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युद्धकांड की राम कथा :  राक्षसों और वानरों में छिड़ गया घमासान युद्ध

शीतल अवस्थी

हिंदू धर्म में श्री राम, विष्णु के दस अवतारों में से सातवें अवतार हैं। भगवान राम का जीवनकाल एवं पराक्रम, महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित, संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है उन पर तुलसीदासजी ने भी भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस रचा है। हिंदुओं में श्री राम बहुत अधिक पूजनीय माने जाते हैं। श्री रामचंद्र हिंदुत्ववादियों के आदर्श पुरुष हैं। इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। श्री राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। श्री राम की पत्नी सीता लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं और उनके तीन भाई थे, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमानजी, भगवान राम के सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। श्री राम ने राक्षस जाति के राजा रावण का वध किया था। रावण से युध्द शुरू करने से पहले भगवान राम ने रावण को समझाने के कई प्रयास किए। आखिरी प्रयास के तौर पर वानर राज बाली के पुत्र अंगद को रावण के पास भेजा गया था।
नारदजी कहते हैं, ‘तदनंतर श्री रामचंद्रजी के आदेश से अंगद रावण के पास गए और बोले, ‘रावण! तुम जनककुमारी सीता को ले जाकर शीघ्र ही श्री रामचंद्रजी को सौंप दो, अन्यथा मारे जाओगे।’ यह सुनकर रावण उन्हें मारने को तैयार हो गया। अंगद राक्षसों को मार-पीटकर लौट आए और श्री रामचंद्रजी से बोले, ‘भगवन! रावण केवल युद्ध करना चाहता है।’ अंगद की बात सुनकर श्रीराम ने वानरों की सेना साथ ले युद्ध के लिए लंका में प्रवेश किया। हनुमान, मैन्द, द्विविद, जाम्बवान, नल, नील, तार, अंगद, धूम्र, सुषेण, केसरी, गज, पनस, विनत, रम्भ, शरभ, महाबली कम्पन, गवाक्ष, दधिमुख, गवय और गंधमादन ये सब तो वहां आए ही, अन्य भी बहुत-से वानर आ पहुंचे। इन असंख्य वानरों सहित (कपिराज) सुग्रीव भी युद्ध के लिए उपस्थित थे। फिर तो राक्षसों और वानरों में घमासान युद्ध छिड़ गया। राक्षस वानरों को बाण, शक्ति और गदा आदि के द्वारा मारने लगे और वानर रख, दांत एवं शिला आदि के द्वारा राक्षसों का संहार करने लगे। राक्षसों की हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों से युक्त चतुरंगिणी सेना नष्ट-भ्रष्ट हो गई। हनुमानजी ने पर्वत शिखर से अपने वैरी धूम्राक्ष का वध कर डाला। नील ने भी युद्ध के लिए सामने आए हुए अकम्पन और प्रहस्त को मौत के घाट उतार दिया।
श्रीराम और लक्ष्मण यद्यपि इंद्रजीत के नागास्त्र से बंध गए थे, तथापि गरुड़ की दृष्टि पड़ते ही उससे मुक्त हो गए। तत्पश्चात उन दोनों भाइयों ने बाणों से राक्षसी सेना का संहार आरंभ किया। श्रीराम ने रावण को युद्ध में अपने बाणों की मार से जर्जरित कर डाला। इससे दु:खित होकर रावण ने कुम्भकर्ण को सोते से जगाया। जागने पर कुम्भकर्ण ने हजार घड़े मदिरा पीकर कितने ही भैंसों आदि पशुओं का भक्षण किया। फिर रावण से कुम्भकर्ण बोला, ‘सीता का हरण करके तुमने पाप किया है। तुम मेरे बड़े भाई हो, इसलिए तुम्हारे कहने से युद्ध करने जाता हूं। मैं वानरों सहित राम को मार डालूंगा’। ऐसा कहकर कुम्भकर्ण ने समस्त वानरों को कुचलना आरंभ किया। एक बार उसने सुग्रीव को पकड़ लिया, तब सुग्रीव ने उसकी नाक और कान काट लिए। नाक और कान से रहित होकर वह वानरों का भक्षण करने लगा। यह देख श्री रामचंद्रजी ने अपने बाणों से कुम्भकर्ण की दोनों भुजाएं काट डालीं। इसके बाद उसके दोनों पैर तथा मस्तक काट कर उसे पृथ्वी पर गिरा दिया। तदनंतर कुम्भ, निकुम्भ, राक्षस मकराक्ष, महोदर, महापार्श्व, देवांतक, नरांतक, त्रिशिरा और अतिकाय युद्ध में कूद पड़े। तब इनको तथा और भी बहुत-से युद्ध परायण राक्षसों को श्रीराम, लक्ष्मण, विभीषण एवं वानरों ने पृथ्वी पर सुला दिया। तत्पश्चात इंद्रजीत (मेघनाद) ने माया से युद्ध करते हुए वरदान में प्राप्त हुए नागपाश द्वारा लक्ष्मण को बांध लिया। उस समय हनुमानजी के द्वारा लाए हुए पर्वत पर उगी हुई ‘विशल्या’ नाम की संजीवनी औषधि से लक्ष्मण के घाव अच्छे हुए। उनके शरीर से बाण निकाल दिए गए। हनुमानजी पर्वत को जहां से लाए थे, वहीं उसे पुन: रख आए। इधर मेघनाद निकुम्भिलादेवी के मंदिर में होम आदि करने लगा। उस समय लक्ष्मण ने अपने बाणों से इंद्र को भी परास्त कर देने वाले उस वीर को युद्ध में मार गिराया। पुत्र की मृत्यु का समाचार पाकर रावण शोक से संतप्त हो उठा और सीता को मार डालने के लिए उद्यत हो उठा; किंतु अविन्ध्य के मना करने से वह मान गया और रथ पर बैठकर सेना सहित युद्ध भूमि में गया। तब इंद्र के आदेश से मातलि ने आकर श्री रघुनाथजी को भी देवराज इंद्र के रथ पर बिठाया।

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