीफिकेशन के नाम पर मनपा ने कई जगहों पर ऐसे निर्माण कार्य किए, जो अब नई परियोजनाओं के चलते तोड़े जा रहे हैं। गिरगांव चौपाटी पर लेजर शो, ट्रैफिक आईलैंड, स्ट्रीट आर्ट और पेड़ों की लाइटिंग पर करोड़ों खर्च किए गए, लेकिन इनमें से ज्यादातर चीजें कुछ ही महीनों में खराब हो गर्इं।
३०० करोड़ की मूर्तियां भी विवादों में
मेट्रो-२बी प्रोजेक्ट के तहत ३०० करोड़ रुपए की लागत से सड़क किनारे बॉलीवुड थीम वाली मूर्तियां लगाई जा रही हैं, जिसका स्थानीय लोगों ने विरोध किया है। लोगों का कहना है कि जब मेट्रो प्रोजेक्ट पूरा होने में दो साल लगेंगे तो इतनी जल्दी इन्हें लगाने की क्या जरूरत थी?
सौंदर्य पर किए खर्च का हिसाब दो!
मुंबई को सुंदर बनाने के नाम पर भारी घपला किया गया है। इस मद में १,७०० रुपए आनन-फानन में खर्च कर दिए गए। अब मनपा के इस १,७०० करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष के साथ ही आम लोग भी मांग कर रहे हैं कि इस पूरे खर्च का हिसाब दिया जाए और एक श्वेत पत्र जारी किया जाए।
सरकार बदलते ही बदली नीति
२०२२ में जब शिंदे-फडणवीस सरकार सत्ता में आई तो ‘टैक्टिकल अर्बनिज्म’ की जगह ‘सिटी ब्यूटीफिकेशन’ प्रोजेक्ट शुरू कर दिया गया। टैक्टिकल अर्बनिज्म को पहले शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता, युवासेनाप्रमुख व विधायक आदित्य ठाकरे ने बढ़ावा दिया था। इसमें स्कूलों के आस-पास के इलाकों को पैदल यात्रियों के अनुकूल बनाना, सुरक्षित फुटपाथ और बेहतर सड़कें बनाना शामिल था।

अन्ना, उमर और अमृतकाल…लड़ो जी भर के!

