उड़ता तीर : धर्म-नगरियों में शराबबंदी!

प्रमोद भार्गव

अप्रैल-फूल!
मध्य-प्रदेश सरकार ने महाकाल उज्जैन और ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग समेत प्रदेश के १७ धार्मिक नगरों में पूरी तरह शराबबंदी लागू करने का निर्णय ले लिया है। एक अप्रैल २०२५ से इस पैâसले पर अमल शुरू हो जाएगा। इन नगरों को पवित्र क्षेत्र घोषित किया गया है। इस शराबबंदी से ४०० करोड़ रुपए का राजस्व घाटा होने की उम्मीद जताई गई है। इस घाटे की भरपाई आबकारी विभाग दुकानों के नवीनीकरण में २० प्रतिशत दर बढ़ाकर करेगा। इस नीति में यह शर्त भी जोड़ी गई है कि जिले की ८० प्रतिशत दुकानों की दर २० प्रतिशत बढ़ाकर नवीनीकृत कर दी जाएंगी। फिलहाल, प्रदेश सरकार को शराब से १३,९४१ करोड़ रुपए की आय होती है। नई शराब नीति में जो २० प्रतिशत की लाइसेंस शुल्क बढ़ाई गई है, उससे २,७८८ करोड़ रुपए अतिरिक्त मिलेंगे। इस राजस्व के १६,३२९ करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। जिन नगरों में शराबबंदी की गई है, वह केवल नगरीय निकाय सीमा के भीतर हैं। अतएव निकाय सीमा से बाहर होते ही आसानी से शराब मिल जाएगी। होम बार भी चालू रहेंगे। मसलन, घर में शराब लाकर पीने की सुविधा पूर्वत: जारी रहेगी। उज्जैन में भगवान कालभैरव भोग के रूप में शराब का सेवन करते हैं। यहां पर दो दुकानें खुली हैं। इन दुकानों में भी प्रसाद के रूप में शराब की बिक्री जारी रहेगी। यानी शराबबंदी भले ही कर दी गई है, लेकिन मदिरा की वैध उपलब्धता ५ से १० किमी की दूरी पर बनी रहेगी।
कुटिल चतुर शिवराज!
बहरहाल, ऐसा लगता है कि उमा भारती की शराबबंदी की बुलंदी नक्कारखाने की तूती बनकर रह गई है, क्योंकि जो शराब की दुकानें और शराब बिक्री के लिए नई आबकारी नीति सामने आई है, उसमें उमा भारती की धमकी के बाद भी सरकार ने कोई विशेष फेरबदल नहीं किया है। हां, अहाते जरूर बंद करने का पैâसला लिया गया है। तत्कालीन शिवराज मंत्रिमंडल द्वारा पारित इस आबकारी नीति में अनेक ऐसे लोचा हैं, जो सवाल खड़े करते हैं। नीति में यह स्पष्ट नहीं है कि जो शुष्क दिन हैं, मसलन गांधी जयंती, १५ अगस्त, २६ जनवरी, होली और चुनाव प्रक्रिया के दौरान घरों में शराब का बार खोलने की जो छूट चली आ रही है, वह यथावत जारी रहेगी। होम-बार की आड़ में उज्जैन, ओरछा, ओमकारेश्वर जैसे पवित्र नगरों में भी शराबखोरी चलती रहेगी। हालांकि, सरकार ने प्रत्यक्ष तौर पर कोई भी नई दुकान खोलने का निर्णय नहीं लिया है, परंतु पिछले दरवाजे से शराब बेचने की पगडंडियां पूर्व की तरह खुली रहेंगी। देसी शराब की दुकान पर विदेशी और