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कुदरत का करिश्मा

भोर भये आकाश पर सूरज उगता है
धरती को भी चमकाता है
शाम को जब ठंडी हवा के झोंके चलते हैं
दोपहर की जलती धूप को जैसे पतझड़ से बहार बनाते हैं
सूरज भी सांझ ढलते अपनी करवट बदलता है
रात को गहरी सांसें लेता है
अगले दिन की तैयारी में जुट जाता है
अम्बर पर जब बादल छाते हैं
आपस में टकराते हैं
समीर भी रागनी गाती है
सावन बरसने लगता है
ऊंचे ऊंचे पर्वतों पर बर्फ गिरती है
बर्फ पर सुनहरी धूप पड़ती है
बर्फ पिघल कर बिखर जाती है
अदभुत सा नजारा होता है
स्वर्ग का जैसे इशारा होता है
गगन पर तारे निकलते हैं
सप्तऋषि भी नजर आते हैं
रात को चांद निकलता है
कभी आधा तो कभी पूरा होता है
ये दृश्य भी बहुत निराला है
कभी पूर्णिमा तो कभी अमावस्या आता है।

-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

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