काहें बिसरा गांव : गांव में सुखई और सबेरे की नींद

पंकज तिवारी

भिनसार होते ही मुरैला, गिलहरी, कौवा, कुक्कुर के साथ ही आदमियों की चहलकदमी भी चालू हो गई थी, जबकि झुरझुरी हवा तन और मन को अलसाई मुद्रा में झोंकने हेतु अमादा जान पड़ रही थी। खटिया बाहर लगाकर सोने वालों में रात भर मच्छर से कटवा चुकने के बाद भोर में बढ़िया नींद लेने वालों में से अधिकतर को तो मजबूरी में ही सही पर उठना पड़ गया था। सुखई को कब से काकी उठा रही थी भैंस लगाने के लिए पर वो हेंगर बने लगातार बात को टाले जा रहा था। रोज-रोज भैंस लगाना उसे भारी लगता था, जबकि काकी अंदर ही अंदर कलकला के रह जाती थी। सुखई के इसी करामात की वजह से कई-कई दिन तो भैंस कूद जाती और लगती ही नहीं थी। कई बार तो वो जान के कुदवा देता था कि हमें न लगाना पड़े पर ऐसा कभी नहीं हुआ, कोई विकल्प ही नहीं था। बेचारी पड़िया के लिए अलग से दूध का जुगाड़ करना पड़ता था। दुआर से लेकर सेंवार तक पूरा खेत ही खेत देखकर मन मगन हो अनंत की यात्रा पर निकल जाने को आतुर हो उठता था। केवला, कमला, चनरी, सुघरा सब इनारा के चबूतरा के पास बैठकर बासन मांज रही थीं। भोर की नींद किसको पसंद नहीं है इन सभी को भी थी, भोरे-भोरे बिस्तर छोड़कर उठना तो ये सब भी नहीं चाहती थीं पर लाज, शरम नाम की चीज भी थी तब, इसी वजह से उठ गई थीं। बासन मांजे जा रही थीं और बकर-बकर भी किए जा रही थीं, अपना पुराना किस्सा सुनाने में कोई मस्त है तो कोई सास, ननद और जेठानी की बुराई बताने में। केवला सबसे चालाक बनी बस सुनती थी सभी को और मजा लेती थी, जबकि चनरा को रोक पाना ही भारी होता था। किसी की भैंस दुबे के खेत में कूद गई थी, तो किसी को अइया के खेत में कीरा दउड़ा लिया था, कोई फुहरा के दिए गारी को ही बार-बार गाये जा रही थी तो कोई मटर के खेत में गायब खुरपी की बात को ही नमक-मिर्च लगाकर परोस रही थी। इनरा घर के मेहरारुन खातिर चौपाल का बढ़िया अड्डा बन गया था। जामुन के छांह में सुबह से दोपहर और कब रात हो जाती थी किसी को पता ही नहीं चलता था। कका दूर घूर के पास बैठे सब कुछ देख रहे थे आधे घंटे के काम में घंटों लगाने वालों पर बरसना भी चाह रहे थे, पर परेशान थे कि मेरी तो कोई सुनेगा ही नहीं। चिल्लाकर बस अपना ही मुंह खराब करना होगा। पता है फिर भी बिना बोले उनसे भी नहीं रहा गया और चिल्ला ही दिए। ‘का रे तोन्हन कबसे कबड़-कबड़ करथए, बसनवा मांजि के जल्दी देइ देते त कुछु कामउ आगे बढ़त, तोन्हनउ पता नाइ कहां से लियावथे एतना बात बकर-बकर करइ बिना।’
‘चुप्पइ रह्य बुढ़ऊ बहुत बोल्य त जिनि, हम सब जवन करथई करइ दऽ, ओहर सोवत त हयेन सबेरेन से ओन्हइ त नाइ जगाइ पावत हय। आइ हय हमहिन सब के चेल्लाइ’, सुखई की तरफ इशारा करते हुए चनरा बोले जा रही थी। ‘कुल झार मगरइलइ पे उतारइ में सब के मजा आवथयऽ, भंइसि नाइ लागत बा ओहर नाइ देखात बा’, बोलकर खूब जोर से हंस पड़ी चनरा।
कका को कुछ ऊंचा सुनाई पड़ता था इसीलिए का कहे…? का कहे…? कह के शांत हो गए, जबकि समझ तो रहे थे कि ई सब कुछ तो मजा ले रही हैं हमारा, पर क्या करें बुढ़ौती में बच्चों से इतना कौन भिड़े? कका अब वहीं नीम के नीचे दाना बीनती चिड़िया को देखने लगे और अपने पुराने दिनों में खो से गए जब अपने बबा के खटिया के नीचे नकली कीरा फेंक कर डराए थे और बबा कूद पड़े थे अपने खटिया से। गांव के ही चोंहर वैद्य को बुलाया गया था। पैर में बांस की फट्टी बांधकर महीनों रहना पड़ा था बबा को। आज कका को लग गया था कि हमें अपने बुजुर्गों का सम्मान करना ही चाहिए।
(लेखक बखार कला पत्रिका के संपादक एवं कवि, चित्रकार, कला समीक्षक हैं)

सुपर मॉम्स सम्मानित…मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष के राज्य प्रमुख

