पिता की बाहें अपार हैं
पिता की बाहों में विस्तार है
अम्बर सा फैला तेरा प्यार है
पिता, तू परिवार का संसार है।
पिता, तू अवनी सा उदार है
जीवन तेरा दिया उपहार है
अपना रखें न लेशमात्र ध्यान
परिवार के सुख का आधार है।
पिता, तू मां के माथे की बिंदिया है
उसके मांग का सिंदूर है
हमें दे कर जन्म तूने
मां को पूर्ण नारित्व का दिया उपहार है।
पिता, तू सागर सा गहरा है
जिसमें भरा असीम प्यार है
कभी-कभी कुछ लहरें क्रोध की उठती
उत्तरदायित्व निभाने की पकड़ी पतवार है।
पिता, तू मंदिर सा पावन है
अपनत्व की मूरत है
गुस्से में भी पिता का
वरद हस्त ही उठता है।
पिता, तू परिवार का कल्पवृक्ष है
सभी सुविधाएं जुटाता है
प्यार से सिचों पिता के सम्मान को
भविष्य पिता ही संवारता है।
पिता, तू कामधेनु है
बिन मांगे अमृत सा पोषण देता है
मौन, शांत चित्त हो रहता
आत्मीयता का झरना है।
पिता की गोद में बैठना कभी-कभी ही मिलता
उसकी उंगली पकड़ चलना सबने सीखा
कंधों पर चढ़ना भी भाता है।
संतान को बोझ नहीं मानता
बच्चों के लिए चिंतातुर रहता
बुढ़ापे तक काम करने की ठानता है।
पिता तुम्हारे लिए वर्ष में एक दिन नहीं
मेरा जीवन ही समर्पित है।
-बेला विरदी