विदेशी शराब की दुकान पर देसी शराब बेची जाती रहेगी। पैâसले से स्पष्ट होता है कि सरकार ने तकनीकी रूप से कानूनी झोल की सुविधा बरकरार रखकर यथास्थिति बनाए रखी है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती जब शराबबंदी के लिए शिवराज सरकार से लड़ रही थीं, तब अत्यंत कुटिल चतुराई से शिवराज ने ऐसी नीति बनाई थी कि सांप भी मार जाए और लाठी भी न टूटे। भारती ने खासतौर से ओरछा में राम राजा मंदिर के निकट खुली शराब की दुकान बंद करने की मुहिम चलाई हुई थी।
शराब का बायपास
शराबबंदी को लेकर अकसर यह प्रश्न खड़ा किया जाता है कि इससे होनेवाले राजस्व की भरपाई वैâसे होगी और शराब तस्करी को वैâसे रोकेंगे? ये चुनौतियां अपनी जगह वाजिब हो सकती हैं, लेकिन शराब के दुष्प्रभावों पर जो अध्ययन किए गए हैं, उनसे पता चलता है कि उससे कहीं ज्यादा खर्च इससे उपजने वाली बीमारियों और नशामुक्ति अभियानों पर हो जाता है। इसके अलावा पारिवारिक और सामाजिक समस्याएं भी नए-नए रूपों में सुरसामुख बनी रहती हैं। घरेलू हिंसा से लेकर कई अपराधों और जानलेवा सड़क दुर्घटनाओं की वजह भी शराब बनती है। यही कारण है कि शराब के विरुद्ध खासकर ग्रामीण परिवेश की महिलाएं मुखर आंदोलन चलाती रहती हैं इसीलिए महात्मा गांधी ने शराब के सेवन को एक बड़ी सामाजिक बुराई माना था। उन्होंने स्वतंत्र भारत में संपूर्ण शराबबंदी लागू करने की पैरवी की थी। ‘यंग इंडिया’ में गांधीजी ने लिखा था, ‘अगर मैं केवल एक घंटे के लिए भारत का सर्वशक्तिमान शासक बन जाऊं तो पहला काम यह करूंगा कि शराब की सभी दुकानें, बिना कोई मुआवजा दिए तुरंत बंद करा दूंगा।’ बावजूद गांधी के इस देश में सभी राजनीतिक दल चुनाव में शराब बांटकर मतदाता को लुभाने का काम करते हैं। ऐसा दिशाहीन नेतृत्व देश का भविष्य बनानेवाली पीढ़ियों का ही भविष्य चौपट करने का काम कर रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने शराब पर अंकुश लगाने की दृष्टि से राष्ट्रीय राजमार्गों पर शराब की दुकानें खोलने पर रोक लगा दी थी, किंतु सभी दलों के राजनीतिक नेतृत्व ने चतुराई बरतते हुए नगर और महानगरों से जो नए वायपास बने हैं, उन्हें राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने की अधिसूचना जारी कर दी और पुराने राष्ट्रीय राजमार्गों का इस श्रेणी से विलोपीकरण कर दिया। मध्य-प्रदेश में भी यही किया गया। साफ है, शराब की नीतियां शराब कारोबारियों के हित दृष्टिगत रखते हुए बनाई जा रही हैं। जाहिर है कि शराब माफिया सरकार पर भारी हैं।
(लेखक, वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार)