-मां का आंचल किसी स्वर्ग से कम नहीं- साहनी

सामना संवाददाता / जम्मू

मां के रहते जीवन में कोई गम नहीं होता, दुनिया साथ दे न दे मगर मां का प्यार कभी कम नहीं होता। आज जम्मू के लैमन ट्री होटल में जेडी इवेंट्स व प्रोडक्शन हाउस द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में अपने संबंधित क्षेत्रों में मुकाम हासिल करने वाली कुछ सुपर मॉम्स को सम्मानित किया गया, जिनमें डॉ. आशू शर्मा, रितिका सलाथिया, किरण शर्मा, सुशमा राजपूत, रिदिमा तलवार, निधि अबरोल, एडवोकेट तानिया शर्मा समेत 15 सुपर मॉम्स उपस्थित रहीं। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष के प्रदेश प्रमुख मनीश साहनी व‌ दा स्टेट टाईम्स के मुख्य संपादक राज दलूजा ने उपस्थित सुपर मॉम्स को स्मृति चिन्ह भेंट करते हुए सम्मानित किया। मनीश साहनी ने अपने संबोधन में कहा कि मां, मैया, मम्मी, माता, माई, अम्मी, मॉम और ना जाने कितने पर्यायवाची शब्द हैं मां के, परंतु सबमें ममता एक ही है, मां ईश्वर का ही एक रूप है।
सुपर मॉम कार्यक्रम की शुरुआत बच्चों ने सोलो डांस व रुद्र द्वारा बीट बाकसिंग से उपस्थित जनों का मन मोह‌ लिया। कार्यक्रम की संचालन मुस्कान पंडोह ने अपने चिर-परिचित अंदाज में उपस्थित जनों को कार्यक्रम के अंत तक बांधे रखा। इस मौके पर सुनाल कंकड़, इरफान चौधरी, डॉ. तरूण शर्मा, रोहित मट्टू, डॉ. सुनील राजपूत, राहुल राही, नितिन, तृप्ति शास्त्री, विकास बख्शी, मिनाक्षी छिब्बर विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
इस मौके पर जनरल जोरावर सिंह की परपोतिया रिया व‌ दिक्षा कलूरिया जो अपने माता-पिता के साथ उपस्थित रहीं, उन्हें विशेष तौर‌पर सम्मानित किया गया।‌

याद आए पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व.केएन सिंह…मनी पुण्यतिथि

-इंदिरा-राजीव काल में थे कांग्रेस के ताकतवर नेता

-सुल्तानपुर से लगातार दो बार लोकसभा चुनाव जीतने का है श्रेय

विक्रम सिंह / सुल्तानपुर

इंदिरा-राजीव के दौर में सुल्तानपुर की धमक राष्ट्रीय राजनीति में कायम करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व.के एन सिंह को सोमवार को २५वीं पुण्यतिथि पर याद किए गए। लगातार दो बार सुल्तानपुर से निर्वाचित होकर लोकसभा पहुंचने का गौरव भी उन्हें प्राप्त है। इंदिरा गांधी की मंत्रिपरिषद के वे सदस्य रहे तो वहीं राजीव गांधी काल में कांग्रेस के ताकतवर राष्ट्रीय महासचिव थे। कमला नेहरू संस्थान परिसर स्थित उनकी समाधिस्थली पर परंपरागत ढंग से श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जिसमें स्व. सिंह के तीनों पुत्र ज्येष्ठ पुत्र अरविंद सिंह, मंझले पुत्र यूपी सरकार के पूर्व मंत्री भाजपा एमएलए विनोद सिंह व कनिष्ठ पुत्र पूर्व विधायक अशोक सिंह सहित संपूर्ण परिवार मौजूद रहा।

