– एक साल बाद भी हालात जस के तस
-मुंब्रा हादसे से यात्रियों का फूटा गुस्सा
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंब्रा रेलवे स्टेशन पर हादसे के बाद रेल प्रशासन की लापरवाही को लेकर सवाल उठने लगे हैं। मुंबई हाई कोर्ट ने एक साल पहले ही सुनवाई के दौरान रेलवे प्रशासन से कहा था कि वह यात्रियों की सुरक्षा को लेकर कदम उठाए। लोकल ट्रेनों से गिरकर, पटरी पार करते हुए प्लेटफॉर्म के गैप को लेकर कई सवाल उठाए गए थे। हर सवाल के जवाब में रेलवे ने भीड़ का हवाला दिया था, जिस पर हाई कोर्ट ने रेलवे को फटकारते हुए कहा था कि भीड़ का बहाना नहीं चलेगा। हादसों को लेकर रेलवे अधिकारी गंभीरता से विचार करें।
मुंबई में लोकल ट्रेनों में सफर के दौरान रोजाना ४ से ५ यात्रियों की मौत होती है। इसी सिलसिले में मुंबई हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी और रेलवे की लापरवाही पर सवाल खड़े किए गए थे। याचिका में कहा गया था कि चलती ट्रेन से गिरकर, पटरी पार करते वक्त और प्लेटफॉर्म और ट्रेन के बीच गैप में फंसकर अक्सर यात्रियों की मौतें हो रही हैं, जिसे रोकने के लिए रेलवे कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है।
तो हादसा नहीं होता
एडवोकेट शमशेर अहमद शेख ने बताया कि अगर रेलवे ने एक साल पहले वाले आदेश को गंभीरता से लेते हुए सुरक्षा के उपाय किए होते तो आज मुंब्रा में इतना बड़ा हादसा नहीं होता।
मांगा था जवाब
साल २०२४ जून माह में अदालत ने रेलवे से सख्त लहजे में जवाब मांगा था। अदालत ने यह भी कहा था कि रेलवे हमेशा ट्रेनों की भीड़ का बहाना बनाकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करता है, जो नहीं चलेगा।
जिंदगी की कीमत नहीं
उन्होंने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ट्रेनों में भीड़ दिनों-दिन बढ़ती जा रही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यात्रियों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं है। उनकी सुरक्षा के लिए रेलवे को पूरी प्लानिंग के तहत काम करने की जरूरत है।
कोर्ट की फटकार खाकर भी नहीं सुधरे रेल अधिकारी!
मुंब्रा लोकल हादसे के चलते रेल यात्री बहुत नाराज हैं। कोर्ट की फटकार के बाद भी रेल अधिकारी नहीं सुधरे, जिससे मुंब्रा जैसा हादसा हो गया। मुंब्रा निवासी हारून शेख के मुताबिक, फास्ट ट्रेन जब भी मुंब्रा से गुजरती है वह काफी झटके मारती है, इसका हल निकालना जरूरी है। इस बारे में एड. डॉ. सैयद एजाज नकवी ने बताया कि मुंबई हाई कोर्ट ने कई बार रेलवे को फटकार लगाई और यात्रियों की सुरक्षा के इंतजाम को लेकर पूछा, लेकिन रेलवे ने कोई ठोस जानकारी कोर्ट को मुहैया नहीं करवाई। उन्होंने बताया कि एक साल पहले कोर्ट ने काफी तल्ख अंदाज में रेलवे से कहा था कि ट्रेन हादसे में मरनेवालों का जिम्मेदार रेलवे अधिकारियों को क्यों नहीं माना जाए? एडवोकेट नकवी के मुताबिक, रेलवे सिर्फ योजनाएं बनाती है और अमल में लाने से पहले ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार और रेलवे प्रशासन दोनों की यंत्रणाएं नाकाम हैं। उनकी नजर में लोगों की जान कौड़ी बराबर भी नहीं है, जिनके घर के व्यक्ति की हादसे से मौत हुई है, उन परिवार को मुआवजे के अलावा सरकारी नौकरी भी दी जानी चाहिए। एडवोट नकवी ने बताया कि सबसे ज्यादा शर्म की बात तो यह है कि अगर कोई हादसा हो जाता है तो रेलवे फौरन राहत कार्य देने में सक्षम नहीं है। कम से कम डेढ़ घंटे बाद यात्री को मौके पर मदद हासिल होती है।