डोनाल्डवा ने डुबा दिया : रु. ४५ लाख गंवाने के बाद भी मिली हथकड़ी! …अमेरिका से वापस भेजे गए डंकियों की यही है कहानी

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
अमेरिका से लौटे अवैध अप्रवासियों में पंजाब के रहने वाले आकाशदीप सिंह भी हैंै। उनके पिता स्वर्ण सिंह बताते हैं, ‘आकाशदीप को विदेश भेजने में ४५ लाख से ज्यादा रुपए खर्च हो गए हैं। इसके लिए मैंने अपनी ढाई एकड़ जमीन बेच दी और काफी कर्ज लिया। इसके साथ ही मैंने आकाशदीप की दादी की जमीन भी बेच दी थी। इससे हम पर काफी कर्ज हो गया।
उन्होंने बताया कि उनके पास जितनी जानकारी है, उसके अनुसार वो भारत तो आ गया है, लेकिन अभी गांव नहीं आया है। इसी तरह स्थानीय एजेंट की मदद से लगभग २०-२५ लाख रुपए खर्च कर गुरप्रीत सितंबर २०२२ में लंदन गया था। जहां वह पैâक्ट्री और कंस्ट्रक्शन कंपनी के साथ काम कर रहा था। वहां वह एक एजेंट के संपर्क में आया। एजेंट ने गुरप्रीत सिंह को अमेरिका में अच्छा काम दिलाने का झांसा देकर मोटी रकम वसूली। अमेरिका द्वारा निर्वासित भारतीयों में से एक पंजाब की २६ वर्षीय सुखजीत कौर अपने मंगेतर से शादी करने अमेरिका गई थीं। सुखजीत के रिश्तेदार ने बताया कि सुखजीत को एक एजेंट ने अमेरिका में अवैध रूप से प्रवेश करने में मदद की थी। बकौल रिपोर्ट, निर्वासितों ने अमेरिका पहुंचने के लिए ३०-५० लाख तक खर्च किए थे।

वीडियो जारी कर ट्रंप ने चिढ़ाया
सोशल मीडिया पर भड़के यूजर
ट्रंप ने अप्रवासियों को वापस भेजने के बाद चिढ़ाया भी है। यूएसबीपी (यूनाइटेड स्टेट्स बॉर्डर पेट्रोल) के प्रमुख माइकल डब्ल्यू बैंक्स ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें भारतीय नागरिकों को हथकड़ी और पैरों में बेड़ियों के साथ विमान में चढ़ते हुए दिखाया गया है। बैंक्स ने पोस्ट में लिखा, ‘अवैध एलियंस को सफलतापूर्वक भारत वापस भेजा’ इस वीडियो को ऑनलाइन पोस्ट करने पर लोग काफी नाराज हो गए। एक यूजर ने लिखा कि भारतीयों के साथ अमानवीय व्यवहार का विरोध करता हूं। हथकड़ी और बेड़ियां लगाने का विरोध है।

 

इतिहास को सहेजने में रेलवे फेल! …केवल पट्टिकाओं को संभालना हैरिटेज का संरक्षण नहीं …एलफिंस्टन ब्रिज को लेकर रेलवे का अजीबोगरीब निर्णय

सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई में एलफिंस्टन ब्रिज को लेकर रेलवे ने एक अजीबो-गरीब कदम उठाया है। रेलवे का दावा है कि वह पुल पर लगी १९१३ और १९११ की हेरिटेज पट्टिकाओं को सहेज कर रखेगी, लेकिन असल में यह पुल ध्वस्त करने का निर्णय पहले से ही लिया जा चुका है। रेलवे को शायद यह समझने की जरूरत है कि इतिहास को सहेजने का मतलब सिर्फ पट्टिकाओं को उठाना नहीं, बल्कि उस पुल और उसकी पहचान को बनाए रखना है, जिसने शहर के विकास में एक अहम भूमिका निभाई है।
गौरतलब है कि पुल की लोहे की रैलिंग पर एक पट्टिका है, जिस पर लिखा है कि जीआईपीआर, परेल ब्रिज, १९१३, ठेकेदार बोमनजी रुस्तमजी और दूसरी धातु की पट्टिका पर पीएनडब्ल्यू मैकलेलन पैनिनसुला रेलवे है, जो अब सेंट्रल रेलवे के नाम से जाना जाता है। यह वही रेलवे है, जिसने बॉम्बे (अब मुंबई) और ठाणे के बीच पहली ट्रेन चलाई थी।
लेकिन अब रेलवे इन ऐतिहासिक पट्टिकाओं को तो सहेजेगा, लेकिन पुल को ध्वस्त कर देगा। इसके अलावा एलफिंस्टन ब्रिज को ध्वस्त करके अब उसे डबल डेकर पुल में बदलने का खेल शुरू हो चुका है।
यह नया पुल शिवड़ी-न्हावाशेवा अटल सेतु से जुड़ा होगा, जो पूर्व-पश्चिम कनेक्टिविटी बनाए रखेगा। साथ ही एमएमआरडीए ने एक ४.५ किलोमीटर लंबी एलिवेटेड सड़क बनाने का प्रस्ताव दिया है, जिससे वाहन वर्ली से दक्षिण-मुंबई और बांद्रा तक सीधे पहुंच सकेंगे।

दादा दुबके! … अपने मंत्रियों और नेताओं को विवादास्पद बयान से बचने के निर्देश

सामना संवाददाता / मुंबई
भाजपा और शिंदे गुट के बीच में चल रहे विवाद को लेकर उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने वेट एंड वॉच की भूमिका अख्तियार करने का निर्णय लिया है। उन्होंने अपने मंत्रियों और नेताओं को सख्त निर्देश दिया है कि महायुति के संदर्भ में किसी भी प्रकार का सार्वजनिक बयान न दें। शिंदे और भाजपा के बीच जहां दूरियां बढ़ती जा रही हैं, वहीं फडणवीस और अजीत पवार करीब आते जा रहे हैं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा आयोजित कार्यक्रम में दादा सहभागी हो रहे और एकनाथ शिंदे गायब हो रहे हैं। बता दें कि प्रत्येक विभाग के लिए मुख्यमंत्री ने १०० दिनों का लक्ष्य निर्धारित किया है। एक तरह से मंत्री को अपने काम की प्रगति पुस्तिका पेश करनी होती है। फडणवीस ने मंत्रियों और प्रशासनिक अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि विभिन्न योजनाओं और परियोजनाओं को पूरा करने की निर्धारित तारीखों में कोई देरी नहीं होनी चाहिए। फडणवीस के इस निर्देश को शिंदे गुट के मंत्री अपने विभाग में मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप की बात कह रहे हैं।
पालक मंत्री पद को लेकर भड़की पहली चिंगारी
महायुति सरकार में विवाद की पहली चिंगारी पालक मंत्री की नियुक्ति को लेकर भड़की थी। नासिक और रायगड जिले के पालक मंत्रियों की नियुक्ति को लेकर बीजेपी और शिंदे गुट एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होने की तस्वीर सामने आ रही है। फडणवीस ने ३६ जिलों के लिए पालक मंत्रियों की घोषणा की। रायगड जिले के पालक मंत्री का पद अजीत पवार गुट की विधायक अदिति तटकरे को सौंपा गया, जबकि नासिक के पालक मंत्री का पद भाजपा के गिरीश महाजन को सौंपा गया। हालांकि, शिंदे गुट के दो नेताओं ने इस नियुक्ति का कड़ा विरोध किया।

