मनपा की लापरवाही से समय पर काम पूरा होने पर उठे सवाल
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई मनपा ने २०२४-२०२५ के बीच १०९ किलोमीटर सड़कों को ही कंक्रीट किया है, जबकि निविदा शर्तों के अनुसार, २०२७ तक ५९४ किलोमीटर सड़कों का कंक्रीटिंग करना था। यह गति बेहद धीमी है और नागरिकों का मानना है कि मनपा द्वारा निर्धारित समय पर काम पूरा करना अब मुश्किल ही लग रहा है।
मनपा आयुक्त भूषण गगरानी ने २०२५ किलोमीटर सड़कों में से १,३३३ किलोमीटर सड़कों को कंक्रीट करने का दावा किया है, लेकिन फरवरी २०२४ तक १,२२४ किलोमीटर सड़कों को क्रंक्रीट किया गया, जिससे यह स्पष्ट है कि पिछले एक साल में १०९ किलोमीटर सड़कें ही कंक्रीट की गईं। नागरिक कार्यकर्ता निखिल देसाई के अनुसार, मनपा ने कई सड़क परियोजाओं की शुरुआत कुछ ठेकेदार के साथ की। पहले चरण में शहर में कंक्रीट का काम अटका हुआ था। अब यह मुद्दा सुलझा लिया गया है, लेकिन कुछ ठेकेदारों के नियुक्त करने से काम धीमी चल रहा है। उनके अनुसार यह २०२७ की समयसीमा में पूरी करना संभव नहीं है। गति बढ़ाने के लिए वॉर्डस्तर पर ठेकेदार नियुक्त करना चाहिए। वहीं एक अन्य कार्यकर्ता के अनुसार, कई सड़कों में दरारें आ गई हैं और मनपा ने ठेकेदारों पर जुर्माना भी लगाया है, लेकिन काम में कोई सुधार नहीं हुआ और नागरिकों को परेशानियों का सामना करना पड़ा।
मनपा ने पहले ही दावा किया था कि २४३ किलोमीटर सड़कों का कंक्रीटिंग २०२४ में मानसून से पहले पूरा कर लिया जाएगा, लेकिन यह लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया। इसके अलावा, मनपा ने २०२५ तक पहले और दूसरे चरण में ७५ फीसदी और ५० फीसदी काम पूरा करने का वादा किया था, लेकिन काम की धीमी गति के कारण यह वादा भी मुश्किल हो रहा है।
२०२७ की समय सीमा पर सवाल : धीमी गति के कारण सड़कों का कंक्रीटिंग कार्य अधूरा!
भाजपा आलाकमान की शिंदे पर सटकी! … अति महत्वाकांक्षा से उकता गई है भाजपा
सामना संवाददाता / मुंबई
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जब विदेश दौरे पर थे, तब एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों ने पालक मंत्री पद को लेकर विवाद बढ़ा दिया था। उसके कारण महायुति के प्रति आम जनता में गलत संदेश गया। इस बात को लेकर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व एकनाथ शिंदे से नाराज है। ऐसी जानकारी भाजपा के एक मंत्री ने दी है।
भाजपा मंत्री का कहना है कि जब मुख्यमंत्री दावोस में थे, ऐसे में महायुति के घटक दलों से मेल-मिलाप और सहयोग की भूमिका निभाने की अपेक्षा की गई थी, पर ऐसा नहीं हुआ। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस बात से नाराज है। शिंदे एक महत्वाकांक्षी नेता हैं और अगर चीजें उनके मुताबिक नहीं होती हैं तो वे करो या मरो का रवैया अपनाते है, इसकी कल्पना थी। यह बात भाजपा के अंदरूनी सूत्रों ने कही। शिंदे का कड़ा रुख अपनाना और, उनके मंत्रियों का ऐसा करना स्वाभाविक है। शिंदे गुट के मंत्रियों के विभागों में फडणवीस के बढ़ते हस्तक्षेप को लेकर शिकायत की है।
मुख्यमंत्री पद न मिलने से शिंदे नाराज?