अरविंद केजरीवाल खुद दिल्ली विधानसभा में हार गए। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने २२ सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने ७० सदस्यीय विधानसभा में स्पष्ट बहुमत हासिल किया। कांग्रेस हमेशा की तरह कद्दू भी नहीं फोड़ पाई। दिल्ली में २७ साल बाद भाजपा को जीत मिली है। केजरीवाल समेत पूरी आप की कैबिनेट हार गई। अपवाद मात्र मुख्यमंत्री आतिशी और गोपाल राय हैं। केजरीवाल वहीं लौट आए हैं जहां से उन्होंने राजनीति शुरू की थी। केजरीवाल की हार और भाजपा की जीत के विश्लेषण की झड़ी लगी है, लेकिन मोदी और उनके लोगों ने दिल्ली की जीत का जश्न ऐसे मनाया मानो दुनिया जीत ली है। दिल्ली फैसले पर दो प्रतिक्रियाएं उल्लेखनीय हैं। पहला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का और दूसरा अन्ना हजारे का। रालेगण के अन्ना हजारे को महात्मा अन्ना बनाने में केजरीवाल और उनके लोगों की बड़ी भूमिका रही है। अन्ना को देश ने जाना, वो केजरीवाल द्वारा किए गए ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन’ की वजह से। हजारे को दिल्ली केजरीवाल-सिसोदिया ने दिखाई थी और बाद में केजरीवाल ने उसी दिल्ली पर राजनीतिक कब्जा कर लिया। केजरीवाल ने दिल्ली की धरती पर कम से कम दस साल तक प्रधानमंत्री मोदी से लड़ाई की और शाह-मोदी की राजनीति को मात दी। अब मोदी-शाह कई गड़बड़ियां कर जीत हासिल करने में कामयाब रहे। केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की हार की खुशी अन्ना हजारे के चेहरे पर साफ झलक रही है। अन्ना कहते हैं, ‘अरविंद केजरीवाल के विचार और चरित्र शुद्ध नहीं हैं। उनका जीवन बेदाग नहीं था। मतदाताओं को विश्वास नहीं था कि वह हमारे लिए कुछ करेंगे। मैंने उनसे बार-बार कहा, लेकिन उन्होंने नहीं सुनी। दिल्ली में
शराब ठेकों के जरिए
जो आर्थिक घोटाला हुआ, उससे उनकी बदनामी हुई।’ अन्ना हजारे के दर्द को समझा जाना चाहिए। केजरीवाल का नेतृत्व उस आग से उभरा जो अन्ना के आमरण अनशन से भड़की थी और अब उसी हजारे ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दिन लोगों से ‘केजरीवाल को बिल्कुल भी वोट न देने’ की अपील की। ​​अन्ना हजारे के जंतर-मंतर, रामलीला मैदान में कठोर आत्मक्लेश और अन्ना के आंदोलन के कारण तत्कालीन कांग्रेस सरकार घबरा गई। मोदी और उनके लोगों के सत्ता पाने में अन्ना के आंदोलन का रोल था, लेकिन जो मोदी आज केजरीवाल पर आरोप लगा रहे थे, वे अन्ना के आंदोलन के किस विचार को आगे ले गए? अन्ना के आंदोलन का उद्देश्य जनता को सूचना का अधिकार मिलने, भ्रष्टाचारियों को दंड मिलने और सरकार की कार्यशैली में पारदर्शिता लाने का था। क्या इनमें से एक भी मसले पर मोदी के शासनकाल में काम हो रहा है? सूचना के अधिकार को दबा दिया गया है। चुनाव और भ्रष्टाचार के बाबत यदि जनता जानकारी मांगती है तो उनकी अर्जी कचरे की टोकरी में फेंक दी जाती है। हमारा मत वास्तव में कहां गया है, यह जानने का अधिकार खत्म कर दिया गया है और अन्ना हजारे इस बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं। भ्रष्टाचार के बारे में बात ही न करें। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि झूठ, अहंकार, अराजकता, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का शीशमहल नष्ट हो गया है। वह बयान मजेदार है। ये सभी बुराइयां सबसे ज्यादा भाजपा की रगों में भरी हुई हैं। मोदी का अमृतकाल धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार की बैसाखियों पर टिका हुआ है और हजारे सिर्फ केजरीवाल के नाम पर टोपी पर हाथ फिरा रहे हैं। मोदी-शाह महाराष्ट्र और देशभर के सभी ‘दस नंबरी’ भ्रष्टाचारियों को एक साथ लाकर अपना राज चला रहे हैं। मोदी राज में
देश को लूटने वालों को अभय
प्राप्त है, क्या अन्ना हजारे को नहीं दिखता कि भ्रष्ट पैसे के दम पर थोक में दल परिवर्तन चल रहा है? राफेल से लेकर हिंडनबर्ग तक कई घोटाले सामने आने के बाद भी अन्ना हजारे ने उफ तक नहीं की। ऐसा लगता है मानो मोदी के राज में विचार और चरित्र की बाढ़ ही आ गई है और उस सैलाब में महाराष्ट्र में ठाकरे और दिल्ली में केजरीवाल के राज बह गए। इंसान ढोंग करे भी तो कितना? उस लिहाज से उमर अब्दुल्ला द्वारा व्यक्त किया गया गुस्सा व्यावहारिक है। दिल्ली में आप और कांग्रेस न सिर्फ एक-दूसरे के खिलाफ लड़े, बल्कि एक-दूसरे की इज्जत तार-तार कर दी। इस तरह इन दोनों ने भाजपा का काम आसान कर दिया। उमर ठीक ही कहते हैं, ‘आपस में जी भर के लड़ो और एक-दूसरे को खत्म करो।’ १४ सीटों पर ‘आप’ की हार में कांग्रेस का योगदान रहा। हरियाणा में भी यही हुआ। ‘आप’ से लड़ने के बाद आखिर कांग्रेस के हाथ क्या लगा? क्या कांग्रेस पार्टी में कोई छिपी हुई ताकतें हैं, जो हमेशा राहुल गांधी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना चाहती हैं? अगर कांग्रेस नेता यह कह रहे हैं कि आप को जिताना कांग्रेस की जिम्मेदारी नहीं है तो यह गलती है और एक तरह का अहंकार है तो क्या मोदी-शाह की तानाशाही को जिताने की जिम्मेदारी आपस में लड़ने वालों की है? दिल्ली के नतीजे का असर लोकतंत्र पर पड़ेगा। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस के स्थानीय नेता अंत तक खींचतान करते रहे और एक तरह से अंत तक गड़बड़ी की तस्वीर बनी रही। आप और कांग्रेस दोनों ने दिल्ली में एक-दूसरे को खत्म करने के लिए लड़ाई लड़ी। इससे मोदी-शाह के लिए जगह बनी। अगर इसी तरह काम करना है तो गठबंधन वगैरह क्यों बनाया जाए? जी भर के लडो़! महाराष्ट्र के बाद दिल्ली के नतीजों से भी अगर कोई सबक नहीं लेता तो तानाशाह की जीत में योगदान देने का पुण्य ले लो और उसके लिए गंगा स्नान की भी जरूरत नहीं पड़ेगी!