लोकशाही दिवस की परंपरा खल्लास! …एक दिन भी नहीं हुई जनसुनवाई

-जनता की हो रही है उपेक्षा
सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य में आम लोगों की शिकायतों और समस्याओं को सरकारी तंत्र से तुरंत हल करने के प्रभावी उपाय के रूप में मंत्रालय के साथ-साथ कलेक्टोरेट, मनपा, नगरपालिका और संभागीय आयुक्त स्तर पर लोकशाही (जनसुनवाई) दिवस मनाया जाता है। मंत्रालय में हर महीने के पहले सोमवार को मुख्यमंत्री की उपस्थिति में लोकशाही दिवस आयोजित करने की परंपरा थी, लेकिन शिंदे-फडणवीस सरकार के दौरान मंत्रालय में ऐसी कोई सार्वजनिक सुनवाई नहीं हुई है। यह सामान्य बात हो गई है कि तालुका-जिला स्तर पर समस्याओं का समाधान नहीं होता और शिकायतों की सुनवाई मंत्रालय में भी नहीं होती। इस स्थिति में आम जनता की फजीहत हो रही है।
राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग ने सितंबर २०१२ में ही एक आदेश जारी कर लोकशाही दिवस का आयोजन किस स्तर पर और कब करना है, इसकी घोषणा कर दी थी। वर्तमान में लोकशाही दिवस तालुका और जिला स्तर पर मनाया जाता है, लेकिन लोगों की शिकायत है कि इस लोकशाही दिवस पर प्रस्तुत की गई शिकायतों का समाधान नहीं किया जाता है। यदि तालुका, कलेक्टर स्तर पर शिकायतों का समाधान नहीं होता है तो आम लोगों को लोकशाही दिवस की सुनवाई के लिए मंत्रालय दौड़ना पड़ता है। मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि शिंदे-फडणवीस के सत्ता में आने के बाद से एक बार भी लोकशाही दिवस पर सुनवाई नहीं हुई है। मौजूदा स्थिति यह है कि निचले स्तर पर मुद्दों का समाधान नहीं हो पा रहा है और मंत्रालय में सुनवाई नहीं हो रही है।

