नौशाबा परवीन
भारत ने विरोध नहीं किया
अमृतसर के श्री गुरु रामदास इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर सूरज डूब रहा था। राजातल गांव के स्वर्ण सिंह एयरपोर्ट के बाहर लगे पुलिस बैरिकेड पर अपने २३ वर्षीय बेटे आकाशदीप सिंह की प्रतीक्षा कर रहे थे, जिसे १०३ अन्य भारतीयों के साथ ट्रंप प्रशासन ने वापस भेजा था। स्वर्ण सिंह पत्रकारों से बचने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन आखिरकार वह अपना दुखड़ा सुनाने के लिए तैयार हो गए, बोले- ‘मेरा बेटा सात माह पहले वर्क परमिट पर दुबई गया था। उसका छोटा कजिन जो हमारे साथ ही रह रहा था, आईईएलटीएस क्लियर करके कनाडा चला गया। कक्षा १२ के बाद मेरा बेटा भी स्टडी परमिट पर उसके पीछे-पीछे जाना चाहता था, लेकिन आईईएलटीएस क्लियर न कर सका। उसे दुबई भेजने के लिए हमने ४ लाख रुपए खर्च किए। वह वहां ट्रक ड्राइवर का काम करके ५०,००० रुपए प्रति माह कमा रहा था। दुबई में ही उसने एक एजेंट से संपर्क करके अमेरिका जाने की योजना बनाई। यह डील ५५ लाख रुपए में तय हुई और हम यह पैसा भेजने लगे। मैंने अपनी २.५ एकड़ जमीन का अधिकतर हिस्सा बेच दिया, जो हमारी आय का एकमात्र स्रोत थी। मैं तो चाहता था कि वह दुबई में ही रहे, लेकिन बच्चों की जिद के आगे आजकल मां-बाप की चलती कहां है। वह दुबई से १४ दिन पहले सीधा अमेरिका चला गया। आर्थिक नुकसान के बावजूद हमें इसी बात का संतोष है कि वह सुरक्षित घर लौट आया है। अब मैं उसे विदेश भेजने के बारे में कभी नहीं सोचूंगा।’
अमेरिका का सैन्य सी-१७ ग्लोबमास्टर एयरक्राफ्ट सैन एंटोनियो, टेक्सास से उड़ने के बाद ५ फरवरी २०२५ की दोपहर को अमृतसर, पंजाब में उतरा। इसमें १०४ भारतीय थे, जो अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे थे। इनमें २५ महिलाएं थीं और ४-१७ आयु वर्ग के १३ नाबालिग (६ लड़कियां व ७ लड़के) भी। महाराष्ट्र के ३ पुरुषों (३५) को छोड़कर जिन अन्य राज्यों (गुजरात ३३, हरियाणा ३३, पंजाब ३०, उत्तर प्रदेश ३ व चंडीगढ़ २) के व्यक्तियों को वापस भेजा गया है, उनकी औसत आयु २६ साल है। कोलंबिया व मैक्सिको की तरह भारत ने इस बात का विरोध नहीं किया है कि उसके नागरिकों को वापस भेजने के लिए सैन्य हवाई जहाज का प्रयोग क्यों किया गया। लेकिन इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है, जब आगे आने वाले महीनों में दर्जनों ऐसी फ्लाइट्स अपने देश में लैंड करने वाली हों। अमेरिका ने १.५ मिलियन विदेशियों की सूची तैयार की हुई है, जिन्हें उसे वापस भेजना है, जिनमें १८,००० भारतीय बताए जा रहे हैं। यह ७,२५,००० भारतीयों का बहुत मामूली प्रतिशत है जो डंकी रूट लेने की वजह से अमेरिका में बिना कागजात के यानी अवैध रूप से रह रहा है। इससे भी अधिक भारतीय अवैध रूप से कनाडा, यूरोप व पश्चिम एशिया में रह रहे हैं और कुछ अब रूस-यूक्रेन फ्रंटलाइन पर भी हैं।
वॉशिंगटन का संदेश!