फडणवीस ने कसा फंदा शिंदे का ‘धंधा’ मंदा!..डिप्टी सीएम के १३ ‘शार्प शूटरों’ को मंत्रालय में नो एंट्री…किसी भी विभाग में नहीं बन सकते हैं ओएसडी

रामदिनेश यादव / मुंबई

महायुति सरकार में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उप मुख्यमंत्री व पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच शीतयुद्ध जारी है। शिंदे भले ही उप मुख्यमंत्री हैं, पर अपनी मर्जी से वे कुछ भी नहीं कर सकते। इससे उनका ‘धंधा’ मंदा होने की चर्चा चल रही है। असल में शिंदे के १३ ‘शार्प शूटरों’ (अधिकारियों) की मंत्रालय में एक तरह से नो एंट्री हो गई है। ऐसे में वे किसी भी विभाग में ओएसडी नहीं बन सकते हैं। ऐसे में शिंदे असहाय नजर आ रहे हैं, क्योंकि अपने इन्हीं खास ‘शूटरों’ के जरिए वे विभिन्न ‘खास’ कामों को उनके अंजाम तक पहुंचाते थे। बता दें कि महायुति में खुद को कमजोर महसूस कर रहे शिंदे हर तरफ से खुद को मजबूत बनाने की जोरदार कोशिश कर रहे हैं, वहीं देवेंद्र फडणवीस अपने अप्रत्यक्ष प्रतिद्वंद्वी के पर कतरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
थम नहीं रहा है शिंदे-फडणवीस का शीतयुद्ध
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच का शीतयुद्ध थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। शिंदे के तमाम पुराने निर्णय में भ्रष्टाचार होने का संकेत देते हुए फडणवीस ने उसे रद्द कर दिया है। इसके बाद शिंदे के खास अधिकारियों या यूं कहें कि शिंदे के ‘शार्प शूटर’ अधिकारियों को मंत्रालय में नियुक्ति पर भी फडणवीस ने अप्रत्यक्ष रूप से पाबंदी लगा दी है।
सूत्रों की मानें तो फडणवीस के पास एकनाथ शिंदे के ‘शार्प शूटर’ अधिकारियों की एक सूची है और उसे सूची में शामिल किसी भी अधिकारी को एवं व्यक्ति को मंत्रालय में किसी भी मंत्री के पास बतौर ओएसडी नियुक्त नहीं होने दी जा रही है और न ही उस अधिकारी की पोस्टिंग मंत्रालय में होने दी जा रही है। ऐसे में मंत्रालय में फडणवीस की धमक के चलते शिंदे की मंत्रालय में नहीं चल पा रही है, जिस वजह से अब शिंदे का ‘धंधा’ मंत्रालय में मंदा हो गया है। शिंदे का कोई भी काम आसानी से नहीं हो रहा है। ऐसा दावा सूत्रों ने किया है।
दरअसल, राज्य प्रशासन विभाग मंत्रालय देवेंद्र फडणवीस के पास है। ऐसे में मंत्रालय में एवं अधिकारियों के पास जब भी किसी व्यक्ति की नियुक्ति हो रही होती है तो उसकी फाइल मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास से गुजरती है। सूत्रों के अनुसार, देवेंद्र फडणवीस के पास सूची में शिंदे के ‘शार्प शूटरों’ के नाम पहले से नोट हैं। यदि उनके नाम की सिफारिश संबंधित मंत्रालय के मंत्री की ओर से आई है तो वे उसे काट देते हैं।
खास लोगों के प्रस्ताव रिजेक्ट
वे शिंदे के खास लोगों एवं अधिकारियों को नियुक्त करने के प्रस्ताव को रिजेक्ट कर देते हैं। फडणवीस ने अपने खुफिया तंत्र को साफ निर्देश दिया है कि शिंदे एवं उनके खास मंत्रियों एवं अधिकारियों पर पैनी नजर रखी जाए।
गोपनीय बैठक की खबर फडणवीस को मिल रही
इस प्रकार से शिंदे के हर कार्य पर देवेंद्र फडणवीस की नजर है। उनके विभाग के लोग खुफिया तौर से शिंदे की हर बैठक पर नजर बनाए हुए हैं। शिंदे की गोपनीय बैठक की खबर भी फडणवीस को मिल रही है। वे मंत्रालय हो या ठाणे में अपने घर पर किससे मिलते हैं, सभी की खबर फडणवीस के खुफिया तंत्र उन तक पहुंचाते हैं।