दिसंबर २०२४ में महायुति ने विधानसभा चुनाव में बड़ी सफलता हासिल की। १३२ सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी। महायुति ने मुख्यमंत्री के तौर पर फडणवीस के नाम की पुष्टि की। इससे साफ हो गया कि शिंदे को मुख्यमंत्री पद नहीं मिलेगा। इसके बाद से शिंदे नाराज चल रहे हैं।
शिंदे का विधायकों पर नहीं है नियंत्रण
मुख्यमंत्री फडणवीस दावोस में आयोजित वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के कार्यक्रम के लिए स्विट्जरलैंड गए थे। जब फडणवीस वहां थे तो पालक मंत्री पद को लेकर विवाद गरमा गया। फडणवीस के वहां से लौटने के बाद भी शिंदे अब भी नाखुश है, ऐसा सूत्रों ने बताया। पालक मंत्री पद को लेकर अब तक कोई चर्चा नहीं होने से शिंदे की नाराजगी बढ़ गई है। दूसरी ओर शिंदे की अपने विधायकों को नियंत्रण में रखने में असमर्थता ने भाजपा को परेशान कर दिया है। रायगड के पालक मंत्री पद के लिए भरत गोगावले के समर्थकों ने जिस प्रकार हंगामा किया और नासिक के पालक मंत्री पद के लिए दादा भुसे लगातार कोशिश कर रहे हैं। इससे स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि शिंदे का अपने विधायकों पर कोई नियंत्रण नहीं है।
वाह रे ईडी सरकार : एक ही परिवार की चार कंपनियों को दे दिया ठेका!
रु. ४१ करोड़ के कपास स्टोरेज बैग घोटाले का कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष का आरोप
सामना संवाददाता / मुंबई
महायुति सरकार में भ्रष्टाचार की शृंखला खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। किसानों के नाम पर भ्रष्टाचार करके जेब भरने का एक और तरीका शिंदे-फडणवीस-अजीत पवार सरकार के कार्यकाल में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य टेक्सटाइल कॉर्पोरेशन के माध्यम से कपास स्टोरेज बैग खरीद के लिए अलग-अलग शीर्षकों के तहत टेंडर निकालकर ७७ करोड़ रुपए की खरीदी की है। इसमें ४१.५९ करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार किया गया है। इसके लिए महायुति सरकार जिम्मेदार है। इस तरह का आरोप कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने लगाया है। उन्होंने कहा कि अवैध तरीके से निकाले गए टेंडर में एक ही परिवार की चार कंपनियों को काम दिए जाने का कारनामा किया गया है। उन्होंने मांग की है कि भ्रष्टाचार की गहन जांच करके दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए।
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष ने कहा कि पिछली भाजपा-शिंदे गुट सरकार ने भ्रष्टाचार के कई रिकॉर्ड तोड़े हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि टेक्सटाइल कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक और वस्त्र उद्योग के उप सचिव श्रीकृष्ण पवार ने अपने पसंदीदा आपूर्तिकर्ता को जानकारी देकर उनके साथ मिलकर पूरी प्रक्रिया को अंजाम देकर गलत काम किया है। यह खरीद प्रक्रिया लोकसभा चुनाव आचार संहिता लागू होने के दौरान चुनाव आयोग की अनुमति के बिना की गई। इस काम के लिए चार कंपनियों का चयन किया गया, जिनमें से तीन कंपनियां ओसवाल परिवार की हैं, जबकि चौथी कंपनी ओसवाल के चार्टर्ड अकाउंटेंट की है। पटोले ने कहा कि टेक्सटाइल कॉर्पोरेशन ने कपास स्टोरेज बैग खरीद के लिए प्रति बैग १,२५० रुपए की दर मंजूर की थी। आईसीएआर नागपुर को यही बैग ५७७ रुपए की दर से आपूर्ति की गई है यानी प्रति बैग ६७३ रुपए अधिक दर पर खरीदे गए। इस तरह कुल ४१ करोड़ ५९ लाख ३५ हजार ५३६ रुपए का घोटाला किया गया है।
कछुए की चाल, वादे बेमिसाल : ५५ दिनों में ७ अधूरे पुलों को पूरा करने का मनपा का खयाली दावा!
