मुख्यपृष्ठधर्म विशेषमित्रता के ब्रांड एंबेसडर हैं श्रीकृष्ण

मित्रता के ब्रांड एंबेसडर हैं श्रीकृष्ण

शीतल अवस्थी

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में हर रिश्ते का मान रखा। चाहे वह भाई का रिश्ता हो, पति का, शिष्य का या मित्र का। हमारे पुराणों में प्रगाढ़ मित्रता के अनेक उदाहरण हैं, जिनमें कृष्ण-सुदामा, राम-सुग्रीव, दुर्योधन-कर्ण का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। हालांकि जब बात आदर्श मित्रों की करें जिनका उदाहरण देकर मित्रता का पाठ पढ़ाया जाता हो, तो सबसे पहले नाम कृष्ण-सुदामा का ही आता है। श्रीकृष्ण के जीवन में हमें ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलेंगे जहां उन्होंने अपने हर रिश्ते को एक नई ऊंचाई दी और उस रिश्ते का महत्व समझाया। अपने मित्र सुदामा द्वारा उपहार में दिए गए सुखे चावल खाकर श्रीकृष्ण ने अपने मित्र का मान रखा। श्रीकृष्ण राजा थे और सुदामा एक गरीब ब्राह्मण लेकिन फिर भी श्रीकृष्ण ने बात को अपनी मित्रता के आढ़े नहीं आने दिया। जब सुदामा श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका आए तो पहले तो द्वारपालों ने उन्हें महल में आने ही नहीं दिया। इस बात से दु:खी होकर सुदामा वापस जाने लगे। इस बात की जानकारी जब श्रीकृष्ण को लगी तो वे सुध-बुध खोकर नंगे पैर सुदामा को लिवाने पहुंचे। यह श्रीकृष्ण का मित्र के प्रति प्रेम ही था जिसने उन्हें नंगे पैर दौड़ने पर मजबूर कर दिया। कृष्ण और सुदामा संदीपन गुरु के आश्रम में सहपाठी थे। एक दिन डरते-डरते सुदामा की पत्नी ने उनसे कहा, ‘स्वामी! ब्राह्मणों के परम भक्त साक्षात लक्ष्मीपति श्रीकृष्णचंद्र आपके मित्र हैं। आप एक बार उनके पास जाएं। आप दरिद्रता के कारण अपार कष्ट पा रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण आपको अवश्य ही प्रचुर धन देंगे। संकोचवश ही सही, पर जब सुदामा मित्र श्रीकृष्ण के पास गए तो बिन मांगे ही भगवान ने सुदामा की झोली भर दी। इस घटना से अभिप्राय है कि जब कोई सच्चा मित्र आपसे मिलने आए तो घर के साथ अपने हृदय के द्वार भी उसके लिए खोल देना चाहिए। सुदामा जब श्रीकृष्ण से मिलने आ रहे थे जब उनकी पत्नी ने उपहार स्वरूप कुछ कच्चे चावल श्रीकृष्ण के लिए भेजे। श्रीकृष्ण ने यह चावल बड़े ही स्वाद से खाए। यह देखकर उनकी रानियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि इन चावलों में मित्रता की ऐसी मिठास है जो किसी भी मिठाई में नहीं हो सकती। इस तरह श्रीकृष्ण ने अपने मित्र का मान रखकर मित्रता के रिश्ते को सम्मानित किया। अब सुदामाजी साधारण गरीब ब्राह्मण नहीं रहे। उनके अनजान में ही भगवान ने उन्हें अतुल ऐश्वर्य का स्वामी बना दिया। घर वापस लौटने पर देव दुर्लभ सम्पत्ति सुदामा की प्रतीक्षा में तैयार मिली, किंतु सुदामाजी ऐश्वर्य पाकर भी अनासक्त मन से भगवान के भजन में लगे रहे। अंत में करुणा सिंधु के दीनसखा सुदामा ब्रह्मत्व को प्राप्त हुए। इसलिए श्रीकृष्ण मित्रता के ब्रांड एंबेसडर कहलाते हैं।

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