ब्लैकमेलिंग के जाल में मुंबई की बच्चियां!..पहले डराकर बनाते हैं अश्लील वीडियो, फिर करते हैं रेप…शहर में कई घटनाएं आईं सामने

फिरोज खान / मुंबई

इन दिनों मुंबई में नाबालिग लड़कियों के अश्लील वीडियो बनाकर उनके साथ रेप किए जाने की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं। स्कूल और कॉलेज के छात्र पहले लड़कियों से दोस्ती करते हैं और उन्हें किसी बहाने से एकांत में बुलाकर उनका अश्लील वीडियो बनाते हैं। फिर वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी देकर उसके साथ रेप करते हैं। खास बात यह है कि अश्लील वीडियो की शिकार ज्यादातर नाबालिग लड़कियां हो रही हैं। हाल ही में मुंबई और उसके आस-पास के इलाकों में अश्लील वीडियो, ब्लैकमेलिंग और रेप की कई वारदातें सामने आई हैं। इस तरह के खतरनाक खेल ने बहुत-सी नाबालिग बच्चियों का जीवन बर्बाद कर दिया है।
पिलाने के बाद किया बलात्कार!
मुंबई में नाबालिग बच्चियों के साथ अश्लील वीडियो बनाकर रेप करने की वारदात बढ़ती ही जा रही है। गत एक महीने में ऐसी करीब आधा दर्ज घटनाएं सामने आ चुकी हैं। गत ८ जनवरी को चेंबूर इलाके में रहनेवाली १५ साल की बच्ची को उसके लड़के दोस्त कपड़े दिलवाने के बहाने एकांत जगह ले गए और कोल्ड ड्रिंक्स में नशीला पदार्थ मिलाकर उसे पिलाया और उसका अश्लील वीडियो बना लिया। इसके बाद उसके साथ लड़कों ने सामूहिक बलात्कार किया।
इस घटना में लड़की बेहोश हो गई। बाद में जब लड़की को होश आया तो आरोपी लड़कों ने उसे धमकी दी कि अगर उसने किसी को बताया तो उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देंगे। आरसीएफ पुलिस ने मामला दर्ज किया है।
गत २३ जनवरी को समतानगर पुलिस स्टेशन की हद में रहनेवाली १७ साल की बच्ची को उसे जाननेवाले लड़कों ने बहाने से एक सुनसान जगह पर बुलाकर जबरन उसका अश्लील वीडियो बना लिया। फिर अश्लील वीडियो वायरल करने की धमकी देकर उस बच्ची के साथ गैंपरेप किया गया।