सामना संवाददाता / मुंबई
मनपा ने बजट पेश करने के दौरान मुंबई में बन रहे पुलों को मानसून से पहले बनकर तैयार किए जाने की घोषणा की है, लेकिन यह मनपा के लिए आसान बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि जिस गति से इन पूलों का निर्माण कार्य चल रहा है, वह किसी कछुए की चाल से अधिक नहीं है।
बता दें कि बजट में मनपा आयुक्त ने आश्वासन दिया है कि मार्च २०२५ तक मुंबई के ७ पुलों का निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा। लेकिन क्या ये पुल सचमुच मार्च २०२५ तक बनकर तैयार हो जाएंगे, वह इसकी गारंटी देने में असफल नजर आ रही है। मनपा ने राज्य सरकार से गुहार लगाई है कि ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट को ‘वाइटल अर्बन ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट’ का दर्जा दिया जाए ताकि अतिरिक्त फंडिंग एवं प्रोजेक्ट को त्वरित मंजूरी प्रदान किया जा सके।
पुल नहीं होगा तैयार तो मुंबईकर रहेंगे परेशान
विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर पुल निर्माण कार्य तय सीमा पर पूरा नहीं हुआ तो इसका खामियाजा मुंबईकरों को भुगतना पड़ सकता है। मॉनसून के समय ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा सकती है, जिससे यातायात प्रभावित हो सकता है। वहीं गगरानी ने कहा है कि ऐसे किसी भी निर्माण कार्य को शुरू नहीं किया जाएगा, जिसे मॉनसून से पहले पूरा नहीं किया जा सके।
मुंबईकरों को इन पुलों के बनने का है इंतजार
१. बोरीवली-पश्चिम में चारकोप इलाके में पुल का निर्माण किया जा रहा है। इस पुल का काम कर इसे आवागमन के लिए खोल दिया जाएगा।
२. कांदिवली-पश्चिम में (विद्यमान एवं शंकर लेन व ईरानी वाड़ीr पुल)।
३. गोरेगांव में मृणालताई गोरे फ्लाईओवर के अंतर्गत वालभट्ट नाले पर बन रहे फ्लाईओवर का तीसरे चरण का काम।
४. बांद्रा-पूर्व में धारावी सायन (मीठी नदी पुल)।
५. मुलुंड में जय हिंद कॉलोनी (नानेपाड़ा पुल)
६. नाहूर रेलवे पुल
७. कर्णाक पुल
डोनाल्डवा ने डुबा दिया : रु. ४५ लाख गंवाने के बाद भी मिली हथकड़ी! …अमेरिका से वापस भेजे गए डंकियों की यही है कहानी
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
अमेरिका से लौटे अवैध अप्रवासियों में पंजाब के रहने वाले आकाशदीप सिंह भी हैंै। उनके पिता स्वर्ण सिंह बताते हैं, ‘आकाशदीप को विदेश भेजने में ४५ लाख से ज्यादा रुपए खर्च हो गए हैं। इसके लिए मैंने अपनी ढाई एकड़ जमीन बेच दी और काफी कर्ज लिया। इसके साथ ही मैंने आकाशदीप की दादी की जमीन भी बेच दी थी। इससे हम पर काफी कर्ज हो गया।