भदोही के विकास के लिए हमें मिलकर काम करना होगा-अनिरुद्ध त्रिपाठी

-जनप्रतिनिधियों को मिल-जुल कर विकास कार्य करने की जरूरत- जाहिद बेग

-विकास कार्य जनपद में प्रगति पर है और प्रयास किया जाएगा- दीनानाथ भास्कर

सामना संवाददाता / भदोही

‘हमार भदोही’ ने 30 जून को जनपद का 31 वां स्थापना दिवस नगर स्थिति एक इंटर कॉलेज में मनाया, जिसमें मुख्य अतिथि अनिरुद्ध त्रिपाठी जिला पंचायत अध्यक्ष ने अपनी बात रखते हुए कहा कि भदोही के विकास के लिए हमें एक साथ मिलकर काम करना होगा।
भदोही की कालीन पूरी दुनिया में जानी जाती है, उसी तरह से यहां का विकास होना चाहिए। सामूहिक रूप से प्रयास करना चाहिए, इस दिशा में ‘हमारा भदोही’ जनपद का अनूठा प्लेटफार्म जिसमें सभी मिलकर वर्ष भर की अपनी आवश्यकता चिन्हित करते हैं, फिर सभी मिलकर प्रयास करते हैं। दीनानाथ भास्कर विधायक औराई ने कहा कि सरकार में विकास कार्य काफी हो रहा है, प्रमुख जरूरतों के क्रियान्वयन में और तेजी लाई जाएगी। कई कार्य हुए कई बाकी हैं, जिसको मिलजुल कर पूरा किया जायेगा। आगे कहा कि समाज जब किसी बात को एकजुटता के साथ उठाता है समाज के तो सरकार वो कार्य करने में देर नहीं करती है।
भदोही विधायक जाहिद बेग ने कहा कि राजनैतिक बाध्यता से ऊपर उठकर जनता के विकास कार्यो को जनप्रतिनिधियों को मिलजुल कर कार्य करना चाहिए भदोही की समस्या को हल करना उनकी प्राथमिकता है। उनके पूर्व के कार्यकाल कई बड़े विकास कार्य हैं, विधायक -डॉक्टर आर के पटेल ने कहा कि जनपद हमारा है, हम सभी को मिल-जुलकर प्रयास करना चाहिए ।
कार्यकर्म को अपर जिलाधिकारी वीरेंद्र मौर्य ने संबोधित करते हुए कहा सामूहिक प्रयास को आगे बढ़ाने की जरूरत। इसमें प्रशासन आप लोगों के साथ कार्यकर्म में 14 बच्चों को पाटोदिया सेवा संस्थान की तरफ से 12 हजार रुपए का चेक दिया गया, जो हर महीने एक हजार उनके खाते में जाएगा। इन बच्चो का पिछले माह बेसिक शिक्षा विभाग स्कॉलरशिप एग्जाम कराया गया था।
कार्यकम के संयोजक संजय श्रीवास्तव ने कहा इस फोरम से जनपद के गणमान्य नागरिक जुड़े है। उन्होंने कहा कि जब अच्छे लोग एक मंच आकार किसी मांग को उठाते हैं, वे समस्या जरूर हल होती है। हमार भदोही द्वारा लोगों के सहयोग जनपद को विशिष्ठ निर्यात क्षेत्र का दर्जा मिलने के साथ जनपद को महत्वपूर्ण समस्या हल करने में अपनी भूमिका निभा रहा है।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से विनय कपूर उपाध्यक्ष उत्तर प्रदेश निर्यात संवर्धन परिषद, ट्रेसरी ऑफिसर बृजेश सिंह, इम्तियाज अहमद सीईपीसी, एके ठुकराल, डॉक्टर ए के गुप्ता, बीके रॉय काका कारपेट, हेम कुमार पाल चीफ मैनेजर स्टेट बैंक, आशीष सिंह मैनेजर इंद्र बहादुर सिंह नेशनल इंटर कॉलेज, संतोष गुप्ता, सुजीत जायसवाल, मनोज, असफाक अंसारी, जे एस जैन, राकेश दुबे, मनीष पांडे, डॉ. शैलेश पाठक, महेश जायसवाल, रमेश मौर्य, दिलीप गुप्ता आदि ने आपने विचार किए। पियूष बरनवाल ने कार्यक्रम का संचालन किया। स्थापना दिवस पर कार्यकर्म मुख्य आकर्षक प्रसिद्ध गायिका विदुषी सुचरिता दास गुप्ता का गायन रहा, जिसमें बीएचयू के डॉक्टर ललित ने संगत किया, सुचरिता जी के सुनाए गीतों को लोगों ने काफी आनन्द उठाया।

मुस्लिम विद्यार्थियों को तिलक लगाने का परिजनों ने किया विरोध!

मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जानसठ क्षेत्र के गांव कवाल के राजकीय इंटर कॉलेज में प्रवेश के पहले दिन मुस्लिम विद्यार्थियों के माथे पर रोली का तिलक लगाने का विरोध किया गया। मुस्लिम अभिभावक इकट्ठा होकर कवाल पुलिस चौकी पर प्रधानाचार्य की शिकायत करने पहुंचे। पुलिस ने मुस्लिम अभिभावकों को समझा-बूझकर मामला शांत कराया। प्राप्त जानकारी के अनुसार, सोमवार को गांव कवाल के राजकीय इंटर कॉलेज में छात्र-छात्राओं को रोली का तिलक लगाया गया और फूल-माला पहनाई गई। कॉलेज की छुट्टी के बाद मुस्लिम समाज के विद्यार्थी घर पहुंचे, तो माथे पर रोली का तिलक देखकर परिजनों ने जानकारी ली। इसके बाद मुस्लिम अभिभावक इकट्ठा होकर प्रधानाचार्य की शिकायत करने कवाल पुलिस चौकी पर पहुंचे।
पुलिस चौकी प्रभारी के समक्ष मुस्लिम अभिभावकों ने उनके बच्चों के माथे पर तिलक लगाने का विरोध जताया। पुलिस ने जीआईसी के प्रधानाचार्य रणवीर सिंह को पुलिस चौकी बुलवाया। प्रधानाचार्य का कहना था कि शासन के आदेश पर कॉलेज में प्रवेश के प्रथम दिन सभी छात्र-छात्राओं को तिलक लगाकर और फूल-माला पहनकर स्वागत किया गया।
प्रधानाचार्य ने अभिभावकों से कहा कि किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मकसद नहीं था। स्कूल में सभी बच्चे समान हैं। मुस्लिम छात्र-छात्राओं को भविष्य में तिलक नहीं लगाया जाएगा। इसके बाद पुलिस ने समझा बूझकर मामला शांत कराया।

जन्मदिन विशेष : स्वर्ग से देख रहे नेता जी, टीपू अब सुल्तान बन गया!

मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी का गुमान चकनाचूर कर दिया। माइक्रो बूथ मैनेजमेंट के नाम पर पन्ना प्रमुख नामक हौव्वा और भारी-भरकम प्रचार योद्धा नरेंद्र मोदी और अमित शाह के न सिर्फ हर रणनीति को तार-तार कर दिया, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी बनारस लोकसभा सीट पर धूल चाटते-चाटते बचे। सबसे पहले प्रत्याशियों की घोषणा करके भाजपा ने मानसिक बढ़त बनाने की कोशिश किया तो सपा प्रमुख ने पल- पल, हर सीट पर अलग-अलग रणनीति बना कर गुजराती मायावियों का नशा उतार दिया। प्रत्याशी बदलना हो या प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश ने रॉकेट स्पीड से निर्णय लिया। अखिलेश हर रात नया सपना लेकर सोते थे, तो हर सुबह एक नया अध्याय आरंभ करते थे। युवा राजनीतिज्ञ की सामरिक गतिशीलता ने उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव का शिखर पुरुष बना दिया। सबका साथ-सबका विकास का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी-अमितशाह यूपी में केवल गुजराती व्यापारियों का विकास करते करते रेडहैंड हो गये। टिकट वितरण में पुराने प्रत्याशी भाजपा नेतृत्व के लिये बोझ बन गये तो जीत खोज में जूझ रहे अखिलेश यादव ने बार-बार प्रत्याशियों को ताश के पत्तों की तरह फेंटा। ज्यों-ज्यों चुनाव बढ़ा, भाजपा हवाई नारा और बदजुबानी में उलझती चली गई तो अखिलेश यादव सीट दर सीट प्रत्याशी के मोह को छोड़ कर जिताऊ समीकरण को अंगीकार किया। उन्होंने अपने परम्परागत वोट बैंक यादव और मुस्लिम मतदाताओं को बांध कर रखने की कामयाबी के साथ दूसरे समाज का प्रत्याशी उतार कर तीन तरफ से जीत का समन्वय स्थापित किया। जिसके परिणामस्वरूप
अखिलेश यादव का पीडीए का नारा सफलता का स्वरूप ले लिया। साथ में दलितों के आरक्षण छिनने के सुनियोजित प्रचार ने इंडिया गठबंधन के वोट का भंडार बढ़ा दिया। नीचे-नीचे अखिलेश ने लगातार अपनी नींव मजबूत किया तो भारतीय जनता पार्टी हवाई उड़ान में इतने ऊंचे पहुंच गई, जहां से उसे जमीन पर उतरने का मार्ग ही नहीं दिख पाया। भाजपा के नेतृत्व, कार्यकर्ता और प्रत्याशियों में खराब बोलने की होड़ लगी थी, तो अखिलेश को नए प्रयोग की सफलता के आसार ने जमीन से जोड़कर बांध दिया। भाजपा का मंदिर-मस्जिद, हिंदू-मुस्लिम, ईडी-सीबीआई, मंगलसूत्र-मुजरा से लोग बोर हो गए। अखिलेश ने सारा जोर पीडीए को साकार करने में लगा दिया, जिसके कारण दलित 7, कुर्मी 8, यादव 5, मुस्लिम 4, निषाद 2, ठाकुर 2, शाक्य 1, मौर्य 1, कुशवाहा 1 तथा एक राजभर भी जिता लिया। लोधी 1, जाट 1, ब्राह्मण 1, भूमिहार 1 और वैश्य 1 जिताया। अब अखिलेश का पीडीए दहाड़ मार रहा था। अखिलेश पिछड़े 20, दलित 9, मुस्लिम 4, सवर्ण 4 सांसदों का नेतृत्व करते हुए 18वीं लोकसभा की सबसे बड़ी तीसरी ताकत बन कर उभरे हैं। लोकसभा चुनाव में मिले शानदार बढ़त ने विधानसभा चुनाव 2027 के लिए युवाओं को उद्वेलित कर दिया है।
समाजवादी पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने 2012 में अपने बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना कर पार्टी के भीतर-बाहर राजनैतिक चर्चा छोड़ कर खुद सरकार का संरक्षण किए, तब एक वर्ग यह मानता था कि नेता जी को इस वक्त अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री नहीं बनाना था। अखिलेश के सामने पिता व राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नेता जी का शिकंजा बहुत दिनों तक उन्हें टीपू की छवि से बाहर ही नहीं होने दिया। नेता जी के कारण अखिलेश को चाचाओं की एक लंबी फौज मिली। उसमें भी एक से बढ़ कर चचा और चाचा जो अखिलेश की पीठ के पीछे सामने वाले पर अपना दबदबा स्वीकार कराने के लिए अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री कम और टीपू कह कर संबोधित करने में ज्यादा गौरवान्वित होते थे। इस सबसे ऊब चुके अखिलेश के पास एक ही रास्ता था कि मुलायम सिंह यादव के रहते पार्टी पर अपना वर्चस्व स्थापित करना, जिसे उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में प्राप्त कर लिया। हालांकि, उसी विवाद में शिवपाल सिंह यादव ने पार्टी छोड़ दिया। उनका पारिवारिक कलह इतना बढ़ा कि अखिलेश के मुख्यमंत्री रहते 2014 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश बुरी तरह हार गए। भाजपा ने साथियों सहित 80 में से 73 सीट जीत लिया।
परिवार की केवल 5 सीटें बच पाईं थीं। 2017 में अखिलेश यादव सत्ता से बाहर हो गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अखिलेश यादव ने बहुजन समाज पार्टी से बहुत झुक कर गठबंधन किया, फिर भी समाजवादी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस बार डिम्पल यादव, धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव भी चुनाव हार गए। इसके बाद 2022 का विधानसभा चुनाव आया। यह चुनाव अखिलेश यादव बिना मुलायम सिंह यादव की भौतिक उपस्थित के लड़ने उतरे थे। ऐसा लगा कि नेता जी दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जैसे वह कदम-कदम पर बता रहे हों कि समय रहते झुकना सीख लो। इससे पूर्व अखिलेश बसपा सुप्रीमो मायावती का चक्कर काटने के बजाय बसपा में उपेक्षित पड़े दूसरी जातियों के बड़े क्षत्रपों को जोड़ने पर बल देने लगे। बसपा खाली होती गई, सपा मजबूत होती गई। अखिलेश ने भाजपा को भी जबरदस्त धक्का दिया। भाजपा सरकार से बर्खास्त किए गए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से समझौता कर लिया।
