विक्रम सिंह
‘कुशनगरी’ सुल्तानपुर के रामेश्वर सिंह करीब साढ़े चार दशक से रूस में हिंदी-हिंदू-हिंदुस्थान की अलख जगा रहे हैं। अस्सी के दशक में वे पढ़ाई करने दिल्ली के जेएनयू गए औऱ फिर स्नातक करके आगे की पढ़ाई करने तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) की राजधानी मास्को जा पहुंचे। इसके बाद वहीं के होकर रह गए! रूसी कन्या से विवाह किया और जुट गए ‘हिंदी-हिंदू-हिंदुस्थान’ की अलख जगाने। हिंदुस्थान-रूस के संबंध को अटूट और प्रगाढ़ बनाने में रामेश्वर के प्रयासों को सराहा भी खूब गया। नेहरू युग से चली आ रही दोनों देशों की दोस्ती जब मोदी युग में पहुंची तो रामेश्वर ने रूस में रूसियों को ‘रामकथा’ की महत्ता बताई। उन्हीं की प्रेरणा से अब ‘रूस की रामलीला’ ख्यातिप्राप्त कर चुकी है। स्वयं पीएम मोदी ने रूसी कलाकारों के रामलीला मंचन को न सिर्फ सराहा बल्कि अवलोकन भी किया। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी उन्हें ‘आप्रवासी भारतीय रत्न-२०१९’ के सम्मान से विभूषित कर चुके हैं। संप्रति डॉ. सिंह इंडो-रशियन फ्रेंडशिप सोसायटी ‘दिशा’ के अध्यक्ष हैं और महाकुंभ व अयोध्या दर्शन के सिलसिले में अपनी टीम के साथ भारत में प्रवास पर हैं। शनिवार की शाम वे अपनी पितृभूमि महाराज कुश की नगरी सुल्तानपुर पहुंचे और पुराने परिचितों, संबंधियों-मित्रों के साथ भरपूर गर्मजोशी के साथ भेंट मुलाकात की। आगे की अपनी दिशा व योजनाओं का भी खुलकर जिक्र किया।
सुल्तानपुर शहर के सिरवारा मार्ग स्थित गार्डन व्यू गेस्ट हाउस में करीबियों के साथ वार्तालाप में मशगूल डॉ. रामेश्वर सिंह बताते हैं पीढ़ियों पुरानी भारत-रूस की अटूट दोस्ती नेहरू युग में परवान चढ़ी तो मोदी युग में इसे पंख लग गए। वाणिज्यिक, सांस्कृतिक व शैक्षणिक क्षेत्र में दोनों देश के मध्य सामूहिक सहकार की भावना बढ़ी है। रूस के लोग मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और रामकथा से प्रभावित होकर रामलीला का मंचन कर रहे हैं। मास्को से दिल्ली, लखनऊ-अयोध्या तक रूसी कलाकारों ने रामकथा मंचन कर खूब तालियां बटोरीं। इस सिलसिले को अभी और आगे तक ले जाने के लिए कटिबद्ध रामेश्वर की इस मुहिम में अब हाथ बंटाने को उनके बेटे अमित व रशियन पुत्रवधू भी तैयार हो चुके हैं।