उन्होंने बताया कि उनके पास जितनी जानकारी है, उसके अनुसार वो भारत तो आ गया है, लेकिन अभी गांव नहीं आया है। इसी तरह स्थानीय एजेंट की मदद से लगभग २०-२५ लाख रुपए खर्च कर गुरप्रीत सितंबर २०२२ में लंदन गया था। जहां वह पैâक्ट्री और कंस्ट्रक्शन कंपनी के साथ काम कर रहा था। वहां वह एक एजेंट के संपर्क में आया। एजेंट ने गुरप्रीत सिंह को अमेरिका में अच्छा काम दिलाने का झांसा देकर मोटी रकम वसूली। अमेरिका द्वारा निर्वासित भारतीयों में से एक पंजाब की २६ वर्षीय सुखजीत कौर अपने मंगेतर से शादी करने अमेरिका गई थीं। सुखजीत के रिश्तेदार ने बताया कि सुखजीत को एक एजेंट ने अमेरिका में अवैध रूप से प्रवेश करने में मदद की थी। बकौल रिपोर्ट, निर्वासितों ने अमेरिका पहुंचने के लिए ३०-५० लाख तक खर्च किए थे।
वीडियो जारी कर ट्रंप ने चिढ़ाया
सोशल मीडिया पर भड़के यूजर
ट्रंप ने अप्रवासियों को वापस भेजने के बाद चिढ़ाया भी है। यूएसबीपी (यूनाइटेड स्टेट्स बॉर्डर पेट्रोल) के प्रमुख माइकल डब्ल्यू बैंक्स ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें भारतीय नागरिकों को हथकड़ी और पैरों में बेड़ियों के साथ विमान में चढ़ते हुए दिखाया गया है। बैंक्स ने पोस्ट में लिखा, ‘अवैध एलियंस को सफलतापूर्वक भारत वापस भेजा’ इस वीडियो को ऑनलाइन पोस्ट करने पर लोग काफी नाराज हो गए। एक यूजर ने लिखा कि भारतीयों के साथ अमानवीय व्यवहार का विरोध करता हूं। हथकड़ी और बेड़ियां लगाने का विरोध है।
इतिहास को सहेजने में रेलवे फेल! …केवल पट्टिकाओं को संभालना हैरिटेज का संरक्षण नहीं …एलफिंस्टन ब्रिज को लेकर रेलवे का अजीबोगरीब निर्णय
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई में एलफिंस्टन ब्रिज को लेकर रेलवे ने एक अजीबो-गरीब कदम उठाया है। रेलवे का दावा है कि वह पुल पर लगी १९१३ और १९११ की हेरिटेज पट्टिकाओं को सहेज कर रखेगी, लेकिन असल में यह पुल ध्वस्त करने का निर्णय पहले से ही लिया जा चुका है। रेलवे को शायद यह समझने की जरूरत है कि इतिहास को सहेजने का मतलब सिर्फ पट्टिकाओं को उठाना नहीं, बल्कि उस पुल और उसकी पहचान को बनाए रखना है, जिसने शहर के विकास में एक अहम भूमिका निभाई है।
गौरतलब है कि पुल की लोहे की रैलिंग पर एक पट्टिका है, जिस पर लिखा है कि जीआईपीआर, परेल ब्रिज, १९१३, ठेकेदार बोमनजी रुस्तमजी और दूसरी धातु की पट्टिका पर पीएनडब्ल्यू मैकलेलन पैनिनसुला रेलवे है, जो अब सेंट्रल रेलवे के नाम से जाना जाता है। यह वही रेलवे है, जिसने बॉम्बे (अब मुंबई) और ठाणे के बीच पहली ट्रेन चलाई थी।
लेकिन अब रेलवे इन ऐतिहासिक पट्टिकाओं को तो सहेजेगा, लेकिन पुल को ध्वस्त कर देगा। इसके अलावा एलफिंस्टन ब्रिज को ध्वस्त करके अब उसे डबल डेकर पुल में बदलने का खेल शुरू हो चुका है।
यह नया पुल शिवड़ी-न्हावाशेवा अटल सेतु से जुड़ा होगा, जो पूर्व-पश्चिम कनेक्टिविटी बनाए रखेगा। साथ ही एमएमआरडीए ने एक ४.५ किलोमीटर लंबी एलिवेटेड सड़क बनाने का प्रस्ताव दिया है, जिससे वाहन वर्ली से दक्षिण-मुंबई और बांद्रा तक सीधे पहुंच सकेंगे।
दादा दुबके! … अपने मंत्रियों और नेताओं को विवादास्पद बयान से बचने के निर्देश
सामना संवाददाता / मुंबई
