उमेश गुप्ता / वाराणसी
ज्येष्ठ पूर्णिमा पर बुधवार को श्री मणिकर्णिका तीर्थ पर स्थित विष्णु चरण पादुका का पूजन
ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज के द्वारा विधि-विधान से किया गया।
शंकराचार्य ने पंचोपचार विधि से श्री विष्णु चरण पादुका का पूजन किया। 11 ब्राह्मणों द्वारा पूजन संपन्न कराया गया। शंकराचार्य ने भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि यह वही स्थान है, जहां भगवान विष्णु जी ने हजारों वर्ष खड़े रहकर तपस्या की। तपस्या के दौरान प्रभु ने अपने सुदर्शन चक्र से कुंड का निर्माण किया, जो तपस्या के वक्त उनके शरीर से निकले पसीने से भर गया। बाद में उसी कुंड में भगवान शिव और माता पार्वती ने स्नान किया। स्नान के समय ही माता पार्वती का मणि कुंडल कुंड में गिर गया, तभी से यह कुंड चक्र पुष्करिणी तीर्थ और जहां भगवान विष्णु ने तप किया, वह मणिकर्णिका तीर्थ हुआ। सनातन धर्म में यह स्थान काफी पवित्र माना जाता है और हमारे पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है।
शंकराचार्य ने इस बात पर दुख जताते हुए कहा कि आज मैं यहां आया तो यहां यह देखा कि घाट पर स्नानार्थियों और शवयात्रियों में कोई अंतर नहीं है। घाट पर स्नानार्थियों से अधिक शवयात्रियों की संख्या ज्यादा है। सरकार को चाहिए कि इस पौराणिक घाट पर स्नानार्थियों और शवयात्रियों के लिए अलग अलग व्यवस्था की जाय, जिससे किसी की भावना आहत न हो। चरण पादुका पूजन के बाद शंकराचार्य ने चक्र पुष्करिणी तीर्थ का भी आचमन और पूजन किया। तत्पश्चात उन्होंने रत्नेश्वर महादेव और श्री विष्णु चक्र का भी दर्शन किया।
काशी तीर्थ पुरोहित सभा के अध्यक्ष मनीष नन्दन मिश्र ने बताया कि मणिकर्णिका तीर्थ व विष्णु चरण पादुका के महात्म्य का वर्णन अनेक शास्त्र पुराणों में मिलता हैं। सृष्टि के पूर्व जब सर्वत्र अंधकार शून्य व्याप्त था, तब निर्गुण निराकार परमेश्वर को सगुण साकार होने की इच्छा हुई तो भगवान विष्णु का प्राकट्य हुआ।। सर्वत्र शून्यता देखकर उन्हें अपना उद्देश्य कारण जानने की जिज्ञासा हुई। तत्पश्चात दिव्य आकाशवाणी द्वारा तपस्या करने का आदेश हुआ। भगवान विष्णु ने तप के लिए स्थिर स्थान न होने के प्रश्न पर निर्गुण, निराकार, परमेश्वर सदाशिव ने स्वयं को पंचक्रोशात्मक अलौकिक काशी के रूप में प्रकट किया। वहां जिस स्थान पर भगवान विष्णु ने सहस्त्रों वर्षों तक खड़े होकर कठोर तप किया, वह स्थान श्री विष्णु चरण पादुका के नाम से विख्यात हुआ।
इस अवसर पर देवेंद्र नाथ शुक्ला, कन्हैया लाल त्रिपाठी, राजनाथ तिवारी, वीरेंद्र शुक्ला, कृपा शंकर द्विवेदी, विवेक शुक्ला, जयेंद्र नाथ दुबे, बंटी पाठक, आनंद कृष्ण शर्मा मौजूद रहे।