मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का : चित्र बदलेगा?

तड़का : चित्र बदलेगा?

कविता श्रीवास्तव

महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन हो गया है। लगभग दो हफ्ते के नाटकीय घटनाक्रमों और तमाम सस्पेंस के बाद अंतत: देवेन्द्र फडणवीस फिर से मुख्यमंत्री बन गए हैं। अब भाजपा सत्ता के केंद्र में है। भाजपा का सत्ता में आना और भाजपा का ही मुख्यमंत्री बनना तो चुनावी परिणाम के बाद ही तय हो गया था। चुनावी नतीजों के बाद मीडिया ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के वक्त देवेंद्र फडणवीस की मुस्कुराहट भरी मुद्रा के साथ अब तक मुख्यमंत्री रहे एकनाथ शिंदे के निराश से दिख रहे चेहरे वाली फोटो खूब वायरल की। फिर एकाएक शिंदे के अपने गांव चले जाने की चर्चा हुई। खुसफुसाहट यही रही कि पुन: मुख्यमंत्री न बनाए जाने के सदमे से शिंदे बहुत निराश हैं और नाराज भी हैं। हालांकि पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने इससे इनकार किया। बुधवार को जब देवेंद्र फडणवीस को भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया तब उनके साथ प्रेस कॉन्प्रâेंस में अजीत पवार की चुटकी लेकर शिंदे कुछ खिलखिलाते हुए जरूर दिखे। खैर, सत्ता के नए समीकरण में नई सरकार के गठन के बाद वे अब राज्य के मुख्यमंत्री नहीं हैं। सत्ता के शीर्ष नेतृत्व का उनका दौर फिलहाल खत्म हुआ। यही हकीकत व्यक्त करता हुआ संजय राऊत का बयान भी गौरतलब है जिसमें उन्होंने कहा है कि अब शिंदे कभी मुख्यमंत्री नहीं बन सकते। इससे भी महत्वपूर्ण बात उन्होंने यह कही कि संभव है कि भाजपा उनके गुट में भी सेंध लगाकर कुछ लोगों को तोड़ ले। संजय राऊत की यह बात इसलिए दमदार है क्योंकि ऐसा करने का भाजपा का ताजा इतिहास रहा है। कई राज्यों में इसी आधार पर वह सरकार भी गिरा चुकी है। यदि शिंदे के गुट के विधायकों के अलग-अलग बयानों पर गौर किया जाए तो उनमें से अधिकांश सत्ता के लिए व्याकुल से दिखाई देते हैं। कई विधायकों ने बार-बार बयान देकर सत्ता के साथ बने रहेंगे का शिंदे से अग्राह किया। यही बात कहीं न कहीं उनकी नाराजगी को प्रमाणित करती है। अब नई सरकार बन चुकी है और उसका नेतृत्व अब भाजपा के हाथ में है। ऐसे में सत्ता की प्राथमिकताएं भी निश्चित तौर पर बदलेंगी। महाराष्ट्र में किसानों की समस्याएं हैं। युवा वर्ग को बेरोजगारी से मुक्ति चाहिए। महाराष्ट्र में उद्योग-धंधों, कल -कारखानों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। महंगाई को रोकना भी बहुत बड़ा मुद्दा है। इन सबके अलावा सामाजिक तालमेल बैठकर जातीय व धार्मिक संतुलन, आरक्षण व अन्य मुद्दों को संभालते हुए महाराष्ट्र को विकास की पटरी पर लाने की चुनौती है। नई राजनीतिक परिस्थितियों में अनपेक्षित तालमेल के कई समीकरण भी आगे बदलते दिखाई देंगे, इसमें कोई दो राय नहीं है। अभी महाराष्ट्र में मुंबई की महानगरपालिका सहित कई जगह स्थानीय निकायों के चुनाव भी होने हैं। ऐसे में पार्टियों में फूट डालने, दलबदल होने आदि की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। निश्चित ही आगामी दिनों में कई राजनीतिक चित्र बदलेंगे क्योंकि महाराष्ट्र के मतदाता भी चौंकाने वाले परिणाम देते हैं।

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