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भंडारण घोटाले का भंडाफोड़! … रु. २५/- किलो का गेहूं रु. २२.७५ में खरीदने की तैयारी

केंद्र सरकार किसानों से रु. २.२५ कम कीमत पर खरीदेगी गेहूं
बड़े व्यापारियों को महंगी खरीद से दूर रहने की सूचना

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
केंद्र की भाजपा सरकार के एक भंडारण घोटाले का भंडाफोड़ हुआ है। यह घोटाला अभी हुआ नहीं है बल्कि होनेवाला है। इसके तहत सरकार ने इस सीजन में बड़े व्यापारियों को गेहूं की खरीद से दूर रहने की सूचना दी है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार खुद इस बार ज्यादा गेहूं खरीदकर उसका भंडारण करनेवाली है। यहां तक तो मामला ठीक नजर आ रहा है पर असल पेंच यह है कि सरकार बाजार भाव से कम कीमत पर गेहूं खरीदने वाली है, जिससे किसानों को खासा नुकसान होगा।
बता दें कि खुले बाजार में इस समय गेहूं की कीमत प्रति किलो २५ रुपए है जबकि सरकारी कीमत २२.७५ रुपए है। ऐसे में किसानों को प्रति किलो २.२५ रुपए का नुकसान होनेवाला है।

सरकारी सूत्रों का कहना है कि व्यापारी यदि स्थानीय किसानों से नए सीजन के गेहूं की खरीदारी से दूर रहेंगे तो सरकारी एजेंसी एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम) को अपने घटते भंडार को बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में गेहूं खरीदने में मदद मिलेगी। बता दें कि चीन के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं उपभोक्ता और उत्पादक देश है। सरकार ने २०२२ में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था और वह २०२२ और २०२३ में शुष्क मौसम के कारण उत्पादन प्रभावित होने के बाद अब स्टॉक बढ़ाने और कीमतों में बढ़ोतरी करना चाहती है। गेहूं की बढ़ती कीमतों ने सरकार को स्थानीय आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए रिकॉर्ड मात्रा में बेचने के लिए मजबूर किया, जिससे दुनिया के सबसे बड़े खाद्य कल्याण कार्यक्रम के लिए जरूरी भंडार में कमी आई, जिसके तहत लगभग ८० करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दिया जाता है।
व्यापारियों और सरकारी सूत्रों के अनुसार, सरकार ने निजी व्यापारियों को थोक बाजारों से दूर रहने के लिए कहा है, जहां किसान आमतौर पर अपनी उपज एफसीआई या निजी व्यापारियों को बेचते हैं। सूत्रों ने बताया कि सरकार ने अनौपचारिक रूप से निजी व्यापारियों को कम से कम अप्रैल में गेहूं खरीदने से बचने के लिए कहा है। सरकार की तरफ से २००७ के बाद यह इस तरह का पहला गाइडेंस है। गौरतलब है कि मई के मध्य के बाद से गेहूं की खरीद कम होने लगती है।
वैश्विक व्यापार करने वाले मुंबई स्थित एक व्यापारी ने कहा, ‘प्रोसेसरों और छोटे व्यापारियों को छोड़कर, हर कोई सरकार के निर्देशों का पालन करेगा।’ भारत के अनाज बाजारों में सक्रिय व्यापारियों में कारगिल इंक, हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड, आईटीसी लिमिटेड, लुइस ड्रेफस कंपनी और औलम ग्रुप शामिल हैं। सूत्रों ने कहा एफसीआई की योजना ३० मिलियन टन गेहूं खरीदने की है, ऐसे में सरकार ने सबसे ज्यादा गेहूं उत्पादक राज्यों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि निजी व्यापारी इस साल कम से कम ३० मिलियन मीट्रिक टन गेहूं खरीदने की एफसीआई की योजना के रास्ते में न आएं। बता दें कि २०२३ में, एफसीआई ने स्थानीय किसानों से २६.२ मिलियन मीट्रिक टन गेहूं खरीदा था, जो उसके ३४.१५ मिलियन मीट्रिक टन के लक्ष्य से कम था। पिछले साल की कम खरीद के कारण, मार्च की शुरुआत में सरकारी गोदामों में गेहूं का भंडार गिरकर ९.७ मिलियन मीट्रिक टन हो गया, जो २०१७ के बाद से सबसे कम है।
गिरते भंडार के बावजूद, भारत सरकार ने गेहूं के आयात का विरोध किया क्योंकि विदेशी खरीद से कई किसान रूठ जाते हैं और इसका खामियाजा चुनावों में देखने को मिलता है। १९ अप्रैल से भारत में लोकसभा चुनाव शुरू होने जा रहा है। ऐसे में सरकार कोई भी ऐसा रिस्क नहीं लेना चाहेगी, जिससे उसकी साख पर असर पड़े। पिछले सप्ताह अमेरिका के कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का कम गेहूं भंडार सरकार को इस वर्ष २ मिलियन मीट्रिक टन अनाज आयात करने के लिए मजबूर कर सकता है। सूत्रों ने कहा कि एफसीआई का ध्यान सबसे ज्यादा उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश पर है, जिसने ऐतिहासिक रूप से एफसीआई की गेहूं खरीद में २ फीसदी से कम योगदान दिया है। राज्य सरकार ने रेलवे से अप्रैल में बड़े व्यापारियों को माल ढुलाई कारें उपलब्ध नहीं कराने के लिए कहा है। जिले के अधिकारियों को संबोधित किए गए एक सरकारी पत्र के मुताबिक, उत्तर प्रदेश ने स्थानीय अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि बड़े व्यापारियों को बड़ी मात्रा में गेहूं खरीदने का मौका न मिले।

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