विमल मिश्र
अकूत दौलत होने की वजह से सर कावसजी जहांगीर को उपनाम मिला ‘रेडीमनी’। यह रेडीमनी उन्होंने सिर्फ दौलत कमाने के लिए ही नहीं, पुण्य कमाने के लिए भी खर्च की। उनके परोपकारी कामों की छाप उनके स्मारकों के रूप में मुंबई में आज भी दिखाई देती है।
बीएमसी के सभा कक्षों ने ब्रिटिश शासकों को कंपा देने उनकी गर्जनाएं सुनी हैं। पर, वक्तृता के साथ इतिहास में उनकी उदारता का भी जिक्र होता है। उनके परोपकारी कामों की छाप उनके स्मारकों के रूप में मुंबई में आज भी दिखाई देती है। सर कावसजी जहांगीर ‘रेडीमनी’ (२४ मई १८१२ – १९ जुलाई १८७८) को मुंबई आज तक भूला नहीं।
सर कावसजी जहांगीर ‘रेडीमनी’ को दान-धर्म के उनके कामों के लिए हमेशा याद रखा जाएगा। उन्होंने मुंबई में कॉलेज, अस्पताल और वॉटर फाउंटेन (इंग्लैंड में भी) ही नहीं बनवाए, पागलखानों और खुद को बेसहारा या मित्रहीन महसूस करने वाले ‘सम्माननीय’ लोगों के लिए भी एक शरणगाह की स्थापना की। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय, ग्रांट मेडिकल कॉलेज, एलफिंस्टन कॉलेज और इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की स्थापना में भी आर्थिक मदद की। एशियाटिक सोसायटी ऑफ मुंबई को सर जहांगीर ने कई अलभ्य पुस्तकें व अन्य कलाकृतियां भेंट कीं। सेंट थॉमस कैथेड्रल और क्रॉफर्ड मार्केट के सुंदर फाउंटेन, प्रिंसेस स्ट्रीट के पास का कुआं और भाऊ दाजी लॉड म्यूजियम में रखा माइल स्टोन उन्हीं की देन हैं। उन्होंने देश के कैथोलिक और प्रेस्बिटेरियन मिशनों को भी मुक्त हस्त से दान दिया।
एलफिंस्टन कॉलेज और मुंबई विश्वविद्यालय के फोर्ट कॉम्लेक्स में सर जहांगीर की प्रतिमाएं उनकी याद दिलाते आज भी खड़ी हैं। मुंबई के फोर्ट इलाके की नेशनल गैलरी ऑफ माडर्न आर्ट जिस हॉल में स्थित है उसे भी उन्हीं का नाम दिया गया है। पास ही देश की सबसे प्रसिद्ध आर्ट गैलरी ‘जहांगीर’ भी क्षेत्र की दूसरी अन्य इमारतों की तरह सर जहांगीर और उनके उत्तराधिकारियों के ही योगदान की ऋणी है।
सर जहांगीर की यादों को धोबी तालाब के पास रेडीमनी स्कूल, जहांगीर इंस्टीट्यूट ऑफ साइकेट्री, भायखला’ की रेडीमनी बिल्डिंग,-वुडबी रोड का रेडीमनी मेंशन, जहांगीर अस्पताल और रेडीमनी नर्सिंग होम (दोनों पुणे में) ने भी सहेजकर रखा है।
सर जहांगीर की यादगारें
रेडीमनी मेंशन: फोर्ट इलाके के वुडबी रोड की वह इमारत, जहां सर जहांगीर के कार्यालय थे।
नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट: इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के ठीक बीचों-बीच विराजी देश की मशहूर कला संस्था। १,२०० दर्शकों की क्षमता वाली यह अर्धवृत्ताकार गैलरी एडवर्डियन नियो क्लासिकल शैली में बने जिस कावसजी जहांगीर हॉल में स्थित है वह सर जहांगीर की ही स्मृति में बनी है। यह हॉल ग्रेड-१ का हेरिटेज निर्माण है।
