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सनातन में ऐसी आस्था और विश्वास!..नेपाल से उल्टे पांव ५०० किमी महाकुंभ की यात्रा पर निकल पड़े सहधर्मिणी के साथ रूपनदास

विक्रम सिंह / सुलतानपुर

पड़ोसी देश नेपाल से सैकड़ों किलोमीटर की महाकुंभ तीर्थयात्रा पर प्रयागराज के लिए निकले इस ‘उल्टे पांव पदयात्री’ दंपति की अटूट आस्था और विश्वास के आगे नतमस्तक हो जाने को जी चाहता है!
लोककल्याण की भावना से लबरेज नेपाल के बांके जिला निवासी सनातनी गृहस्थ रूपनदास ने शारीरिक कष्ट एवं भौतिक समस्याओं की परवाह किए बगैर विश्वकल्याण के लिए हठयोगी की तरह निकल पड़े प्रयागराज के महाकुंभ की ओर करीब ५०० किमी की पदयात्रा पर..वह भी उल्टे पांव! पति के इस संकल्पपूर्ति के लिए सहधर्मिणी पतिरानी ने भी दिया उनका पूरा साथ। सिर और कांधे पर झोला और हाथों में सनातनी ध्वज थामे यह जोड़ा अपनी धुन में मगन कुशनगरी सुलतानपुर से प्रयागराज की ओर हाइवे पर लगी वाहनों की कतार के बीच से अपना रास्ता बनाता गंतव्य की ओर गुजरता नजर आया, जिसकी भी निगाहें पड़ीं वो ही इस आस्था के आगे हो गया श्रद्धावनत।
मूलतः नेपाल में बांके जिला अंतर्गत कोल्हनपुर नगर के लखनपुर मुहल्ला निवासी रूपनदास (५४) सहधर्मिणी पतिरानी (५२) तेरह दिन पूर्व घर के बगल स्थित हनुमान मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना के बाद बजरंगबली की प्रेरणा से १४४ वर्ष बाद लग रहे महाकुंभ में स्नान-ध्यान-दान के लिए पदयात्रा पर उल्टे पांव चलते हुए निकल पड़े। इस कठिन यात्रा में पतिरानी अपने पति का पूरा साथ निभा रही हैं। सबसे पहले इस दंपती ने नेपाल से गोरखपुर और फिर अयोध्या धाम पहुंचकर दर्शन-पूजन किया, फिर तेरहवें दिन निकल पड़े प्रयागराज की ओर। दोपहर में महाराज कुश की नगरी सुलतानपुर में उन्हें अखिल भारत विश्व हिंदू महासंघ के जिलाध्यक्ष कुंवर दिनकर प्रताप सिंह ने प्रयागराज मार्ग पर पयागीपुर चौराहे के पास देखा। जब तक वाहनों के काफिले को पार करते वे उन तक पहुंचते, तब तक उल्टे पांव लक्ष्य की ओर तेज कदम आगे बढ़ते ये दंपति और भी आगे बढ़ चुके थे, तब दिनकर अपने साथियों अंशू श्रीवास्तव व अरुण कुमार मिश्र के साथ प्रयागराज रोड पर उन्हे ढूंढ़ते हुए आगे निकले तो प्रतापगंज बाजार से पहले ये दंपति उन्हें रोककर कुछ खान-पान की व्यवस्था की, परंतु कुछ भी खाने-पीने से मना कर दिया इन तपस्वी यात्रियों ने। अति निवेदन के बाद केवल गन्ने का जूस और थोड़ा सा गुड़ लिया। रूपनदास ने कहा, “यह यात्रा जनकल्याण एवं सनातन धर्म पताका लहराती रहे, इसी के निमित्त है। पैदल उल्टे पांव चलकर नेपाल से प्रयागराज जा रहा हूं”।

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