– मोदी के वैश्विक विनिर्माण महाशक्ति बनने के सपने को तगड़ा झटका
– मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और पीएलआई योजनाएं हुर्इं हवा-हवाई
सामना संवाददाता / मुंबई
भारत के वैश्विक विनिर्माण महाशक्ति बनने के सपने को तगड़ा झटका लगा है। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने जो आंकड़े पेश किए हैं, वे मोदी के वैश्विक विनिर्माण महाशक्ति बनने के सपने को चकनाचूर कर रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष २०२४-२५ में देश में केवल तीन विदेशी विनिर्माण फर्मों ने परिचालन पंजीकृत किया है। मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और पीएलआई योजनाओं जैसी प्रमुख पहलों के बावजूद यह पंजीकरण वैश्विक निर्माताओं की अनिक्षा को दर्शाता है।
इसके विपरीत सेवा क्षेत्र में ५३ विदेशी कंपनियों ने इसी अवधि के दौरान परिचालन स्थापित किया, जो कि २०१९-२० में ९१ नए प्रवेशकों से कम है।
उल्लेखनीय है कि भारत का औद्योगिक क्षेत्र विदेशी निवेश की गति खो रहा है। तीनों नए विनिर्माण प्रवेशक मशीनरी और उपकरण खंड से संबंधित थे। व्यापक औद्योगिक क्षेत्र जिसमें निर्माण, बिजली, गैस और जल आपूर्ति, खनन और विनिर्माण शामिल हैं। वित्त वर्ष २०२४-२५ में इकाई स्थापित करनेवाली मात्र एक नई विदेशी कंपनी थी। वित्त वर्ष २०१९-२० के बाद से विदेशी औद्योगिक फर्म सेटअप में वित्त वर्ष २०२५ में सबसे कम निवेश हुआ है। इसकी तुलना में कोरोना महामारी वर्ष २०२१ के दौरान १० विदेशी औद्योगिक कंपनियों ने भारत में प्रवेश किया, जो पिछले छह वर्षों में सबसे अधिक है। बताया जाता है कि विदेशी विनिर्माण धीमा होने के मुख्य कारण वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताएं और आपूर्ति श्रृंखलाओं में नियामक वातावरण या व्यापार करने में आसानी के बारे में चिंताएं हैं।
वियतनाम या मैक्सिको जैसे अन्य उभरते विनिर्माण स्थलों से प्रतिस्पर्धा भी कारण बताई जा रही है, जबकि भारत ने कॉर्पोरेट करों को कम किया है और उच्च-प्रोफाइल पहलों को आगे बढ़ाया है, इसके बावजूद विदेशी औद्योगिक निवेश का वास्तविक प्रवाह पिछड़ता हुआ प्रतीत हो रहा है। सक्रिय विदेशी फर्मों की संख्या में भी गिरावट एमसीए का डेटा भारत में सक्रिय विदेशी कंपनियों में गिरावट को दर्शाता है। मार्च २०२५ तक भारत में ५,२२८ पंजीकृत विदेशी कंपनियां थीं, इनमें से केवल ३,२८६ (६२.९ प्रतिशत) सक्रिय थीं।
यह मार्च २०१९ में ७०.८ प्रतिशत सक्रिय फर्मों से कम है। यह प्रवृत्ति नए खिलाड़ियों को आकर्षित करने के बजाय विदेशी व्यापार रुचि को बनाए रखने की चुनौतियों को रेखांकित करती है।