मुख्यपृष्ठधर्म विशेषरामायण कथा : अयोध्या के राजा बन गए श्री राम

रामायण कथा : अयोध्या के राजा बन गए श्री राम

शीतल अवस्थी

धर्म के मार्ग पर चलने वाले राम ने अपने तीनों भाइयों के साथ गुरु वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त की थी। किशोरवय में विश्वामित्र उन्हें वन में राक्षसों द्वारा मचाए जा रहे उत्पात को समाप्त करने के लिए ले गए। राम के साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी इस काम में उनके साथ थे। ताड़का नामक राक्षसी बक्सर (बिहार) मे रहती थी। वहीं पर उसका वध हुआ। राम ने उस समय ताड़का नामक राक्षसी को मारा तथा मारीच को पलायन के लिए मजबूर किया। इस दौरान ही विश्वामित्र उन्हें मिथिला ले गए। वहां के विदेह राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक समारोह आयोजित किया था। शिव का एक धनुष था, जिसकी प्रत्यंचा चढ़ाने वाले शूर से सीता का विवाह किया जाना था। बहुत सारे राजा महाराजा उस समारोह में पधारे थे। बहुत से राजाओं के प्रयत्न के बाद भी जब धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर धनुष उठा तक नहीं सके, तब विश्वामित्र की आज्ञा पाकर राम ने धनुष उठा कर प्रत्यंचा चढ़ा दी। उनकी प्रत्यंचा चढा़ते ही महान धनुष घोर ध्वनि करते हुए टूट गया। महर्षि परशुराम ने जब इस घोर ध्वनि को सुना तो वहां आ गए और अपने गुरू (शिव) का धनुष टूटने पर रोष व्यक्त करने लगे। लक्ष्मण उग्र स्वाभाव के थे। उनका विवाद परशुराम से हुआ। तब राम ने बीच-बचाव किया। अंतत सीता का विवाह राम से हुआ और परशुराम सहित समस्त लोगों ने आशीर्वाद दिया। अयोद्या में राम सीता सुखपूर्वक रहने लगे। लोग राम को बहुत चाहते थे। उनकी मृदुल, जनसेवायुक्त भावना और न्यायप्रियता के कारण उनकी विशेष लोकप्रियता थी। राजा दशरथ वानप्रस्थ की ओर अग्रसर हो रहे थे। अत: उन्होंने राज्यभार राम को सौंपने का सोचा। जनता में भी सुखद लहर दौड़ गई कि उनके प्रिय राजा, उनके प्रिय राजकुमार को राजा नियुक्त करनेवाले हैं। उस समय राम के अन्य दो भाई भरत और शत्रुघ्न अपने ननिहाल कैकेय गए हुए थे। कैकेयी की दासी मंथरा ने कैकेयी को भरमाया कि राजा तुम्हारे साथ गलत कर रहें है। तुम राजा की प्रिय रानी हो तो तुम्हारी संतान को राजा बनना चाहिए, पर राजा दशरथ राम को राजा बनाना चाहते हैं। आखिर कैकई की कुटनीति से श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता वनवास चले गए। आज उन्हीं सीता मइया को रावण हर ले गया था और भगवान राम और उनकी वानर सेना ने सीताजी को वापस पाने के लिए रावण के समस्त कुल का युध्द में नाश कर दिया था। लंकापति युध्द हार चुका था और लंका में मातम मनाया जा रहा था, पर भगवान राम की सेना जश्न मना रही थी। हालांकि, उन्हें रावण की मुर्खता से हुई जानमाल की हानि का काफी दुख भी था। लंका विजय के बाद श्री राम और सीता के मिलन का सभी को बेसब्री से इंतजार था। आखिर वह घड़ी भी आ गई। भगवान राम ने रावण को युद्ध में परास्त कर उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया।
फिर सबको साथ ले, सीता सहित पुष्पक विमान पर बैठकर श्रीराम जिस मार्ग से आए थे, उसी से लौट चले। मार्ग में वे सीता को प्रसन्नचित्त होकर वनों और दुर्गम स्थानों को दिखाते जा रहे थे। प्रयाग में महर्षि भारद्वाज को प्रणाम करके वे अयोध्या के पास नन्दिग्राम में आए। वहां भरत ने उनके चरणों में प्रणाम किया, फिर वे अयोध्या में आकर वहीं रहने लगे। सबसे पहले उन्होंने महर्षि वसिष्ठ आदि को नमस्कार करके क्रमश: कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा के चरणों में मस्तक झुकाया। फिर राज्य-ग्रहण करके ब्राह्मणों आदि का पूजन किया। उन्होंने अपने आत्म स्वरूप श्रीवासुदेव का यजन किया, सब प्रकार के दान दिए और प्रजाजनों का पुत्रवत पालन करने लगे। उन्होंने धर्म और कामादिका भी सेवन किया तथा वे दुष्टों को सदा दंड देते रहे। उनके राज्य में सब लोग धर्मपरायण थे तथा पृथ्वी पर सब प्रकार की खेती फली-फूली रहती थी। श्रीरघुनाथजी के शासनकाल में किसी की अकाल मृत्यु भी नहीं होती थी।

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