हनीफ जवेरी
आज की फिल्मी दुनिया में यह आम बात हो गई है कि कलाकार जरा सी बात को बड़ा बना कर प्रचार पाने की कोशिश करते हैं। कुछ लोग जानबूझ कर विवाद खड़े करते हैं, अपने ही साथियों के बारे में गलत बयान देते हैं, ताकि वे खबरों में बने रहें और उनकी चर्चा होती रहे। ऐसे प्रचार उनके लिए पहचान बनाने का तरीका बन गया है, लेकिन जीतेंद्र जैसे अभिनेता इस ढर्रे से बिल्कुल अलग रहे हैं। उन्होंने कभी भी सस्ती लोकप्रियता के लिए कोई चालाकी या दिखावा नहीं किया। वे हमेशा अपने काम, अनुशासन और सादगी के लिए पहचाने गए। उन्होंने यह साबित किया कि कलाकार की असली पहचान उसके कर्म से होती है, न कि विवादों और दिखावे से। यही गुण उन्हें बाकी कलाकारों से अलग और विशेष बनाते हैं।
जीतेंद्र हमेशा एक गैर-विवादास्पद अभिनेता रहे हैं। अपने ५०–६० साल के करियर में उन्होंने कभी किसी के खिलाफ बयानबाजी नहीं की और न ही किसी को मौका देकर उसका ढिंढोरा पीटा। यहां तक कि तब भी नहीं जब किसी की वजह से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा और वे आर्थिक समस्या का सामना करने लगे।
हुआ यूं कि जीतेंद्र ने अपने होम प्रोडक्शन तिरुपति पिक्चर्स में एक बड़ी स्टारकास्ट वाली फिल्äम ‘दीदार-ए-यार’ शुरू की। नामी निर्देशक एच.एस. रवैल की इस फिल्äम में जीतेंद्र के साथ उस दौर के कई महंगे सितारे जैसे ऋषि कपूर, टीना मुनिम, रेखा, रीना रॉय, निरूपा रॉय आदि शामिल थे। फ़िल्म के लिए रवैल के आदेश पर बड़े-बड़े महंगे सेट्स लगाए गए थे।
फिल्äम निर्माण के दौरान ही यह ओवरबजट हो गई थी। अब जब फ़िल्म मुकम्मल हुई, तो लेखक उमर खय्याम सहनपुरी ने दावा किया कि यह फिल्म उनकी स्क्रिप्ट पर बनाई गई है। उन्होंने एच.एस. रवैल पर कहानी चुराने का आरोप लगाया और मामला अदालत में चला गया। निर्देशक और बाहरी लेखक के बीच का यह आपसी टकराव जीतेंद्र को महंगा पड़ा, क्योंकि वितरक से आने वाली किश्त रुक गई और फिल्म पर लगा ब्याज बढ़ता चला गया।
यह मामला इतना बढ़ गया कि फिल्äम इंडस्ट्री में इसकी खूब चर्चा होने लगी। लेकिन फिर भी जीतेंद्र ने इस पर कुछ नहीं कहा। उन्होंने एच. एस. रवैल और उमर ख़य्याम सहनपुरी के बारे में एक भी शब्द बोलना सही नहीं समझा, जबकि इस पूरे झगड़े से सबसे ज्यादा वही परेशान थे और नुकसान उन्हीं का हो रहा था।
हालांकि इस मामले में यह बात भी सामने आई कि बी.आर. चोपड़ा के कहने पर उमर ख़य्याम सहनपुरी ने यह किया था, ताकि ‘दीदार-ए-यार’ से पहले उनकी मुस्लिम विषय पर बनी फिल्म ‘निकाह’ रिलीज हो सके। जबकि मुस्लिम पृष्ठभूमि के अलावा दोनों फिल्äमों की कहानी में काफी अंतर था। जीतेंद्र ने इस मामले को शांति से सुलझाने की कोशिश की। उन्होंने अपने भाई प्रसून कपूर के जरिए लेखक उमर ख़य्याम को एक बड़ी रकम भिजवाई और साथ ही फ़िल्म के श्रेय सूची में यह पंक्ति लिखवाई। ‘यह फिल्म उमर ख़य्याम सहनपुरी की कहानी पर आधारित है। जबकि फ़िल्म के क्रेडिट्स में ‘स्टोरी बाय रूही रवैल और राहुल रवैल का नाम पहले ही लिखा गया था।
बहुत आगे चलकर निर्माता सावन कुमार टाक और सुभाष घई के बीच फ़िल्म के टाइटल्स ‘खलनायक’ और ‘खलनायिका’ को लेकर टकराव हुआ। घई की फ़िल्म ‘खलनायक’, संजय दत्त के टाडा के तहत गिऱफ्तार होने के कारण वैसे ही विवादों में आ गई थी और सावन कुमार ने उससे मिलते-जुलते टाइटल को लेकर फ़िल्म ‘खलनायिका’?शुरू कर दी। और दोनों निर्माताओं के बीच विवाद खड़ा हुआ और मामला प्रोड्यूसर एसोसिएशन इम्पा तक पहुंच गया। अब चूंकि ‘खलनायिका’ में जीतेन्द्र भी थे, तो मैंने इस विवादास्पद विषय पर जीतेन्द्र से बात करने की सोची। यक़ीन कीजिए, जीतेंद्र ने उस इंटरव्यू में कई मुद्दों पर मुझसे बातें कीं, लेकिन उन्होंने एक शब्द भी किसी के विरोध में खलनायक या खलनायिका को लेकर नहीं कहा।
ऐसी चुप्पी जीतेंद्र ने तब भी साधी थी जब उनकी फिल्äम ‘थानेदार’ और अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘हम’ के एक गाने पर विवाद खड़ा हुआ था। क्योंकि दोनों फिल्äमों के गाने ‘टम्मा टम्मा दे दे’ और ‘चुम्मा चुम्मा दे दे’ एक ही धुन पर आधारित थे।
क्या आज के सितारे जीतेन्द्र से ये सीख लेना चाहेंगे ?
(उपरोक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। अखबार इससे सहमत हो यह जरूरी नहीं है।)