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बिना बर्फ की सर्दी से जनवरी में ही कश्मीर में बसंत का आगमन!

–सुरेश एस डुग्गर–
जम्मू। यह चौंकाने और हैरान करने वाली खबर हो सकती है कि कश्मीर में बसंत का आगमन हो गया है। बागवानी फसलों पर जो फूल आमतौर पर मार्च के अंत में आते थे वे अभी आ गए हैं। फल देने वाले पेड़ों पर जब फूल आते हैं तो उस समय को कश्मीर में बसंत का मौसम माना जाता है।

यह सब बिना बर्फ वाली सर्दी और मौसम की बेरूखी के कारण ही हुआ है। कश्मीर पिछले 50 दिनों से बर्फ की राह ताक रहा है। भयानक सर्दी के बीच बार-बार मौसम में आने वाला बदलाव सबकी चिंता का कारण बन चुका है। श्रीनगर में तो वर्ष 1902 के बाद पहली बार जनवरी में तापमान ने रिकाॅर्ड तोड़ा है। सर्दी का नहीं बल्कि गर्मी का भी।

सच में वर्ष 1902 में 23 जनवरी को चिल्ले कलां के दौरान अधिकतम तापमान 17.2 डिग्री गया था तो वर्ष 2018 में 21 जनवरी को यह 14.2 डिग्री था। वर्ष 2010 और वर्ष 1976 में भी यह सबको चौंका चुका है। इस बार 14 जनवरी को 15 डिग्री के तापमान ने कश्मीरियों को मजबूर किया कि वे नमाजे इस्ताशका अता करें। हालांकि उन्होंने अल्लाह से बर्फ देने की दुआ की, दुआ स्वीकार भी हुई पर बर्फ गिरी भी तो मामूली सी।

अब कश्मीरियों की चिंता बिना बारिश, बिना बर्फ के भयानक सर्दी के दौर से गुजरने वाली सर्दी नहीं बल्कि कश्मीर में बसंत के जल्द आगमन की है। सोपोर के एक बागवान रशीद अहमद डार के शब्दों में फलदार पेड़ों पर जल्दी फूल आने के बाद अब होने वाली बर्फबारी भारी तबाही मचाएगी क्योंकि फसलें तबाह हो जाएंगी।

दरअसल दिसंबर और जनवरी में अभी तक कश्मीर में बारिश नहीं हुई है। बर्फ भी नहीं गिरी और तापमान की आंख मिचौली नई चिंताएं पैदा करने लगी है। कई साल पहले मौसम के इस परिवर्तन की चेतावनियां कई स्टडी दे रही थीं। पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। ये स्टडी कहती थीं कि कश्मीर में तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है और धीरे-धीरे वर्षा रूठ रही है। हालांकि इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है जिस कारण 66 सालों में जेहलम दरिया दूसरी बार पूरी तरहसे सूख गया है।

हालांकि, वरिष्ठ वैज्ञानिक और शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चरल साइंसेज में प्लांट पैथोलाजी के सहायक प्रोफेसर डाॅ तारिक रसूल राथर कहते थे कि वर्तमान शुष्क मौसम का सेब के पेड़ों पर तत्काल प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है। उन लोगों पर दीर्घकालिक प्रभाव जिनके पास सिंचाई की सुविधा नहीं है।

उन्होंने कहा कि अगर हालात ऐसे ही रहे (सर्दियों में बारिश नहीं) तो सेब के पेड़ों के लिए अगले साल गुणवत्तापूर्ण उत्पाद पैदा करना मुश्किल होगा। डा राथर कहते थे कि उन्होंने पिछले 10 सालों में दो बार इस तरह की स्थिति देखी है। हालांकि वे कश्मीरियों को ढांढस बंधाते हुए कहते थे कि लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। पेड़ों को उस समय नमी की आवश्यकता होती है जब सेब की निष्क्रियता टूटती है और मुझे यकीन है कि पानी की उपलब्धता होगी, लेकिन अगर बारिश नहीं हुई तो यह चिंता का विषय होगा।

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