संजय राऊत
शासक कोई भी हों, आम लोग कीड़े-मकोड़ों की तरह मर ही रहे हैं और राजनेता केवल आंसू बहाने का ढोंग करते हैं। मुंबई में चलती लोकल ट्रेन से १३ यात्री गिर गए। उनमें से चार की मौत हो गई। राजनेताओं ने झूठे आंसू बहाए और फिर से राजनीति में मशगूल हो गए। कश्मीर घाटी के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में २६ मां-बहनों के माथे का सिंदूर मिटा दिया गया। बेंगलुरु में एक क्रिकेट टीम की जीत का जश्न मनाने के लिए हजारों लोग जमा हुए थे। उस भीड़ में ऐसी भगदड़ मची कि ११ लोगों की जान चली गई। मणिपुर में पुन: हिंसा भड़क उठी और लोग फिर से उसकी बलि चढ़ रहे हैं। ११ साल से सत्ता में काबिज मोदी इस भयावह तस्वीर से जरा भी विचलित नहीं हो रहे हैं। वे निर्विकार चेहरा लिए सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हैं। सिर्फ कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले में ही नहीं, बल्कि बेंगलुरु, मुंबई, मणिपुर में हुई घटनाओं में मौतें हुर्इं और वहां भी किसी का सिंदूर मिटा दिया गया, लेकिन सरकार को उससे क्या! सरकार राजनीति और उससे पैसा जुटाने में मशगूल है। मुंबई से लेकर झारखंड, छत्तीसगढ़ के जंगलों तक, सरकार के लोग ठेकेदारों और उद्योगपतियों से पैसा वसूल रहे हैं।
संवेदना नहीं बची
सरकार में अब कोई भी संवेदना नहीं बची है। सरकार एक निर्दयी और अप्रभावी संस्था होती है। अब मुंबई महानगरपालिका की लड़ाई शुरू हो गई है। चार साल से मुंबई महानगरपालिका पर जनप्रतिनिधियों का शासन नहीं है। वहां मुख्यमंत्री को ‘रिपोर्ट’ करनेवाला प्रशासक है। इस दौरान ३४ हजार करोड़ रुपए कमीशनबाजी के जरिए संबंधितों की निजी तिजोरी में गए। इसमें से कितना हिस्सा फडणवीस को और कितना शिंदे को मिला, वो आंकड़ा समझ में आ गया तो जनता शासकों के कारनामों पर फूल बरसाने के लिए स्वतंत्र हो जाएगी। मुंबई से ३४ हजार करोड़ से ज्यादा की कमाई की। महाराष्ट्र में २९ महानगरपालिकाओं के चुनाव नहीं हुए। ऐसे में कौन सी महानगरपालिका कितने करोड़ में लूटी गई, यह समझना दिलचस्प है। इस देश में जो काला धन निर्माण होता है, उसका मुख्य केंद्र मुंबई है। देश में हर घंटे पौने दो सौ करोड़ रुपए का कालाधन पैदा होता है। ऐसा पूरे ३६५ दिन होता है। इसमें मुंबई का हिस्सा सबसे ज्यादा है। अब तो भाजपा ने गौतम अडानी की बारात ही मुंबई में ला दी और उनको तोहफे में पूरी मुंबई दे दी है। अडानी अपनी लूट का हिस्सा इन राजनेताओं को देंगे। इसलिए सभी खुश हैं। महाराष्ट्र के मंत्री इस पैसे की पूजा करने के लिए गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर जाएंगे। यह देखकर लगता है – भारत की, खासकर महाराष्ट्र की राजनीति अब मतदाताओं पर निर्भर नहीं रही। वो अब सरकार के चहेते उद्योगपति, ज्योतिषी, तंत्र-मंत्र विद्या का इस्तेमाल करने वाले तय करते हैं। महाराष्ट्र में एक-दूसरे के खिलाफ तंत्र-मंत्र का इस्तेमाल किया जाता है, जो उस समय राघोबादादा ने किया था। बड़े माधवराव पेशवा की मौत हो जाए इसके लिए राघोबा ने अघोरी उपाय किए, तो आनंदीबाई जप करती बैठी रहीं।
हर जगह लूट
प्रशासक के कार्यकाल में मुंबई महानगरपालिका में लूट हुई। धारावी विकास के नाम पर गौतम अडानी को फडणवीस ने मुंबई के कई महत्वपूर्ण भूखंड दे दिए। धारावी का भूखंड माहिम, माटुंगा, दादर के करीब है। इसके अलावा कुर्ला डेयरी, दहिसर टोल नाका, मुलुंड डंपिंग ग्राउंड, मिठागर जैसी जमीनों का लाभ भी धारावी विकास के नाम पर अडानी को दिया जा रहा है। यह महाराष्ट्र की लूट है और यह खुलेआम चल रही है। इन सभी लेन-देन में भाजपा, फडणवीस, शिंदे, अमित शाह को कितना लाभ मिलेगा? यह सीधे तौर पर रिश्वतखोरी है। आज महाराष्ट्र के औद्योगिक और गृहनिर्माण क्षेत्रों और विभागों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार चल रहा है। झोपड़पट्टी पुनर्विकास की एक भी फाइल बिना पैसे दिए आगे नहीं बढ़ती। मंत्रालय से लेकर एसआरए