भाजपा से बेइज्जती पाकर आए राजभर को अखिलेश ने भरपूर सम्मान दिया। पूर्वांचल में उनके साथ मिल कर लड़े। दोनों पार्टियां फायदे में रहीं। इससे पहले ऐन चुनाव के ठीक पहले योगी आदित्यनाथ की सरकार में पिछड़े समाज के तीन कद्दावर मंत्री एक साथ भाजपा छोड़ कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्मपाल सैनी ने जो धक्का दिया वह भाजपा को दिन में तारे दिखाने के लिए बहुत काफी थे। तीनों को अखिलेश यादव ने क्रमशः स्वामी प्रसाद मौर्य को पडरौना, दारा सिंह चौहान को मऊ और धर्मपाल सैनी को सहारनपुर की नकुड़ विधानसभा से सपा का प्रत्याशी घोषित किया। इस बार सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने पहले सपा से गठबंधन तोड़ कर विश्वासघात किया, फिर दारा सिंह चौहान ने दगा दिया। उसके बाद धर्मपाल सैनी भी भाजपा के लाउंज में घूमते देखे गए।
दारा सिंह चौहान ने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। वहां उपचुनाव हुआ, जिसमें यूपी सरकार पूरी ताकत से जुट गई। एक-एक मंत्री ने एक-एक पॉकेट पकड़ लिया, लेकिन सपा का चुनाव जनता लड़ेगी यह पहली बार दिखा। उपचुनाव में स्वयं अखिलेश यादव व सपा कार्यकर्ताओं ने जम कर पसीना बहाया। भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान बहुत बड़े अंतर से पराजित हुए। इस घटना से उत्तर प्रदेश में सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ और भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व बैकफुट पर चला गया। केंद्र की मोदी सरकार ने यूपी का किला बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दिए। प्रदेश में पिछड़े के नाम पर भाजपा के पास सबकी सुनने वाला एक मात्र नेता केशव प्रसाद मौर्य, बाकी सब सजावट के सामान बन कर रह गए थे। अखिलेश यादव ने अपना दल कमेरावादी की पल्लवी पटेल को आगे कर केशव प्रसाद मौर्य को उनके ही घर में न सिर्फ घेरे रखा, बल्कि उन्हें विधानसभा में जाने से रोकने में कामयाब हो गए। इस हार से भाजपा तो कुछ सबक नहीं ले पायी, लेकिन अखिलेश को सफलता का मंत्र मिल गया। इसमें अखिलेश यादव ने अपनी सूझ-बूझ का परिचय दिया। 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने अपने नेतृत्व का लोहा मनवाते हुए विधानसभा में मजबूत विपक्षी पार्टी बन कर उभरे। दिन-रात पार्टी को मजबूत करने में लगे अखिलेश ने पीडीए का नारा देकर जो अभियान छेड़ा वह कांशीराम के डीएसफोर की याद ताजा कर दिया। अखिलेश ने बड़ी सजगता से अतिपिछड़ों को जोड़ने का, उनके समाज के नेताओं को चेहरा देने का काम किया।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ताजा-ताजा दगाबाजी भूल कर बड़ा हृदय करते हुए अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस से गठबंधन किया। कांग्रेस को मुहमांगी सीटें दिया। कांग्रेस यूपी में किसी तरह उन दो सीटों पर फिर से कब्जा चाहती थी, जिनमें एक चली गई थी, दूसरे पर खोने का खतरा मंडरा रहा था। 2019 में राहुल गांधी की अमेठी सीट कांग्रेस से छिन चुकी थी और रायबरेली की घेरेबंदी हो गई थी।अखिलेश यादव ने अमेठी में कांग्रेस के सम्मान की वापसी करवाई, रायबरेली में राहुल गांधी को 4 लाख से ज्यादा वोटों की शानदार जीत दिलवायी।
यूपी में कांग्रेस को कल्पना से अधिक छह सीटों पर विजय मिली। भाजपा से लगातार हारता आ रहा कांग्रेस नेतृत्व हार के सदमे से बाहर निकला। अखिलेश यादव का गठबंधन उत्तर प्रदेश में सबसे सफल गठबंधन बन कर उभरा, तो सत्ताधारी भाजपा की चूलें हिल गईं। समाजवादी पार्टी को अकेले सबसे ज्यादा सीटें मिलीं, जिसके बल पर दस वर्ष बाद लोकसभा में कांग्रेस को लोकसभा में मजबूत मित्रों के साथ मुख्य विपक्षी दल का दर्जा प्राप्त हुआ। यह संख्या बल पहले दिन से ही विपक्ष का आत्मबल बढ़ा दिया है, जिसके कारण यह स्पष्ट दिखने लगा है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व की तानाशाही सदन के अंदर-बाहर तो नहीं चल पाएगी, अब भारतीय जनता पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र में भी नरेंद्र मोदी-अमित शाह की तानाशाही पर लगाम लगेगा। इसका श्रेय यदि किसी एक व्यक्ति को जाता है तो वह समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को जाता है।
2012 में सरकार बनाने के बाद अखिलेश यादव सबको खुश रखने का प्रयास किया, थोड़े ही दिनों में जिसके कारण उन्हें जनसमर्थन का नुकसान होने लगा, लेकिन वह किसी को निराश नहीं करेंगे के चक्कर में अपने दुश्मनों की संख्या बढ़ाते चले गए। 2014 में उन्हें इसका प्रमाण भी मिल गया। लोकसभा चुनाव में राज्य के मुख्यमंत्री होते हुए अखिलेश यादव अपने दल समाजवादी पार्टी को मात्र 5 लोकसभा सीट जितवा पाए। 2019 में विधानसभा का चुनाव भी बुरी तरह से हार गए। सामाजिक क्षेत्रीय दलों के साथ समझौते और अति पिछड़ी जातियों के साथ खड़े होने और सम्मान देने से उनका जनसमर्थन बढ़ा। विधायक में 2017 के मुकाबले 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा विधायकों की संख्या 125 हो गई। इस चुनाव के पूर्व अखिलेश यादव ने भाजपा से बर्खास्त किए गए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के अपमान पर सम्मान का मरहम लगा कर अपने साथ जोड़ा। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा सरकार में शामिल अतिपिछड़ी जातियों के तीन मंत्रियों का त्यागपत्र दिलवा कर उन्हें समाजवादी पार्टी में शामिल कर भाजपा के सबका साथ-सबका विकास के नारे की जड़ हिला दिया।
