यौवन और व्यथा!

देकै क्लेश गयो परदेश, न भेज्यो संदेश पठायो न पाती।
बीति गयो बरखा बदरी, कथरी-गुदरी वाली शीतल राति।।
आयो न कंत वसंत गयो, न भयो दुख अंत न फाटत छाती।
पापी पपीहा पुकारे पिया, पर पापी पिया न पठावत पाती।।
– कमलेश पांडेय ‘तरुण’

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