कलंक

तुम स्त्री जाति पर एक कलंक हो
तुम स्त्री के गौरव, प्रेम, त्याग पर प्रश्न चिह्न हो
पत्नियां तो पति के प्राण, यमराज से भी छीन लाती हैं
तुमने तो अपने पति के प्राण खुद ही हर लिए
पत्नियां तो पति की लंबी आयु के लिए करवाचौथ, तीज व्रत करती हैं
पति पर कोई आंच न आए,
उनकी ढाल बन उनके साथ चलती हैं
तुमने सात फेरे लिए, जन्म-जन्म के साथ का वादा किया
कैसे तुमने अपने पति की हत्या की साजिश रची
तेरी अंतरआत्मा ने तुझे रोका नहीं?
मौत का इशारा करते हुए तेरे हाथों ने तुझे टोका नहीं?
अरे! कलंकनी औरत, तुझे भी यही सजा मिलनी चाहिए
तुझपे भी वार कर उसी पहाड़ी से फेंक देना चाहिए!
पूर्ण हो जाएगा, तुम्हारा हनिमून !!
वंदना मौर्या, इंदौर

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