मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाऐसे रची गई थी जौनपुर श्रमजीवी एक्सप्रेस में धमाके की साजिश!

ऐसे रची गई थी जौनपुर श्रमजीवी एक्सप्रेस में धमाके की साजिश!

मुन्ना त्रिपाठी

२८ जुलाई २००५ को सिंगरामऊ रेलवे स्टेशन के हरिहरपुर रेलवे क्रासिंग के पास श्रमजीवी एक्सप्रेस की जनरल बोगी में विस्फोट हुआ था। विस्फोट कांड में १४ लोगों की मौत हुई थी, वहीं ६२ से अधिक यात्री घायल हुए थे। अब इस बम कांड के दो गुनहगारों को फांसी की सजा सुनाई गई है। आतंकी नफीकुल विश्वास हेलालुद्दीन को बुधवार को कोर्ट में पेश किया गया था। इसके पहले ओबैदुर्रहमान उर्फ आलमगीर को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। ये विस्फोट यूं ही कुछ दिनों या महीनों की प्लानिंग का रिजल्ट नहीं था। कहना गलत नहीं होगा कि इसकी नींव करीब साढ़े तीन दशक पहले ही बांग्लादेश में तैयार होने लगी थी।
सन १९८५ में बांग्लादेश का एक मदरसा। मदरसे में सभी बच्चे हाफिज के बात ध्यान से सुन रहे थे। `मदरसा की शुरुआत सफा नामक पहाड़ी पर जैद बिन अकरम के रिहाइश पर हुई थी, जहां पर रसूल अल्लाह पैगंबर मुहम्मद साहब पढ़ाते थे। हिजरा के बाद मदीना में अल-मस्जिद-ए-नवाबी मस्जिद के पूर्व की ओर सुफा का मदरसा बनाया गया।’ अचानक मदरसे में गहमागहमी बढ़ गई। पीर साहब आ गए थे। अब मदरसे की उस कमरे में पीर साहब की आवाज गूंज रही थी, `कश्मीर और अफगानिस्तान में हमारे भाइयों को मारा जा रहा है, उनका कत्लेआम होता है, औरतों से जबरदस्ती की जाती है। ऐसे-ऐसे जुल्म होते हैं कि शैतानों की रूह कांप जाए, कौम खतरे में है, इस्लाम खतरे में है। उन सब को बचाने के लिए जरूरत है जिहाद की। जिहाद के लिए तैयार हो? जिहाद में मारे जाओगे, कौम के नाम पर शहीद होगे तो जन्नत मिलेगी। तैयार रहो किसी भी समय जरूरत पड़ सकती है।’
पीर साहब जब भी मदरसे में आते ऊंची आवाज में खूब बताते की किस तरह मुसलमानों पर जुल्म किए जा रहे हैं और काफिरों से किस तरह बदला लेना है। उनकी तकरीर सुनने के बाद मदरसे में बैठे लड़कों का खून खौल जाता। जब वे कहते जिहाद के लिए तैयार हो तो सब एक साथ जोश में हाथ उठा कर गवाही देते… तैयार हैं।

२००५ बांग्लादेश का राजशाही इलाका। मदरसे के कुछ बच्चे अब जवान हो गए थे। पीर साहब आज भी उनके सामने बैठे थे, उनमें दो सगे भाई थे अनीसुल और मुहिबुल।
जब से उन्हें पता चला था कि पीर साहब हूजी के कमांडर थे और पाक की तंजीम जैश-ए-मोहम्मद से उनके सीधे तालुकात हैं, वे दोनों उनके मुरीद बन गए थे। उन सबको बताया गया कि डॉक्टर सईद व याहिया ने हिंदुस्तान में ट्रेन विस्फोट की योजना बनाई है। योजना के अनुसार, शरीफ को टारगेट की रेकी का काम दिया गया। हिलाल व रोनी को ट्रेन में बम रखने का काम दिया गया। याहिया व ओबैदुर्रहमान को बम बनाना था। नफीकुल उनकी मदद करने के लिए साथ में था। ट्रेन में विस्फोट की मीटिंग के बाद आरोपी हूजी संगठन के हिलाल, रोनी, शरीफ उर्फ कंचन, तथा लश्कर-ए-तैयबा के ओबैदुर्रहमान व याहिया बांग्लादेश से बिना वीजा पासपोर्ट पद्मा नदी पार कर भारत की सीमा में पश्चिम बंगाल में घुसे। वहां पश्चिम बंगाल का नफीकुल विश्वास भी उनके साथ शामिल हो गया। २८ जुलाई २००५ को सभी खुसरूपुर रेलवे स्टेशन के समीप ट्यूबवेल पर इकट्ठा हुए। खुसरूपुर के मियां टोला के हकीम मियां से विस्फोटक सामग्री व अटैची लिए। खुसरूपुर के प्लेटफॉर्म नंबर एक के उत्तर में ट्यूबवेल के पास याहिया व ओबैदुर्रहमान ने बम बनाया। हिलाल व रोनी ने पटना के प्लेटफार्म नंबर ३ पर चेकिंग के बाद श्रमजीवी ट्रेन में जनरल बोगी में सीट के नीचे अटैची में बम रखकर सीट से बांधा। ओबैदुर्रहमान व याहिया पटना से ही बम रखवाने के बाद बांग्लादेश के लिए निकल गए। श्रमजीवी ट्रेन मुगलसराय से १४:३५ पर लखनऊ के लिए चली। सिटी स्टेशन पर १६:४४ बजे २ मिनट रुकने के बाद ट्रेन आगे बढ़ी। हरपालगंज से १७: १५ बजे ट्रेन रवाना हुई। गेट नंबर ३१बी से एक दो खंबा पहले अचानक १७:२० बजे हरपालगंज और कोइरीपुर स्टेशन के बीच धमाका हुआ था।

अन्य समाचार