मुख्यपृष्ठनमस्ते सामना14 जनवरी के अंक में नमस्ते सामना में प्रकाशित पाठकों की रचनाएं

14 जनवरी के अंक में नमस्ते सामना में प्रकाशित पाठकों की रचनाएं

अयोध्या नगरी
मित्रों मानो मेरी बात मिल रही है हम सबको
जो अयोध्या की अद्भुत सी सौगात
कई सदियों के संघर्षों के बाद
यूं तो नई पीढ़ी के लिए
कौतूहल का ही विषय रही बड़ी
अयोध्या नगरी, प्रभु राम और
अयोध्या की हनुमानगढ़ी पर
कुछ दोष नहीं था उनका भी शायद
जब देखा उन सबने अब तक
मंदिर संरचना पूरी की पूरी अनगढ़ी
देखा न कभी उन सबने प्रभु को
देखी केवल बस हनुमानगढ़ी
उनको तो लगती कुछ गड़बड़ सी
अयोध्या वाली कहानी की सभी कड़ी
जिसे सुनाती अक्सर दादी-नानी
रातों-दिन और घड़ी-घड़ी
सही-गलत किस्सा होने को लेकर
सब अक्सर ही जाते थे लड़-झगड़
विश्वास नहीं होता उनको
तुलसी जैसे संतों पर भी
कभी लगाते थे जो
प्रभु को चंदन रगड़-रगड़
याद दिलानी पड़ती थी उनको
कि हुई कार-सेवा थी
यहां अयोध्या में एक दिन बढ़-चढ़
और मची थी उस दिन
इस नगरी में भारी भगदड़
मच गई थी उनमें भी भड़-भड़
जो अक्सर बोला करते थे
कुछ ज्यादा ही बढ़-बढ़
बताना पड़ता था उन सबको
वैâसे क्या-क्या कार्य हुए थे
उस दिन इस अयोध्या में धड़-धड़
यह अलग बात रही कि तब
सभी हो गए थे हद से ज्यादा मनबढ़
और कहूं मैं क्या-क्या मित्रों
इनको तो अयोध्या नगरी
अब तक एक रोमांच रही और
इतिहास के पन्नों पर अंकित
बस कुछ लोगों की भड़ास रही
पर मित्रों देखो तो कुछ दिन बीते
कुछ हैं बीत गए बरस
अब अद्भुत वह दिन आया है
जब नगरी अयोध्या जाने को
वही सभी हैं रहे तरस
बढ़ रहा प्रताप जग में
प्रभु राम का क्षण-क्षण
अचंभित है विश्व का कण-कण
हो रही अयोध्या नगरी सुंदर-सुघड़
शकल दे रहे हैं दो अद्भुत औघड़
हलचल भी हर ओर है
पर नहीं है इनको कोई हड़बड़
एक अचंभा और है भाई
हर जौहरी पा रहा है पुण्य लाभ
प्रभु हेतु पाषाण को गढ़-गढ़
सकल राष्ट्र प्रतिभाग कर रहा बढ़चढ़
इच्छाएं विरोध की तो अब
दिख रही है नष्ट होती सड़-सड़
प्रभु का प्रताप तो देखो
वही पीढ़ी अब खुद ही सुना रही है
दादी-नानी वाली वही कहानी
सबको ही पकड़-पकड़
– जितेंद्र कुमार दुबे,
अपर पुलिस अधीक्षक, कासगंज

प्राण प्रतिष्ठा होने को है
फिर से राम खड़े प्रश्न पर
राजनीति गरमाई
किसके हैं किसके नहीं राम
निर्णय जनता के पल्ले आई
प्राण प्रतिष्ठा होने को है
मंदिर खड़ा रामलला तैयार
प्राण फूंक कर मनुष्य
करेगा जीवन का संचार
कौन-कौन बनेगा साक्षी
नेता उहा-पोह में
प्राण प्रतिष्ठा होने को है
सज-धजकर खड़ी अयोध्या
सरजू भी धुलकर बह रही
हवन कुंड जलने को आतुर
देख रहा संसार
कितने संत कितने संत्री
कितने नेता कितने मंत्री
कितने लोग कितने तंत्री आएंगे?
प्रश्न गणित का
हल करने में जुटे हैं नेता
नंबर देगी जनता
साधु, संत, पुजारी मगन
कोई आए न आए
राम तो आएंगे ही
प्राण प्रतिष्ठा होने को है
– डॉ. एम.डी. सिंह

आया रामराज्य
पलकों पर कुछ स्वप्न सजाने आया रामराज्य
जीवन में नव उत्कर्ष जगाने आया रामराज्य
चारों तरफ हंसी-खुशी हो सुख-समृद्धि खजाना
संघर्षों का नव दीप जगाने आया रामराज्य
नए पुराने पूरब-पश्चिम हो दिग-दिगंत से मेल
आपस में प्रेम सद्भाव जगाने आया रामराज्य
हम सूरज से उजास ले प्रकाश पर्व लिख देंगे
आर्यावर्त में नव मंत्र जगाने आया रामराज्य
लिखना है इतिहास ‘उमेश’ नव नव नव नूतन हो
संकल्पों को याद दिलाने आया रामराज्य
– डॉ. उमेश चंद्र शुक्ल

जब मुख आए राम
पर्ण कुटीर महल सम सुंदर, कब? जब व्यापे राम
मन मंदिर सम निर्मल पावन, कब? जब व्यापे राम
राम रमे, हृदयस्थल पावन, कब? जब ध्याये राम
आंगन कोण वेद ध्वनि उचारे, कब? जब आए राम
नेत्र दरश अभिलाषा पूरन, जब दर्शाये राम
कर्ण धन्य अहोभाग्य मनावे, जब शबद सुनाए राम
जनम-मरन से मुक्त, अंतगति जब मुख आए राम
– शिब्बू गाजीपुरी

मन के राम
मैं राम अंतर्मन का
हूं विद्यमान सभी के
रोम-रोम और हर श्वास में
जाति-धर्म विभेद के
मानस में है वास मेरा
अबोध मानव समझ ना पाया
रहस्य ये अटल कि
सब हैं मेरे और
सभी का हूं राम मैं
अच्छे-बुरे की परख
है जीवन में बेहतर मुझे
बुराई तजने की चेतना
देता हर बार मैं ही
किंतु मानव मूर्ख फिर भी
मर्यादा की लांघता रेखा
लालसा के वशीभूत होकर ही
थामकर रखे जो हाथ मेरा
छोड़ूं ना कभी साथ उसका
किंतु गजब दौर आज का
अपने पराए में उलझकर
प्यासा रक्त का बन रहा
जान-बूझकर मानव
भूला वह ये भी कि
क्षणभंगुर है जीवन
जो लिया यहीं से लिया
जो छूटेगा यहीं का होगा
चरित्रवान बने हर नारी-नर
मानव सेवा हो धर्म परम
ध्येय हो जीवन का
चलें सभी सत्य पथ पर
कर्म करें निष्काम भाव से
मन के राम की
सीख रही यही सनातन
पुरुष बनता पुरुषोत्तम
मन में बसे राम की
मर्यादा को ही अपनाकर
– मुनीष भाटिया, कुरुक्षेत्र

वृक्ष बचाओ विश्व बचाओ
प्रण करें सब मिल करके
बच्चे, युवा, अधेड़ व वृद्ध,
वृक्ष एक भी कटने न देंगे
करेंगे वन-उपवन समृद्ध!
-डॉ. मुकेश गौतम, वरिष्ठ कवि

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