गड़े मुर्दे : जब राजनेता बनने से चूक गया अश्विन नाईक

जितेंद्र दीक्षित

कहानी मुंबई के सबसे पढ़े- लिखे डॉन की
कभी-कभी किसी के जीवन में घटित हुई कोई एक घटना उसकी जिंदगी की दिशा बदलकर रख देती है। उस शख्स ने अपनी जिंदगी के लिए कोई और योजना बना रखी होती है, लेकिन नियति उसे कही और ले जाकर पटक देती है। ऐसा ही कुछ हुआ अश्विन नाईक के साथ। नाईक ने लंदन से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और भारत आकर किसी कंपनी में अच्छी तनख्वाह पर नौकरी करके अपना जीवन आगे बढ़ाने का इरादा था, लेकिन किस्मत ने कुछ और ही सोच रखा था। अश्विन का बड़ा भाई अमर उर्फ रावण मुंबई अंडरवर्ल्ड का एक बड़ा नाम था, जिसने कई दुश्मन बना रखे थे। पुलिस तो उसकी दुश्मन थी ही, वह अरुण गवली के गिरोह के भी निशाने पर था। बड़े भाई की इस अदावत ने अश्विन को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया। जान बचाने के लिए जान लेना जरूरी बन गया। अश्विन नाईक मजबूरी में अंडरवर्ल्ड का सदस्य बन गए, लेकिन इस दुनिया को वे जल्द ही छोड़ देना चाहते थे। १९९२ में नाईक ने पैâसला किया कि अंडरवर्ल्ड को छोड़कर राजनीति में चले जाएंगे, लेकिन उसी साल उसके साथ ऐसी घटना हुई जिसने उनकी जिंदगी तहस-नहस करके रख दी। उनकी जान तो बच गई, लेकिन अंडरवर्ल्ड से बाहर निकलने का उनका रास्ता भी बंद हो गया।
९० के दशक में मुंबई में पांच गिरोहों की दहशत हुआ करती थी– दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, अरुण गवली, अमर नाईक और अबू सलेम इन गिरोहों के मुखिया थे। १९९६ में दिवंगत इंस्पेक्टर विजय सालस्कर ने अमर नाईक को नागपाड़ा इलाके में हुए एक एनकाउंटर में खत्म कर दिया। गिरोह की कमान अश्विन नाईक के हाथों में आ गई। शारीरिक तौर पर लाचार होने के बावजूद नाईक ने गिरोह पर मजबूत नियंत्रण रखा और अपने दुश्मनों को भी नाकों चने चबवाए। १९९२ में एक कोर्ट में पेशी के दौरान अरुण गवली के शूटरों ने अश्विन नाईक के सिर में गोली मार दी थी। वक्त पर इलाज मिल जाने से अश्विन की जान तो बच गई, लेकिन कमर के नीचे से उसे लकवा मार गया और वह जिंदगीभर व्हीलचेयर पर रहने के लिए मजबूर हो गया।
हाल ही में नाईक के घर पर मेरी मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान नाईक ने कई बातें बतार्इं, जो अब तक सार्वजनिक नहीं हुर्इं थीं। नाईक शिवसेना की विचारधारा और बालासाहेब के व्यक्तित्व से बड़ा प्रभावित थे। उनके मुताबिक बालासाहेब भी उन्हें पसंद करते थे और कुछेक बार सभाओं में उनके नाम का जिक्र भी किया था। नाईक की पत्नी नीता शिवसेना की नगरसेविका थी। खुद अश्विन नाईक ने भी १९९२ में अंडरवर्ल्ड छोड़कर राजनीति में आने की तैयारी कर ली थी, लेकिन सेशन कोर्ट में हुई गोलीबारी के बाद उनकी जिंदगी की दिशा बदल गई।
जेल में रहने के दौरान अश्विन नाईक ने खूब पढ़ाई की। पढ़ाई किताबों की नहीं बल्कि अपने खिलाफ दर्ज मामलों में पुलिस की ओर से दायर मोटी-मोटी चार्जशीट के पन्नों की। नाईक कानून में इतना निपुण हो गए कि वे अपने वकीलों को निर्देश देते थे कि अदालत में किन बिंदुओं के आधार पर वे जिरह करें। अबसे चंद साल पहले, इक्का-दुक्का छिटपुट मामलों को छोड़कर, नाईक अदालत से सभी गंभीर मामलों से बरी हो गए।
कानून के शिकंजे से बाहर निकलने के बाद अब नाईक एक सामान्य नागरिक की तरह जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं। अब उनका सारा ध्यान रियल इस्टेट के कारोबार पर है। चूंकि नाईक हनुमानजी के भक्त हैं इसलिए अपनी कंपनी का नाम भी उन्हीं पर यानी कि मारुति कंस्ट्रक्शंस रखा है। नाईक के पिता का नाम भी मारुति था। नाईक संतोषी माता के भी भक्त हैं और रोजाना कुछ वक्त घर के पास स्थित माता के मंदिर में पूजा- पाठ के लिए भी निकालते हैं।
जब मैंने उनसे पूछा कि क्या उनके पास नई पीढ़ीr की खातिर कोई संदेश है तो उनकी नसीहत थी– ‘कभी भी अपराध की राह मत पकड़ना, क्योंकि ये वन वे ट्रैफिक है। मैं खुशनसीब हूं कि वापस लौट कर आ सका, लेकिन हर कोई लौट नहीं पाता। इस दुनिया से दूर रहो।’
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)

ईरान सरकार के विरोध में महिला ने फिर उतारे कपड़े! … न्यूड होकर पुलिस वैन के बोनट पर चढ़ी

ईरान में कट्टरपंथी शासन की सख्त नीतियों और कड़े कानूनों के बावजूद महिलाओं का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। वहीं ईरान में हुई एक घटना ने दुनियाभर को हैरान कर दिया है। दरअसल, ईरान में एक महिला पूरी तरह नग्न अवस्था में पुलिस की गाड़ी पर चढ़ गई और पुलिस के विरोध में प्रदर्शन करने लगी। महिला के इस कदम ने सशस्त्र पुलिस अधिकारियों को चौंकाकर रख दिया। महिला सशस्त्र पुलिस अधिकारियों से डरे बिना कार पर नग्न अवस्था में चढ़ गई और कार के विंडशील्ड पर बैठ गई। ब्रिटिश न्यूज आउटलेट द सन की रिपोर्ट के अनुसार, यह हैरान कर देने वाली घटना ईरान के उत्तर-पूर्व भाग में स्थित देश के दूसरे सबसे बड़े शहर मशहद में देर रात को घटी।
ईरान के मशहद में घटी इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वीडियो में बिना कपड़ों के महिला पुलिस की कार पर चढ़कर पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करती हुई दिखाई दे रही है। जब महिला कार के बोनट पर खड़ी होती है, तो लोगों को तेज रफ्तार से आगे बढ़ते हुए गाड़ियों के हॉर्न बजाते हुए सुना जा सकता है। वहीं इस दौरान कई अधिकारी भी महिला को घेरे हुए थे।