विश्वविद्यालय का सीनेट हॉल: फोर्ट इलाके में मुंबई विश्वविद्यालय का १०४ फुट लंबा, ४४ फुट चौड़ा और ६३ फुट ऊंचा कन्वोकेशन हॉल या सीनेट हॉल सर जहांगीर के चंदे से ही बना। देश के सर्वश्रेष्ठ दीक्षांत सभागृहों में इसकी गणना होती है। ग्रेड-१ की इस विरासत इमारत का रिस्टोरेशन २००६ में हुआ। विश्वविद्यालय परिसर में एक सुंदर प्रतिमा उनकी याद दिलाते आज भी खड़ी है।
जहांगीर आर्ट गैलरी: प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम के कंपाउंड में माइल स्टोन से बनी २१ जनवरी, १९५२ को शुरू देश की सबसे प्रसिद्ध आर्ट गैलरी ‘जहांगीर’ क्षेत्र की कई अन्य इमारतों की तरह सर जहांगीर के योगदान की ऋणी है। इसका नामकरण इस घराने के ही एक सदस्य की स्मृति में किया गया है।
एलफिंस्टन कॉलेज: फोर्ट इलाके में विक्टोरियन नियो-गोथिक शैली में बने दो मंजिला एलफिंस्टन
कॉलेज पर लागत आई थी सात लाख ४० हजार रुपए। इसके लिए सर जहांगीर ने आर्थिक सहायता प्रदान की थी। इस योगदान के आभार स्वरूप यहां उनकी प्रतिमा स्थापित है।
सेंट थॉमस कैथेड्रल फाउंटेन: सेंट थॉमस कैथेड्रल के प्रवेशद्वार के पास मौजूद गोथिक शैली का सुंदर फाउंटेन इस्पात के बने ऐसे ३९ फाउंटेन की तरह सर जहांगीर की भेंट है। अब ऐसे महज छह फाउंटेन बच पाए हैं। पारसी इस फाउंटेन को व्यंग्य से ‘कावसजी क्रास’ कहकर बुलाते थे।
क्रॉफर्ड मार्वेâट फाउंटेन: क्रॉफर्ड मार्वेâट में प्रवेश करते ही पत्थर का बना एक सुंदर फव्वारा दिखता है। स्विस, फिनिश और मूरिश-तीन शैलियों के सम्मिश्रण से बना १८६५ के जमाने का यह फाउंटेन भी सर जहांगीर की देन है।
गोलमेज सम्मेलन में
सर कावसजी जहांगीर रेडीमनी के पुरखे १८वीं सदी की शुरुआत में सूरत के पास नवसारी से मुंबई चले आए थे। चीन के साथ अफीम के व्यापार में उन्होंने इफरात कमाई की। इससे उनके पास इतना धन जमा हो गया कि वे ब्रिटिश ग्राहकों तक के लिए बैंकर का काम करने लगे। इसने उन्हें उपनाम दिया ‘रेडीमनी’। १८६६ में उन्हें आयकर आयुक्त नियुक्त किया गया। उन्हें मुंबई के ‘जस्टिस ऑफ पीस’, बोर्ड ऑफ कंजरवेंसी का सदस्य नियुक्त होने के साथ ‘द मोस्ट एक्साल्टेड ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया’ (सी.एस.आई.) के रूप में सम्मानित किया गया। उनके वंश को ‘बैरोनेट’ की उपाधि प्रदान की गई, जिसे उनके बाद के वंशजों से स्वेच्छा त्याग दिया।
१८७८ में सर जहांगीर का देहांत हो गया। उनके भतीजे व दत्तक पुत्र और वारिस जहांगीर कावसजी जहांगीर रेडीमनी (१८५३-१९३४) और पौत्र सर कावासजी जहांगीर, द्वितीय बैरोनेट (१६ फरवरी १८७९ – १७ अक्टूबर १९६२) थे। १९३०-१९३२ के दौरान भारत के राजनीतिक और संवैधानिक भविष्य की रूपरेखा तैयार करने के लिए लंदन में जब दूसरा गोलमेज सम्मेलन हुआ तो उसमें पारसी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का गौरव उन्हें ही प्राप्त हुआ था। सर जहांगीर विश्वविद्यालय की सीनेट और सिविल इंजीनियरिंग संकाय के सदस्य भी रहे।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)