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आज और अनुभव  : अंधेरी रातों में, सुनसान राहों पर…

कविता श्रीवास्तव
बीते दिनों उत्तर भारत में घना कोहरा छाया रहा। कंपकंपाती ठंड के मौसम में शीत लहर की वजह से कई तरह के हादसों के समाचार भी मिले। घने कोहरे और धुंध में कुछ भी दिखाई न देना, वाहनों का टकराना, फसलों को नुकसान होना आदि तो होता ही है। जाड़े के इस मौसम में आम लोग भी सिकुड़ते से नजर आते हैं। लेकिन तरह-तरह के रंगबिरंगे मफलर, जैकेट, कोट, स्वेटर, कंबल, रजाई से लेकर शरीर का तापमान गर्म रखने के लिए अनेक गर्म कपड़े लोग पहनते हैं। ठंड से बचने के लिए अलाव जलाने, हीटर लगाने, गीजर के पानी का उपयोग करने जैसे उपाय भी लोग करते हैं। लेकिन ठंड चाहे कितनी भी हो आम गतिविधियां तो रुकती नहीं। ऐसे में रेल यात्रा भी करनी पड़ती है। ठंड के इस मौसम में कई ट्रेनें रद्द की गर्इं। कई डाइवर्ट भी हुर्इं क्योंकि मौसम पर मनुष्य का नियंत्रण नहीं होता। उसे न हम रोक सकते हैं और न ही कम-ज्यादा कर सकते हैं। केवल इससे बच के रहना होता है। मौसम के प्रतिकूल होने पर यदि आवश्यक न हो तो यात्रा टालनी चाहिए या मौसम के अनुकूल होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। स्थानीय लोगों की सलाह को भी गंभीरता से लेना चाहिए। क्योंकि उनके अनुभव से निकली सलाह ही सही होती है। कड़ाके की ऐसी ही ठंड में वाराणसी का दौरा मुझे अक्सर याद आता है। किसी रिश्तेदार के विवाह समारोह में हम वाराणसी पहुंचे थे। वहां की ठंड ने हमें कंपकंपा दिया। दिन के वक्त भी सिर, कान, हाथ और पूरा शरीर ढंककर ही रहना पड़ा। अपने उस दौरे में रात के वक्त एक सड़क यात्रा में हम बहुत बुरी तरह फंस गए थे। धुंध और कोहरे का असर कितना खतरनाक हो सकता है इसका प्रत्यक्ष अनुभव हमें उस दिन हुआ। हम विवाह समारोह से मुक्त हुए तो हमारे पास एक दिन का वक्त बचा था। एक पुराने मित्र ने अपने घर भोजन के लिए बुलाया। शाम को हम निश्चित समय पर उनके घर पहुंच गए। लेकिन बहुत दिनों बाद मुलाकात होने के कारण पुरानी यादों और चर्चाओं में समय बीतता गया। रात के दस बज गए। ठंड के दिनों में उत्तर प्रदेश में रात दस बजे बहुत विलंब माना जाता है। इसकी हमें जानकारी नहीं थी। हमें अपने ठिकाने पर वापस लौटना जरूरी था क्योंकि सवेरे हमारी ट्रेन थी और हमारी पैकिंग बाकी थी। मित्र ने कहा कि रात में रुक जाइए, सवेरे चले जाइएगा। हमने कहा, नहीं और हम अपनी मोटरसाइकिल से उनके घर से कोई पांच किलोमीटर दूर अपने ठिकाने पर जाने के लिए निकल पड़े। अभी हम आधा किलोमीटर भी नहीं चले होंगे कि सड़क पर गहरा अंधकार, धुंध और कोहरा छाया हुआ था। हमें इसका आभास नहीं था। न ही इसकी उम्मीद थी। मात्र कुछ कदम की दूरी पर भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। गाड़ी की हेडलाइट की रोशनी में केवल धुंध ही दिख रहा था। सड़क तो समझ ही नहीं आ रही थी। हमें अपने गंतव्य की दिशा भी समझ नहीं आ रही थी। हमारी कोई भी गलती हमें खेतों में उतार सकती थी। रात के उस धुंधभरे अंधेरे में कोई आता-जाता भी दिख नहीं रहा था। कोई दिखता भी था तो एकदम करीब आने पर टकराने की स्थिति में ही दिख सकता था। सामने से आ रही कोई गाड़ी भी एकदम करीब आने पर ही दिखाई देती थी। पैदल या साइकिल से आनेवाले बिल्कुल करीब आने पर ही दिखाई पड़ते थे। ऐसे में यदि जरा भी ध्यान न दिया तो टक्कर होने की पूरी संभावना थी। उस समय हमें ऐसा लगा कि हमने बहुत बड़ी गलती की है। उस रात हमें अपने मित्र की सलाह मानकर उनके घर रुक जाना चाहिए था। मनोदशा ऐसी हुई कि हम पीछे लौटें या आगे जाएं। दिग्भ्रमित स्थिति में हमने आगे बढ़ना ही उचित समझा। हम बहुत संभलकर आगे बढ़ रहे थे। करीबन डेढ़ घंटे के बाद मौसम से संघर्ष करते हुए अपने गंतव्य पहुंचकर हमने राहत महसूस की। हमें उस यात्रा की सफलता पर विजयी होने का अहसास हुआ। लेकिन हमने बहुत अफसोस भी किया, क्योंकि यह साहस जोखिम भरा था। कोहरे और धुंध में होनेवाले हादसों की हकीकत वैâसी होती होगी, इसका अंदाजा हमें उस रात हुआ। वह डेढ़ घंटे की यात्रा बिल्कुल ऐसी थी जैसे कि हम आंख बंद करके चल रहे हों। कुछ दिखाई न देनेवाले घने कोहरे और धुंध कितने खतरनाक हो सकते हैं, उस दिन यह हमने जाना। क्योंकि कोई भी फर्राटेदार गाड़ी हमें उड़ा सकती थी। हम कहीं भी गड्ढे या खेत-खलिहान में उतर सकते थे। लेकिन किसी तरह हम अंदाज से ही सड़क को भांपते हुए आगे बढ़कर अपने गंतव्य तक पहुंच पाए। उसके बाद हमने कान पकड़ा कि हम कभी भी घने कोहरे या धुंध के अंधकार में इस तरह बाहर नहीं निकलेंगे। उस दिन हमें लोगों ने खूब समझाया कि वहीं मित्र के घर रुक जाना ही बेहतर होता। सुबह आराम से आ जाते। हमें भी लगा कि इस तरह अनजान ठिकानों पर हर वक्त स्थानीय लोगों की सलाह माननी चाहिए और जिद नहीं करनी चाहिए। क्योंकि मौसम बहुत ही अप्रत्याशित होता है। वर्षा, धुंध, कोहरे या भीषण गर्मी आदि के वक्त जहां तक संभव हो यात्रा सुरक्षित हो तभी करनी चाहिए। अपनी जिद छोड़कर स्थानीय लोगों की सलाह अवश्य माननी चाहिए।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)

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