इस्लाम की बात : ज्ञान है तो जहान है …इस्लाम की बुनियाद ‘इकरा’

सैयद सलमान मुंबई

पिछले दिनों खारघर में हुए इज्तेमा की खूब चर्चा हुई। दीन और दुनिया को लेकर कई आलिमों ने अपने विचार रखे। खासकर, मुस्लिम समाज में शिक्षा को लेकर बहुत से मुसलमानों की रहनुमाई की गई। इस्लाम की बुनियाद में ‘इकरा’ यानी पढ़ने का बड़ा महत्व है। यह बात हर मजहब और संप्रदाय मानता है कि शिक्षा मानव जीवन का आधार है और यह समाज के विकास और प्रगति की कुंजी है। मुस्लिम समाज में भी शिक्षा का महत्व इस्लामी शिक्षाओं और ऐतिहासिक परंपराओं में गहराई से निहित है। इस्लाम धर्म ने ज्ञान और शिक्षा को सर्वोच्च महत्व दिया है। कुरआन और हदीस में स्पष्ट रूप से इस बात को स्पष्ट किया गया है।
इस्लाम में ज्ञान को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। कुरआन की पहली आयत में ही पढ़ने और ज्ञान प्राप्त करने का आदेश दिया गया है। ‘पढ़ो, अपने रब के नाम से, जिसने सृष्टि की रचना की।’ (सूरह अल-अलक, ९६:१)। यह आयत इस्लाम में शिक्षा के महत्व को बड़ी ही खूबसूरती से स्पष्ट करती है और मुसलमानों को ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। इस्लाम में ज्ञान को ईश्वर की निशानी माना जाता है और इसे प्राप्त करना एक पवित्र कर्तव्य कहा गया है। एक हदीस में उल्लेख है कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने इल्म लेने के लिए चीन तक जाने की नसीहत की है। आज से साढ़े चौदह सौ साल पहले सऊदी अरब के रेगिस्तान में रहने वाले अशिक्षित लोगों को चीन तक शिक्षा लेने जाने की बात कहना ही शिक्षा के महत्व का प्रमाण है। यही नहीं, बल्कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा, ‘ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान पर फर्ज है।’ (हदीस इब्न माजा)। यह हदीस शिक्षा के महत्व को और भी स्पष्ट रूप से बयान करती है। पैगंबर ने यह भी कहा कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए दूर-दूर तक यात्रा करनी चाहिए।
आधुनिक शिक्षा जरूरी
इस्लामी इतिहास में भी शिक्षा का विशेष स्थान रहा है। मध्यकालीन इस्लामी सभ्यता ने विज्ञान, गणित, चिकित्सा, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया है। बगदाद, कॉर्डोबा और काहिरा जैसे शहर शिक्षा और ज्ञान के महत्वपूर्ण केंद्र थे। मुस्लिम विद्वानों ने ग्रीक, रोमन और भारतीय ज्ञान को संरक्षित किया और उसे आगे बढ़ाया। इब्न सीना, अल-ख्वारिज्मी, अल-फाराबी और अल-बिरूनी जैसे विद्वानों ने विश्व को नए ज्ञान से समृद्ध किया।
जहां तक बात शिक्षा के सामाजिक महत्व की है तो शिक्षा सामाजिक विकास और प्रगति का मुख्य साधन है। मुस्लिम समाज में शिक्षा के महत्व को मानने के बावजूद अशिक्षा हावी है, यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। मुस्लिम समाज में शिक्षा के माध्यम से लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाया जा सकता है। शिक्षा के द्वारा गरीबी, अज्ञानता और पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है। शिक्षित समाज ही समस्याओं का समाधान कर सकता है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।
मुस्लिम समाज में धार्मिक और नैतिक शिक्षा का भी विशेष महत्व है। इस्लामी शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति को नैतिक मूल्यों, ईमानदारी, न्याय और दया जैसे गुणों का ज्ञान प्राप्त होता है। यह शिक्षा व्यक्ति को एक अच्छा इंसान और जिम्मेदार नागरिक बनाती है। धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा का समन्वय भी आवश्यक है, ताकि मुस्लिम समाज आधुनिक दुनिया में अपनी पहचान बनाए रख सके। रटी-रटाई और पुरानी पद्धति की शिक्षा से मुसलमानों का भला नहीं हो सकता। हां, नुकसान बहुत हो रहा है। शायद यह बात मुसलमान अब धीरे-धीरे समझने लगा है कि ज्ञान है तो जहान है।
प्रगति और विकास के
लिए शिक्षा
मुस्लिम समाज में महिला शिक्षा का भी विशेष महत्व है। इस्लाम ने महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया है। पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा, ‘ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान पुरुष और महिला पर फर्ज है।’ महिला शिक्षा के माध्यम से समाज में जागरूकता और सशक्तीकरण आता है। शिक्षित महिलाएं परिवार और समाज को बेहतर ढंग से संवार सकती हैं। इस्लाम की मान्यता है कि मां की गोद पहली दर्सगाह यानी शिक्षा का केंद्र है। वह पहली पाठशाला है जहां से आधुनिक न सही, लेकिन नैतिक और चारित्रिक शिक्षा मिलती है।
जहां तक बात वर्तमान दौर की है तो आज के समय में मुस्लिम समाज को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि शिक्षा का अभाव, गरीबी और सामाजिक पिछड़ापन। इन चुनौतियों से निपटने के लिए शिक्षा को प्राथमिकता देना आवश्यक है। मुस्लिम समाज को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा को भी महत्व देना चाहिए। यह न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि सामाजिक प्रगति और धार्मिक पहचान को बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है। शिक्षा के माध्यम से ही मुस्लिम समाज आधुनिक दुनिया में अपनी गरिमा और पहचान को बनाए रख सकता है। इस्लामी शिक्षाओं और ऐतिहासिक परंपराओं के आधार पर शिक्षा को प्रोत्साहित करना मुस्लिम समाज की प्रगति और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस से उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा भी वापस प्राप्त की जा सकती है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

