मुख्यपृष्ठस्तंभसत् वाणी : सृष्टि की उत्पत्ति कैसे और क्यों हुई

सत् वाणी : सृष्टि की उत्पत्ति कैसे और क्यों हुई

जब कुछ भी नहीं था और केवल ज्योतिर्बिंदु परमात्मा शिव और ज्योतिर्बिंदु ॐ माता शक्ति ही थे। तब एक बार इन दोनों का भोग हुआ और माता को असंख्य ज्योतिर्बिंदु आत्माएं उत्पन्न हो गई। ये सारी आत्माएं तीन रूपों में ही हुई। (नर, नारी और अर्धनारी) ये सारी आत्माएं भोग से वंचित रहीं इसलिए परमात्मा शिव ने ॐ माता शक्ति को आदेश दिया कि वो एक भोगी सृष्टि का निर्माण करें। जिस सृष्टि में यह सारी आत्माएं सभी प्रकार के भोग कर पाएं। सृष्टि की रचना के लिए माता ने परमात्मा से तत्वों की मांग की फिर ज्योतिर्बिंदु परमात्मा शिव से सर्वप्रथम आकाश उत्पन्न हुआ। आकाश से वायु का निर्माण और इन तीनों तत्वों से फिर अग्नि उत्पन्न हुई। जिसके पश्चात जल और सबसे आखिर में पृथ्वी उत्पन्न हुई। इन पांच तत्वों की उत्पत्ति के पश्चात ॐ माता ने जीवों को उत्पन्न करना शुरू किया और चार प्रकार के जीव (अडंज, पिंडज, जलंज, श्वेतज) ८४ लाख योनियों में उत्पन्न किया परंतु ज्योतिर्बिंदु परमात्मा को कोई भी जीव पसंद आया ही नहीं। तदपश्चात ॐ माता ने परमात्मा से आग्रह किया कि इस समस्या का निदान कैसे निकले। तब फिर परमात्मा शिव ने ॐ माता को देव स्वरूप ब्रह्मा जी बनाने को कहा और यही हुआ जब ॐ माता शक्ति ने उस शरीर में प्राण डाले और भोग करने को कहा ताकि सृष्टि आगे बढ़े तो ब्रह्मा जी ने मना किया क्योंकि उनके शरीर में केवल मन की उपस्थिति ही थी और प्रबल मन की समझ के अनुसार, माता के साथ भोग असंभव है तो ॐ माता ने उनके प्राण हर लिए तत्पश्चात परमात्मा शिव ने ॐ माता को बताया कि दूसरा शरीर उत्पन्न करें, जिसमें बुद्धि भी हो और ॐ माता शक्ति ने विष्णु जी को उत्पन्न किया जब ॐ माता ने उनसे भोग करने को कहा तो विष्णु जी मन की समझ और बुद्धि की सोच इन दोनों में विचलित हो गए और उत्तर देने में असमर्थ रहे। जब ॐ माता ने बहुत इंतजार किया, लेकिन विष्णु जी से उत्तर न मिला तो ॐ माता ने उनके भी प्राण हर लिए। ॐ माता ने शिव जी से आग्रह किया कि उनके बस की बात नहीं है और वह थक गई। अब जीवों की रचना करते-करते शिवजी ने उनको बोला कि एक महेश (असुर) रूपी देह का निर्माण करें और पूर्ण असुरी भावना से उसका निर्माण होना चाहिए और ॐ माता ने वो कर दिया। शिव जी ने उस देह में आत्मा और प्राण डालने का आग्रह किया तो ॐ माता ने मना कर दिया, क्योंकि उन्होंने बोला जितनी भी ज्योतिर्बिंदु जीव आत्माएं हैं वह उनके पुत्र व पुत्री ही हैं और ॐ माता इनमें से किसी को भी एक असुरी शरीर में नहीं भेजेंगी। ॐ माता शक्ति ने परमपिता शिवजी से आग्रह किया कि वो ही इस शरीर में प्रवेश करें और अपनी दिव्य शक्तियों से उस महेश रूपी देह को शिव का नाम प्रदान करें और वही हुआ। जिससे इस सृष्टि चक्र का प्रारंभ हुआ। ॐ माता शक्ति के अनुग्रह पर परमात्मा शिव ने अपने अंशों को वेद प्रदान किए, जिससे सृष्टि का कल्याण पूर्ण रूप से संभव है। इस प्रकार परमात्मा शिव और ॐ माता शक्ति ने इस सृष्टि का निर्माण किया जो एक बहुत बड़े विशाल चक्र में चल रही है और जो ज्योतिर्बिंदु आत्माओं से ही बनी हुई स्थापित है। अगर आत्मा इस चक्र में एक बार प्रवेश कर लेती है तो बिना शिव से धारण संकल्प को पूर्ण किए, इस विशाल चक्र से मोक्ष को प्राप्त कर ही नहीं सकती और जन्मों के चक्रव्यूह में घूमती ही रहती है, जिससे यह विशाल चक्र चलता ही रहता है।
पं. राजकुमार शर्मा (शांडिल्य)
संपर्क – ७७३८७०७९२३

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