मुख्यपृष्ठनए समाचाररोखठोक : सेठजी का खरीदी-बिक्री संघ अर्थात भाजपा के आर्थिक अपराध

रोखठोक : सेठजी का खरीदी-बिक्री संघ अर्थात भाजपा के आर्थिक अपराध

संजय राऊत -कार्यकारी संपादक

भाजपा व्यापारी और सेठजी की पार्टी है। भाजपा के खाते में सात हजार करोड़ रुपए जमा हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड्स देश के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है। एक ही पार्टी को इफरात चंदा मिलता है। उन पैसों से देश का चुनाव लड़ा जाता है, विधायकों-सांसदों की खरीदी-बिक्री होती है। सेठजी के राज का मतलब लोकतंत्र नहीं!

भारतीय जनता पार्टी ये ‘सेठजी’ यानी धनाढ्यों की पार्टी है। देश की राजनीति में वह थोक खरीदी-बिक्री संघ बन गया है। इसके लिए पैसे लगते हैं। इसीलिए भाजपा ने ‘इलेक्टोरल बॉन्ड्स’ के नाम पर अपने खाते में सात हजार करोड़ रुपए जमा किए। इस तरह से पैसा जमा करना अवैध और बेईमानी है, ऐसा कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स का ये धंधा ही बंद कर दिया। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदी करनेवालों के नाम जनहित में सार्वजनिक करें, कोर्ट के ऐसा आदेश देते ही राष्ट्रीयकृत स्टेट बैंक के पैर लड़खड़ाने लगे। स्टेट बैंक को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना ही चाहिए, लेकिन बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दिया और कहा, ये नाम जाहिर करने के लिए उसे और तीन महीने की अवधि चाहिए। काम थोड़ा ज्यादा है। स्टेट बैंक का ऐसा बर्ताव ईमानदारी का लक्षण न होकर देश लूटनेवाले डकैतों की मदद करने जैसा ही है। भारतीय जनता पार्टी के खाते में अल्पावधि में सात हजार करोड़ का माल किसने डाला, ये जानने के लिए देश उत्सुक है। देश में अडानी जैसे ‘मोदी मित्र’, बड़े उद्योगपति, ठेकेदारों आदि ने विदेशी कंपनियों के माध्यम से इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदकर भाजपा के खाते में हजारों करोड़ रुपए डाले हैं, तो उद्योगपतियों ने यह दानधर्म भाजपा को ही क्यों किया? अन्य को ये दान क्यों नहीं? भाजपा के खाते में जिन कंपनियों ने हजारों करोड़ रुपए डाले, उनमें से ३५० कंपनियों पर ‘ईडी’, ‘सीबीआई’ ने कार्रवाई की है, जिन पर छापे पड़े हैं और ब्लैकमेल करके उन कंपनियों से ‘उगाही’ स्वरूप निधि वसूली गई है। क्या यह एक प्रकार का वित्तीय अपराध नहीं है? लेकिन पिछले दस वर्षों में मोदी और उनके लोगों ने ऐसा वित्तीय अपराध करके देश को लूटा है।
रिजर्व बैंक की लूट
सुभाष गर्ग वित्त विभाग के सचिव थे, उन्होंने ‘We also make policy’ नामक एक पुस्तक लिखी। उस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने कई चौंकानेवाली जानकारी सामने लाई है। मोदी के कार्यकाल में देश को वैâसे लूटा जा रहा है, यह श्री गर्ग ने स्पष्टता से प्रस्तुत किया है। २०१८ में मोदी के हाथ में कुछ ज्यादा ही गुदगुदी होने लगी। मोदी और शाह को रिजर्व बैंक में जमा करके रखी गई ‘गंंगाजली’ उनके चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल करनी थी। यह गंगाजली देश में विषम परिस्थितियों में आखिरी सहारे के तौर पर इस्तेमाल की जाती है। सुरक्षित रखे गए इन पैसों को फिजूलखर्च नहीं किया जा सकता, लेकिन मोदी को वह पैसा साल २०१९ के चुनाव से पहले प्रचार तंत्र पर इस्तेमाल करना था। इस लेन-देन का रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने जब विरोध किया, तब मोदी भड़क गए। उर्जित पटेल जनता के पैसों पर बैठे हुए नाग हैं, ऐसा उन्होंने भरी बैठक में कहा। उर्जित पटेल पर भारी दबाव बनाया गया, उन्हें अप्रत्यक्ष धमकियां दी गर्इं। ऐसी तनावग्रस्त स्थिति में पटेल का काम करना भी दुश्वार हो गया। रिजर्व बैंक के गवर्नर को इस तरह परेशान किया गया कि उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। सुभाष गर्ग अपने पुस्तक में लिखते हैं, ‘उर्जित पटेल की जगह पर अपने मनमुताबिक शक्तिकांत दास को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर के तौर पर लाया गया। शक्तिकांत ने तत्काल उस सुरक्षित रखे हुए पैसों यानी राष्ट्रीय गंगाजल से एक लाख ७६ हजार करोड़ रुपए मोदी सरकार को ट्रांसफर कर दिया।’ ये सारे पैसे पूरी तरह से मोदी की विज्ञापनबाजी पर, भाजपा समर्थित सरकारी ‘इवेंट्स’ पर बहाए गए। इन पैसों का लाभ न तो किसानों को मिला, न गरीबों को। मोदी की ‘चमकेशगीरी’ पर ये एक लाख ७६ हजार करोड़ रुपए बर्बाद कर दिए गए। यह एक राष्ट्रीय वित्तीय अपराध है। मोदी और उनकी सरकार इस तरह के वित्तीय अपराध पिछले दस वर्षों से कर रही है। २०२४ के चुनाव का प्रचार मोदी सरकारी खर्च से कर रहे हैं। सरकारी विमानों के काफिले, घोड़े-गाड़ियों के साथ वे देशभर में यात्राएं करके खुद का चुनाव प्रचार कर रहे हैं। जबकि दूसरी तरफ राहुल गांधी जैसे नेता अपर्याप्त संसाधनों के साथ देशभर में पैदल चल रहे हैं।