विधानसभा में 100 सीट से ऊपर मिलते ही आजमगढ़ लोकसभा की सदस्यता का मोह छोड़ अखिलेश यादव स्वयं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने। यह निर्णय समाजवादी पार्टी में ठीक वैसे ही प्राण फूंक दिया, जैसा नेता जी मुलायम सिंह यादव ने मायावती सरकार के दौरान हजरतगंज चौराहे पर पहुंच कर घर बैठ चुके सपाइयों में प्राण फूंक दिया था। भाजपा की जनविरोधी नीतियों के विरोध के साथ पीडीए के फार्मूले को जीवंत करने में बुद्धि और ताकत दोनों झोंक दिए, लेकिन सत्ता के लिए अखिलेश यादव के साथ आए लोगों की पहचान ज्यों-ज्यों अखिलेश करने लगे, त्यों-त्यों गरीब और गरीबों की लड़ाई में समाजवादी पार्टी के कदम में कदम मिला कर चलने का वादा करके आने वाले सत्तालोलुप लोग भाजपा की गोद में वापस जाकर बैठने लगे। सबसे पहले यह कार्य सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने किया।
फिर समाजवादी पार्टी के टिकट पर मऊ से विधानसभा चुनाव जीते दारा सिंह चौहान ने किया। दारा सिंह ने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। दारा सिंह और ओमप्रकाश राजभर की चालाकी का जनता में इस कदर गुस्सा फैला कि दारा सिंह की सीट पर हुए उपचुनाव में पूरी योगी सरकार उपमुख्यमंत्री-मंत्री नम्बर एक केशव प्रसाद मौर्य और उपमुख्यमंत्री नम्बर दो ब्रजेश पाठक वहां डेरा डालने के बाद भी भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान की बहुत शर्मनाक पराजय हुई। इसी प्रकार लोकसभा चुनाव में घोषी से लड़े ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को भी शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा। पीडीए के प्रवर्तक अखिलेश यादव ने इन दोनों नेताओं को ऊंची जातियों के प्रत्याशियों से पटकनी दिलवाई। नेता जी मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव में एक बड़ा अंतर है। नेता जी गद्दारों को माफ कर देते थे, जबकि अखिलेश यादव गद्दारों का घमंड तोड़ कर न सिर्फ मजबूर कर देते हैं, बल्कि समानान्तर नेता पैदा कर देते हैं। इसका सबसे मजबूत उदाहरण बसपा सुप्रीमो मायावती हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने उनको उनकी तात्कालिक राजनैतिक ताकत से ज्यादा उनके शर्तों के सामने उन्हें टिकट दिया।
सार्वजनिक जनसभा में डिम्पल यादव से मायावती का पैर छू कर आशीर्वाद मंगवाया, तब यादव ब्रिगेड में अखिलेश की आलोचना भी हुई, लेकिन उसी विनम्रता के सहारे अखिलेश ने मायावती की तानाशाही से दुःखी उनके सेनापतियों को एक-एक कर तोड़ लिया। बसपा से जुड़े विभिन्न जातियों के अधिकांश नेताओं को तोड़ कर पीडीए की कल्पना को साकार करते हुए 2024 में उत्तर प्रदेश के सबसे ताकतवर नेता के रूप में उभरे। मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में कांग्रसी की कुटिलता के शिकार होने के बाद भी बड़ा दिल करके लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ चुनाव लड़े। जानकार बताते हैं कि मध्य प्रदेश में धोखेबाजी करने के बाद गांधी परिवार इतना डरा था कि अखिलेश यदि गठबंधन नहीं किए तो यूपी में जो रायबरेली की एक सीट सपा के अघोषित समझौते के बल पर बची रह गई है वह भी छिन जाएगी। लोकसभा चुनाव के लिए जैसे ही गांधी परिवार ने अखिलेश यादव से संपर्क किया उन्होंने बड़ा दिल दिखाते हुए कांग्रेस को उसके राजनैतिक ताकत से बहुत ज्यादा 17 सीटें देकर गठबंधन कर लिया। गांधी परिवार पूरा लोकसभा चुनाव अमेठी और रायबरेली पर केंद्रित करके लड़ा, लेकिन अखिलेश यादव की उदारता के कारण आज उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास सात लोकसभा सदस्य हैं। अखिलेश यादव के सहारे विधानसभा का मुंह देखने वाली अपना दल कमेरवादी की पल्लवी पटेल ने राज्यसभा के चुनाव के ऐन मौके पर धोखा देते हुए सपा के तीसरे प्रत्याशी का विरोध कर अलग लाइन बनाने की कोशिश किया। परिणाम आज अलग-थलग पड़ गया है। अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के सिंबल पर यूपी से सात कुर्मी लोकसभा सदस्य भेज कर बता दिया कि गैर यादवों में भी पिछड़ों के नेता हम हैं। ऐसा तब संभव हुआ, जब उन्होंने विभिन्न समाज के नेताओं को न सिर्फ सम्मान दिया, बल्कि उन्हें स्थापित करके अपना राजनैतिक पुरुषार्थ सिद्ध कर दिया। पिछड़ा, महिला, सवर्ण, मुस्लिम जिस भी समाज के प्रत्याशी को वह उतारे, उसमें दो विशेषता थी।
वरिष्ठ है तो जाना-परखा वफादार चेहरे जो तरजीह दी या फिर दूरगामी रणनीति पर काम करते हुए युवाओं पर दांव लगाया। रघुराज प्रताप सिंह “राजा भइया” हों या आजम खान हर कोई अखिलेश की रणनीति के आगे बिछ गए थे। सर्वविदित है कि अखिलेश यादव ने 2024 के चुनाव में पीडीए की ताकत की परख कर रहे थे। इसकी असली मार 2027 के विधानसभा चुनाव में दिखेगी। यदि माहौल इसी प्रकार रहा तो अखिलेश यादव दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाते दिख रहे हैं। अखिलेश यादव की तैयारी से दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी की नींद उड़ गई है, जिसका सबसे साफ लक्षण यह है कि उसके हताश कार्यकर्ता जगह-जगह प्रशासन से टकरा कर अपनी और पार्टी का ग्राफ तेजी से घटा रहे हैं। अखिलेश यादव का युवाओं को सम्मान देने और जरूरतमंदों को सहारा देकर कोई एहशान न जताने से लोगों के हृदय में उनका स्थान तेजी से बढ़ रहा है। यदि किसी षड्यंत्र के शिकार न हुए तो अखिलेश यादव जल्द ही देश की राजनीति के प्रमुख धुरी बन कर उभरेंगे। नेता जी का जो सपना उनके जीते जी नहीं साकार हुआ, उनके आशीर्वाद से अखिलेश यादव में साकार करने की शक्ति बन कर एक दिन पुनः दिखेंगे।

