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भूस्खलन होते ही बजेगा सायरन!.. रायगड जिले के ३९२ गांव मानसून के दौरान अलर्ट पर

सामना संवाददाता / मुंबई

पहाड़ों को खोदा जा रहा है, असंख्य पेड़ों को काटा जा रहा है और बसेरा बनाया जा रहा है। इसके कारण रायगड जिले में भूस्खलन प्रभावित गांवों की संख्या १०३ से बढ़कर ३९२ हो गई है। इस खतरे को ध्यान में रखते हुए आपदा प्रबंधन तंत्र ने कार्ययोजना तैयार की है और भूस्खलन होते ही रायगड के ९० गांवों में सायरन अलर्ट बजेगा। इससे ग्रामीणों को समय रहते सुरक्षित स्थान पर पहुंचने में मदद मिलेगी, जिससे जनहानि को रोकने में मदद मिलेगी। साथ ही दुर्घटना की स्थिति में नागरिकों को तुरंत मदद मिल सके, इसके लिए महाड़ में २३ कर्मियों की एनडीआरएफ टीम तैनात की गई है।
भूस्खलन से खतरे वाले गांवों को पांच समूहों में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें वर्ग एक में १८ गांव हैं, यानी सबसे अधिक जोखिम वाले वर्ग दो में ७१, वर्ग तीन में कुल ३९२ गांव, वर्ग चार में १५९ और वर्ग पांच में ७३ गांव शामिल हैं। जिले में वर्ग एक और दो में खतरनाक गांवों में संचार के लिए एक सार्वजनिक घोषणा प्रणाली प्रदान की गई है। जिला नियंत्रण कक्ष से मौसम की चेतावनी एक साथ प्रसारित की जाएगी। साथ ही, आपदाओं के दौरान लाइव संदेश प्रसारित किए जाएंगे। खतरनाक स्थानों पर सायरन की व्यवस्था की गई है और इस प्रणाली के लिए इनवर्टर बैटरी भी प्रदान की गई हैं।
पूर्व की दुर्घटनाएं
२६ जुलाई २००५ को महाड तालुका के दासगांव, रोहन, जुई, कोंडिवते, ऊपरी तुडिल और पोलादपुर तालुका के कुडपन, कोंधवी, कोटवाल गांवों में भूस्खलन हुआ था। इसमें लगभग ३०० लोग मारे गए थे। २२ जून २०१५ को नेरल मोहाची वाडी में भूस्खलन हुआ था, जिसमें ५ लोग मारे गए थे। २१ और २२ जुलाई २०२१ को महाड के तलिये गांव में भूस्खलन हुआ, जिसमें ८४ लोगों की मौत हो गई। पोलादपुर तालुका के केवनाले में भूस्खलन में पांच लोगों की मौत हो गई। साखर सुतारवाड़ी में भूस्खलन में छह लोगों की जान चली गई। तीन अलग-अलग हादसों में कुल ९५ लोगों की मौत हो गई।

हाई रिस्क गांव में ‘पीए सिस्टम’ यानी पब्लिक अनाउंसमेंट सिस्टम लगाया गया है। जिला कंट्रोल रूम से २१ जगहों पर एक साथ मौसम की चेतावनी दी जाएगी। लाइव या रिकॉर्डेड संदेश दिए जा सकेंगे। इस जगह पर सायरन बजाया जाएगा।’
-सागर पाठक, आपदा प्रबंधन अधिकारी, रायगड

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