एमएम सिंह
किसी ने सही कहा है कि वक्त इंसान से क्या-क्या नहीं करवा लेता। एक जमाने में चीन को पानी पी-पीकर कोसने वाले, चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करने का फतवा जारी करने वाले अब चीन को ही सीधे-सीधे हिंदुस्थान की आर्थिक व्यवस्था पर डाका डालने के लिए रेडकारपेट बिछा रहे हैं! गजब का डर!! गजब की मजबूरी!! गजब का राष्ट्रवाद!!! गजबै गजब है… मेक इन इंडिया की जय हो।
यह सब कहना पड़ रहा है आर्थिक सर्वेक्षण २०२४ में दिए गए तर्क को देखते हुए। बकौल इकोनॉमिक्स सर्वे २०२४ भारत को अपने विनिर्माण निर्यात को बढ़ावा देने के लिए चीनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का स्वागत करना चाहिए। वाह क्या कहने। वाकई भारत को तेज प्रगति के लिए चीन पर निर्भरता बढ़ाने की जरूरत है? या फिर कुछ और… लेकिन जिस बात का जिक्र आर्थिक सर्वेक्षण में अब किया गया है, उसकी पृष्ठभूमि काफी समय पहले से तैयार की जा रही थी! जैसे चीनी कंपनियों को देश में काफी अहम हलकों में कंपनियां खोलने की इजाजत दी जा रही हैं, साथ ही चीनी ब्रांड लॉन्च करने की तैयारियों की भी खबर है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशकों में भारत में चीन का आयात १० गुना बढ़ गया है।
२००३-०५ के दौरान भारत और चीन के बीच बराबर व्यापार हुआ। डब्ल्यूटीओ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस अवधि के दौरान भारत का चीन के साथ मामूली व्यापार सरप्लस भी था। हालांकि, इसके तुरंत बाद चीन दो दशकों में भारत को अपना निर्यात दस गुना बढ़ाकर आगे निकल गया। २००५ में १० अरब डॉलर से अब १०१ अरब डॉलर हो गया है। इस बीच, चीन को भारत का निर्यात २०१९ में १० बिलियन डॉलर से बढ़कर १६ बिलियन डॉलर हो गया और तब से उसी स्तर पर स्थिर है। कम निर्यात और उच्च आयात के परिणामस्वरूप पिछले छह वर्षों में संचयी व्यापार घाटा ३८७ अरब डॉलर से अधिक हो गया है, वहीं पिछले १५ वर्षों में भारत के औद्योगिक आयात में चीन की हिस्सेदारी २१ फीसदी से तेजी से बढ़कर ३० प्रतिशत हो गई है। चीन अब सभी औद्योगिक उत्पाद श्रेणियों में भारत का अग्रणी आपूर्तिकर्ता देश है। औद्योगिक वस्तुओं में कृषि, अयस्क, खनिज, पेट्रोलियम, रत्न और जूलरी उत्पादों को छोड़कर सभी उत्पाद शामिल हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलीकॉम और इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट (३८.७ प्रतिशत), मशीनरी (३८.५ प्रतिशत), केमिकल्स और फार्मास्यूटिकल्स (२८.७ प्रतिशत), लोहा, इस्पात के उत्पाद, और बेस मैटल (१६.६ प्रतिशत), प्लास्टिक और वस्तुएं (२५.१ प्रतिशत), टैक्सटाइल और कपड़े (४१.५ प्रतिशत), ऑटोमोबाइल, अन्य वाहन (२३.२ प्रतिशत), इसके अलावा मेडिकल, चमड़ा, कागज, कांच शिप, एयरक्राफ्ट इत्यादि १७ फीसदी। अब तक इस बात पर सांत्वना दी जा सकती थी कि हम चीन से सिर्फ आयात ही कर रहे थे। हालांकि वह भी भारत की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं था, लेकिन अब जब चीन की बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत में अपना ठौर ढूंढ लेंगी। महत्वपूर्ण क्षेत्रों में (एनर्जी, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलीकॉम और ट्रांसपोर्टेशन आदि क्षेत्र) में अपना वर्चस्व बनाने लगेंगी तब क्या होगा? कोई भी देश किसी दूसरे देश पर उपकार करने के लिए निवेश नहीं करता। इसका उद्देश्य होता है अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना और उसके लिए वह सारे हथकंडे अपनाता है। मौजूदा दौर में बड़ी मात्रा में आयात किए जा रहे हैं, जैसे टेक्सटाइल, माइनिंग, मेटल वर्क और कृषि के लिए मशीनरी, साथ ही नल, वाल्व, पंप, ट्रांसमिशन शाफ्ट, बॉल बेयरिंग, कंप्रेसर, मोल्ड, क्रेन, मोटर, निर्माण सामग्री, दरवाजे, खिड़कियां, नट, बोल्ट और स्टेशनरी आइटम के लिए हमें चीन का मुंह ताकने की बजाय जमीनी तौर पर इनका प्रोडक्शन शुरू करने की कोशिश की जानी चाहिए, ताकि छोटे-मोटे उद्योगों को जिंदगी मिले।