टैक्स ने तोड़ी परिवहन की कमर…१,६०० किलोमीटर के सफर पर ` २५ हजार का टोल!…भाजपा के सिस्टम से ट्रांसपोर्टर परेशान

सामना संवाददाता / नई दिल्ली

विकास के नाम पर भाजपा सरकार दावा करती है कि उसने पूरे देश में सड़कों का जाल बिछा दिया है। मगर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस विकास से सामान काफी महंगे हो गए हैं। सड़कों पर मनमाने टोल टैक्स थोप दिए गए हैं, जिससे सड़क परिवहन की कमर टूट गई है। ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि उन्हें १,६०० किलोमीटर सफर के लिए २५ हजार रुपए टोल के चुकाने पड़ रहे हैं। इससे सामान का परिवहन काफी महंगा हो गया है। आखिर में इस महंगे सामान का बोझ आम जनता पर ही पड़ता है।
ट्रांसपोर्टरों का ट्रक चलाना हुआ मुश्किल!
सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में ट्रांसपोर्टरों की अहम भूमिका रहती है। पिछले कुछ वर्षों में अतिरिक्त टोल टैक्स के चलते ट्रांसपोर्टरों की गाड़ी पटरी से उतर रही है। ट्रांसपोर्टरों की मानें तो १,६०० किलोमीटर के सफर में उन्हें २५ हजार रुपए का टोल देना पड़ जाता है। अब ट्रांसपोर्टर अगर टोल की राशि निकालने के लिए भाड़ा बढ़ाते हैं तो इससे लोगों को परेशानी होती है। इसका बोझ आम आदमी की जेब पर ही पड़ता है। ऐसे में ट्रांसपोर्टरों के लिए काम करना मुश्किल हो गया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जैन रोडलाइन के संचालक नवीन जैन ने बताया कि कई बार उनके फास्टैग में रुपए होने के बाद भी टोल कर्मचारी चालक को परेशान करते हैं। कई बार चालक आधी रात में उन्हें नींद में सोते हुए उठाते हैं और इस समस्या से अवगत करवाते हैं। इसके बाद वह व्हॉटसऐप पर स्क्रीन शॉट भेजते हैं, तब जाकर कर्मचारी फास्ट टैग से पेमेंट काटते हैं। लेकिन जब नकद की बात आती है तो कर्मी नकद में डबल रुपए लेते हैं, जो गलत है।
बढ़ गया डीजल का खर्च
एक अन्य ट्रांसपोर्टर ने बताया कि उनकी दिल्ली, पंजाब और अन्य राज्यों में गाड़ियां चलती हैं। आज के समय में सबसे बड़ी समस्या टोल टैक्स की है। पहले के मुकाबले अब टोल टैक्स में अतिरिक्त खर्चा बढ़ गया है, जिसके कारण उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। किराया तो बढ़ा नहीं, लेकिन टोल टैक्स के कारण खर्चे जरूर बढ़ गए हैं। कई बार देखा गया है कि टोल टैक्स पर जाम लगा रहता है, जिसके कारण १५ से २० मिनट तक गाड़ियां खड़ी रहती है, वहीं टोल के पास बाइपास बना दिए जाते हैं। पहले टोल टैक्स दो फिर बाइपास को क्रॉस करने में ही १५ से २० किलोमीटर का दायरा पार करना पड़ता है, जिसके कारण डीजल की खपत ज्यादा होती है।
घटना चाहिए टोल का बोझ
पंजाब ट्रांसपोर्टर देवी राम ने बताया कि गाड़ी का अतिरिक्त भाड़ा टोल टैक्स में चला जाता है। उनकी गाड़ियां मुंबई, अमदाबाद व अन्य राज्यों में जाती हैं, जिसमें १० टायर की गाड़ी का मुंबई का २५ से ३० हजार और अमदाबाद का १५ हजार के करीब खर्चा आता है। उनकी बंगलुरू आने जाने का खर्च १५ हजार, चेन्नई २२ हजार और हैदराबाद १७ हजार के करीब आता है। सरकार को टोल टैक्स की दूरी तय करनी चाहिए। वह सरकार से मांग करते हैं कि टोल टैक्स को कम किया जाए।

