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कभी-कभी : जब अवॉर्ड लेने से किया इनकार

यू.एस. मिश्रा

पद, पैसा या इनाम पाना किसे अच्छा नहीं लगता। इस दुनिया में हर इंसान कुछ न कुछ पाना चाहता है। कोई धन पाना चाहता है, तो कोई शोहरत पाना चाहता है, तो कोई गाड़ी, बंगला, घर पाना चाहता है तो कोई कुछ और। लेकिन खोना… अगर खोने की बात करें तो इंसान कुछ भी खोना नहीं चाहता वो सिर्फ और सिर्फ पाना ही चाहता है। लेकिन बीते जमाने के मशहूर कलाकार, जिन्होंने फिल्मों में ज्यादातर निगेटिव किरदार निभाए हैं, को जब एक हिट फिल्म में निभाए गए अपने कॉन्सटेबल के किरदार के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड मिला तो उन्होंने भरी महफिल में अवॉर्ड लेने से मना कर दिया।
१२ फरवरी, १९२० को दिल्ली में जन्मे प्राण लाहौर में एक फोटोग्राफर के यहां बतौर असिस्टेंट काम किया करते थे। अक्सर रात में अपने दोस्तों के साथ प्राण लाहौर में एक पान की दुकान पर पान खाने जाते और बड़ी ही स्टाइल में पान चबाते हुए एक कोने में खड़े होकर सिगरेट पीते हुए धुएं के छल्ले उड़ाते। एक दिन वो इसी तरह पान चबाते हुए धुएं के छल्ले उड़ा रहे थे कि दुकान पर मौजूद मशहूर प्रोड्यूसर दलसुख पंचोली के यहां राइटर का काम करनेवाले वली मोहम्मद की नजर उन पर पड़ गई। उन्होंने प्राण से कहा, ‘मैं प्रोड्यूसर दलसुख पंचोली की आनेवाली फिल्म ‘यमला जट’ की कहानी लिख रहा हूं। फिल्म का एक किरदार ठीक तुम्हारी तरह पान चबाते हुए बात करता है। क्या तुम उस किरदार को निभाना चाहोगे?’ इस पर प्राण ने उनकी बात को तवज्जो न देते हुए उनके ऑफर को ठुकरा दिया। प्राण द्वारा ऑफर ठुकराने के बावजूद वली मोहम्मद ने उन्हें दूसरे दिन स्टूडियो आने का निमंत्रण देते हुए कहा कि तुम स्टूडियो जरूर आना। लेकिन अगले दिन प्राण वली मोहम्मद के बुलावे के बावजूद स्टूडियो नहीं गए, जबकि दलसुख पंचोली के साथ वली मोहम्मद स्टूडियो में प्राण के आने का इंतजार करते रहे। कुछ दिनों बाद एक थिएटर में फिल्म देखने के बाद फिल्म के इंटरवल में वली मोहम्मद की नजर प्राण पर पड़ी तो उन्होंने शिकायत भरे लहजे में प्राण को डांटते हुए कहा, ‘तुमने मेरा नाम खराब कर दिया। पंचोली साहब के साथ मैं स्टूडियो में बैठकर सारा दिन तुम्हारा इंतजार करता रहा।’ वली मोहम्मद की बात सुनकर अब प्राण ने उनसे कहा कि वे स्टूडियो चलने के लिए तैयार हैं। खैर, अगले दिन प्राण स्टूडियो पहुंचे तो दलसुख पंचोली ने उन्हें अपनी फिल्म के लिए साइन करना चाहा। अब प्राण ने दलसुख पंचोली से पूछा कि इस रोल के लिए उन्हें कितने पैसे मिलेंगे? वली मोहम्मद ने कहा, ‘पचास रुपए महीना।’ वली मोहम्मद की बात सुनकर प्राण बोले, ‘इससे कहीं अधिक रुपए तो मुझे फोटोग्राफर के यहां मिलते हैं।’ प्राण की बात सुनते ही गुस्से में लाल-पीले होते हुए दलसुख पंचोली बोले, ‘फिर तो तुम सारी उम्र दुकानदारी ही करते रहो। आज पचास मिल रहे हैं तो कल हजार भी मिलेंगे।’ दलसुख पंचोली की बातों से प्रभावित होकर फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखनेवाले प्राण ने फिल्मों में एक से बढ़कर एक रोल निभाए। ‘मधुमती’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘उपकार’, ‘शहीद’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘जंजीर’, ‘डॉन’, ‘बेईमान’ जैसी फिल्मों में अपनी अदाकारी का लोहा मनवाने वाले प्राण को १९७२ में फिल्म ‘बेईमान’ के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का ‘फिल्मफेयर’ अवॉर्ड मिला। फिल्म ‘बेईमान’ को उस साल सात वैâटेगरी में ‘फिल्मफेयर’ पुरस्कार मिला था। फिल्म ‘बेईमान’ के संगीत के लिए जहां शंकर-जयकिशन को ‘बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर’ का अवॉर्ड मिला, वहीं १९७२ में ही रिलीज हुई फिल्म ‘पाकीजा’ के बेहतरीन और मधुर संगीत को न जाने क्यों ‘फिल्मफेयर’ की ज्यूरी ने नजरअंदाज कर दिया। फिल्म ‘बेईमान’ के संगीत को ‘फिल्मफेयर’ अवॉर्ड मिलता देख प्राण ने महसूस किया कि फिल्म ‘पाकीजा’ का संगीत ‘बेईमान’ के संगीत से कहीं ज्यादा मधुर और कर्णप्रिय है, बल्कि उनके संगीत में जमीन-आसमान का फर्क है। इसलिए ‘फिल्मफेयर’ का ‘बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर’ अवॉर्ड शंकर-जयकिशन की बजाय ‘पाकीजा’ के संगीतकार गुलाम मोहम्मद को मिलना चाहिए था। खैर, ‘फिल्मफेयर अवॉर्ड्स’ के मंच से जब फिल्म ‘बेईमान’ में कॉन्सटेबल का किरदार निभानेवाले प्राण के नाम की घोषणा ‘बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर’ के रूप में हुई तो प्राण स्टेज पर पहुंच गए। लेकिन स्टेज पर पहुंचते ही उन्होंने भरी महफिल में अपना अवॉर्ड स्वीकार करने की बजाय फिल्म ‘पाकीजा’ के संगीत को ‘बेस्ट म्यूजिक’ का अवॉर्ड न दिए जाने के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए अपना ‘बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर’ का अवॉर्ड लेने से साफ इंकार कर दिया, जो अपने आप में बहुत बड़ी बात थी।

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