पं. राजकुमार शर्मा (शांडिल्य)
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इस ब्रह्मांड में प्रत्येक जीव के पास दो प्रकार के शरीर होते हैं। पहला स्थूल शरीर और दूसरा सूक्ष्म शरीर। सूक्ष्म शरीर के महत्वपूर्ण अंग हैं कुंडलिनी शक्ति, मन और आत्मा। ७२,००० नाड़ियां और उन नाड़ियों में भ्रमण करती १० प्रकार की वायुएं और इन नाड़ियों से जुड़े हुए ऊर्जा चक्र और ध्वनि चक्र। इस सृष्टि में जीव चार प्रकार से उत्पन्न होता है श्वेतज, जलज, अंडज और पिंडज। सभी प्रकार के जीवों में यह सूक्ष्म शरीर मौजूद होता है। मानव शरीर पिंडज के रूप में उत्पन्न होता है और उसके शरीर में सात ऊर्जा चक्र होते हैं। मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्रार धारा चक्र। इन ऊर्जा चक्रों से ध्वनि चक्र जुड़े हुए स्थापित हैं। एक ध्वनि चक्र से तकरीबन १,२०० से १,३०० नाड़ियां जुड़कर शरीर के भीतरी अंगों में फैली हुई स्थापित हैं। कुंडली शक्ति आत्मा और मन को लेकर स्त्री के गर्भ में प्रवेश करती है। कुंडलिनी शक्ति जो ज्ञान की देवी है, आत्मा को ज्ञान प्रदान करती है और आत्मा एक मन की रचना शरीर के रूप में कर देती है। मन की १० इंद्रियां होती हैं, जिसमें पांच कर्म इंद्रियां और पांच ज्ञानेंद्रिय।
ज्ञान इंद्रियों द्वारा मन ज्ञान प्राप्त करता है और कर्म इंद्रियों द्वारा काम संपन्न करता है। शरीर के भीतर से मन ही प्रधान माना गया है। मानव शरीर में चंचलता मन की नहीं, बल्कि आत्मा से उत्पन्न होने वाली भावनाओं की होती है। मन तो इस ब्रह्मांड की वह असीम शक्ति है, जिससे प्राणी जीव कर्म संपन्न करता है और आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सर्वप्रथम आत्मा मन के उल्टे भाग को इडा नाड़ी से जोड़ती है और सीधे भाग को पिंगला नाडी से जोड़ती है व बीच के भाग को सुषमना नाड़ी से जोड़ती है। मन को सामने के भाग को ब्रह्मना नाड़ी से जोड़ा जाता है और मन के ऊपरी भाग को बुद्धि से जोड़ा जाता है। सर्वप्रथम आजा चक्र का निर्माण होता है तत्पश्चात पूर्ण सूक्ष्म शरीर से जुड़ा हुआ कच्चा ढांचा ३ माह में तैयार हो जाता है। मानव शरीर में ध्वनि की तरंग चक्र से उत्पन्न होती है और शरीर के सूक्ष्म शरीर में विराजमान इन सभी को पूर्ण रूप से घुमाना बहुत जरूरी है। अगर मानव को एक पूर्ण रूप से निरोगी जीवन व्यतीत करना है तो ४० साल के पश्चात शरीर की नाड़ियां सिकुड़ने लगती हैं और भीतरी अंगों में ऊर्जा का प्रवाह बंद होने लगता है, जिसकी वजह से अंग में व्याधि उत्पन्न होती है और शरीर रोग को धारण कर लेता है। मानव आधुनिक विज्ञान द्वारा स्थूल शरीर को तो पढ़ पाया, जिसकी मदद से वह केवल आराम ही प्रदान कर पाया, इलाज करने में असमर्थ है क्योंकि बीमारी नाड़ियां और ऊर्जा संचार प्रणाली में होती हैं जो सूक्ष्म शरीर का भाग होता है और मानव इलाज करता है स्थूल शरीर का जिससे उसे आराम तो मिलता है, परंतु इलाज नहीं मिल पाता। वैदिक संस्कृत भाषा के उच्चारण से ही शरीर के ध्वनि चक्र पूर्ण रूप से घूमते हैं। पुरुष सूक्त के वैदिक मंत्रों के अध्ययन, मंथन और चिंतन से कोई भी मानव शरीर आयु भर निरोगी जीवन व्यतीत करता है। प्रत्यक्ष समय में पृथ्वी पर सभी भाषाओं में मानव कटी हुई ध्वनियां बोलता है, जिसकी वजह से शरीर का चक्र पूर्ण रूप से घूमने में असमर्थ है। निरोगी जीवन व्यतीत करने हेतु मानव अपनी ऊर्जा संचार प्रणाली को उत्तम बनाता है।