तटकरे-गोगावले में शिंदे ने लगाई आग!..पालक मंत्री का निर्णय नहीं होने से तीन जिलों का विकास कार्य ठप

सामना संवाददाता / मुंबई

महायुति सरकार में तीन जिलों में पालक मंत्री पद को लेकर विवाद सुलझ नहीं पा रहा है, जिसकी वजह से जिला विकास योजना तैयार नहीं हो पा रही है। नतीजतन, जिला नियोजन बैठक भी नहीं हो रही है। इसमें रायगड, नासिक जिले का ज्यादा नुकसान हो रहा है। अब खबर आ रही है कि रायगड में पालक मंत्री पद को लेकर असली आग उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने लगाई है। अदिति तटकरे और भरत गोगावले में झगड़ा कम करने की बजाय शिंदे ने गोगावले का समर्थन किया है।
भरत गोगावले की नाराजगी पर जब उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अपेक्षा रखना गलत नहीं है। उन्होंने वर्षों तक रायगड में काम किया है। उम्मीदें और मांगें रखना गलत नहीं है। महायुति में चर्चा कर इसका समाधान निकाला जाएगा। उनके इस बयान से साफ है कि यह लड़ाई एकनाथ शिंदे की शह के चलते हो रही है।
बता दें कि राज्य में पालक मंत्री पद की घोषणा हुए एक महीना बीत गया, लेकिन महायुति सरकार में तीनों जिलों में पालक मंत्री को लेकर अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है। रायगड में शिंदे गुट और अजीत पवार गुट, दोनों ही पालक मंत्री पद को लेकर अड़े हुए हैं। राजनीतिक दलों और नेताओं के इस रुख का नुकसान जिले को झेलना पड़ रहा है। अब देखना होगा कि जिले के हित में यह राजनीतिक दल पालक मंत्री पद को लेकर जल्द कोई निर्णय लेते हैं या नहीं। विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने सफाई देते हुए कहा कि पालक मंत्री पद को लेकर कोई गतिरोध नहीं है, कुछ फैसले लेने में समय लगता है।
गोगावले ने कहा कि रायगड में पालक मंत्री पद को लेकर वरिष्ठ नेताओं से मेरी कोई चर्चा नहीं हुई। इस पद पर लिया गया फैसला मेरे लिए चौंकाने वाला है। हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी। जब जिले में मेरे समर्थन में माहौल बन चुका था, तब इस तरह का फैसला किसी के भी लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता। यह अप्रत्याशित निर्णय है, ऐसी प्रतिक्रिया देते हुए भरत गोगावले ने अपनी नाराजगी जाहिर की।
रायगड जिला नियोजन समिति की बैठक से बाहर
इस पर एकमत नहीं बन पाने के कारण जिले को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। पालक मंत्री न होने के कारण जिला नियोजन समिति का गठन नहीं हुआ, जिससे अगले वित्तीय वर्ष की विकास योजना अब तक तैयार नहीं हो सकी। इसी वजह से कोकण क्षेत्रीय नियोजन मंडल की बैठक से रायगड जिले को बाहर कर दिया गया।
निर्णय किसी को भी स्वीकार्य नहीं
इस बीच मंत्री भरत गोगावले ने दावा किया कि पालक मंत्री पद के विवाद का विकास कार्यों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अलग बैठक आयोजित कर जिले की विकास योजना तैयार की जाएगी। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नेताओं द्वारा लिया गया पैâसला उन्हें और उनके समर्थकों को मानना ही होगा, लेकिन पालक मंत्री पद को लेकर जो निर्णय हुआ है, वह किसी को भी स्वीकार्य नहीं है।