सेलेब्स स्कैडल्स : नखरेवाली…!

सखाराम बाइंडर

हीरोइनों के नाज-ओ-नखरे हमेशा से बहुत मशहूर रहे हैं और सिर्फ हीरोइन ही क्यों हीरो भी कुछ कम नहीं। कुछ ही समय पहले की बात है एक विज्ञापन कंपनी एक बहुत बड़े ब्रांड के लिए विज्ञापन बना रही थी, जिसकी शूटिंग ‘फिल्म सिटी’ में रखी गई थी और एक बड़ी नामी हीरोइन को इस ऐड वैंâपेन के लिए सिलेक्ट किया गया था। खैर, एक दिन की शूटिंग थी इसलिए हीरोइन ने बहुत भारी-भरकम रकम इस शूटिंग के लिए चार्ज किया। किसी तरह विज्ञापन कंपनी हीरोइन को भारी-भरकम रकम देने के लिए राजी हो गई और
कॉन्ट्रैक्ट साइन हो गया। कॉन्टैक्ट होते ही कंपनी द्वारा एड शूट करने के लिए ‘फिल्म सिटी’ में सेट लगाना शुरू हो गया। सेट लगने के दौरान ही हीरोइन की मैनेजर ने उस एजेंसी को फोन कर एक लिस्ट दी कि शूटिंग के दौरान मैडम क्या खाएंगी, कब खाएंगी और वैâसे खाएंगी। आपको यकीन नहीं होगा कि लिस्ट में २० च्यूइंगम का पैकेट भी लिखा हुआ था। अब ये सोचनेवाली बात है कि एक दिन की शूटिंग के लिए इतना भारी-भरकम रकम चार्ज करनेवाली हीरोइन २० च्यूइंगम भी प्रोडक्शन हाउस के पैसों से ही खाती है। अब वो च्यूइंगम खाती है या उसकी मैनेजर या उसके स्टाफ वाले खाते हैं, ये तो वही जानें। खैर, शूटिंग शुरू होने से ठीक एक रात पहले फिर फोन आया कि ‘फिल्म सिटी’ मैडम के घर से दूर है। अत: मैडम को सुबह बहुत जल्दी उठना पड़ेगा। विज्ञापन कंपनी ने यह बात भी मान ली और ‘फिल्म सिटी’ के पास एक फाइव स्टार होटल में कमरा बुक करवा दिया। सुबह प्रोडक्शन वाला हीरोइन को ले जाने के लिए फाइव स्टार होटल के बाहर आकर खड़ा हो गया, लेकिन पता चला कि हीरोइन तो रात में वहां आई ही नहीं। अब सोचिए ५० से ७० हजार रुपए किराया वाला एक रात का कमरा पूरी रात खाली रहा और हीरोइन वहां आई ही नहीं। हीरोइन के पहुंचने के बाद किसी तरह शूटिंग शुरू हुई। शूटिंग पर भी मैडम यह नहीं करेंगी, वह नहीं करेंगी करते-करते दिन ढलने लगा और शाम होने लगी। खैर, शाम के पांच बजते ही हीरोइन की मैनेजर ने हंगामा करना शुरू कर दिया कि आज हमारी मैडम का बर्थडे है और मैडम को जल्दी जाना है। यह सुनते ही विज्ञापन कंपनी के साथ ही प्रोडक्शन कंपनी भी सकते में आ गई। उन्होंने कहा कि हम इतनी जल्दी शूटिंग खत्म नहीं कर सकते, अभी तो पूरा काम पड़ा है। कम से कम ८ बजेंगे। हीरोइन की मैनेजर किसी भी सूरत में ५ बजे के बाद शूट के लिए तैयार नहीं थी और उसने कहा कि किसी भी हाल में आपको ५ बजे पैकअप करना ही पड़ेगा और हुआ भी वही, हीरोइन का ५ बजे ही पैकअप करना पड़ा। इतनी मोटी रकम लेने के बाद ठीक से काम न करनेवाली हीरोइन ५ बजते ही सेट छोड़कर अपना बर्थडे मनाने घर चली गई। हीरोइन के बाकी के शॉट्स किसी डुप्लीकेट के साथ करने पड़े, कहीं पीठ दिखाकर तो कहीं कैमरे को बैक में रखकर। तो यह हालत है आजकल के सो कॉल्ड प्रोफेशनल लोगों की। वहीं दूसरी तरफ कितने काबिल टैलेंटेड और काम करने को उत्सुक लोग सड़कों पर घूम रहे हैं और उन्हें पूछने वाला कोई भी नहीं है। यह सच है कि जो चलता है दुनिया उसी के पीछे भागती है और इस बर्बादी के जिम्मेदार वो एजेंसीज भी हैं, जो इन हीरो और हीरोइंस को मैनेज करते हैं और साथ ही वह प्रोड्यूसर, जिन्हें यही हीरो और हीरोइन चाहिए।

पालक मंत्री पद के विवाद में लटकी नासिक कुंभ की तैयारी!

