सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य की महायुति सरकार `सबका साथ, सबका विकास’ के नारे के साथ दोबारा सत्ता में आई, लेकिन अब वह धीरे-धीरे अपने इस वादे को भूलते जा रही है। सरकार अल्पसंख्यकों को अपने साथ लेकर चलने की बजाय उनके तिरस्कार में जुट गई है। जी हां, सरकार ने अल्पसंख्यक विभाग के छात्रों के लिए निर्धारित फंड में कटौती करके यह साबित कर दिया है कि उसे अल्पसंख्यकों के प्रति कोई खास लगाव नहीं है। यह फैसला सरकार ने ठीक मनपा और स्थानीय निकाय चुनावों के पहले लिया है, ऐसे में सरकार का यह पैâसला राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है।
बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने अल्पसंख्यक समाज के छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और वजीफा प्रदान करने हेतु १३७.४८ करोड़ रुपए की निधि प्रस्तावित की थी। लेकिन धीरे-धीरे सरकार ने अपने मंसूबे को जाहिर करते हुए अल्पसंख्यकों का हक मारने की शुरुआत कर दी है। सरकार ने अल्पसंख्यक छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और वजीफा का फंड घटाकर अब ६० करोड़ कर दिया है, जिससे माना जा रहा है कि अल्पसंख्यक समाज के साथ चुनावों से पहले सरकार ने छल किया है।
बजट के समय ही महाराष्ट्र सरकार शिक्षा के लिए आवंटित बजट में २० प्रतिशत तक की बढ़ोतरी, उच्च शिक्षा, वर्तमान शैक्षिक मानकों और विशेषकर मुस्लिम एवं अल्पसंख्यक छात्रों के उत्थान के लिए अधिक निधि देने की मांग की गई थी। एक शिक्षक का कहना है कि अल्पसंख्यक छात्रों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति बहाल की जानी चाहिए और डिग्री तक अधिक से अधिक छात्रवृत्तियां शुरू करने की मांग हुई थी। लेकिन सरकार ने यह निर्णय लेकर अल्पसंख्यक समाज के विकास के आस पर पानी फेर दिया है। अल्पसंख्यक छात्रों के लिए निर्धारित फंड में कटौती की गई है।