शीतल अवस्थी
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पूरे वर्ष में लगभग २४ एकादशी तिथियां पड़ती हैं, जिनमें निर्जला एकादशी को सबसे पुण्यदायिनी माना जाता है। बिना पानी के व्रत को निर्जला व्रत कहते हैं और निर्जला एकादशी का उपवास किसी भी प्रकार के भोजन और पानी के बिना किया जाता है। उपवास के कठोर नियमों के कारण सभी एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन होता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत नर-नारियों दोनों को करना चाहिए। जलपान के निषिद्ध होने पर भी फलहार के साथ दूध लिया जा सकता है। इस दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप में भगवान विष्णु की अराधना का विशेष महत्व है। इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय:’ का जाप करके गोदान, वस्त्र दान, छत्र, फल आदि का दान करना चाहिए।
ऋषि वेदव्यासजी के अनुसार, इस एकादशी को भीमसेन ने धारण किया था। इसी वजह से इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पड़ा। निर्जला एकादशी उपवास करने से दूसरी सभी एकादशियों का लाभ मिल जाता है। इस व्रत की कथानुसार, महाभारत काल में भीमसेन ने व्यासजी से कहा कि हे भगवन, युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुंती तथा द्रौपदी सभी एकादशी के दिन व्रत किया करते हैं, परंतु मैं भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता। अत: आप कृपा करके मेरी सहायता करें। पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा, कुंतीनंदन, हिंदू धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अत: आप निर्जला एकादशी का ही व्रत करो, आपको वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। नि:संदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे। इस व्रत में स्नान-आचमन में पानी पीने से दोष नहीं होता है। तब भीम ने बड़े साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया, जिसके परिणामस्वरूप प्रात: होते-होते वह सज्ञाहीन हो गए, तब पांडवों ने गंगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर उनकी मूर्छा दूर की। इसी पौराणिक कथा के बाद यह एकादशी भीमसेनी और पांडव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुई। सूर्योदय से यह व्रत आरंभ हो जाता है। द्वादशी के दिन भी सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिए। यह व्रत सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है। जो यह व्रत करता है उसको मृत्यु के समय मानसिक और शारीरिक कष्ट नहीं होता है। व्रत के बाद जो स्नान, तप और दान करता है, उसे करोड़ों गायों को दान करने के समान फल प्राप्त होता है। इस दिन गौ दान का भी विशेष महत्व है। धर्म शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन का कार्य देव और असुर दोनों ने वासुकी सर्प, सुमेरु पर्वत और कच्छप के सहयोग से पूरा किया था। दरअसल, समुद्र मंथन की घटना सभी के मन में प्रतिपल होती रहती है। मन में उत्पन्न हो रहे सकारात्मक और नकारात्मक विचार ही इस मंथन के दो पात्र, देव और असुर होते हैं। हमारा मन कछुआ अर्थात धीमी गति से गमन करने वाला कच्छप होता है, जिसकी पीठ पर सुमेरु पर्वतरूपी हमारे विचार चक्कर लगाते हैं और मन व विचारों का मंथन प्रारंभ होता है। इससे जो निकलता है, वह अमृत भी हो सकता है और विष भी, जो हमारी आत्मा को प्रभावित करता है। समुद्र मंथन का सीधा संबंध जलतत्व रूपी मन से है। यही जल हमारे चक्षु पटल से प्रसन्नता में भी बहता है और अवसाद में भी। जल का संबंध चंद्रमा से भी है, जो समुद्र के अथाह जल को ऊपर-नीचे कर देता है। चंद्रमा मन को प्रभावित करता है, तभी तो शास्त्रों में ‘चंद्रमा मनसो जात:’ कहा गया है। यानी कह सकते हैं कि जल ही मन है, या जल और मन एक-दूसरे के पूरक हैं। इसी जल तत्वरूपी मन को नियंत्रण में करने के लिए व मन संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए अध्यात्म में प्रावधान है, निर्जला एकादशी का। इसमें सबसे पहले विष्णुजी की पूजा की जाती है तथा व्रत कथा सुनी जाती है। पूजा-पाठ के पश्चात सामर्थ्यनुसार ब्राह्मणों को दक्षिणा, मिष्ठान आदि देना चाहिए। संभव हो सके तो रात्रि में जागरण करना चाहिए। दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन जरूरी है। एकादशी व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त हो गई हो तो पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। एकादशी के व्रत में संकल्प करने का बहुत महत्व है। संकल्प यानी किसी भी कार्य के हो जाने की कल्पना करके ईश्वर से प्रार्थना करना। इस हेतु अपने हाथ में हल्दीयुक्त पीले चावल लें और प्रात:काल विष्णु या कृष्ण भगवान से प्रार्थना करें। संभव हो और शारीरिक क्षमता अनुमति दे तो निर्जला उपवास करें, अन्यथा पूजन मात्र ही पर्याप्त होगा। विवाह में आ रही बाधाओं के निवारण हेतु केले के पेड़ का धूप, दीप, जनेऊ, अक्षत, पुष्प, भोग व आरती से पूजन करें और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय परमात्मने’ मंत्र का यथाशक्ति जाप करें। व्यवसाय व रोजगार संबंधी समस्याओं के निवारण हेतु विष्णुजी को इस दिन पीले वस्त्र में नारियल समर्पित करें और प्रतिदिन विष्णु सहस्रनाम का श्रवण करें। वैसे भी इस उपवास के करने मात्र से सभी समस्याओं का समाधान होता है। पारिवारिक और भावनात्मक समस्याओं के समाधान हेतु मिट्टी के एक लाल घड़े में पानी भरकर इस मंत्र के साथ किसी को दान कर दें।
देव देव ऋषिकेश संसारार्णव तारक:
उद्कुम्भ प्रदानेन नय मां परमां गतिम।