धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
पिछले कुछ महीनों से मुंबई समेत कुछ जिलों में रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा सुसाइड किए जाने के मामलों में वृद्धि हुई है। बीते एक साल में १५-१६ रेजिडेंट डॉक्टरों ने अपने जीवन को समाप्त कर लिया है। इसमें मात्र तीन महीनों में चार डॉक्टरों ने आत्महत्या कर अपने जीवन को समाप्त कर लिया है। इसे लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मेडिकल स्टूडेंट ४८ घंटों तक लगातार काम करते रहते हैं, जिस कारण वे अक्सर आराम से महरूम होते हैं। इस वजह से उनमें कई गलत ख्याल आते हैं। इसी वजह से कई बार वे सुसाइड करने जैसे रास्तों को चुनते हैं। उनकी इन्हीं परेशानियों को देखते हुए आईएमए ने डॉक्टरों के लिए कम से कम १५ दिनों की लीव की पैरवी की है।
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में कुल ४२ सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं। इनमें से दो मेडिकल कॉलेज केंद्र सरकार के अधीन हैं, जिनके संचालन की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर है। इसमें से १५ मेडिकल कॉलेज इसी साल से शुरू हुए हैं, जिसमें एमबीबीएस का पहला बैच शुरू हुआ है। हालांकि, इन मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसरों और रेजिडेंट डॉक्टरों की संख्या कम है। ऐसे में उन पर काम का बोझ बहुत ज्यादा रहता है। उन्हें २४ से ४८ घंटों तक लगातार काम करना पड़ता है। इससे वे तनाव में रहते हैं और चिड़चिड़ेपन के शिकार हो जाते हैं। इतना ही नहीं इसका असर उनके निजी और कामकाजी जीवन पर भी पड़ता है। इससे उनका परिवार भी प्रभावित होता है। वर्क लोड इतना ज्यादा रहता है कि वे डिप्रेशन में चले जाते हैं। इसी के चलते वे आत्महत्या करने जैसे रास्तों को अपनाते हैं। इस तरह की ताजा घटना मुंबई के जेजे अस्पताल में हुई है, जहां रोहन प्रजापति नामक होनहार छात्र ने फांसी लगा ली थी। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संतोष कदम ने कहा कि मेडिकल स्टूडेंट पर काम का बोझ ज्यादा रहता है। दिन में लगातार मरीजों से डील करते हुए काम करते रहते हैं। सर्जरी और गंभीर मरीजों और उनके परिजनों से डील करते रहते हैं। वे घंटों काम करते रहते हैं। दो-दो दिनों तक सोते तक नहीं हैं। ऐसी स्थिति में वे बाहरी दुनिया से कट जाते हैं, जिसके चलते इनके जीवन में कोई मौज-मस्ती नहीं रहती है। इससे उनमें प्रâस्ट्रेशन बढ़ जाता है। इसी प्रâस्ट्रेशन के चलते कई मेडिकल स्टूडेंट सुसाइड का रास्ता अपनाते हैं।