एम एम एस
त्रिशूर (त्रिचूर) स्थित एक प्रतिष्ठित रिजॉर्ट में ह्युमन रिसोर्स प्रोफेशनल रवीना (बदला हुआ नाम) वैसे तो दिखने में स्मार्ट थी, लेकिन उसे पता था कि उसका रंग सांवलापन लिए हुए है। जब भी बचपन में वह अपनी मां से अपने रंग को लेकर सवाल करती तो उसकी मां कहती कि कृष्ण भगवान का रंग भी सांवला था। लेकिन वह जब बड़ी हुई, उसे इस बात का एहसास होने लगा कि उसके सांवले रंग को लेकर लोग कभी न कभी कमेंट करते थे।
होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई करते-करते वह उसमें इतना डूब गई थी कि वह थोड़ी सी ‘हैवी’ लगने लगी। लेकिन यहां तक पहुंचते-पहुंचते वह यह भूल गई थी कि उसके रंग और उसकी हैवी बॉडी को लेकर लोग उस पर कमेंट करते हैं। उसके दोस्त उसे कहते हैं कि वह अब पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी है और यह सच भी था। उसके कॉलेज में हुए पैâशन शो में वह शो स्टॉपर थी।
उसने गौर किया कि लोग उसकी खूबसूरती की तारीफ तो करते थे, लेकिन साथ में कह भी देते, ‘अगर तुम्हारा रंग उजला होता तो क्या बात होती?’ एक दिन उसके रिजॉर्ट के सीनियर मैनेजर ने उससे कहा, ‘क्या तुमने गोरेपन की क्रीम का ऐड नहीं देखा? मुझे लगता है, तुम उसका इस्तेमाल करोगी तो और भी ‘खिल’ उठोगी। वैसे भी तुम्हें पता ही होगा कि हमारे गेस्ट उजले रंग को ज्यादा पसंद करते हैं…’ उसने दो सेकंड का पॉज लिया और फिर उसकी ओर देखते हुए बोला, ‘लेकिन मुझे यह कलर डिस्क्रिमिनेशन बिल्कुल पसंद नहीं है, मुझे तुम जैसी हो वैसे ही पसंद हो…’ रवीना को कुछ समझ में नहीं आया कि वह क्या रिएक्ट करें! फिर उसने उसकी तरफ गुस्से में देखा और चली गई।
उसके बाद बॉडी शेमिंग कमेंट्स मानो उसके हिस्से में आने वाली कमेंट्स का परमानेंट हिस्सा बनकर रह गया था। उसे वह दिन भी याद है, जब वह रिजॉर्ट के एंप्लॉइज के लिए यूनिफॉर्म के कपड़े के सिलसिले में बाजार गई थी। कपड़े के रेट को लेकर रवीना ने सीनियर मैनेजर से बात की। रवीना को उसकी बात उस वक्त बुरी तरह खल गई, जब उसने कहा कि तुम्हारे ब्लाउज के लिए ज्यादा कपड़ा लगेगा।
अति तो तब हुई जब एक रात उसने उसे कॉल किया। हालांकि, रवीना ने जब दूसरे दिन इस बारे में अपनी आपत्ति जाहिर की तो उसने रात नशे में होने का बहाना कहकर माफी मांग ली। इसके तुरंत बाद उसका रवैया बदल गया। उसने रवीना को इनवैâपेबल और अन प्रोफेशनल कहना शुरू कर दिया।
सच तो यह है कि ऐसा व्यवहार, जहां एक उत्पीड़क किसी ऐसे व्यक्ति के लिए ऐसा होस्टाइल वर्क एनवायरमेंट बनता है, जिसने सेक्सुअल और रोमांटिक प्रपोजल प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है, वैश्विक रूप से उसे सेक्सुअल हैरेसमेंट के रूप में पहचाना जाता है। अब रवीना के पास बहुत कम ऑप्शन बचे थे कि उसको इन तकलीफों से छुटकारा मिलता। क्योंकि वहां पर ऐसी कोई सुविधा नहीं थी जहां पर वह इस बारे में शिकायत कर पाती। शिकायत करती तो भी उसे पता था कि गाज उसी पर गिरेगी, क्योंकि अब उसे बार-बार इनवैâपेबल और अनप्रोफेशनल कहा जाने लगा था।
महिला उत्पीड़न से जुड़ी हुई एक एक्टिविस्ट शोभा के अनुसार, हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में महिलाएं असुरक्षित हैं क्योंकि वे अपने परिवार से दूर रहती हैं और उन्हें या तो होटल में या उसके नजदीक रहना पड़ता है। ऐसी कई युवतियां हैं जो सीनियर मैनेजर्स या अन्य उच्च पदाधिकारियों के जाल में फंस जाती हैं। कार्यस्थल पर उत्पीड़न के कारण कई को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ती है। जो विरोध करती हैं उन्हें अन प्रोफेशनल करार दिया जाता है। उनका कहना है कि इस तरह का अनप्रâेंडली वर्किंग एनवायरनमेंट हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में, विशेष रूप से उच्च स्तरों पर, विषम लिंग अनुपात का कारण बताता है।
क्यूईएस लेबर ब्यूरो की २०२१-२२ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आवास और रेस्तरां क्षेत्रों में कुल अनुमानित श्रमिकों में से ७५ प्रतिशत से अधिक पुरुष हैं। केरल के इकोनॉमिक्स एंड स्टैटिसटिक्स महकमा द्वारा २०१६ में प्रकाशित एक सर्वेक्षण में पाया गया कि हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में पुरुष और महिला कर्मचारियों का अनुपात ८०:२० है, जबकि मैनेजरियल वैâडेर में यह ९३:७ है।