अयोध्या से लौट रही बस फुट ओवरब्रिज से टकराई…एक श्रद्धालु की मौत

-नाक पर उंगली रखकर मां को बार-बार समझा रहा था बेटा…पापा अब नहीं रहे,
मां मानने को तैयार नहीं थी

मोतीलाल चौधरी / कुशीनगर

कुशीनगर के हाटा हाईवे पर हुई दुर्घटना में काल के गाल में समाए पंकज के साथ उनकी पत्नी और 10 वर्षीय बेटा संजय भी अयोध्या में भगवान श्रीराम का दर्शन करने गए थे। परिवार के साथ दर्शन कर सभी खुश थे और श्रद्धालुओं के साथ बस से लौट रहे थे। हाटा के पास बाइक सवार को बचाने में बस फुट ओवरब्रिज से टकरा गई। हादसे ने संजय और मीरा को जीवन भर न भूलने वाला जख्म दे दिया। एक के सिर से पिता का साया उठ गया तो एक का सदा के लिए सुहाग उजड़ गया।
मिली जानकारी के अनुसार, दुर्घटना स्थल पर जब लोग पहुंचे और पंकज सहित सभी घायलों को हाटा सीएचसी पहुंचाया तो डॉक्टरों ने पंकज को मृत घोषित कर दिया, लेकिन मीरा को विश्वास नहीं हो रहा था कि पंकज अब इस दुनिया में नहीं रहे। वह बार-बार डॉक्टरों से उनका इलाज करने के लिए विनती कर रही थी। शव के पास मौजूद दस वर्ष के बेटे संजय को कुछ सूझ नहीं रहा था। वह बार-बार पिता की नाक पर उंगली लगाकर मां से बोल रहा था कि पापा की सांसें नहीं चल रही हैं। बेटे को ऐसा करता देख लोगों की आंखों में आंसू आ गए। लोग भगवान को कोस रहे थे। घनी आबादी के बीच अचानक हादसा होने से अफरा-तफरी मच गई।

वातावरण

वातावरण सुहाना आया।
अब की इस बरसात में।।
नई रोशनी चमक रही है।
आज घनेरी रात में।।
रोता है विकलांग आदमी।
अपनों की बारात में।।
संख्याबल जो मिला हुआ है।
वह शायद सौगात में।।
खड़ी दुपहरी बोल रही है।
मौसम है आयात में।।
हम तो हरदम फंसे हुए हैं।।
बेशरमी की बात में।।
बातें तो अब बहुत हो गईं।
क्या रक्खा है बात में।।
कर्म हमारा फंसा हुआ है।
मुश्किल झंझावात में।।
थर्मामीटर लगा हुआ है।
अब मेरी औकात में।।
माप रहा है ताकतवाला।
हरदम यातायात में ।।
क्या करना है तुम्हीं बताओ।
अब अंतिम बेबात में।।
-अन्वेषी