जंगली सूअर समझकर दोस्तों को मारी गोली! … दो की मौत, छह गिरफ्तार

सामना संवाददाता / पालघर
पालघर में सूअर समझकर एक दोस्त ने दूसरे दोस्तों को गोली मार दी, जिसमें दो दोस्तों की मौत हो गई। पुलिस ने इस मामले में अब तक छह लोगों को गिरफ्तार किया है। यह घटना २८ जनवरी की बताई जा रही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, पालघर में ८ दोस्त शिकार के लिए जंगल में गए थे। जंगल में पहुंचने पर दो दोस्त अलग हो गए। इसके बाद एक शिकारी ने अपने ही साथियों को जंगली सूअर समझकर गोलियां चला दीं। इस घटना में दो लोगों की मौत हो गई, फिर शिकारियों ने मृतक के शव को जंगल की झाड़ियों में ही छुपा दिया। पालघर में एक गांव से ८ दोस्तों का एक ग्रुप मनोर में बोरशेती वन क्षेत्र में शिकार करने गया था, जहां दो शिकारियों की मौत हो गई। शिकार करने गए साथियों ने ही अपने दो साथियों पर जंगली सूअर समझकर गोली चला दी थी, जिसके बाद एक की मौके पर ही मौत हो गई थी। वहीं एक गंभीर रूप से घायल हो गया था, जिसने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।

शिक्षा के मंदिर में `नंगा नाच’ … ३ शिक्षकों ने १३ साल की बच्ची से वॉशरूम में ले जाकर किया रेप!

