मुख्यपृष्ठसंपादकीयरोखठोकआखिर मोदी बैसाखियों पर आ गए

आखिर मोदी बैसाखियों पर आ गए

संजय राऊत

लोकसभा चुनाव के नतीजों ने एक बात स्पष्ट कर दी कि लोकतंत्र अमर है। भारत में लोकतंत्र की हत्या करने वालों का अहंकार अंतत: उतार दिया जाता है। चार सौ पार का नारा देनेवाली मोदी-शाह की भाजपा को सरकार बनाने के लिए साधारण बहुमत भी नहीं मिल पाया और एनडीए के नाम का सहारा लेकर सरकार बनाने की नौबत आ गई। यह सरकार नहीं टिकेगी।

भारतीय लोकतंत्र के चरित्र में गिरावट आनी शुरू हो गई है, यह लोकसभा चुनाव ने दिखा दिया। ‘चरित्र का मूल्य कितना है?’ एक वाक्य में कहें तो इसका जवाब होगा ‘चरित्र का मूल्य महाभारत जितना ही है’। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद महाभारत का चरित्र हनन बड़े पैमाने पर शुरू हो गया। १८वीं लोकसभा के चुनाव हुए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा का दारुण पराभव जनता ने किया। २०१४ और २०१९ की तरह मोदी को सरकार बनाने के लिए साधारण बहुमत नहीं मिल सका। देश की जनता ने सत्ता की फासीवादी प्रवृत्तियों को परास्त कर दिया। भाजपा को सिर्फ २३४ सीटें मिलीं और वह बहुमत के आंकड़े से ४० सीटें दूर हो गई। यह नरेंद्र मोदी की हार है। हालांकि, मोदी ने अब तीसरी बार ‘एनडीए’ की सरकार के रूप में शपथ लेने का पैâसला किया है। मोदी देव पुरुष हैं (ऐसा उनका दावा है), लेकिन देव पुरुष सत्ता के बिना नहीं रह सकता और बहुमत को इकट्ठा करके सिंहासन प्राप्ति के लिए मोदी राष्ट्रपति भवन में दाखिल हुए। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे, लेकिन पिछले दस वर्षों में उन्होंने हजारों बार जनता से किए अपने ‘वादे और कसमें’ तोड़ी हैं, उसका क्या?
सभ्यता सिमट गई
भारतीय जनता पार्टी ने देश की राजनीति में सारी सभ्यता और संस्कृति को समेटकर रख दिया है और इसकी झलक चुनाव प्रचार में भी देखने को मिली है। मोदी ‘रामभक्त’ हैं। उन्होंने राम का मंदिर तो बनवाया, लेकिन रामायण-महाभारत के विचार को स्वीकार नहीं किया। सत्ता में बैठे लोग पतित, भ्रष्ट हो गए। सज्जनों के उपदेश जब उनके कानों के ऊपर से जाने लगे तो पहले उनके पूरे कुल का, देश का नाश होता है और फिर वे पदभ्रष्ट होते हैं और दुनिया में उनकी कीर्ति घट जाती है। भाजपा और मोदी के साथ भी यही हुआ। ऐसा लगा था कि लोकसभा परिणाम से मोदी और उनके लोगों के पैर जमीन पर आ जाएंगे, लेकिन बहुमत न होने के बावजूद मोदी नीतिश कुमार, चंद्राबाबू, चिराग पासवान की बैसाखी के सहारे सरकार बना रहे हैं। नीतिश कुमार की पार्टी ‘जेडीयू’ को १२ सीटें और चंद्राबाबू की तेलुगु देशम को १६ सीटें मिली हैं। ऐसे में मोदी इन दोनों की शर्तें मानकर सरकार तो बना लेंगे, लेकिन चला पाएंगे क्या? ५ जून को मैं दिल्ली में था। मोदी द्वारा बुलाई गई बैठक में नीतिश और चंद्रा ये दो बाबू उपस्थित थे। क्या इन दोनों बाबुओं को मोदी का समर्थन करने के बदले में जो चाहिए वो दिया जाएगा? चंद्राबाबू को लोकसभा अध्यक्ष पद, गडकरी