-शिंदे गुट का पत्ता होगा गुल
-भाजपा के महाजन का पलड़ा भारी

सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य में महायुति को प्रचंड बहुमत मिला है। इसका राजनीतिक दुष्परिणाम महायुति के सहयोगी दलों में दिखने लगा है। हालांकि, बीजेपी फिलहाल सहयोगी पार्टियों को ज्यादा तवज्जो देती नजर नहीं आ रही है। महायुति में चल रहे विवाद के कारण दो महीने बाद भी नासिक के पालक मंत्री की नियुक्ति नहीं हो सकी है। इसके कारण नासिक में लगने वाले कुंभ की तैयारी को लेकर काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है। कुंभ मेले की तैयारी को लेकर अधिकारियों द्वारा अनौपचारिक रूप से बैठकें तो की जा रही हैं, परंतु कुंभ की तैयारी को लेकर जो निर्णय लेना चाहिए, वह पालक मंत्री न होने के कारण नहीं हो पा रहा है। जिससे अधिकारी भी असंमजस में दिखाई दे रहे हैं और कोई निर्णय नहीं ले पा रहे हैं।
बता दें कि नासिक के लिए भाजपा के गिरीश महाजन और रायगड जिले के लिए राकांपा अजीत पवार गुट की अदिति तटकरे को पालक मंत्री घोषित किया गया। इस पर शिंदे गुट ने कड़ी आपत्ति जताई इसलिए विदेश में होने के बावजूद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को यह नियुक्ति टालनी पड़ी और पालक मंत्री की नियुक्ति पर रोक लगा दी गई है। करीब एक महीने से हर कोई नए बदलावों को लेकर उत्सुक है। खासकर, शिंदे गुट और उसके नेता इसे लेकर काफी आक्रामक हैं। वे नासिक के लिए दादा भुसे के नाम पर जोर दे रहे हैं। इसके साथ ही उनकी यह भी जिद है कि रायगड जिले में पालक मंत्री पद हर हाल में शिंदे गुट को मिलना चाहिए। वे इस पर समझौता करने को तैयार नहीं हैं। तो दुविधा यह है कि इस समस्या का क्या किया जाए। जहां पालक मंत्रियों की नियुक्ति पर विवाद जारी है, वहीं भाजपा ने शेष १७ जिलों में संपर्क मंत्री नियुक्त कर दिए हैं, जहां दादा गुट और शिंदे गुट के पालक मंत्रियों का भी समावेश है।
वहीं नासिक से गिरीश महाजन का दावा मजबूत माना जा रहा है। इस स्थिति ने एकनाथ शिंदे गुट को दुविधा में डाल दिया है। इससे शिंदे गुट के नेता ज्यादा परेशान हो गए हैं। नासिक में अजीत पवार के सबसे ज्यादा छह विधायक हैं और उससे नीचे बीजेपी के पांच विधायक हैं।
नासिक जिले से हैं तीन मंत्री
नासिक जिले में तीन मंत्री हैं लेकिन बीजेपी से एक भी सदस्य को मंत्री पद की लॉटरी नहीं लगी इसलिए बीजेपी विधायक पालक मंत्री पद के लिए जोर लगा रहे हैं। यह बहस और तेज होने की संभावना है। पिछले दो माह से इस संबंध में कोई समाधान नहीं निकल सका है इसलिए जिला योजना बोर्ड सहित सिंहस्थ कुंभ मेले की योजना को लेकर काम आगे नहीं बढ़ सका।

शेख हसीना समेत २ करोड़ अवैध घुसपैठियों को भारत से बाहर निकालो!

शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) जम्मू-कश्मीर इकाईप्रमुख मनीष साहनी ने मांग की है कि अमेरिका की ट्रंप सरकार की तरह भारत की मोदी सरकार भी तत्काल अवैध रूप से भारत में रह रही पाकिस्तानी महिला सीमा हैदर, बांग्लादेश की पूर्व राष्ट्रपति शेख हसीना समेत तमाम अवैध बांग्लादेशियों व रोहिंग्यों को देश से बाहर का रास्ता दिखाए। इकाईप्रमुख मनीष साहनी के नेतृत्व में एकत्रित शिवसैनिकों ने `शेख हसीना, सीमा हैदर को वापस भेजो’, `अवैध रोहिंग्यों, बांग्लादेशियों को बाहर निकालो’ लिखे प्लेकार्ड पकड़कर जोरदार प्रदर्शन किया। साहनी ने अपने संबोधन में कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों का सिलसिला जारी है। गत दिवस बांग्लादेश की पूर्व राष्ट्रपति शेख हसीना के लाइव भाषण के दौरान बांग्लादेश के राजशाही जिले के फुदकी गांव में हिंदुओं को निशाना बनाया गया। मंदिर में मौजूद सरस्वती देवी की मूर्ति तोड़ दी गई। सत्तांतरण के बाद से बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों के दौर रुके नहीं हैं। साहनी ने कहा कि भाजपा का रोहिंग्यों व बांग्लादेशियों के खिलाफ हो-हल्ला मात्र चुनावी स्टंट है। बांग्लादेश के साथ ३६ का आंकड़ा होने के बावजूद आज भी ८५६ किलोमीटर के करीब इंडो-बांग्लादेश बॉर्डर बिना फेंसिंग के खुला पड़ा है।

