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सरकार ने किया सार्वजनिक… सुरक्षा विधेयक को कमजोर!..विधायक जितेंद्र आव्हाड ने लगाया आरोप…१२ हजार से अधिक आपत्तियां हुईं दर्ज

सामना संवाददाता / मुंबई

महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, २०२४ पर विचार-विमर्श करने के लिए गठित विशेष पैनल ने कुछ प्रावधानों को कमजोर करने का पैâसला किया है। विधेयक के उद्देश्य और इसके कुछ प्रावधानों में संशोधन करने का निर्णय एक संयुक्त चयन समिति द्वारा लिया गया था, जब नागरिक समाज समूहों और सामाजिक संगठनों द्वारा मसौदा कानून पर १२,३०० से अधिक आपत्तियां उठाई गई थीं, जिसका उद्देश्य `शहरी नक्सल’ गतिविधियों पर अंकुश लगाना है।
नक्सल या वामपंथी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए राज्य को व्यापक अधिकार देने वाले इस विधेयक का नागरिक समाज द्वारा दमनकारी और जनविरोधी के रूप में विरोध किया गया है। इसके विरोधियों का दावा है कि राज्य द्वारा इसका दुरुपयोग असहमति को दबाने और सरकार की आलोचना करने वाली संस्थाओं को निशाना बनाने के लिए किया जा सकता है, ऐसी गतिविधियां जो नक्सलवाद के दायरे से बाहर हैं। २६ सदस्यीय समिति, जिसमें सभी राजनीतिक दलों के विधायक शामिल हैं।
समिति ने विधेयक के उद्देश्य को `व्यक्तियों और संगठनों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों की अधिक प्रभावी रोकथाम के लिए’ से संशोधित कर `वामपंथी और कट्टरपंथी संगठनों की गैरकानूनी गतिविधियों’ में बदल दिया है। एक अधिकारी ने कहा, `पहले के मसौदे में सरकार या संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ खड़े होने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मनमानी कार्रवाई की अनुमति दी गई थी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद चंद्र पवार) पार्टी के विधायक और संयुक्त चयन समिति के सदस्य, जितेंद्र आव्हाड ने कहा, `शुरू में हमने इस अधिनियम का विरोध किया था क्योंकि यह जनविरोधी प्रतीत होता था, लेकिन अब इसे कमजोर कर दिया गया है। नए प्रावधान वास्तविक नक्सली और माओवादी गतिविधियों के खिलाफ हैं।’ विधायक शशिकांत शिंदे ने कहा, `जेएससी के अध्यक्ष ने एक प्रस्तुति दी थी जिसमें दिखाया गया था कि अतिरिक्त कानून लाना क्यों जरूरी था। हमें आश्वासन दिया गया था कि मसौदे में `वामपंथी उग्रवादी और कट्टरपंथी’ शब्द केवल नक्सलवाद से जुड़े संगठनों द्वारा की जाने वाली गैरकानूनी गतिविधियों से संबंधित हैं।

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