वरिष्ठ शिक्षक विनय कुमार दुबे का सत्कार संपन्न

मुंबई: न्यू सायन मनपा उ.प्रा.हिंदी शाला क्र.1जैन सोसायटी के वरिष्ठ शिक्षक एवं आदर्श मंच संचालक विनयकुमार रामनयन दुबे के शैक्षणिक एवं सामाजिक कार्यों हेतु प्रभारी मुख्याध्यापक योगेंद्र सिंह एवं समाजसेवी शिक्षाविद् चंद्रवीर बंशीधर यादव के नेतृत्व में सत्कार किया गया। इस अवसर पर अजय धांडे, सुधिर कोचे, हरिशंकर गुप्ता, संजीवनी मुन्तोडे, शांतीदेवी बिंद, सविता शुक्ला, क्रांति देवी सहित कई लोग उपस्थित थे।

सायन में प्रतापगढ़ियों का स्नेह मिलन सम्मेलन …मुंबई से लेकर गांव तक भाईचारा बढ़ाने का लिया संकल्प

 

समाजसेवी, उद्योगपति, पत्रकार, प्रशासनिक अधिकारी सहित विशिष्ठों को किया गया सम्मानित

सामना संवाददाता / मुंबई

प्रतापगढ़ परिवार द्वारा सायन सर्कल पर स्थित पेनिनसुला होटल में स्नेह सम्मेलन एवं कजरी महोत्सव का भव्य भव्य आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रतापगढ़ से जुड़े और  मुंबई या इसके आस पास के उपनगरों में रहने वाले हर क्षेत्र के विद्वानों ,पत्रकारों ने अपने जीवन के अनुभवों को साझा किया और नई पीढ़ी का मार्गदर्शन किया।

इस मौके पर सुप्रसिद्ध कवि साहित्यकार सुरेश मिश्र ने मंच संचालन के साथ ही अपनी पंक्तियों के माध्यम से लोगों को खूब हंसाए। कवित्री ज्योति त्रिपाठी ने भी अपनी रचना सुनाई। आईपीएस बृजेश मिश्रा गांव के अनायाश झगड़ों के प्रति जागरूक करते हुए मुंबई की तरह गांव में एकता को मजबूत करने की बात कही। मुख्य अतिथि आईएएस योगेश मिश्रा ने इस आयोजन को और मजबूत बनाने की बात कही। सेवानिवृत्त कमिश्नर कमलाशंकर मिश्र समारोह ने प्रतापगढ़ की उर्वरा मिट्टी में जन्मी उन महान विभूतियों का परिचय दिया। समाजसेवी पंकज मिश्रा ने कहा इस परिवार को मजबूत करते हुए समाज में आर्थिक आधार पर, पिछड़े वंचित लोगों के लिए कार्य करने की आवश्यकता है जिसके लिए हम तटस्थ और इसकी शुरुआत होने का प्रारूप तैयार करना चाहिए। उद्योगपति सुनील दामोदर दूबे के अपने विचार रखें।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने बद्री प्रसाद पांडेय ने हर संभव समाज कानूनी सहयोग करने की बात कही। वरिष्ठ समाजसेवी विजय पंडित जी ने कहा हमारे पूर्वजों ने इतना दिया है कि हम सिर्फ उसे संभालते हुए समाजसेवा में अपना जीवन न्योछावर करते रहना है।

कार्यक्रम के प्रायोजक डॉ. अमर मिश्र ने कहा कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मुंबई में रहने प्रतापगढ़िया अपने पैतृक जिले के लोगों को पहचाने और एक-दूसरे के सुख-दुख में सम्मिलित हों। उन्होंने आगे कहा इसी तरह से सभी का सहयोग मिलता रहा तो इस परिवार का बड़े स्तर पर कार्यक्रम किया जाएगा। कार्यक्रम में दीपक सुहाना उर्फ छोटका खेसारी ने अपनी टीम मुकेश त्रिपाठी व अन्य के साथ कजरी सहित बेल्हा माई,चंदीपुर धाम के गीत के माध्यम से लोगों को खूब मनोरंजन किया। पांचवें सम्मेलन में प्रतापगढ़ियों की भारी भीड़ देखने को मिली।

इस कार्यक्रम के आयोजक उद्योगपति अरुण मिश्रा जी (चंदीपुर धाम) थे जो चंदीपुर धाम और अपनी स्वर्गीय माता को याद कर भावुक हो गए।उन्होंने कहा में सौभाग्यशाली हूँ जो मुंबई में हमारी मातृभूमि प्रतापगढ़ के समाज के लिए अद्भुत कार्यक्रम आयोजन करने का अवसर मिला।

इस अवसर पर हर क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर श्रीकृष्ण त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार आनंद पांडेय,समाजसेवी राजेश पांडेय,वरिष्ठ पत्रकार अविनाश पांडेय, विद्याधर मिश्र,वरिष्ठ वकील रमेश त्रिपाठी, सन्तोष पांडेय, लक्ष्मण द्विवेदी, एड्. राम प्रकाश पांडेय, डॉ हरीश तिवारी, एड. विनय दुबे, राजेश मिश्रा, लल्लन पांडेय, राजेन्द्र त्रिपाठी, संतोष तिवारी,अनिल बारी, केके तिवारी, प्रदीप कुमार, अखिलेश तिवारी,सुशील पांडेय, मनोज तिवारी, भोला गिरी, राजदीप गिरी, लालजी यादव, अरविंद शुक्ला, दिवाकर पांडेय, अतुल तिवारी, सुरेश तिवारी, मुकेश त्रिपाठी आदि उपस्थित थे।