बहरहाल, इन भारतीयों को अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरते हुए देखकर यह प्रश्न प्रासंगिक हो गया कि अधिक शर्मनाक क्या है- सैन्य हवाई जहाज से हाथों व पैरों में बेड़ियां बांधकर यानी पूरी तरह से बेइज्जत व बेआबरू करके अवैध प्रवासियों को वापस भेजना या यह कि इतने सारे हताश भारतीय अपने वतन में अपने सपने साकार न कर सके और डंकी रूट अपनाने के लिए मजबूर हुए? अवैध अप्रवासियों को अमेरिका ने पहले भी वापस भेजा है, लेकिन यह पहला अवसर है जब इस काम के लिए सैन्य हवाई जहाज का इस्तेमाल किया गया और उनके हाथों व पैरों में शातिर मुजरिमों की तरह बेड़ियां डाली गर्इं। क्या ऐसा करके वॉशिंगटन नई दिल्ली को कोई संदेश देना चाह रहा है? सी-१७ के प्रयोग पर अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता का कहना है कि अवैध प्रवासियों को हटाने के लिए अमेरिकी सेना नये ट्रंप प्रशासन के प्रयासों में तेजी लाने के लिए सहयोग कर रही है। गौरतलब है कि जब अक्टूबर २०२४ में अवैध भारतीय प्रवासियों को वापस भेजा गया था, तो जो बाइडेन प्रशासन ने चार्टर फ्लाइट का इस्तेमाल किया था। अब सैन्य प्लेन से बेआबरू करके अवैध प्रवासियों को वापस भेजकर वॉशिंगटन शायद नई दिल्ली से यह कहना चाहता है कि अपने चार्टर प्लेन के जरिए अपने नागरिकों को सम्मान के साथ वापस बुला लो। अवैध प्रवासियों को वापस भेजने में अमेरिका का खर्च प्रति व्यक्ति ४,५०० डॉलर से भी अधिक आ रहा है। जाहिर है इतना ज्यादा खर्चा करके बिना कागज वाले सभी लोगों को वापस भेजना अमेरिका के लिए कठिन होगा और ट्रंप की यह मुहिम अधर में भी लटक सकती है।
अमेरिका में विभिन्न देशों के लगभग १ करोड़ अवैध प्रवासी होने का अनुमान है। इसलिए देर-सवेर अमेरिका या तो इन्हीं लोगों से अपना खर्चा निकालेगा या इनके मूल देशों पर खर्चा वहन करने का दबाव बनाएगा। जैसा कि ऊपर बताया गया है, यह पहला अवसर नहीं है, जब अमेरिका ने भारतीयों को डिपोर्ट किया है। पिछली अक्टूबर में १०० लोगों को वापस पंजाब भेजा गया था। बहुत खामोशी के साथ १ अक्टूबर २०२३ व ३० सितंबर २०२४ के बीच कुल १,१०० भारतीयों को वापस भेजा गया था। लेकिन ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को चुनावी मुद्दा बनाया और अपने नए कार्यकाल के पहले दो सप्ताह के दौरान इसे सुर्खियों में रखा है। इससे उन लगभग ५ मिलियन देशज भारतीयों को चोट पहुंचती है, जो अमेरिका में वैध रूप से रह रहे हैं और जिन्होंने अपने लिए अति सफल समूह की छवि बनाई हुई है। दो साल पहले, इनकी औसत हाउसहोल्ड आय (१,४५,००० डॉलर) उच्चतम थी। कॉलेज स्नातकों में भी इनका हिस्सा बहुत अधिक था। अब इनकी तुलना हिस्पैनिक जनसंख्या से कीजिये, जिसकी २०२३ में औसत आय इनसे आधी से भी कम यानी ६५,५४० डॉलर थी। इसलिए जब अमेरिका के सैन्य प्लेन एक ग्वाटेमाला के लिए और दूसरा भारत के लिए टेक-ऑफ करता है तो राष्ट्रीय छवि की कीमत पहली जैसी नहीं रह जाती है।
अब भारत क्या करें?
इसलिए अब भारत सरकार के लिए यह जरूरी है कि अब अपने नागरिकों को अवैध रूप से अमेरिका (व अन्य देश) जाने से रोके। हर साल, औसतन ९०,००० से अधिक भारतीय अमेरिका में अवैध रूप से प्रवेश करते हुए पकड़े जाते हैं। यह संख्या २०२२-२३ में तो बढ़कर ९६,९१७ हो गई थी। कभी-कभी इन प्रयासों का अंत त्रासदी में भी होता है, जैसे जनवरी २०२२ में एक गुजराती परिवार अमेरिका-कनाडा सीमा पर कड़कती सर्दी में जमकर मर गया था। लेकिन अब जो अमेरिका ने चाबुक चलाया है उससे और अधिक लोगों का निराशा में अंत होगा। भारत सरकार को चाहिए कि उन गिरोहों को टारगेट करे जो अवैध प्रवास का नेटवर्क चलाते हैं और साथ ही रोजगार के अवसर उत्पन्न करने पर फोकस करे, ताकि किसी नागरिक को अपना वतन छोड़कर वैध या अवैध तरीके से पलायन करने की आवश्यकता ही न पड़े। तभी भारतीयों की समझ में आएगा कि विदेश में डंकी रूट का खतरा उठाना और बेइज्जती कराना फायदे का सौदा नहीं है।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)