सामना संवाददाता / मुंबई
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद राज्य में स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं के चुनावों को लेकर गतिविधियां धीरे-धीरे शुरू हो गई हैं, लेकिन चुनाव के पहले शिंदे गुट की ओर से यह संकेत मिलने लगे हैं कि मनपाओं के चुनाव में भाजपा से वह सौदेबाजी करेगी। इस सौदेबाजी के कारण महायुति का गठबंधन टूटना तय माना जा रहा है। विशेषकर महायुति गठबंधन टूटने का मुख्य कारण ठाणे जिले की महानगरपालिकाएं और नगर परिषदें होंगी।
बता दें कि ठाणे मनपा का चुनाव अकेले लड़ने के लिए भाजपा पूरी तरह से तैयार है। ऐसा संकेत भाजपा विधायक संजय केलकर ने पहले ही दे दिया है। इसके अलावा वन मंत्री गणेश नाईक ने ठाणे में सार्वजनिक सभाएं लेकर स्पष्ट रूप से शिंदे गुट के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इसी बीच शिंदे गुट के सांसद नरेश म्हस्के ने गणेश नाईक पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बनाने के मकसद से बयान दिया कि अगर सहयोगी दल मनपा चुनाव में अलग होने का पैâसला लेते हैं तो शिंदे गुट नई मुंबई मनपा का चुनाव अकेले दम पर लड़ेगा। यह वैसे तो बीजेपी का ही गढ़ माना जाता है। वहीं दूसरी तरफ शिंदे गुट शर्तों के आधार बीजेपी के साथ गठबंधन भी करना चाहता है। शिंदे गुट के नेताओं का कहना है कि बीजेपी को केवल अपना फायदा नहीं ढूंढना चाहिए, बल्कि साथी दलों को फायदा पहुंचाने के बारे में भी विचार करना चाहिए। शिंदे गुट के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि शिंदे गुट मुंबई मनपा के चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन करने को तैयार है, लेकिन इसके बदले में उसे ठाणे और कल्याण-डोंबिवली के चुनाव में शिंदे गुट का साथ देना पड़ेगा। शिंदे गुट नेता ने कहा कि मुंबई निकाय चुनाव में बीजेपी को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष का सामना करना है। ऐसे में बीजेपी अकेले चुनाव नहीं लड़ना चाहती है। उसे पता है कि शिंदे गुट का साथ होने से उसके वोटर बढ़ जाएंगे। अगर शिंदे गुट अलग चुनाव लड़ता है तो उससे बीजेपी के ही वोट कटेंगे।
मुंबई में बीजेपी, कल्याण-डोंबिवली और ठाणे में शिंदे गुट चाहता है कब्जा
उन्होंने कहा कि कल्याण-डोंबिवली और ठाणे में शिंदे गुट को बीजेपी की जरूरत है। शिंदे गुट के नेता ने कहा कि मुंबई में बीजेपी अपना कब्जा करना चाहती है। वहीं शिंदे गुट यही काम कल्याण-डोंबिवली और ठाणे में करना चाहता है। अगर बीजेपी ठाणे और कल्याण-डोंबिवली में गठबंधन करने को तैयार नहीं होती है तो इसका नुकसान उसे मुंबई में उठाना पड़ेगा। शिंदे गुट की सौदेबाजी में भाजपा की आने की संभावना कम दिखाई दे रही है। इस स्थिति में महायुति टूटनी भी तय मानी जा रही है।