मुख्यपृष्ठस्तंभकॉलम ३ : कम सैलरी के कारण इसरो नहीं आते आईआईटीयंस! ......

कॉलम ३ : कम सैलरी के कारण इसरो नहीं आते आईआईटीयंस! … इसरो चीफ का छलका दर्द

आखिर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के कम वेतन का दर्द छलक ही उठा। ‘इसरो’ के अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ के इस वक्तव्य से कि इसरो की वेतन संरचना के कारण देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेजों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं नहीं मिल रही हैं। इससे और क्या अंदाजा लगाया जा सकता है? चंद्रयान की सफलता को लेकर अपनी पीठ थप-थपाने वाली सरकार को शायद ही कोई फर्क पड़े!
एक मीडिया हाउस से बातचीत में उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक बार ‘इसरो’ की टीम इंजीनियरों की भर्ती के लिए एक आईआईटी में गई। इसरो में करियर के अवसर आदि पर चर्चा के बाद जब वहां के छात्रों की नजर इसरो के सैलरी स्ट्रक्चर पर पड़ी तो प्रजेंटेशन देखने के बाद ६० फीसदी लोग बाहर चले गए। उन्होंने कहा कि आईआईटियन को हमारे सर्वश्रेष्ठ इंजीनियर माना जाता है, लेकिन वे इसरो में शामिल नहीं हो रहे हैं। अगर हम जाते हैं और आईआईटी से भर्ती करने की कोशिश करते हैं, तो कोई भी शामिल नहीं होता है।
हालांकि, सोमनाथ ने यह भी कहा कि ऐसे भी कुछ लोग हैं जो सोचते हैं कि स्थान महत्वपूर्ण है लेकिन ऐसे लोग बहुत ज्यादा नहीं और मुश्किल से १ प्रतिशत या उससे भी कम हैं, जिनके नेतृत्व में हिंदुस्थान चंद्रमा पर उतरने वाला चौथा देश और दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र को छूने वाला पहला देश बनकर इतिहास रचने में सफल हुआ।
इसरो की सैलरी को लेकर पिछले महीने, बिजनेस टाइकून हर्ष गोयनका ने एक ट्वीट में कहा था कि सोमनाथ का वेतन, जो ‘इसरो’ में शीर्ष पद पर हैं और अंतरिक्ष विभाग के सचिव भी हैं, २.५ लाख रुपए है, जो शीर्ष आईआईटी में औसत प्लेसमेंट पैकेज है। इसरो में अलग-अलग पदों के लिए अलग-अलग सैलरी स्ट्रक्चर है, लेकिन इंजीनियरों के लिए शुरुआती वेतन लगभग ५६,१०० रुपए है।
मोटे पैकेज को प्राथमिकता देने वाले आईआईटियंस पर तंज कसते हुए चंद्रयान-३ की सफलता के बाद कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ट्विटर पर लिखा था, ‘भारतीय आईआईटी के प्रति जुनूनी हैं, लेकिन आइए गुमनाम इंजीनियरिंग कॉलेजों के पूर्व छात्रों को सलाम करें जो समर्पण के साथ सार्वजनिक क्षेत्र की सेवा करते हैं और जो ‘इसरो’ जैसे राष्ट्रीय उद्यमों की रीढ़ हैं।’ ‘आईआईटीयन सिलिकॉन वैली गए, सीएटीयन हमें चंद्रमा पर ले गए!’
सोमनाथ के इस रहस्योद्घाटन पर कि एक प्रतिशत से भी कम आईआईटियन इसरो में शामिल होते हैं, यह बहस मुद्दा बन गया है।
कुछ लोगों का सुझाव है कि कई प्रतिभाओं को अंतरिक्ष एजेंसी में शामिल होना चाहिए क्योंकि आईआईटी में उनकी शिक्षा पर भारी सब्सिडी दी जाती है। हालांकि, कुछ ने छात्रों का यह कहते हुए समर्थन भी किया कि पैसा हर किसी के लिए मुख्य आकर्षण है। और इसरो को आईआईटी के नए छात्रों के लिए पैकेज आकर्षक बनाना चाहिए।
एक पूर्व आईआईटीयन छात्र का मानना है कि ज्यादातर लोग जब किसी प्रतिष्ठित कॉलेज से आते हैं तो अच्छे वेतन की तलाश में रहते हैं। यहां सरकार की भी बहुत बड़ी गलती है।

अन्य समाचार