गरीबों के लिए पैसे नहीं
मोदी सरकार के वित्तीय घोटाले संशोधन का विषय हैं। पिछले सात वर्षों में मोदी सरकार ने अपने उद्योगपति मित्रों का ११ लाख करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया है, जिसमें पंद्रह लोगों के ही पांच लाख करोड़ हैं। जिनके ये ११ लाख करोड़ रुपए माफ किए, उन उद्योगपतियों ने भाजपा के खाते में कितने हजार करोड़ ‘दान’ दिए? भाजपा यह व्यापार मंडल की पार्टी है। व्यापारी घाटे में धंधा नहीं करेगा। जानकार बताते हैं, कर्ज माफ किए गए उद्योगपतियों ने ‘सिंडिकेट’ करके २,५०० करोड़ का इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदकर भाजपा के खाते में ‘भर’ डाला है। अगर ये सच है तो वो देशद्रोह जैसा ही अपराध है। जनता के पैसों को लूटने वाले और बर्बाद करने वाले आतंकी ही होते हैं। सैनिकों की पेंशन का भार सरकार को उठाते नहीं बनता। ८वें वेतन आयोग के क्रियान्वयन में अब भी गड़बड़ी चल रही है। गरीबों के लिए शुरू की गई ‘मनरेगा’ योजना के लिए केंद्र के पास पैसा नहीं है। राज्य की तरफ से जमा होने वाली ‘जीएसटी’ की वापसी केंद्र सरकार नहीं कर पाती। गरीबों की जीवनावश्यक वस्तुओं पर ‘टैक्स’ लगाए जाते हैं। पेट्रोल-डीजल पर टैक्स लगाकर सरकार साल में साढ़े तीन करोड़ रुपए की कमाई कर रही है, लेकिन यह पैसा प्रधानमंत्री के देश-विदेश भ्रमण, विज्ञापनबाजी, इवेंट्स पर ही बर्बाद किया जाता है। यह जनता का सारा पैसा एक व्यक्ति और उसकी पार्टी के प्रचार पर खर्च हो रहा है। मोदी ने अपने धनाढ्य मित्रों के पांच लाख करोड़ के कर्ज माफ कर दिए। उन्होंने बैंकों को डुबाया और मोदी ने बैंक डुबाने वालों को ताकत दी। इसीलिए देश के बैंकों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। मोदी को अर्थशास्त्र और देश की अर्थव्यवस्था का कुछ पता ही नहीं है, ऐसा डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कई बार कहा है। मित्रों की और भाजपा के बैंक खाते की समृद्धि ही ‘गरीबी हटाओ’ अथवा ‘अच्छे दिन’ का मतलब है, ऐसा ही श्री मोदी और उनके लोगों को लगता है। यह बात देश के लिए गंभीर है।
कहां से आता है पैसा?
पैसों से सत्ता, सत्ता से फिर पैसा। उसी पैसों से बार-बार सत्ता, यही मोदी और उनके लोगों की नीति है। चुनाव ही भ्रष्टाचार और काले पैसों की जननी है। चुनावी खर्च और चुनाव निधि में पारदर्शिता लाने के नाम पर मोदी सरकार ने ‘इलेक्टोरल बॉन्ड्स’ को बाजार में लाया, लेकिन प्रत्यक्ष में काला पैसा भाजपा के खाते में और चुनाव प्रचार में खपाने के लिए यह सब आडंबर था, ये अब साबित हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी के खाते में और हाथ में असीमित, बेहिसाब पैसा है। ऐसा दृढ़ता से कहा जाता है कि भारत का २०१९ लोकसभा चुनाव अब तक का सबसे महंगा चुनाव था और भाजपा ने इस चुनाव में लगभग २७ हजार करोड़ रुपए खर्च किए। मतलब हर मतदाता पर ७०० रुपए खर्च किए और प्रत्येक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पर १०० करोड़ रुपए खर्च किए। २० हजार करोड़ प्रचार पर, ३ हजार करोड़ सोशल मीडिया पर और ४ हजार करोड़ लॉजिस्टिक्स पर खर्च हुए।
२०१८ के बाद भाजपा ने ५०० आलीशान कार्यालय बनाए। दिल्ली के भाजपा मुख्यालय की कीमत ही ५०० करोड़ है। राज्य में मुख्यालय के निर्माण पर औसतन १०० करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। २०२४ के चुनाव में २०१९ से ज्यादा खर्च होगा। यह पैसा कहां से आएगा? किसके भरोसे ‘चार सौ’ पार होगा? कॉर्पोरेट क्षेत्र का सारा काला धन २०२४ के चुनाव में इस्तेमाल किया जाएगा और उन्हीं पैसों से देश के लोकतंत्र, संविधान, किसानों के अधिकार को जला दिया जाएगा।
भाजपा और मोदी अक्सर गरीबों पर बोलते हैं, लेकिन उनके विचारों के केंद्र में धनाढ्य और सेठजी हैं। सेठजी लोगों की पार्टी १४० करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती। उनमें से ८० करोड़ जनता मोदी के ही फेंके गए ५ किलो मुफ्त अनाज पर जी रही है।

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