कविता श्रीवास्तव
केरल में त्रिवेंद्रम स्थित वेंगनूर के सुप्रसिद्ध पूर्णमिकावु मंदिर में पूर्णिमा पर गजराज हाथी को आभूषणों-फूलों से सजा-धजा कर धूमधाम से उत्सव मनाने की परंपरा है, पर इस बार मंदिर में असली हाथी नहीं दिखेंगे। उनकी जगह ली है एकदम असली जैसा दिखने वाले रोबोटिक हाथी `बलधासन’ ने, जिसे पशु-अधिकार संगठन `पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स’ (पेटा) इंडिया ने बनवाकर मंदिर को सौंपा है। `द केरल स्टोरी’ फिल्म की अभिनेत्री अदा शर्मा के साथ `पेटा’ की टीम ने यह काम जीवित हाथी का इस्तेमाल रोकने के उद्देश्य से किया है। असली हाथी जंगलों में मस्त रहे। वह प्रताड़ित सा महसूस न करे। साथ ही धार्मिक, पारंपरिक कार्यक्रम भी प्रभावित न हो, यही भाव लेकर यांत्रिक हाथी का निर्माण हुआ है। वर्षों से असली हाथी देखने की बजाए अब यह अद्भुत इलेक्ट्रॉनिक हाथी को देखने के लिए भीड़ उमड़ रही है। यह हमारी धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए प्राणी संरक्षण की दिशा में उठाया गया सकारात्मक कदम है। यह विकसित दुनिया के साथ चलने का क्रांतिकारी कदम है। पुराने रीति-रिवाजों को आधुनिकता में बदलने की यह तरकीब है, जो विकास की ओर ले जाती है। तिरुवनंतपुरम में पूर्णमिकावु मंदिर पूर्णिमा पर ही खुलता है, इसीलिए वहां उस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते हैं। देश में ऐसे अनेक स्थान हैं, जहां पूजा-पाठ ही नहीं अनेक परंपराएं हैं, जिनमें प्राणियों का उपयोग वर्षों से हो रहा है। प्राचीन युग में ग्रामीण सभ्यता में यह सब चल जाता था, लेकिन आज के आधुनिक युग में प्राणियों की सुरक्षा के लिए लोग जागरूक हुए हैं। बदलते युग के साथ हर चीज बदलती रहती है और बदल ही रही है। अब अनेक मंदिरों में डोनेशन, पूजा-पाठ, अनुष्ठान आदि ऑनलाइन हो रहे हैं। दर्शन भी ऑनलाइन होने लगे हैं। प्रसाद भी ऑनलाइन मिलने लगे हैं। डिजिटल युग में यह सब संभव हुआ है। श्रद्धा और भाव में बदलाव नहीं होनी चाहिए। आस्था बनी रहनी चाहिए। संस्कार अपनाने चाहिए। यही सामाजिक मान-मर्यादाएं टूटनी नहीं चाहिए। यदि जीवित हाथी की जगह पर यांत्रिक हाथी से परंपराओं को कायम रखा जा सकता है, तो यह निश्चित ही सराहनीय बदलाव है। विकसित सोच और आधुनिक युग के बढ़ते कदम का प्रयास है। यह सामाजिक सहयोग और शासन-प्रशासन की सहमति से पूरी होती है तो वाकई प्रशंसनीय है। केरल में हाथियों की संख्या भी अच्छी-खासी है। हमने देखा है कि हाथी कई बार भीड़ को देखकर क्रोधित हो जाते हैं और अनर्थ भी हो जाता है। उनका स्थान वन में है तो उन्हें वहीं रहने देना बेहतर है। खुशी की बात है कि प्राणी संगठन ने अन्य स्थानों पर भी उपयोग हो रहे जानवरों की जगह यांत्रिक जानवर उपलब्ध कराने की तैयारी की है। पारंपरिकता में बदलाव की इस पहल का हर जगह स्वागत हो रहा है। बदलते वक्त के साथ यह बदलाव भी जरूरी है।