के पास मौजूद निर्माण, सड़क निर्माण और ऊर्जा मंत्रालय चाहिए, जबकि नीतिश कुमार को गृह, रक्षा और परिवहन विभाग चाहिए। इसके अलावा, रेलवे विभाग भी बिहार के पास हो और वो चिराग पासवान की पार्टी के पास रहे, यह नीतिश कुमार की इच्छा है। मोदी और शाह के प्राण ही निकाल लेने का यह प्रकार है। इसके अलावा अन्य छोटी पार्टियों की जरूरतों को भी पूरा करना होगा। इन सभी लेन-देन की बड़ी कीमत कल देश को चुकानी पड़ेगी। मोदी की सत्ता को बरकरार रखने के लिए देश को यह बोझ उठाना पड़ेगा ये मान लें तो इसे मोदी और भाजपा की राजनीति से ‘नैतिकता’ शब्द का पतन हो गया है, ऐसा ही कहना होगा। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ जो तीन प्रमुख किरदार हैं, उनमें से एक चिराग पासवान हैं। उनके पांच सांसद बिहार से चुने गए हैं। राम विलास पासवान के वे चिरंजीव हैं। राम विलास पासवान कई वर्ष एनडीए के साथ रहे। उनकी असामयिक मृत्यु हो गई। पिता के अंतिम संस्कार के बाद जब चिराग दिल्ली में जनपथ स्थित अपने आवास पर पहुंचे तो हैरान रह गए। सीपीडब्ल्यूडी विभाग ने निर्दयता से पासवान के बंगले से सारा सामान निकालकर बाहर फेंक दिया था। इसमें रामविलास की प्रतिमा टूट-फूट गई। चिराग ने बंगला कुछ दिन और उनके पास रहे, इसके लिए भाजपा के कई मंत्रियों को फोन किया, जिनमें नड्‌डा भी थे, लेकिन किसी ने उनका फोन तक नहीं उठाया। उसी चिराग पासवान की लोकजन शक्ति पार्टी को मोदी-शाह ने तोड़ दिया और उनके चाचा को सौंप दिया। चिराग की पार्टी, चिह्न सब कुछ छीन लिया। वही पासवान आज दिल्ली में मोदी सरकार को दोबारा स्थापित करने के लिए बजरंग बली की भूमिका निभा रहे हैं। नीतिश कुमार के बारे में बात न ही करें तो बेहतर है। उनका राजनीतिक चरित्र जगजाहिर है। चंद्राबाबू नायडू के लिए ‘एनडीए’ के ​​दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं, ऐसी हुंकार अमित शाह ने आंध्र में जाकर भरी थी। अमित शाह ने नायडू को अपनी बात न निभानेवाला धोखेबाज सज्जन बताया था, वहीं २०१९ में नायडू ने मोदी को ‘लोकतंत्र का हत्यारा’ कहा था। मोदी योजनाबद्ध तरीके से देश की संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट कर रहे हैं। ऐसे में भारतीय लोकतंत्र्ा खतरे में है, ऐसा भय श्री. नायडू ने व्यक्त किया था। नायडू ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि मोदी की तानाशाही से सीबीआई, रिजर्व बैंक और संवैधानिक संस्थाएं, चुनाव आयोग भी नहीं बच पाए हैं। उनका यह आरोप सनसनीखेज था कि मोदी-शाह का चुनाव आयोग ईवीएम मशीनों में धोखाधड़ी कर चुनाव जीत रहा है। अब वही चंद्राबाबू मोदी-शाह की सरकार बनाने की पहल कर रहे हैं। दिल्ली में ऐसी घटनाएं हो रही हैं कि लोकतंत्र को अपनी आंखें हमेशा के लिए बंद कर लेनी चाहिए।
अंदाजा चूक गया