भाजपा और शिंदे गुट के बीच में चल रहे विवाद को लेकर उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने वेट एंड वॉच की भूमिका अख्तियार करने का निर्णय लिया है। उन्होंने अपने मंत्रियों और नेताओं को सख्त निर्देश दिया है कि महायुति के संदर्भ में किसी भी प्रकार का सार्वजनिक बयान न दें। शिंदे और भाजपा के बीच जहां दूरियां बढ़ती जा रही हैं, वहीं फडणवीस और अजीत पवार करीब आते जा रहे हैं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा आयोजित कार्यक्रम में दादा सहभागी हो रहे और एकनाथ शिंदे गायब हो रहे हैं। बता दें कि प्रत्येक विभाग के लिए मुख्यमंत्री ने १०० दिनों का लक्ष्य निर्धारित किया है। एक तरह से मंत्री को अपने काम की प्रगति पुस्तिका पेश करनी होती है। फडणवीस ने मंत्रियों और प्रशासनिक अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि विभिन्न योजनाओं और परियोजनाओं को पूरा करने की निर्धारित तारीखों में कोई देरी नहीं होनी चाहिए। फडणवीस के इस निर्देश को शिंदे गुट के मंत्री अपने विभाग में मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप की बात कह रहे हैं।
पालक मंत्री पद को लेकर भड़की पहली चिंगारी
महायुति सरकार में विवाद की पहली चिंगारी पालक मंत्री की नियुक्ति को लेकर भड़की थी। नासिक और रायगड जिले के पालक मंत्रियों की नियुक्ति को लेकर बीजेपी और शिंदे गुट एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होने की तस्वीर सामने आ रही है। फडणवीस ने ३६ जिलों के लिए पालक मंत्रियों की घोषणा की। रायगड जिले के पालक मंत्री का पद अजीत पवार गुट की विधायक अदिति तटकरे को सौंपा गया, जबकि नासिक के पालक मंत्री का पद भाजपा के गिरीश महाजन को सौंपा गया। हालांकि, शिंदे गुट के दो नेताओं ने इस नियुक्ति का कड़ा विरोध किया।
लोकशाही दिवस की परंपरा खल्लास! …एक दिन भी नहीं हुई जनसुनवाई
-जनता की हो रही है उपेक्षा
सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य में आम लोगों की शिकायतों और समस्याओं को सरकारी तंत्र से तुरंत हल करने के प्रभावी उपाय के रूप में मंत्रालय के साथ-साथ कलेक्टोरेट, मनपा, नगरपालिका और संभागीय आयुक्त स्तर पर लोकशाही (जनसुनवाई) दिवस मनाया जाता है। मंत्रालय में हर महीने के पहले सोमवार को मुख्यमंत्री की उपस्थिति में लोकशाही दिवस आयोजित करने की परंपरा थी, लेकिन शिंदे-फडणवीस सरकार के दौरान मंत्रालय में ऐसी कोई सार्वजनिक सुनवाई नहीं हुई है। यह सामान्य बात हो गई है कि तालुका-जिला स्तर पर समस्याओं का समाधान नहीं होता और शिकायतों की सुनवाई मंत्रालय में भी नहीं होती। इस स्थिति में आम जनता की फजीहत हो रही है।
राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग ने सितंबर २०१२ में ही एक आदेश जारी कर लोकशाही दिवस का आयोजन किस स्तर पर और कब करना है, इसकी घोषणा कर दी थी। वर्तमान में लोकशाही दिवस तालुका और जिला स्तर पर मनाया जाता है, लेकिन लोगों की शिकायत है कि इस लोकशाही दिवस पर प्रस्तुत की गई शिकायतों का समाधान नहीं किया जाता है। यदि तालुका, कलेक्टर स्तर पर शिकायतों का समाधान नहीं होता है तो आम लोगों को लोकशाही दिवस की सुनवाई के लिए मंत्रालय दौड़ना पड़ता है। मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि शिंदे-फडणवीस के सत्ता में आने के बाद से एक बार भी लोकशाही दिवस पर सुनवाई नहीं हुई है। मौजूदा स्थिति यह है कि निचले स्तर पर मुद्दों का समाधान नहीं हो पा रहा है और मंत्रालय में सुनवाई नहीं हो रही है।
गड़े मुर्दे : जब राजनेता बनने से चूक गया अश्विन नाईक
जितेंद्र दीक्षित
कहानी मुंबई के सबसे पढ़े- लिखे डॉन की
कभी-कभी किसी के जीवन में घटित हुई कोई एक घटना उसकी जिंदगी की दिशा बदलकर रख देती है। उस शख्स ने अपनी जिंदगी के लिए कोई और योजना बना रखी होती है, लेकिन नियति उसे कही और ले जाकर पटक देती है। ऐसा ही कुछ हुआ अश्विन नाईक के साथ। नाईक ने लंदन से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और भारत आकर किसी कंपनी में अच्छी तनख्वाह पर नौकरी करके अपना जीवन आगे बढ़ाने का इरादा था, लेकिन किस्मत ने कुछ और ही सोच रखा था। अश्विन का बड़ा भाई अमर उर्फ रावण मुंबई अंडरवर्ल्ड का एक बड़ा नाम था, जिसने कई दुश्मन बना रखे थे। पुलिस तो उसकी दुश्मन थी ही, वह अरुण गवली के गिरोह के भी निशाने पर था। बड़े भाई की इस अदावत ने अश्विन को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया। जान बचाने के लिए जान लेना जरूरी बन गया। अश्विन नाईक मजबूरी में अंडरवर्ल्ड का सदस्य बन गए, लेकिन इस दुनिया को वे जल्द ही छोड़ देना चाहते थे। १९९२ में नाईक ने पैâसला किया कि अंडरवर्ल्ड को छोड़कर राजनीति में चले जाएंगे, लेकिन उसी साल उसके साथ ऐसी घटना हुई जिसने उनकी जिंदगी तहस-नहस करके रख दी। उनकी जान तो बच गई, लेकिन अंडरवर्ल्ड से बाहर निकलने का उनका रास्ता भी बंद हो गया।
९० के दशक में मुंबई में पांच गिरोहों की दहशत हुआ करती थी– दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, अरुण गवली, अमर नाईक और अबू सलेम इन गिरोहों के मुखिया थे। १९९६ में दिवंगत इंस्पेक्टर विजय सालस्कर ने अमर नाईक को नागपाड़ा इलाके में हुए एक एनकाउंटर में खत्म कर दिया। गिरोह की कमान अश्विन नाईक के हाथों में आ गई। शारीरिक तौर पर लाचार होने के बावजूद नाईक ने गिरोह पर मजबूत नियंत्रण रखा और अपने दुश्मनों को भी नाकों चने चबवाए। १९९२ में एक कोर्ट में पेशी के दौरान अरुण गवली के शूटरों ने अश्विन नाईक के सिर में गोली मार दी थी। वक्त पर इलाज मिल जाने से अश्विन की जान तो बच गई, लेकिन कमर के नीचे से उसे लकवा मार गया और वह जिंदगीभर व्हीलचेयर पर रहने के लिए मजबूर हो गया।
