सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई मनपा हर साल केवल ६० फीसदी जल कर ही वसूल पाती है, जबकि शेष राशि अगले वर्षों में खिसकती रहती है। इस चुनौती से निपटने के लिए अब मनपा ने स्वयं सहायता समूहों (एसएचजीएस) की महिलाओं को टैक्स वसूली में शामिल करने की योजना बनाई है। ये महिलाएं घर-घर जाकर नागरिकों को बकाया टैक्स भरने के लिए प्रोत्साहित करेंगी। ऐसे में सवाल यह है कि टैक्स वसूली को लेकर मनपा जितनी मुस्तैदी से आगे बढ़ रही है, उतनी तत्परता मानसून से पहले नालों की सफाई, अस्पतालों की हालत सुधारने या सड़क के गड्ढों को भरने में क्यों नहीं दिखाती।
यह योजना पहली बार महामारी से पहले बनी थी और २०२३ में भी इसे पायलट रूप में लागू करने की कोशिश की गई थी, लेकिन सफलता नहीं मिली। ऐसे में सवाल यह है कि बार-बार असफल योजनाओं को फिर से लागू करना क्या जनता को भ्रमित करने जैसा नहीं है?
सड़कें टूटी, ऐप से उम्मीद अधूरी
गड्ढों की समस्याओं को हल करने के लिए मनपा ने ‘गड्ढा ऐप’ लॉन्च किया, जिससे नागरिक खराब सड़कों की जानकारी सीधे भेज सकें। लेकिन शिकायतें दर्ज होने के बावजूद समय पर कार्रवाई नहीं होती, जिससे जनता में नाराजगी बढ़ रही है।
झुग्गी पुनर्विकास योजनाएं अधर में
मुंबई की कई एसआरए (झुग्गी पुनर्विकास) योजनाएं सालों से लटकी हुई हैं। दूसरी ओर बिल्डरों को योजनाओं का फायदा मिल रहा है, लेकिन वास्तविक लाभार्थी झुग्गीवासी अब भी इंतजार कर रहे हैं। पारदर्शिता की कमी और निगरानी व्यवस्था की लाचारी पर सवाल उठ रहे हैं।
अस्पतालों की हालत चिंताजनक
मनपा अस्पतालों में स्टाफ की कमी, उपकरणों की खराब स्थिति और दवाओं की अनुपलब्धता जैसी शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं। हर साल करोड़ों के बजट के बावजूद आम नागरिक बुनियादी इलाज तक से वंचित हैं।
हर मानसून में डूबती मुंबई
हर साल मनपा दावा करती है कि नाले साफ हो चुके हैं और शहर मानसून के लिए तैयार है। लेकिन पहली ही बारिश में मुंबई जलमग्न हो जाती है। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद हालात जस के तस रहते हैं।