आउट ऑफ पवेलियन : बलात्कारी खिलाड़ी

अमिताभ श्रीवास्तव

एक अंतर्राष्ट्रीय रग्बी खिलाड़ी को एक महिला के साथ बलात्कार करने के आरोप में जेल भेज दिया गया है, दिलचस्प यह कि उसने बचने के लिए कहा था कि वह एक समलैंगिक है, ऐसा नहीं कर सकता। युगांडा का ३२ वर्षीय विंगर फिलिप पारियो ने ग्लासगो में २०१४ के राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लिया था। इसके बाद वो वापस अपने देश नहीं गया क्योंकि उसने बताया कि वो एक समलैंगिक है और इस कारण उसे अफ्रीका में अपमानित किया जाएगा। मगर चालाक इतना कि बाद में उसने कार्डिफ में एक गर्लफ्रेंड बना ली, इसके बावजूद उसने एक दूसरी महिला के साथ बलात्कार किया। अदालत में सुनवाई के दौरान पता चला कि वेल्श की राजधानी में पारियो ने अपने फ्लैट में उसके साथ जबरदस्ती की। इसके बाद उसने महिला को यौन व्यवहार के लिए मजबूर किया। पहले तो पारियो ने बलात्कार से इनकार किया और कहा कि वो ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि वो एक समलैंगिक है। मगर कार्डिफ क्राउन कोर्ट में सुनवाई के बाद उसे न केवल दोषी पाया गया, बल्कि उसने कबूल भी लिया कि बलात्कार किया था। लिहाजा, उसे साढ़े चार साल के जेल की सजा सुनाई गई है।
नाइट फोन कॉल
का राज
पहला वन डे टीम इंडिया ने जीता। मगर इस जीत के पीछे जिस बल्लेबाज का हाथ है वो टीम में ही नहीं था। वो तो रात में फिल्म देखकर चिल कर रहा था, मगर एक फोन कॉल आया और उसने नक्शा बदल दिया। नाइट फोन कॉल का रहस्य खुद बैटर ने खोला। जी हां, इंग्लैंड के खिलाफ नागपुर वनडे में श्रेयस अय्यर नहीं खेलने वाले थे। वह एक रात पहले मूवी देखकर चिल कर रहे थे, मगर तब अचानक कप्तान रोहित शर्मा का कॉल आया और कहा कि विराट कोहली चोटिल हैं, तुम शायद कल खेल सकते हो। फिर क्या श्रेयस अय्यर ने मूवी नाइट वैंâसिल कर मैदान पर धूम-धड़ाका मचाने की तैयारी शुरू कर दी। २४९ रनों के टारगेट का पीछा करते हुए अय्यर ने ३६ गेंदों पर ९ चौकों और २ गगनचुंबी छक्कों की मदद से ५९ रनों की मैच जिताऊ पारी खेली। मैच के बाद उन्होंने रोहित शर्मा के साथ हुई इस लेट नाइट फोन कॉल का खुलासा किया। अय्यर ने कहा, मुझे पहला मैच नहीं खेलना था। जैसा कि हम सभी जानते हैं, दुर्भाग्य से विराट चोटिल हो गए और फिर मुझे मौका मिला। लेकिन मैंने खुद को तैयार रखा था। मुझे पता था कि किसी भी समय मुझे खेलने का मौका मिल सकता है और पिछले साल एशिया कप के दौरान मेरे साथ यही हुआ था। मैं चोटिल हो गया और कोई और आया और उसने शतक बना दिया।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार व टिप्पणीकार हैं।)

समाज के सिपाही : संघर्षों से मिली सफलता

सगीर अंसारी
‘ये फूल कोई हमको विरासत में नहीं मिले हैं, तुमने मेरा कांटों भरा बिस्तर नहीं देखा।’ बशीर बद्र की ये पंक्तियां हर्षल दिलीप उस्तुरे के जीवन को पूरी तरह परिभाषित करती हैं। १२वीं तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद एक आर्किटेक्ट कंपनी में सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत हर्षल दिलीप उस्तुरे का जीवन संघर्ष और सफलता की मिसाल है।
लातूर के सया खान चिंचूले गांव से ताल्लुक रखनेवाले हर्षल दिलीप उस्तुरे का जन्म वर्ष १९८७ में मुंबई में हुआ। उन्होंने मुंबई में १२वीं तक की शिक्षा सरकारी मराठी माध्यम से पूरी की। मुंबई के गोवंडी स्थित बैगनवाड़ी झोपड़पट्टी में रहते हुए उन्होंने अपना बचपन बेहद तकलीफ में गुजारा। पिता ऑटोरिक्शा चालक थे और मां गृहिणी थीं। शिक्षा को सर्वोपरि माननेवाले माता-पिता ने इन्हें हरसंभव समर्थन किया। तीन बहनों व दो भाइयों में सबसे बड़े हर्षल के दिल में समाजसेवा का जज्बा था और उन्होंने कम उम्र में ही पढ़ाई के साथ-साथ अपने चाचा सिद्धार्थ कड़ाजी उस्तुरे के नक्शेकदम पर चलते हुए समाजसेवा शुरू कर दी थी। गोवंडी जैसे स्लम इलाके में रहते हुए हर्षल ने यहां के लोगों की परेशानियों और समस्याओं को काफी नजदीक से देखा। कहीं भूख तो कहीं पैसों की कमी के चलते अपनी शिक्षा को बीच में छोड़ मेहनत-मजदूरी के काम में लगनेवाले उनके साथियों को देखकर कहीं न कहीं हर्षल का दिल पसीज जाता। हर्षल बड़े होकर क्षेत्र के लोगों के लिए कुछ करना चाहते थे और अपने इसी जज्बे के चलते उन्होंने अपने चाचा द्वारा किए जानेवाले सामाजिक कार्यों में कदम से कदम मिलाकर चलना शुरू किया। हर्षल का कहना है कि उनके चाचा सिद्धार्थ उस्तुरे ने बैगनवाड़ी क्षेत्र के रहिवासियों को अपना परिवार समझते हुए उनकी हरसंभव मदद की, फिर चाहे घर में अनाज का मसला हो या फिर बच्चे की पढ़ाई का। अपने चाचा के सामाजिक कार्य को देखते हुए हर्षल ने भी समाजसेवा को अपना धर्म बना लिया। कोरोना के दौरान अपने चाचा के साथ जान की परवाह किए बिना हर्षल न केवल घर से बाहर निकले, बल्कि लोगों की मदद की। लोगों की मदद करनेवाले हर्षल दिलीप उस्तुरे ने बताया कि उनके चाचा सिद्धार्थ उस्तुरे एक कर्मठ शिवसैनिक हैं और पिछले कई वर्षों से पार्टी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लोगों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। उनकी इस लगन को देखते हुए शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ने इन्हें शाखा क्रमांक १३६ का शाखाप्रमुख बनाया है।