इंडिया गठबंधन को २३४ सीटें मिलीं। सब मिलकर भी १२५ सीटें नहीं जीत पाएंगे, ऐसी भाषा मोदी बोलते थे। उसी इंडिया ने मोदी के बहुमत के पंख ही काट दिए और उन्हें जमीन पर ला दिया। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की वजह से मोदी का स्वप्न भंग हो गया। अखिलेश यादव ने श्रीराम की भूमि पर ही मोदी को रोक दिया। ८० में से ४२ सीटें अखिलेश और राहुल के गठबंधन ने जीत ली। पैâजाबाद यानी अयोध्या और रामभक्तों की आस्था का स्थान ‘चित्रकूट’ दोनों जगहों पर मोदी-भाजपा को जनता ने हरा दिया। मोदी खुद को काशी का नरेश मानते हैं। उसी काशी में मतदाताओं ने मोदी को नैतिक रूप से हरा दिया। पांच लाख वोटों का बहुमत बमुश्किल डेढ़ लाख पर आ गया। यह हार नहीं तो क्या है? देवत्व का ढोंग करने वालों और लोगों को भोंदू बनाने वालों का खेल इस वजह से वाराणसी में ही खत्म हो गया। पिछले दस वर्षों में राम का व्यापार हुआ। इसे राम की नगरी में स्वयं श्रीराम ने बंद करा दिया। मोदी के समय में वाराणसी गुजरात बन गया। यहां के व्यापार और उद्योग की सारी डोरें गुजराती व्यापारियों के पास चली गईं। सड़कों, होटलों के ठेके केवल गुजरातियों के पास बाकायदा गए। वाराणसी के मतदाताओं ने इस भोंदूगीरी का बदला ले लिया। मोदी का राजनीतिक अवतार इस वजह से खत्म हो चुका है। उनके झूठ बोलने, झूठा रोने, झूठा मुस्कुराने इन सबसे जनता तंग आ गई और लोकसभा चुनाव में भाजपा के पैरों तले मौजूद बहुमत के कालीन को ही खींच लिया, यह सच है।
मंत्रियों की हार
मोदी सरकार के १७ मंत्री बुरी तरह हार गए, जिनमें स्मृति ईरानी भी हैं। अमेठी में राहुल गांधी के ‘पीए’ के. एल. शर्मा ने उन्हें हराया। महाराष्ट्र में तीन मंत्री रावसाहेब दानवे, भारती पवार और कपिल पाटील को जनता ने पटक दिया। मुंबई में भारतीय जनता पार्टी ने उज्ज्वल निकम को मैदान में उतारा और कांग्रेस की वर्षा गायकवाड़ ने उन्हें हरा दिया। स्वयं प्रकाश आंबेडकर अकोला में हार गए। जिन नेताओं व उनकी पार्टियों ने अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी को मदद करना चाहा, उन्हें इस चुनाव में जनता ने बाहर फेंक दिया। उत्तर प्रदेश में मायावती की राजनीति ही खत्म हो गई है, ऐसा परिणाम लोगों ने दिया। जहां मोदी-शाह को ही लोगों ने झटक दिया तो दूसरों का क्या? महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी ने ३० सीटें जीतकर देवेंद्र फडणवीस के ‘मैं फिर लौटूंगा’ का नाटक बंद कर दिया। अजीत पवार से लेकर एकनाथ शिंदे तक और मोदी-शाह से लेकर चुनाव आयोग तक सभी को इस नतीजे से सबक लेना चाहिए। मोदी दोबारा शपथ लेंगे, लेकिन उन्हें बैसाखी के सहारे राष्ट्रपति भवन तक चलना होगा। क्या इस नई संरचना में अमित शाह के पास गृह विभाग होगा? इसी गृह विभाग के दुरुपयोग से नरेंद्र मोदी को नुकसान हुआ और वे लोगों की नजरों में खलनायक बन गए। ऐसी तस्वीर है कि भविष्य में पार्टी खुद अमित शाह के खिलाफ आवाज उठाएगी। बहुमत चले जाने से लोगों का डर खत्म हो गया है। बहुमत खो चुकी भाजपा अब मोदी को बर्दाश्त न करे, ऐसी आवाज महाराष्ट्र में ही उठने की संभावना ज्यादा है।
अगर ऐसा हुआ तो महाभारत का पात्र पुनर्जीवित हो जाएगा!

अन्य समाचार