एक महीने के बाद हुआ खुलासा
तमिलनाडु के कृष्णागिरी जिले में १३ साल की स्कूली छात्रा के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया है। स्कूल के ही शिक्षकों ने छात्रा के साथ रेप किया। एक महीने के बाद इस वारदात का खुलासा हुआ है। पुलिस ने इस मामले में ३ आरोपी शिक्षकों को बुधवार को पॉक्सो कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया। तीनों आरोपियों को १५ दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया है। कृष्णागिरी के कलेक्टर सी दिनेश कुमार ने कहा, `कृष्णागिरी जिले के एक सरकारी मिडिल स्कूल में तीन शिक्षकों ने १३ वर्षीय छात्रा के साथ कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया। जिला शिक्षा अधिकारी ने तीनों शिक्षकों को निलंबित कर दिया है और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की अलग-अलग धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी शिक्षकों को १५ दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया है।
पुलिस के मुताबिक, २ जनवरी को स्कूल के शौचालय में छात्रा के साथ दुष्कर्म किया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक सीनियर पुलिस अफसर ने बताया कि यह घटना २ फरवरी को प्रकाश में आई। जब छात्रा के माता-पिता ने स्कूल के प्रिंसिपल को इस घटना की जानकारी दी, तब जाकर एक महीने बाद वारदात का खुलासा हुआ। पुलिस ने जानकारी मिलते ही एक्शन लेना शुरू कर दिया। चाइल्ड हेल्पलाइन के अफसरों के मुताबिक, पीड़ित के माता-पिता की ओर से दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर तीन आरोपी शिक्षकों को सस्पेंड कर दिया गया है। इन तीनों शिक्षकों को पॉक्सो अधिनियम की अलग-अलग धाराओं के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार किया गया है।

‘गुजारा’ एक नैतिक जिम्मेदारी है … पहले पति से अलग हुई पत्नी दूसरे पति से भी मांग सकती है गुजारा भत्ता! -सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम पैâसला सुनाते हुए कहा कि अगर कोई महिला अपने पहले पति से कानूनी रूप से तलाक लिए बिना दूसरे पति से शादी करती है और बाद में दोनों अलग हो जाते हैं, तो वह अपने दूसरे पति से गुजारा भत्ता का दावा कर सकती है। यह निर्णय जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सुनाया है। महिला को आपराधिक दंड संहिता की धारा १२५ के तहत अपने दूसरे पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार होगा। भले ही महिला की पहली शादी कानूनी रूप से खत्म न हुई हो, लेकिन अगर पति-पत्नी ने आपसी सहमति से अलग होने का निर्णय लिया है, तो यह उसे दूसरे पति से भरण-पोषण का हकदार बनाता है।
बता दें कि यह पैâसला तेलंगाना हाई कोर्ट के उस निर्णय को पलटते हुए आया है, जिसमें महिला को भरण-पोषण का अधिकार देने से इनकार कर दिया गया था। इस मामले में अपीलकर्ता नंबर १ (पत्नी) ने उत्तरदायी (दूसरे पति) से शादी की थी, जबकि उसने अपने पहले पति से कानूनी रूप से तलाक नहीं लिया था। हालांकि, इसमें यह बात सबसे जरूरी है कि दूसरे पति को पहली शादी की जानकारी थी। शादी के बाद दोनों कुछ समय तक साथ रहे और उनका एक बच्चा भी हुआ, लेकिन बाद में झगड़ों के कारण दोनों अलग हो गए। इसके बाद महिला ने गुजारा भत्ता मांगा। तेलंगाना हाई कोर्ट ने महिला की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि चूंकि उसका पहला विवाह कानूनी रूप से समाप्त नहीं हुआ था इसलिए दूसरा विवाह अमान्य है और इस कारण महिला को दूसरे पति से भरण-पोषण का अधिकार नहीं मिल सकता।