७० हजार कैमरे, १० टीमें फिर भी पकड़ से दूर हत्या का आरोपी! …पुलिस की नाकामी या प्रशासन की लापरवाही

सामना संवाददाता / नई मुंबई
नई मुंबई की सड़क पर हुई आईटी प्रोफेशनल शिवकुमार शर्मा की हत्या ने पुलिस और प्रशासन की लापरवाही को उजागर कर दिया है। २ फरवरी को हुए इस हमले को लगभग एक हफ्ते हो गए, लेकिन आरोपी अब भी फरार है। ७० हजार से ज्यादा सीसीटीवी फुटेज खंगालने और १० पुलिस टीमों की तैनाती के बावजूद पुलिस सिर्फ बयानबाजी कर रही है।
क्या है पूरा मामला?
शर्मा, जो वाशी की एक आईटी कंपनी में काम करते थे, खारघर लौटते वक्त बेलपाड़ा और उत्सव चौक के पास एक स्कूटर सवार से विवाद हो गया। बहस के दौरान आरोपी ने हेलमेट से ७-८ बार हमला कर फरार हो गया। घायल शर्मा पुलिस स्टेशन पहुंचे, लेकिन वहीं गिर पड़े और अस्पताल में उनकी मौत हो गई।
पुलिस की तकनीक हुई फेल या कार्यशैली
७० हजार वैâमरों की फुटेज खंगालने के बावजूद पुलिस अब तक किसी ठोस सुराग तक नहीं पहुंच पाई है। धुंधले फुटेज का बहाना बनाकर जांच को टाला जा रहा है, जिससे साफ होता है कि या तो तकनीक फेल हो गई है या पुलिस की कार्यशैली। एमएच ०३ सीरीज की नीली स्कूटी की पहचान जरूर हुई, लेकिन नंबर प्लेट पूरा नहीं दिख रहा है, जिससे आरोपी अब भी पुलिस की पकड़ से दूर है।

 

राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल, केंद्र सरकार लेगी बड़ा फैसला! …सालाना और लाइफटाइम टोल पास की देगी सुविधा

सामना संवाददाता / मुंबई
राष्ट्रीय राजमार्गों पर यात्रा करते समय वाहनों को टोल बूथों पर टोल देना पड़ता है। दरअसल, कई बार टोल बूथ पर गाड़ियों की कतारें देखने को मिलती हैं और कई बार टोल बूथ पर पैसे नहीं कटते, ऐसे में टोल बूथ कर्मचारियों और वाहन चालकों के बीच विवाद की घटनाएं होती हैं। हालांकि, अब केंद्र सरकार इसका स्थाई समाधान निकालने के लिए बड़ा पैâसला लेने की तैयारी में है।
केंद्र सरकार ने निजी वाहन मालिकों को राहत देने और टोल प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने तथा राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल प्रक्रिया में गतिशीलता लाने के लिए एक बड़ी योजना बनाई है। अब केंद्र सरकार जल्द ही राष्ट्रीय राजमार्गों पर यात्रा करने वालों के लिए वार्षिक और आजीवन टोल पास की सुविधा शुरू करेगी। बताया गया है कि केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय वार्षिक और आजीवन पास शुरू करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। इस पैâसले से कई निजी वाहन मालिकों को राहत मिलेगी, क्योंकि वे एकमुश्त टोल का भुगतान कर सकेंगे। इस संबंध में खबर मीडिया ने दी है।
सूत्रों के मुताबिक, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय सालाना टोल पास पर ३,००० रुपए और १५ साल के पास पर ३०,००० रुपए प्रतिवर्ष वसूलने जा रहा है।

