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संत मुरारी बापू के सूतक काल मामले में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरा नंद जी भी बोले …कहा, मुरारी बापू बताएं किस शास्त्र में वर्णित है कि मरने पर सूतक नहीं

उमेश गुप्ता/वाराणसी

प्रख्यात कथावाचक संत मुरारी बापू के सूतक काल मामले को लेकर काशी में विरोध का स्वर तेज होता जा रहा है, अभी तक तो काशी के सनातनियों के साथ साधु संत ही बोल रहे थे। लेखी इस प्रकरण में काशीवास कर रहे ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अवमुक्तेश्वरा नंद जी भी आगे आ गए हैं उन्होंने सोमवार को अपने वक्तव्य में कहा कि मुरारी बापू जी कह रहे हैं कि वे निम्बार्क सम्प्रदाय के साधु हैं जिसमें समाधि होने पर ही सब कुछ समाप्त हो जाता है। सूतक नहीं लगता तो इस पर हम यह जानना चाहते हैं कि निम्बार्क सम्प्रदाय के किस ग्रन्थ में गृहस्थ व्यक्ति को सूतक न होने का वर्णन है। निम्बार्क सम्प्रदाय एक वैदिक सम्प्रदाय है तो वह कैसे अनैतिक कृत्य की छूट किसी को दे सकता है? राजा, ब्रह्मचारी और यति को सूतक नहीं लगता। इसके अतिरिक्त अन्य सभी के लिए सूतक हमारे हिन्दू धर्मशास्त्र में कहा गया है।

मुरारी बापू जी ने कथा में कहा कि हमारे पास भी शास्त्र हैं और खुलासा कर सकते हैं तो इस पर हम यह कहना चाहते है कि वे खुलासा करें कि जो उन्होंने कहा है उस वक्तव्य की पुष्टि की शास्त्र वाक्य से होती है।

सूतक काल में मुरारी बापू के मानस सिन्दूर कथा कहने पर कहा कि मुरारी बापू जी की धर्मपत्नी आजीवन उनके लिए सिन्दूर लगाती रही पर उसके मृत्यु हो जाने पर दस दिन सूतक का पालन नहीं करने वाले क्या सिंदूर का मान रख रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यह मात्र एक व्यक्ति का प्रश्न नहीं है। जब कोई सामान्य व्यक्ति ऐसा करे तो उसकी उपेक्षा की जा सकती है पर कोई प्रसिद्ध व्यक्ति जब शास्त्र विरुद्ध कृत्य करता है तो लोग अनुकरण करने लगते हैं। शास्त्र विरुद्ध आचरण कदापि अनुकरणीय नहीं हो सकता।

उन्होंने आगे कहा कि जिन राम भगवान की बापू जी कथा कहते हैं उन राम भगवान के जीवन में धर्मशास्त्र ही प्रमुख था। धर्म शास्त्र का अर्थ ही है वेद और स्मृति। भगवान राम जी का एक भी आचरण वेद विरुद्ध नहीं रहा तो उनकी कथा करने वाले बापू जी कैसे वेद विरुद्ध आचरण कर सकते हैं?

उन्होंने कहा कि विश्वनाथ मन्दिर का प्रशासन धर्म की अवहेलना कर रहा है? यदि यहां की व्यवस्था किसी धार्मिक व्यक्ति के अधीन होती तो ऐसा अधर्म वहां पर नहीं हो सकता था। इसीलिए कहा जाता है कि धर्म का कार्य धार्मिकों की देख-रेख में होना चाहिए। जो लोग मन्दिर का दर्शन कर रहे हैं उनको भी दोष लग रहा है क्योंकि इस कृत्य के बाद मन्दिर का शुद्धिकरण नहीं हुआ है।

शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि मुरारी बापू जी से हमारा कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है परन्तु यह हमारा दायित्व है कि जहां भी शास्त्र का लोप हो रहा है उसके सुधार के लिए सचेत करें। क्योंकि जब शास्त्र की अवहेलना होती है तो व्यक्ति को न तो सिद्धि मिलती है और न सुख मिलता है।

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