अमर झा / भायंदर
मीरा-भायंदर के सड़काें का बाल बेहाल हो गया है, शहर के कई मार्गों बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं मानसून की शुरूवाती दौर में सड़कों की ये स्थिति है तो आगे और बदतर हो जाएगी। जबकि मीरा-भायंदर महानगरपालिका करोड़ों रुपए का खर्च हर वर्ष सिर्फ सड़क के मरम्मत कार्य में करती है। चुकी काम का स्तर इतना घटिया होता है कि एक दो बारिश होते ही सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे हों जाते हैं। सड़क के गड्ढे मनपा के भ्रष्टाचार की पोल खोलते हैं।
डामर की जगह पत्थर, गड्ढे बने जानलेवा
शहर के आरसीसी सड़कों को छोड़ दें, तो बाकी अधिकांश डामर वाली सड़कों की स्थिति बेहद खराब है। भायंदर (पश्चिम) से लेकर भायंदर (पूर्व), मीरा रोड, काशीमिरा, घोड़बंदर और टोल नाके तक सड़कों पर गड्ढे ही गड्ढे हैं। पेचवर्क के नाम पर कई सड़कों पर केवल पत्थर बिछा दिए गए हैं। डामर का नामोनिशान तक नहीं है।
यातायात धीमा, दुर्घटनाओं का खतरा
ज्ञात हो कि मीरा-भायंदर शहर लगभग 79.41 वर्ग किलोमीटर के परिधि में फैला हुआ है। गड्ढों में भरे पानी की वजह से उनकी गहराई का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है। खासकर दोपहिया वाहन चालकों के लिए यह स्थिति बेहद खतरनाक हो गई है। रोज़ाना कई वाहन फिसलते हैं या गड्ढों में फंस जाते हैं।
घटिया निर्माण की खुली पोल
शहर के लोग मीरा-भायंदर महानगरपालिका के निर्माण विभाग पर उंगली उठा रहे हैं। हर साल करोड़ों खर्च करने के बाद भी सड़कें क्यों नहीं टिकतीं, यह बड़ा सवाल बन गया है। जानकारों का मानना है कि यदि डामर का प्रयोग सही ढंग से किया जाए और गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए, तो सड़कों की हालत इतनी जल्दी खराब नहीं होगी।
स्थानीय नागरिकों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। लोग मांग कर रहे हैं कि जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों की जवाबदेही तय की जाए। भ्रष्टाचार और लापरवाही की यह तस्वीर सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि नागरिक सुविधाओं के नाम पर किस तरह से जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा बर्बाद किया जा रहा है।