हाल ही में नाईक के घर पर मेरी मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान नाईक ने कई बातें बतार्इं, जो अब तक सार्वजनिक नहीं हुर्इं थीं। नाईक शिवसेना की विचारधारा और बालासाहेब के व्यक्तित्व से बड़ा प्रभावित थे। उनके मुताबिक बालासाहेब भी उन्हें पसंद करते थे और कुछेक बार सभाओं में उनके नाम का जिक्र भी किया था। नाईक की पत्नी नीता शिवसेना की नगरसेविका थी। खुद अश्विन नाईक ने भी १९९२ में अंडरवर्ल्ड छोड़कर राजनीति में आने की तैयारी कर ली थी, लेकिन सेशन कोर्ट में हुई गोलीबारी के बाद उनकी जिंदगी की दिशा बदल गई।
जेल में रहने के दौरान अश्विन नाईक ने खूब पढ़ाई की। पढ़ाई किताबों की नहीं बल्कि अपने खिलाफ दर्ज मामलों में पुलिस की ओर से दायर मोटी-मोटी चार्जशीट के पन्नों की। नाईक कानून में इतना निपुण हो गए कि वे अपने वकीलों को निर्देश देते थे कि अदालत में किन बिंदुओं के आधार पर वे जिरह करें। अबसे चंद साल पहले, इक्का-दुक्का छिटपुट मामलों को छोड़कर, नाईक अदालत से सभी गंभीर मामलों से बरी हो गए।
कानून के शिकंजे से बाहर निकलने के बाद अब नाईक एक सामान्य नागरिक की तरह जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं। अब उनका सारा ध्यान रियल इस्टेट के कारोबार पर है। चूंकि नाईक हनुमानजी के भक्त हैं इसलिए अपनी कंपनी का नाम भी उन्हीं पर यानी कि मारुति कंस्ट्रक्शंस रखा है। नाईक के पिता का नाम भी मारुति था। नाईक संतोषी माता के भी भक्त हैं और रोजाना कुछ वक्त घर के पास स्थित माता के मंदिर में पूजा- पाठ के लिए भी निकालते हैं।
जब मैंने उनसे पूछा कि क्या उनके पास नई पीढ़ीr की खातिर कोई संदेश है तो उनकी नसीहत थी– ‘कभी भी अपराध की राह मत पकड़ना, क्योंकि ये वन वे ट्रैफिक है। मैं खुशनसीब हूं कि वापस लौट कर आ सका, लेकिन हर कोई लौट नहीं पाता। इस दुनिया से दूर रहो।’
(लेखक एनडीटीवी के सलाहकार संपादक हैं।)
ईरान सरकार के विरोध में महिला ने फिर उतारे कपड़े! … न्यूड होकर पुलिस वैन के बोनट पर चढ़ी
ईरान में कट्टरपंथी शासन की सख्त नीतियों और कड़े कानूनों के बावजूद महिलाओं का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। वहीं ईरान में हुई एक घटना ने दुनियाभर को हैरान कर दिया है। दरअसल, ईरान में एक महिला पूरी तरह नग्न अवस्था में पुलिस की गाड़ी पर चढ़ गई और पुलिस के विरोध में प्रदर्शन करने लगी। महिला के इस कदम ने सशस्त्र पुलिस अधिकारियों को चौंकाकर रख दिया। महिला सशस्त्र पुलिस अधिकारियों से डरे बिना कार पर नग्न अवस्था में चढ़ गई और कार के विंडशील्ड पर बैठ गई। ब्रिटिश न्यूज आउटलेट द सन की रिपोर्ट के अनुसार, यह हैरान कर देने वाली घटना ईरान के उत्तर-पूर्व भाग में स्थित देश के दूसरे सबसे बड़े शहर मशहद में देर रात को घटी।
ईरान के मशहद में घटी इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वीडियो में बिना कपड़ों के महिला पुलिस की कार पर चढ़कर पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करती हुई दिखाई दे रही है। जब महिला कार के बोनट पर खड़ी होती है, तो लोगों को तेज रफ्तार से आगे बढ़ते हुए गाड़ियों के हॉर्न बजाते हुए सुना जा सकता है। वहीं इस दौरान कई अधिकारी भी महिला को घेरे हुए थे।