मुंंडे से इस्तीफा लेने का देवेंद्र में दम नहीं!..अंबादास दानवे का सवाल

सामना संवाददाता / मुंबई

बीड के मस्साजोग गांव के सरपंच संतोष देशमुख की हत्या को दो महीने हो गए हैं। दो महीने बाद भी इस मामले का एक आरोपी अभी भी फरार है। साथ ही आरोप यह भी है कि इस मामले में मंत्री धनंजय मुंडे भी शामिल हैं, यही वजह है कि राज्य की महायुति सरकार ने अभी तक मुंडे का इस्तीफा नहीं लिया है। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता और विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने इसके लिए राज्य सरकार की आलोचना की है। अंबादास दानवे ने ट्विटर पर एक पोस्ट साझा करते हुए राज्य सरकार और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से कुछ सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि मुंडे से इस्तीफा ले सकें, इतना दम देवेंद्र फडणवीस में नहीं है।
अंबादास दानवे ने सवाल किया है कि आरोपी कृष्णा आंधले को अभी तक क्यों गिरफ्तार नहीं किया गया है। उसकी गिरफ्तारी कब होगी। इसके साथ उन्होंने यह भी सवाल किया है कि जब आरोपी न्यायिक हिरासत में था, तब सीआईडी ​​ने उसे वापस अपनी हिरासत में लेकर जांच की। लोगों को कब पता चलेगा कि कौन सा डेटा रिकवर किया गया। उन्होंने यह भी सवाल किया है कि उज्ज्वल निकम को विशेष सरकारी अभियोजक नियुक्त करने की मांग की गई। सरकार को उनकी नियुक्ति का चार पंक्तियों का पत्र जारी करने में और कितने महीने लगेंगे? दुनिया जानती है कि धनंजय मुंडे और वाल्मीक कराड एक ही सिक्के के दो पहलू हैं तो फिर उनके रिश्ते की जांच कब होगी? इस प्रकार अंबादास दानवे ने कई सवाल सरकार से किए हैं।

बीजापुर में गोलियों की बाढ़ में ‘बह गए’ ३१ नक्सली!..सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में मार गिराया ४० दिनों में ८० हुए ढेर

सामना संवाददाता / रायपुर

छत्तीसगढ़ के बीजापुर के नेशनल पार्क इलाके में सुरक्षाबलों ने एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया है। बीजापुर में सुरक्षाबलों की मुठभेड़ में ३१ नक्सली ढेर हो गए। इस तरह गत ४० दिनों में ८० नक्सली मारे जा चुके हैं।
मिली खबर के अनुसार, इस मुठभेड़ में दो जवान शहीद, जबकि दो जख्मी हुए हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बीजापुर में जवानों के शहीद होने की सूचना पर दुख जताया। उन्होंने कहा कि जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट में लिखा, ‘बीजापुर जिले के नेशनल पार्क क्षेत्र में सुरक्षाबलों की नक्सलियों के साथ हुई मुठभेड़ में नक्सलियों के मारे जाने की खबर है। मुठभेड़ में २ जवान शहीद एवं २ जवान के घायल होने की भी दु:खद खबर प्राप्त हुई है।
नक्सलियों का आरामगाह
बीजापुर के उस क्षेत्र को नक्सलियों का आरामगाह कहा जाता है। वहां ६५० से अधिक सुरक्षाबलों के जवानों ने घुसकर विभिन्न दिशाओं से घेरकर कई दिनों के ऑपरेशन के बाद ३१ नक्सलियों को ढेर किया है। सभी नक्सली वर्दी धारी थे। मुठभेड़ के बाद कई बड़े हथियार बरामद हुए हैं।