तक यही हो रहा है। गरीबों के घरों के लिए शुरू की गई योजनाएं बिल्डरों और भ्रष्ट अधिकारियों के हाथों में चली गईं। इसलिए मराठी माणुस मुंबई से बाहर हो गया। इसका दु:ख सभी को होना चाहिए। मुंबई महानगरपालिका चुनाव के परिप्रेक्ष्य में गुरुवार सुबह मुख्यमंत्री फडणवीस और राज ठाकरे बांद्रा के ‘ताज’ होटल में मिले। दोनों ने मराठी लोगों के भविष्य पर चर्चा की होगी, लेकिन यह एकतरफा रही होगी। श्री. फडणवीस मुंबई से मराठी माणुस को बाहर निकालने की कोशिश कर रहे गौतम अडानी के खुले समर्थक हैं। फडणवीस के काल में मुंबई की सारी जमीन अडानी को दे दी गई। क्या यह मुंबई को भिखारी बनाकर सारा माल गुजरात ले जाने की साजिश है? उम्मीद है कि फडणवीस से मुलाकात के दौरान राज ठाकरे ने यह सवाल पूछा होगा। फडणवीस वही करेंगे जो मोदी और शाह चाहेंगे और अमित शाह मुंबई को एक व्यवसाय के रूप में देखते हैं। फडणवीस-राज ठाकरे की मुलाकात में क्या चर्चा हुई, इसकी विस्तृत जानकारी मेरे पास है। फडणवीस एक साथ सबसे खेलते हैं। उन्हें लगता है कि महाराष्ट्र में हर पार्टी अपनी ही ताल पर चलती है और नेता भी उसी ताल में नाचते हैं। महाराष्ट्र में फिलहाल ऐसा ही मदारियों का खेल चल रहा है।
अडानी का लोकतंत्र
यह मानकर संतुष्ट हो जाना कि भारतीय लोकतंत्र अनपढ़ों का लोकतंत्र है फिर भी बुद्धिमान है, ऐसा ही है जैसे यह कहना कि दरवाजे पर बंधे प्राणियों में भी कितनी अच्छी समझ है। न्यूज चैनलों के एकतरफा प्रचार के कारण जहां अंधभक्त बने पढ़े-लिखे जानवर भी अपना सिर हिलाते हैं, वहां अनपढ़ों का क्या? उस पर यदि ‘फर्जी डिग्री’ वाला प्रधानमंत्री मिल जाए तो कोई पूछने की बात नहीं। इंदिरा गांधी जब दूरदर्शन पर दिखती थीं, तो पहले महिलाएं आदर में हाथ जोड़ती थीं। अब जब श्री. मोदी जी दिखते हैं, तो वे हाथ जोड़ लेती हैं, ऐसा मैंने भाजपा वालों से सुना है। पढ़े-लिखे होने के बावजूद एक बड़ा अज्ञानी वर्ग समाज में होता है। वह वर्ग आधा-अधूरा पढ़ता है, कुछ गलत सुनता है और उस पर अपनी राय बनाकर कुछ बोलता है। इन सबने मिलकर भारतीय लोकतंत्र को बर्बाद कर दिया है और देश के अंधभक्त इसकी सराहना करते हैं। प्रे. ट्रंप ने दबाव डालकर भारत को पाकिस्तान के खिलाफ शुरू लड़ाई को रोकने के लिए कहा। यह लड़ाई जमीन के लिए नहीं थी, बल्कि भारत की सीमा में पाकिस्तान के दहशतवाद के खिलाफ थी। प्रे. ट्रंप ने इसे रुकवा दिया। विपक्षी दल इस पर तीखे सवाल न पूछें इसके लिए मोदी ने सर्वदलीय सांसदों को विश्वभ्रमण पर भेज दिया और भारत में शांति स्थापित की। विदेश से लौटे सभी सांसदों को मोदी ने मंगलवार शाम को दिल्ली में चाय पर आमंत्रित किया। वहां असल में क्या चर्चा हुई, इसका खुलासा तो नहीं हुआ, लेकिन यह खबर जरूर आई कि ‘प्रधानमंत्री मोदी ने सौ. सुप्रिया सुले से शरद पवार के स्वास्थ्य के बारे में विशेष पूछताछ की।’ यह हास्यास्पद है। मोदी पवार को सीधे फोन करके उनके स्वास्थ्य के बारे में आसानी से पूछ सकते थे, लेकिन उन्होंने पूछताछ सुप्रिया सुले से की। इनमें से किसी भी सांसद ने ‘प्रे. ट्रंप ने भारत पर दबाव डालकर पाकिस्तान के साथ युद्ध क्यों रुकवाया? आप दबाव में क्यों झुक गए?’ ऐसे सीधे सवाल नहीं पूछे। लोकतांत्रिक भारत के प्रधानमंत्री को सवाल पूछे जाना पसंद नहीं है। मोदी को प्रधानमंत्री पद पर आए ११ साल हो गए। ११ साल में उन्होंने एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस का सामना नहीं किया। यह एक विश्व रिकॉर्ड है।
प्रे. ट्रंप के भारत में हस्तक्षेप पर मोदी चुप हैं। चीन ने पाकिस्तान की मदद की। वे इस पर भी कुछ नहीं बोलते। इतना मौन तो मनमोहन सिंह ने भी नहीं रखा। भारत पर शासन करने की नैतिक ताकत श्री. मोदी खो चुके हैं।
भारत की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतनी अवहेलना कभी नहीं हुई, जितनी मोदी के अमृतकाल में हुई। फिर भी अगर मोदी और उनके भक्त खुश हैं तो यह देश के पतन का आखिरी छोर है।