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रेपो दर में आधे प्रतिशत की कटौती…क्या सचमुच आम आदमी को राहत मिलेगी?-कांग्रेस नेता व बैंकिंग विशेषज्ञ विश्वास उटगी

सामना संवाददाता / मुंबई

भारतीय रिजर्व बैंक ने 6 जून को अपनी नई मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए रेपो दर को 6% से घटाकर 5.5% कर दिया है, जहां ज्यादातर विशेषज्ञ केवल 0.25% कटौती की उम्मीद कर रहे थे, वहीं रिजर्व बैंक ने आक्रामक रुख अपनाते हुए आर्थिक गति को तेज करने का संकेत दिया है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश की GDP वृद्धि दर 6.5% है और मुद्रास्फीति दर को 4% के अंदर रहने का अनुमान है। इस पृष्ठभूमि में मौद्रिक नीति को उदार बनाकर बैंकों को अधिक ऋण वितरित करने व उद्योगों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया गया है।
कर्ज को बढ़ावा, लेकिन जमाकर्ता होंगे बलि का बकरा!
साथ ही कैश रिजर्व रेशियो (CRR) को दिसंबर 2025 तक चरणबद्ध तरीके से 4% से घटाकर 3% किया जाएगा, जिससे बैंकिंग प्रणाली में लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त नकदी आएगी। इसका लाभ यह होगा कि होम लोन, व्हीकल लोन, एजुकेशन लोन और बिजनेस लोन सस्ते होंगे।
लेकिन जब बैंक कर्ज पर ब्याज घटाएंगे, तब वे निश्चित ही जमा पर मिलने वाला ब्याज भी घटाएंगे। इसका सीधा असर बचत करने वाले मध्यमवर्गीय नागरिकों, सेवानिवृत्त लोगों और आम जमाकर्ताओं पर पड़ेगा, उनकी मासिक आय घटेगी और वे आर्थिक रूप से पिछड़ेंगे।
जमाकर्ताओं की क्रयशक्ति की रक्षा होनी चाहिए
राष्ट्रीयकृत बैंकों में जमा सुरक्षित मानी जाती है, लेकिन मुद्रास्फीति के इस दौर में ब्याज दरों में कटौती जमाकर्ताओं की क्रयशक्ति को कम करती है। विशेष रूप से वे नागरिक जो रिटायर हो चुके हैं या जिनकी मासिक आय बैंक ब्याज पर निर्भर है। उनके लिए यह स्थिति गंभीर है।
बचत करने वालों को दंडित करके अर्थव्यवस्था को चलाना यह नीति गलत है। रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार जमाकर्ताओं के हितों की अनदेखी कर रहे हैं।
रिजर्व बैंक के आंकड़े क्या कहते हैं?
मार्च 2025 तक कुल बैंक डिपॉज़िट–234.5 लाख करोड़ रुपए
विभाजन इस प्रकार:
महानगर: 24.8 लाख करोड़ रुपए
शहरी क्षेत्र: 49 लाख करोड़ रुपए
अर्ध-शहरी क्षेत्र: 36.2 लाख करोड़ रुपए
ग्रामीण क्षेत्र: 24.4 लाख करोड़ रुपए
डिपॉज़िट की वृद्धि दर केवल 7% है, यानी लोगों की बचत में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। अक्टूबर 2023 तक:
बचत खाता: 59.7 लाख करोड़ रुपए
चालू खाता: 18.5 लाख करोड़ रुपए
सावधि जमा (FD): 103 लाख करोड़ रुपए
लेकिन कर्ज़ डुबोने वाले कौन?
पैसे की उपलब्धता बढ़ाना एक बात है, लेकिन बीते वर्षों में बड़े कॉर्पोरेट घरानों को दिया गया कर्ज़ बड़े पैमाने पर डूबा है। लाखों करोड़ के कर्ज़ ‘राइट ऑफ’ कर दिए गए हैं, जबकि वसूली नगण्य रही। इसका सारा बोझ अंततः आम जमाकर्ताओं और ग्राहकों पर डाला गया है।
कुछ प्रमुख बैंकों द्वारा घटाए गए ब्याज दरें:
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया: 7.5% → 6.85%
बैंक ऑफ महाराष्ट्र: 7.15% → 6.5%
फेडरल बैंक: 7.5% → 7%
इंडसइंड बैंक: 7.25% → 7%
इस संदर्भ उदगीने सवाल उपस्थित की है :
1. जमाकर्ताओं और निवेशकों को सुरक्षा कौन देगा?
2. बैंक और सरकार केवल बड़े कर्जदारों के ही पक्ष में क्यों दिखती हैं?
3. निजी निवेश क्यों नहीं बढ़ रहा? और नए रोज़गार क्यों नहीं बन रहे?
इन सभी सवालों को ध्यान में रखते हुए हम रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार से मांग करते हैं कि वे जमाकर्ताओं की चिंताओं को समझें, उनके हितों की रक्षा करें और निवेश को प्रोत्साहित करने की ठोस नीति लाएं।
“जिनके कंधों पर देश टिका है, उन्हीं के कंधों पर बोझ क्यों?”

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