निवेश गुरु : सट्टे का सौदा…निवेश की अनदेखी गलती

भरतकुमार सोलंकी
मुंबई

क्या आपने कभी सोचा हैं कि आपकी मेहनत की कमाई, जिसे आप सुरक्षित भविष्य के लिए बचाते हैं, क्या सही हाथों में जा रही है? क्या हम भावनाओं में बहकर अपनी संपत्ति ऐसे लोगों को सौंप रहे हैं, जो उसे संजोने की बजाय जोखिम में डाल देते हैं? क्या तेजी से पैसा कमाने की चाहत में हम निवेश और सट्टेबाजी का फर्क भूलते जा रहे हैं? यह सवाल हर उस व्यक्ति को खुद से पूछना चाहिए, जिसने कभी किसी पर भरोसा करके अपने वित्तीय पैâसले लिए हों।
अक्सर हम देखते हैं कि माता-पिता अपनी संतान के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए जल्दबाजी में संपत्ति उनके नाम कर देते हैं, लेकिन क्या यह सुनिश्चित किया जाता है कि जिस व्यक्ति को यह संपत्ति सौंपी जा रही है, वह वित्तीय मामलों की समझ रखता है? क्या वह उस संपत्ति का सही उपयोग करेगा या अपनी इच्छाओं और कमजोरियों के चलते उसे जोखिम में डाल देगा? इतिहास गवाह है कि कई बार बिना सोचे-समझे दी गई आर्थिक स्वतंत्रता बर्बादी का कारण बन जाती है।
तेजी से मुनाफा कमाने की मानसिकता कब निवेश को सट्टे में बदल देती है, इसका एहसास तब होता है जब सब कुछ हाथ से निकल जाता है। फ्यूचर ऑप्शन्स, कमोडिटी ट्रेडिंग, क्रिप्टोकरेंसी जैसे अस्थिर बाजारों में निवेश का मोह अक्सर उन लोगों को अपनी चपेट में लेता है, जो जोखिम और गणना के बुनियादी सिद्धांतों को नहीं समझते। क्या यह लालच नहीं है कि हम बिना पूरी जानकारी के ऐसे बाजारों में कूद पड़ते हैं, जो चंद दिनों में हमारी पूरी पूंजी को खत्म कर सकते हैं? परिवार की सुरक्षा और भविष्य को ध्यान में रखते हुए किए गए निवेश का उद्देश्य यह होता है कि आनेवाली पीढ़ियां आर्थिक रूप से मजबूत रहें, लेकिन क्या हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि जिस व्यक्ति के हाथों में संपत्ति सौंप रहे हैं, वह उसे संजोने में सक्षम है? कई मामलों में यह देखने को मिला है कि अचानक मिली संपत्ति लोगों को भटका देती है। वे खुद को वित्तीय निर्णयों का विशेषज्ञ समझने लगते हैं और अनावश्यक जोखिम उठाने लगते हैं। क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि आर्थिक सशक्तीकरण के साथ-साथ वित्तीय अनुशासन भी उतना ही महत्वपूर्ण है? सवाल यह भी उठता है कि जब हम निवेश करते हैं, तो क्या सही मार्गदर्शन लेते हैं? क्या हम सिर्फ मुनाफे के सपने देखकर बिना जोखिम का आकलन किए निवेश करते हैं? यदि कोई व्यक्ति सट्टेबाजी की आदतों में लिप्त है, तो क्या उसके हाथों में बड़ी संपत्ति देना सही है? बाजार में ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जहां लोगों ने अपनी संपत्ति को बिना समझदारी से प्रबंधित किए सट्टे में झोंक दिया और न केवल खुद को, बल्कि पूरे परिवार को कर्ज में डुबो दिया। क्या हमें यह नहीं सीखना चाहिए कि संपत्ति का हस्तांतरण सोच-समझकर किया जाए? क्या यह जरूरी नहीं कि पारिवारिक धन को बचाने के लिए कानूनी और वित्तीय परामर्श लिया जाए? क्या सट्टेबाजी और निवेश में फर्क समझने की जरूरत नहीं है? यह घटना हमें एक बड़ा सबक देती है कि धन केवल अर्जित करने की चीज नहीं, बल्कि उसे सही ढंग से संरक्षित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सही पैâसले सही समय पर लिए जाएं, यही एक सच्चे निवेशक की पहचान है। क्या हम अपने पैâसलों को लेकर सतर्क हैं?
(लेखक आर्थिक निवेश मामलों के विशेषज्ञ हैं)

उड़नछू : घुटनों पर ट्रंप…!

