कविता श्रीवास्तव
भारत के कश्मीर की सीमाओं से लगे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके में इन दिनों जबरदस्त विद्रोह के स्वर उठ रहे हैं। पाकिस्तान की बर्बरता, जुल्म और उसके अत्याचारों के खिलाफ पीओके की आवाम ने बागी स्वर अब ज्यादा तेज कर दिए हैं। वहां की आवाम ने पाकिस्तान की ओर बढ़ने की बजाए पीछे की तरफ यानी भारत में शामिल होने की इच्छा जताई है। पाकिस्तान इससे इतना परेशान है कि उसने वहां अनेक पाबंदियां लागू कर दी हैं। बीते कुछ महीनो में पीओके में पाकिस्तानी सेना के हस्तक्षेप और गोलियों का स्थानीय लोगों ने मुंहतोड़ जवाब दिया है और पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया है। पाक के झंडे उतार दिए हैं। उल्लेखनीय है कि १९४७ में भारत-पाक विभाजन के वक्त कश्मीर के हिस्से विवादों में रहे। कश्मीर का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान ने अपने कब्जे में ले लिया जिसे हम पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) कहते हैं। वह भारत के वर्तमान कश्मीर से कहीं ज्यादा विस्तृत है। उसमें अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य और दुनिया की सबसे खूबसूरत झीलें-वादियां हैं। पीओके शुरू से ही पाकिस्तान से अलग होना चाहता है। वहां के बड़े नेताओं ने भारत में शामिल होने की इच्छा भी कई बार खुले मंचों से जताई है। भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने भी अपने भाषणों में पीओके को भारत में शामिल करने की इच्छा जताई है। पीओके दो भागों में है मुजफ्फराबाद और गिलगित बालटिस्तान। यहां की आबादी में पश्तूनी पठानों की संख्या बहुत बड़ी है। बलूचिस्तान से लेकर यहां की वादियों में हरतरफ पाकिस्तान से आजादी की मांग लंबे समय से जारी है। पीओके ने अनेक बार भारत की ओर बढ़ने का इशारा किया है। वहां बागी स्वरों को मजबूत होता देख पाकिस्तान ने मुजफ्फराबाद में कमिश्नर बैठा दिया है। घबराहट के मारे प्रदर्शन पर रोक लगार्ई गई है। कई तरह से आंदोलन को कुचलने के प्रयत्न पाकिस्तान कर रहा है। लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ वहां विद्रोह के स्वर थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। वहां की आवाम पूरी एकजुटता के साथ पाकिस्तान को ललकारती दिख रही है। पहले केवल पीओके में नारा था कि दहशतगर्दी के पीछे वर्दी है। लेकिन अब यही नारा इस्लामाबाद में भी लगाया जाने लगा है। यानी सेना की दखलंंदाजी से पाक की जनता त्रस्त है। पाक में सत्ता पलटने और सत्ता पर कब्जा करने में सेना की दखलंदाजी हमेशा से रही है। लेकिन अब आवाम ने मीरपुर से लेकर कोटली तक तिरंगा लहराने की बात खुले तौर पर करनी शुरू कर दी है। पीओके में मजदूरी से लेकर छोटे-छोटे कल-कारखानों, दुकानों और बड़े-बड़े उद्योग-धंधों पर भी पंजाबी मुसलमानों का दबदबा है। पीओके में स्थानीय लोगों को रोजगार व अन्य सुविधाएं देने की शुरू से ही मांग की जा रही है। इन मांगों को पाकिस्तान ने हमेशा से दरकिनार कर रखा है। पीओके के नागरिकों को दोयम दर्जे का बना रखा है। उन्हें सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। उन पर बर्बरता हो रही है। ऐसे में किसी भी दिन पीओके भारत में शामिल हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।