सैयद सलमान मुंबई
पिछले दिनों खारघर में हुए इज्तेमा की खूब चर्चा हुई। दीन और दुनिया को लेकर कई आलिमों ने अपने विचार रखे। खासकर, मुस्लिम समाज में शिक्षा को लेकर बहुत से मुसलमानों की रहनुमाई की गई। इस्लाम की बुनियाद में ‘इकरा’ यानी पढ़ने का बड़ा महत्व है। यह बात हर मजहब और संप्रदाय मानता है कि शिक्षा मानव जीवन का आधार है और यह समाज के विकास और प्रगति की कुंजी है। मुस्लिम समाज में भी शिक्षा का महत्व इस्लामी शिक्षाओं और ऐतिहासिक परंपराओं में गहराई से निहित है। इस्लाम धर्म ने ज्ञान और शिक्षा को सर्वोच्च महत्व दिया है। कुरआन और हदीस में स्पष्ट रूप से इस बात को स्पष्ट किया गया है।
इस्लाम में ज्ञान को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। कुरआन की पहली आयत में ही पढ़ने और ज्ञान प्राप्त करने का आदेश दिया गया है। ‘पढ़ो, अपने रब के नाम से, जिसने सृष्टि की रचना की।’ (सूरह अल-अलक, ९६:१)। यह आयत इस्लाम में शिक्षा के महत्व को बड़ी ही खूबसूरती से स्पष्ट करती है और मुसलमानों को ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। इस्लाम में ज्ञान को ईश्वर की निशानी माना जाता है और इसे प्राप्त करना एक पवित्र कर्तव्य कहा गया है। एक हदीस में उल्लेख है कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने इल्म लेने के लिए चीन तक जाने की नसीहत की है। आज से साढ़े चौदह सौ साल पहले सऊदी अरब के रेगिस्तान में रहने वाले अशिक्षित लोगों को चीन तक शिक्षा लेने जाने की बात कहना ही शिक्षा के महत्व का प्रमाण है। यही नहीं, बल्कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा, ‘ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान पर फर्ज है।’ (हदीस इब्न माजा)। यह हदीस शिक्षा के महत्व को और भी स्पष्ट रूप से बयान करती है। पैगंबर ने यह भी कहा कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए दूर-दूर तक यात्रा करनी चाहिए।
आधुनिक शिक्षा जरूरी
इस्लामी इतिहास में भी शिक्षा का विशेष स्थान रहा है। मध्यकालीन इस्लामी सभ्यता ने विज्ञान, गणित, चिकित्सा, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया है। बगदाद, कॉर्डोबा और काहिरा जैसे शहर शिक्षा और ज्ञान के महत्वपूर्ण केंद्र थे। मुस्लिम विद्वानों ने ग्रीक, रोमन और भारतीय ज्ञान को संरक्षित किया और उसे आगे बढ़ाया। इब्न सीना, अल-ख्वारिज्मी, अल-फाराबी और अल-बिरूनी जैसे विद्वानों ने विश्व को नए ज्ञान से समृद्ध किया।
जहां तक बात शिक्षा के सामाजिक महत्व की है तो शिक्षा सामाजिक विकास और प्रगति का मुख्य साधन है। मुस्लिम समाज में शिक्षा के महत्व को मानने के बावजूद अशिक्षा हावी है, यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। मुस्लिम समाज में शिक्षा के माध्यम से लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाया जा सकता है। शिक्षा के द्वारा गरीबी, अज्ञानता और पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता है। शिक्षित समाज ही समस्याओं का समाधान कर सकता है और समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।
मुस्लिम समाज में धार्मिक और नैतिक शिक्षा का भी विशेष महत्व है। इस्लामी शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति को नैतिक मूल्यों, ईमानदारी, न्याय और दया जैसे गुणों का ज्ञान प्राप्त होता है। यह शिक्षा व्यक्ति को एक अच्छा इंसान और जिम्मेदार नागरिक बनाती है। धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा का समन्वय भी आवश्यक है, ताकि मुस्लिम समाज आधुनिक दुनिया में अपनी पहचान बनाए रख सके। रटी-रटाई और पुरानी पद्धति की शिक्षा से मुसलमानों का भला नहीं हो सकता। हां, नुकसान बहुत हो रहा है। शायद यह बात मुसलमान अब धीरे-धीरे समझने लगा है कि ज्ञान है तो जहान है।
प्रगति और विकास के
लिए शिक्षा
मुस्लिम समाज में महिला शिक्षा का भी विशेष महत्व है। इस्लाम ने महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया है। पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा, ‘ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान पुरुष और महिला पर फर्ज है।’ महिला शिक्षा के माध्यम से समाज में जागरूकता और सशक्तीकरण आता है। शिक्षित महिलाएं परिवार और समाज को बेहतर ढंग से संवार सकती हैं। इस्लाम की मान्यता है कि मां की गोद पहली दर्सगाह यानी शिक्षा का केंद्र है। वह पहली पाठशाला है जहां से आधुनिक न सही, लेकिन नैतिक और चारित्रिक शिक्षा मिलती है।
जहां तक बात वर्तमान दौर की है तो आज के समय में मुस्लिम समाज को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि शिक्षा का अभाव, गरीबी और सामाजिक पिछड़ापन। इन चुनौतियों से निपटने के लिए शिक्षा को प्राथमिकता देना आवश्यक है। मुस्लिम समाज को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा को भी महत्व देना चाहिए। यह न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि सामाजिक प्रगति और धार्मिक पहचान को बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है। शिक्षा के माध्यम से ही मुस्लिम समाज आधुनिक दुनिया में अपनी गरिमा और पहचान को बनाए रख सकता है। इस्लामी शिक्षाओं और ऐतिहासिक परंपराओं के आधार पर शिक्षा को प्रोत्साहित करना मुस्लिम समाज की प्रगति और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस से उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा भी वापस प्राप्त की जा सकती है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)