अजय भट्टाचार्य
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण में आमंत्रित न किए जाने से बुरी तरह खफा प्रधानमंत्री ने अमेरिका को करारा झटका दिया है। उन्होंने अमेरिका में बड़ी संख्या में रह रहे अप्रवासी देशवासियों को वापस बुला लिया है। सभी देशवासियों को अमेरिकी वीजा को लात मारकर, तत्काल स्वदेश लौटने का आदेश दिया गया है।
सर्वविदित तथ्य है कि अमेरिका में रह रहा हमारे देश का समुदाय उसकी अर्थव्यवस्था का इंजन है। २० बिलियन डॉलर से ज्यादा की २० कंपनियों में अपने देश का सीईओ है, उसके बैंक, सॉफ्टवेयर, निर्माण और रिटेल में हमारे देश के लोगों की एक बड़ी हिस्सेदारी है। इस क्रम में विदेश मंत्री ने २० हजार से अधिक अप्रवासियों को वापस बुलाने की पुष्टि कर दी है। आनेवाले समय में करीब १.२० मिलियन लोग स्वदेश का रुख कर सकते हैं। हालांकि, देश में विपक्ष और सोशल मीडिया का एक हिस्सा इसे ट्रंप द्वारा हमारे देशवासियों को अवैध अप्रवासी बताकर निकालने और इस तरह देश का अपमान होने का दुष्प्रचार कर रहा है, परंतु इसमें कोई सच्चाई नहीं है। दरअसल, ट्रंप प्रशासन इस ताबड़तोड़ कार्यवाही से सकते में है। बताया जाता है कि अमेरिकी नीति आयोग ने इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में होनेवाले भयंकर आर्थिक गिरावट से आगाह किया है। अमेरिका के पास इतनी बड़ी संख्या में पेशेवरों को प्रतिस्थापित करने के लिए नए लोगों का इंतजाम करना एक टेढ़ी खीर होगा। वैश्विक स्तर पर हमारे आईआईटी, आईआईएम और उच्च स्तरीय संस्थानों से पढ़े लोगों का मुकाबला करनेवाला मानव संसाधन उपलब्ध ही नहीं है। खबर है कि घबराए ट्रंप ने कई बार प्रधानमंत्री से संपर्क कर मामले को सुलझाने की कोशिश की, परंतु उन्होंने फोन उठाने से इनकार कर दिया। वे इस बार आर-पार के मूड में दिखाई देते हैं। दरअसल, इसके माध्यम से सरकार दो निशाने एक साथ साध रही है। जहां इससे ट्रंप प्रशासन को उनकी जगह दिखाई जा सकेगी, वहीं देश की अर्थव्यवस्था में एक मिलियन से ज्यादा उम्दा दर्जे के पेशेवरों के वापस आ जाने से देश में व्यापार, व्यवसाय और निवेश को भारी बढ़ावा मिलेगा। एक प्रमुख बिजनेस चैनल पर आर्थिक मामलों के दिग्गजों ने कहा है कि इस एक कदम से देश की अर्थव्यवस्था अगले वर्ष तक १० ट्रिलियन होने की संभावना बन गई है। बहरहाल, जहां व्हाइट हाउस में हड़कंप मचा हुआ है, वहीं वहां बसे देशी समुदाय में खुशी की लहर दौड़ पड़ी है। लोग खुशी-खुशी स्वदेश लौटने की तैयारी कर रहे हैं। नासा में कार्यरत, केरल के रहनेवाले एक खगोलशास्त्री ने वॉशिंगटन एयरपोर्ट पर हमारे संवाददाता को बताया कि वैश्विक शक्ति बनते हुए अमृतकाल में स्वदेश लौटने का यह सही अवसर है। खबर है कि मैक्सिको बॉर्डर पर स्वदेश लौटने के लिए लोगों में भारी उत्साह है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक प्रधानमंत्री ने ट्रंप का फोन नहीं उठाया था। हम आपको इन पंक्तियो के पढ़े जाने तक टेलीफोन की बजती हुई आवाज सुना रहे हैं – ट्रिंग-ट्रिंग किर्र किर्र…! गोदी मीडिया के लिए रोम-रोम कच्छप की रिपोर्ट।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।)